Contact +9759399575 pujapathpandit@gmail.com
Call: Puja Path Shadi Anya Dharmik Kary

भगवान गणेश की पूजा में क्यों होती है दूर्वा महत्वपूर्ण? जानें अभी

सनातन हिन्दू धर्म में देव पूजा में दूर्वा को अत्यन्त पवित्र माना गया है। देवी दुर्गा को छोड़कर पूजा में प्राय: सभी देवताओं को दूर्वा चढ़ाई जाती है। जिस प्रकार शिव पूजन में बेल पत्र आवश्यक है उसी प्रकार श्रीगणेश की पूजा तो बगैर दूर्वा के पूरी ही नहीं मानी जाती है। 

इस विशेष ब्लॉग में जानते हैं कि भगवान गणेश को दूर्वा इतने प्रिय क्यों होते हैं। क्यों भगवान गणेश की पूजा बिना दूर्वा के अधूरी मानी जाती है? आचार्य तुषार जोशी से जानें इन सभी बातों का जवाब।

भविष्य से जुड़ी किसी भी समस्या का समाधान मिलेगा विद्वान ज्योतिषियों से बात करके

यह दूर्वा कहां से उत्पन्न हुई ?कैसे अजर-अमर (चिरायु) हुई ?क्यों इतनी पवित्र मानी गयी है ?क्यों श्रीगणेश को दूर्वा अति प्रिय है ? औरदूर्वा से गणेश पूजन का महत्व क्या है ?

इन्हीं प्रश्नों का उत्तर इस प्रस्तुति में दिए गए हैं। 

समुद्र-मंथन में भगवान विष्णु से हुई दूर्वा की उत्पत्ति

अमृत की प्राप्ति के लिए देवताओं और देत्यों ने जब क्षीरसागर को मथने के लिए मन्दराचल पर्वत की मथानी बनायी तो भगवान विष्णु ने अपनी जंघा पर हाथ से पकड़कर मन्दराचल को धारण किया था। मन्दराचल पर्वत के तेजी से घूमने से रगड़ के कारण भगवान विष्णु के जो रोम उखड़ कर समुद्र में गिरे, वे लहरों द्वारा उछाले जाने से हरे रंग के होकर दूर्वा के रूप में उत्पन्न हुए। 

बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा 

दूर्वा की चिरायुता (अजर-अमर होने) और पवित्रता का रहस्य

उसी दूर्वा पर देवताओं ने समुद्र-मंथन से उत्पन्न अमृत का कलश रखा था। उस कलश से जो अमृत की बूंदें छलकीं, उनके स्पर्श से वह दूर्वा अजर-अमर हो गयी। दूर्वा को कितना भी काट दो उसकी जड़ें अपने-आप चारों ओर फैलती हैं। 

सभी देवताओं ने इस मन्त्र से दूर्वा की पूजा की और तभी से यह देव पूजा में अत्यन्त पवित्र और पूज्य मानी जाने लगी। 

त्वं दूर्वेऽमृतजन्मासि वन्दिता च सुरासुरै: ।

सौभाग्यं संततिं कृत्वा सर्वकार्यकरी भव ।।

यथा शाखाप्रशाखाभिर्विस्तृतासि महीतले ।

तथा ममापि संतानं देहि त्वमजरामरे ।। 

सौभाग्यं संततिं कृत्वा सर्वकार्यकरी भव ।। यथा शाखाप्रशाखाभिर्विस्तृतासि महीतले । तथा ममापि संतानं देहि त्वमजरामरे ।। 

अर्थात्—हे दूर्वे! तुम्हारा जन्म अमृत से हुआ है और देव और दानव दोनों की ही तुम पूज्य हो। तुम सौभाग्य व संतान देने वाली व सब कार्य सिद्ध करने वाली हो। जिस प्रकार तुम्हारी शाखा प्रशाखाएं पृथ्वी पर फैली हुई हैं उसी तरह हमें भी ऐसी संतान दो जो अजर-अमर हों। 

नये साल में करियर की कोई भी दुविधा कॉग्निएस्ट्रो रिपोर्ट से करें दूर

श्रीगणेश को क्यों है दूर्वा अति प्रिय?

श्रीगणेश को दूर्वा प्रिय होने के कई कारण हैं— 

हाथी को दूर्वा प्रिय होती है। दूर्वा में अत्यन्त नम्रता और सरलता होती है। यही कारण है कि तूफान में बांस जैसे बड़े-बड़े पेड़ अहंकार में अकड़े खड़े रहते हैं, जिस कारण गिर जाते हैं और दूर्वा सिर झुका लेती है, इस कारण जस-की-तस खड़ी रहती है। भगवान श्रीगणेश को भी विनम्रता और सरलता बहुत पसन्द है। एक पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था, उसके कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राहि-त्राहि मची हुई थी क्योंकि वह मुनि-ऋषियों और मनुष्यों को जिंदा निगल जाता था । इस दैत्य के अत्याचारों से दु:खी होकर सभी देवता व ऋषि-मुनि भगवान शंकर के पास कैलास पहुंचे और उनसे अनलासुर का वध करने की प्रार्थना की । 

भगवान शंकर ने देवताओं से कहा कि अनलासुर का नाश केवल श्रीगणेश ही कर सकते हैं। देवताओं व ऋषियों ने तब श्रीगणेश से प्रार्थना की। इस पर श्रीगणेश ने अनलासुर को निगल लिया। तमोगुणी, अहंकारी व दुष्ट दैत्य के उदर में पहुंचते ही श्रीगणेश के पेट में बहुत जलन होने लगी। 

कई प्रकार के उपाय करने के बाद भी जब श्रीगणेश के पेट की जलन शांत नहीं हुई, तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठें बनाकर श्रीगणेश को खाने को दीं। श्रीगणेश के दूर्वा ग्रहण करने पर उनके पेट की जलन शांत हुई। ऐसा माना जाता है कि श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा तभी से आरंभ हुई। 

 ऑनलाइन सॉफ्टवेयर से मुफ्त जन्म कुंडली प्राप्त करें

दूर्वा के बिना नहीं होता गणेश-पूजन पूरा

श्रीगणेश को पूजा में दो दूर्वा चढ़ाने का विधान है । दो दूर्वा जिसे दूर्वादल भी कहते हैं, चढ़ाने का कारण है— 

मनुष्य सुख-दु:ख भोगने के लिए बार-बार जन्म लेता है । उसी प्रकार दूर्वा अपनी अनेक जड़ों से जन्म लेती है । इस सुख-दु:ख रूपी द्वन्द्व को दो दूर्वा से श्रीगणेश को समर्पित किया जाता है ।
एक और तथ्य है कि दूर्वा को कितना भी काट दो उसकी जड़ें अपने आप चारों ओर फैलतीं हैं । अत: दूर्वा की भाँति भक्तों के कुल की वृद्धि होती रहे और उन्हें स्थायी सुख सम्पत्ति प्राप्त हो, इसलिए गणेश पूजन में दूर्वा चढ़ाते हैं । 

नानक नन्हें बनि रहो, जैसी नन्ही दूब।

सबै घास जरि जायगी, दूब खूब-की-खूब ।। 

श्रीगणपति अथर्वशीर्ष में कहा गया है—

‘यो दुर्वांकुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति ।’ 

अर्थात्—जो दूर्वा से भगवान गणपति का पूजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है । 

चतुर्थी तिथि में सभी विघ्नों के नाश व मनोकामना पूर्ति के लिए भगवान गणेश की पूजा 21 दूर्वादल व मोदक आदि से करनी चाहिए। जहां तक संभव हो दूर्वा तीन या पांच फुनगी वाली लेनी चाहिए। इसके लिए 21 दूर्वा को मोली से बांधकर व जल में डुबोकर श्रीगणेश के मस्तक पर इस तरह चढ़ाना चाहिए जिससे श्रीगणेश को दूर्वा की भीनी सुगंध मिलती रहे । 

महाराष्ट्र के कुछ मन्दिरों जैसे सिद्धिविनायक मुम्बई व अष्टविनायक आदि में श्रीगणेश को दूर्वा का हार अर्पित किया जाता है । 

दूर्वा का हार मिलना संभव न हो तो  21 दूर्वा को मोली से बांधकर उसमें एक गुड़हल का लाल पुष्प लगा कर श्रीगणेश के मस्तक पर धारण कराना चाहिए। वैसे श्रीगणेश दो दूर्वादल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए श्रीगणेश का सहस्त्रार्चन (1000 नामों से पूजन) दूर्वा से किया जाता है।

आचार्य तुषार जोशी से व्यक्तिगत परामर्श प्राप्त करने के लिए अभी फोन/चैट के माध्यम से उनसे जुड़ें।

सभी ज्योतिषीय समाधानों के लिए क्लिक करें: एस्ट्रोसेज ऑनलाइन शॉपिंग स्टोर

इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।

The post भगवान गणेश की पूजा में क्यों होती है दूर्वा महत्वपूर्ण? जानें अभी appeared first on AstroSage Blog.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *