हर साल क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा? 170 सालों से भी ज्यादा पुरानी है परंपरा
उड़ीसा के पुरी में निकलने वाली विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व पूरी दुनिया में हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह यात्रा हर साल आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हर साल निकलती है और आषाढ़ शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन भगवान जगन्नाथ की वापसी के साथ इस यात्रा का समापन होता है। यह पर्व जगत के स्वामी श्री हरि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का स्वरूप माने जाने वाले भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। इस यात्रा को रथ महोत्सव और गुंडिचा यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। उड़ीसा का जगन्नाथ मंदिर चार पवित्र तीर्थ धामों में से एक है। यहां पर श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूरी विधि-विधान से पूजा होती है। जगन्नाथ मंदिर में तीनों की मूर्तियां विराजमान हैं।
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शास्त्रों के अनुसार, इस ख़ास अवसर पर भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना करने से साधक को जीवन में विशेष फल की प्राप्ति होती है। उड़ीसा में भगवान जगन्नाथ रथयात्रा के उत्सव को बेहद धूमधाम के साथ मनाया जाता है और इस यात्रा में लाखों की संख्या में भक्त शामिल होते हैं।
ऐसे में, एस्ट्रोसेज अपने पाठकों के लिए “जगन्नाथ रथ यात्रा 2024” का यह विशेष ब्लॉग लेकर आया है जिसके तहत वर्ष 2024 में किस मुहूर्त और तिथि पर जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाएगी और आख़िर क्यों बीमार पड़ जाते हैं भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा से पहले? इन सभी सवालों के जवाब आपको हमारे इस ब्लॉग में मिलेंगे इसलिए इस ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़ें।
जगन्नाथ रथ यात्रा 2024 की तिथि एवं मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से रथ यात्रा की शुरुआत होती है और इसका समापन दस दिन बाद यानी ग्यारहवें दिन होता है। अगर हम बात करें वर्ष 2024 की, तो इस वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा का आरंभ 07 जुलाई, 2024 को होगा जबकि इसका अंत 10 दिन बाद होगा। जगन्नाथ रथ यात्रा का पर्व हर साल जून या जुलाई के महीने में पड़ता है। आइये आगे बढ़ते हैं और नज़र डालते हैं रथ यात्रा 2024 के मुहूर्त पर।
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जगन्नाथ रथ यात्रा 2024 का मुहूर्त
द्वितीय तिथि का आरंभ: 07 जुलाई 2024 को 04 बजकर 28 मिनट से,
द्वितीय तिथि की समाप्ति: 08 जुलाई, 2024 को 05 बजकर 01 मिनट तक।
जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल उड़ीसा में निकाली जाती है और यह पर्व सबसे प्रमुख व बड़ा पर्व होता है। इस यात्रा को लेकर ऐसी मान्यता है कि भी व्यक्ति श्री जगन्नाथ के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है, वह पुनर्जन्म के बंधनों से मुक्त हो जाता है और उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। भगवान जगन्नाथ विष्णु के आठवें अवतार, भगवान कृष्ण के रूपों में से एक हैं। इस शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से मिलकर हुई है जगन यानी कि ब्रह्मांड और नाथ का अर्थ “भगवान” से हैं।
सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथों नारद पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण आदि इस यात्रा का विस्तार रूप से वर्णन देखने को मिलता है। जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी मान्यता है कि इस यात्रा के दौरान रथों को खींचना भक्ति और कृपा का प्रतीक होता है। ऐसा करने से व्यक्ति को उन पापों से मुक्ति मिलती है जो जाने-अनजाने में हो जाते हैं। साथ ही, व्यक्ति हर प्रकार के रोग व कष्टों से दूर हो जाता है।
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रथ यात्रा से मौसी के घर मिलने जाते हैं जगन्नाथ
जगन्नाथ रथ यात्रा भक्ति और धार्मिक महत्व की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ साल में एक बार अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। इस समय भगवान के दर्शन वे लोग करने में भी सक्षम होते हैं, जो मंदिर जा कर भी दर्शन नहीं कर पाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने रथ पर सवार होकर भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ मिलकर अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर उनसे मिलने के लिए जाते हैं। इस मंदिर को जगन्नाथ जी की मौसी का घर माना जाता है जहां भगवान अपने भाई-बहनों के साथ एक सप्ताह तक ठहरते हैं।
इस अवधि के दौरान भगवान का बहुत ही आदर-सत्कार व मान-सम्मान किया जाता है और उनकी मौसी उन पर खूब प्रेम बरसाती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि मौसी भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के लिए तरह-तरह के पकवान बनाती हैं और भगवान खूब प्रेम से खाते हैं। इसके बाद वे बीमार पड़ जाते हैं। भगवान को स्वस्थ करने के लिए पथ्य का भोग लगाया जाता है। भगवान जगन्नाथ के पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद ही अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। बता दें कि मौसी के घर रहते हुए जगन्नाथ जी के भक्तों को दर्शन देने की प्रक्रिया को आड़प-दर्शन के नाम से जाना जाता है।
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जानें कैसे तैयार होते हैं जगन्नाथ यात्रा के रथ
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम जिस रथ पर सवार होकर मौसी के घर जाते हैं उस रथ का निर्माण भिन्न-भिन्न तरीके से होता है। इसके लिए तीनों देवी देवताओं के लिए अलग-अलग रथ तैयार किए जाते हैं। रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम जी, बीच में बहन सुभद्रा और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ जी का रथ चलता है। इन रथों को बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया से होती है। रथों के निर्माण के लिए दारु नामक नीम की लड़कियों का इस्तेमाल किया जाता है, जो सनातन धर्म में बेहद पवित्र मानी जाती है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन किया जाता है। ख़ास बात यह है कि इन तीनों रथों को बनाने के लिए किसी भी प्रकारी की धातु, कीलों या कांटों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। ऐसा रथ की पवित्रता को बनाए रखने के लिए किया जाता है। क्योंकि शास्त्रों में इस बात का वर्णन किया गया है कि किसी भी आध्यात्मिक कार्य के लिए कील या कांटे का इस्तेमाल नहीं करना है। यहां तक कि रथ में किसी भी प्रकार के लोहा या अन्य प्रकार के धातु का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता।
रथ की ऊंचाई की बात करें तो इसके साथ ही रथों की ऊचाई का भी विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। प्रत्येक साल बनने वाले ये रथ एक समान ऊंचाई के बनाए जाते हैं। इसमें भगवान जगन्नाथ के रथ की ऊंचाई 45.6 फीट होती है, जिसे नंदीघोष या गरुड़ध्वज के नाम से जानते हैं। वहीं बलराम जी का रथ की ऊंचाई 45 फीट ऊंचा होता है और देवी सुभद्रा का रथ 44.6 फीट ऊंचा बनाया जाता है। बलराम जी के रथ का नाम ‘तालध्वज’ है जो लाल और हरे रंग का होता है। वहीं सुभद्रा जी के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ के नाम से जाना जाता है। यह रथ काला या नीले रंग का होता है। साथ ही, इसमें शुभ रंग लाल भी मिला रहता है। वहीं, भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है।
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जगन्नाथ रथ की यात्रा की ख़ासियत
जगन्नाथ रथ यात्रा की कई ख़ास बातें हैं, जिन्हें जानना हम सबके लिए बेहद जरूरी है, तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं इन ख़ास बातों के बारे में।
भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिये होते हैं और इस रथ को शंखचूड़ रस्सी से खींचा जाता है। रथ को बनाने के लिए नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।इस दिन तीन भव्य और सुंदर रथों पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और देवी सुभद्रा ये तीन देवी-देवता विराजमान होते हैं। सबसे आगे बलराम जी का रथ चलता है, बीच में बहन सुभद्रा जी होती हैं और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ जी का रथ चलता है।भगवान बलराम और देवी सुभद्रा का रथ लाल रंग और जगन्नाथ भगवान का रथ लाल या पीले रंग का होता है।जगन्नाथ जी की यात्रा का ये उत्सव आषाढ़ शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन से आंरभ होता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के दिन बारिश जरूर होती है। आज तक कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि इस दिन बारिश न हुई हो। इस दिन बारिश का होना बहुत अधिक शुभ माना जाता है।इस दौरान राजाओं के वंशज पारंपरिक रूप से सोने के हत्थे वाली झाड़ू से जगन्नाथ जी के रथ के सामने झाड़ू लगाते हैं। इसके बाद मंत्रोच्चार एवं जयघोष के साथ इस पवित्र रथ की यात्रा को आगे बढ़ाते हैं।इस रथ यात्रा को लेकर कई सारी मान्यताएं हैं, जिसमें से एक यह भी है कि इस दिन जो भक्त रथ यात्रा में सम्मिलित होते हैं और उन्हें 100 यज्ञों के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ गर्भगृह से निकलकर अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए इस यात्रा के माध्यम से निकलते हैं।
होती है छर पहनरा की रस्म
रथयात्रा के दौरान जब तीनों रथ पूरी तरह बनकर तैयार हो जाते हैं तो उस समय छर पहनरा की रस्म की शुरुआत होती है। बता दें कि छर पहनरा एक उड़िया शब्द है जिसका अर्थ है झाड़ू लगाना और पवित्र जल का छिड़काव करना। इसके अंतर्गत पुरी के राजा पालकी में बैठकर मंदिर जाते हैं और इन तीनों रथों का पूजन पूरे विधि-विधान से व श्रद्धाभाव से करते हैं। इसके बाद, वह सोने की झाड़ू से रथ मंडप को साफ करने के साथ-साथ रथ यात्रा के मार्ग को साफ करते हैं जहां से रथ यात्रा की यात्रा आरंभ होती है।
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रथयात्रा से 15 दिन पहले बीमार हो जाते हैं भगवान
पौराणिक मान्यता के अनुसार, यात्रा की शुरुआत के 15 दिन पहले भगवान जगन्नाथ को बुखार आ जाता है और वो कुछ दिन अकेले रहने चले जाते हैं। इस भक्त उनके दर्शन नहीं कर पाते हैं। इस दौरान केवल मंदिर का मुख्य पुजारियों ही उनके पास जाता है और वही भगवान का श्रृंगार करते हैं और और भोग लगाते हैं। साथ ही, उनकी देखभाल करते हैं। उस समय भगवान को दवा के साथ और आराम और देखभाल की भी आवश्यकता होती है। इस दौरान मुख्य पुजारी उन्हें जड़ी-बूटियों और औषधियों से युक्त भोजन देते हैं ताकि वो जल्द स्वस्थ हो जाए। जब भगवान पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं तब यात्रा निकलने की तैयारी होती है और तब ही मंदिर से बाहर आते हैं।
इस वजह से पड़ जाते हैं भगवान बीमार
शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ के महीने में जब बहुत ज्यादा धूप, गर्मी और गर्ब लू चलती है तब उस समय ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भगवान गर्भ गृह से बाहर निकलकर 108 घड़े ठंडे पानी से स्नान करते हैं। इस दौरान उन्हें बाहर प्रांगण में निकालकर बैठाया जाता है और स्नान कराया जाता है। इस उत्सव को स्नान उत्सव के नाम से जाना जाता है और इस दौरान सैकड़ों भक्त प्रांगण में आते हैं। ठंडे पानी से स्नान करने के बाद भगवान बीमार पड़ जाते हैं और इसी वजह से ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद 15 दिनों के लिए मुख्य मंदिर दर्शन के लिए बंद कर दिया जाता है। ताकि वे आराम कर सकें। इसके अलावा, यदि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें तो पुरी में इस दौरान बहुत अधिक गर्मी होती है और भक्त परेशान न हों इसलिए मुख्य मंदिर को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं।
बीमार होने के ये है मुख्य कारण
माना जाता है कि स्नान करने के बाद भगवान जगन्नाथ पूरे दिन धूप में खड़े रहते हैं और ठंडे पानी से स्नान भी करते हैं। ठंड गर्म की वजह से ही वो बीमार होते हैं और उन्हें काफी तेज़ बुखार आ जाता है। इसके बाद उन्हें उपचार के लिए एक कमरे में रखा जाता है जहां उन्हें भोजन के रूप में औषधि दी जाती है और उनका एक मरीज की तरह से इलाज किया जाता है। साथ ही, मुख्य पुजारी उनकी अच्छे से देखभाल करते हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
उत्तर 1. बात यदिवर्ष 2024 की करें तो इस वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा का आरंभ 07 जुलाई, 2024 को होगा जबकि इसका अंत 10 दिन बाद होगा।
उत्तर 2. जगन्नाथ रथ यात्रा 10 दिनों का होता है।
उत्तर 3. मान्यता है कि एक बार बहन सुभद्रा ने अपने दोनों भाइयों से नगर घूमने की इच्छा व्यक्त की थी, तभी से इस रथ यात्रा का आयोजन हो रहा है।
उत्तर 4. रथ यात्रा में अलग-अलग तीन रथों पर सवार भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को पुरी की सड़कों से गुंडिचा मंदिर तक भक्तों द्वारा खींचा जाता है।
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