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3 गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा | ganesh chaturthi ki kahani | Astrosega

यहां पर गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथाएं दी गई है। जो कि गणेश चतुर्थी के दिन आपकी सहायता कर सकता है। यहां पर 3 कथाएं उपलब्ध है।

1 – गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा

ganesh chaturthi ki kahani – एक समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह की तैयारियां चल रही थीं, जिसमें सभी देवों को पूजित किया गया था। लेकिन विघ्नहर्ता गणेश जी को निमंत्रण नहीं भेजा गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह में आए।
लेकिन गणेश जी उपस्थित नहीं थे, इसलिए देवताओं को देखकर भगवान विष्णु से इसका कारण पूछा गया। उन्होंने कहा कि भगवान शिव और पार्वती को निमंत्रण भेजा गया है, गणेश अपने माता – पिता के साथ आना चाहते हैं। तो आ सकते हैं। हालांकि उन्हें पचास मन मूंग, सौ मन चावल, सौ मन घी और सौ मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि वे नहीं आते तो अच्छा है। दूसरे के घर जाओ तो सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।     
इस दौरान किसी देवता ने कहा कि गणेश जी अगर आते हैं। तो उन्हें घर के देखरेख की जिम्मेदारी दी जा सकती है। उनसे कहा जा सकता है कि आप चूहे पर धीरे – धीरे जाएंगे तो बराज आगे चले जाएंगे और आप पीछे रह जाएंगे, ऐसे में आप घर की देखरेख करें। योजना के अनुसार, विष्णु जी के निमंत्रण पर गणेश जी वहां उपस्थित हो गए। 
उन्हें घर के पहरे की जिम्मेदारी दे दी गई। बारात घर से निकल गई और गणेश जी दरवाजे पर ही बैठे थे, यह देखकर नारद जी ने इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि विष्णु भगवान ने उनका अपमान किया है। तब नारद जी ने गणेश जी को एक सुझाव दिया।
गणपति ने सुझाव के तहत अपने चूहों की सेना बारात के आगे भेज दी, जिसने पूरे रास्ते खोद दिए। इसके फलस्वरूप देवताओं के रथों के पहिए रास्तों में ही फंस गए। बारात आगे नहीं जा रही रही थी। किसी के समझने में कुछ भी नहीं आ रहा था। 
कि क्या किया जाए, तब नारद जी ने गणेश जी को बुलाने का उपाय दिया ताकि भगवान के विघ्न दूर हो जाएं। भगवान शिव के आदेश पर नंदी गजानन को लेकर आए। देवताओं ने गणेश जी का पूजन किया, तब जाकर रथ के पहिए गड्ढों से निकल गए, लेकिन कई पहिए टूट गए।   
उस समय पास में ही एक लोहार काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। उन्होंने अपना काम शुरू करने से पहले गणेश जी का मन ही मन स्मरण किया, और देखते ही देखते सभी रथों के कमरों को ठीक कर दिया। उन्होंने भगवान से कहा कि लगता है। 
कि आपने सभी शुभ कार्य प्रारंभ करने से पहले विघ्नहर्ता गणेश जी की पूजा नहीं की है, तभी ऐसी परिस्थिति आई है। तुम सब गणेश जी का ध्यान कर आगे जाओ, तुम्हारा सारा काम हो जाएगा। देवताओं ने गणेश जी की जय जयकार की और बारात अपने अंक तक सकुशल पहुंच गए। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह संपन्न हो गया।

2 – गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा

ganesh chaturthi ki kahani – एक दिन माता पार्वती नदी किनारे भगवान शिव के साथ बैठी थीं। उन्हें चोपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन उनके अलावा कोई तीसरा नहीं था, जो खेल में हार जीत का फैसला करे। ऐसे में माता पार्वती और शिव जी ने एक मिट्टी की मूर्ति में जान फूंक दी और उसे निर्णायक की भूमिका दी। 
खेल में माता पार्वती लगातार तीन से चार बार विजयी हुईं, लेकिन एक बार बच्चे ने गलती से माता पार्वती को हारा हुआ और भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया। इस पर पार्वती जी उससे क्रोधित हो गईं।
क्रोधित पार्वती जी ने उन्हें बालक को लंगड़ा बना दिया। उसने माता से माफी मांगी, लेकिन उन्होंने कहा कि श्राप अब वापस नहीं लिया जा सकता है, पर एक उपाय है। संकष्टी के दिन यहां पर कुछ कन्याएं पूजन के लिए आते हैं, उनसे व्रत और पूजा की विधि पूछते हैं। आप भी उसी व्रत और पूजा करना। माता पार्वती के कहे अनुसार वैसा ही किया। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान गणेश उसके संकटों को दूर कर देते हैं।
  

3 – गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा  

ganesh chaturthi ki kahani – राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता है, लेकिन वे कच्चे बने रहते थे। एक पुजारी की सलाह पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे लड़के को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा डाल दिया। 
उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे के लिए परेशान थी। उन्होंने गणेश जी से बेटे की कुशलता की प्रार्थना की। दूसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चो का बाल बांका भी नहीं हुआ था। 
वह डर गया और राजा के दरबार में जाकर सारी घटना बताई। इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी माँ को बुलवाया तो माँ ने सभी तरह के विघ्न को दूर करने वाले संकष्टी चतुर्थी का वर्णन किया। इस घटना के बाद से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगीं।

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