शादी - विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश, काल सर्प दोष , मार्कण्डेय पूजा , गुरु चांडाल पूजा, पितृ दोष निवारण - पूजा , महाम्रत्युन्जय , गृह शांति , वास्तु दोष

ब्राह्मण एक ही जाति

सूर्य सिद्धान्त

इस समय में भी सब ब्राह्मण एक ही जाति के थे। अब यहाँ से बहुत काल पश्चात् ब्राह्मणों के दो भेद हो गये ओ विध्याचल के उत्तर और दक्षिण देश में गौड़ और द्राविड़ नाम से पुकारे जाने लगे अर्थात उत्तर देशवासी गौड़ और दक्षिण देश वासी द्राविड़ ब्राह्मण कहे जाते थे फिर एक एक भेद के पांच पांच भेद हुए अर्थात पञ्च गौड़ और पञ्च द्राविड़ ऐसे दश प्रकार के ब्राह्मण होगये

यथा : –

सारस्वता कान्यकुब्जा गौड़ उत्कल मैथिला |
पंचगौड़ा इतिख्याता विंध्यस्योत्तर वासिना ॥
कर्णाटकाश्च तैलंगा द्राविड़ा महाराष्ट्रका |
गुर्जराश्चेति पंचैव द्राविड़ा विंध्य दक्षिणे ॥

अर्थ :- सारस्वत १ कान्य कुब्ज २ गौड़ ३ उत्कल ४ और मैथिल ५ ये पंच गौड़ कहलाते हैं और विध्याचल पर्वत के उत्तर में बसते हैं। कर्णाटक १ तैलङ्ग २ द्राविड़ ३ महाराष्ट्रियन ४ और गुर्जर ५ ये पंच द्राविड़ कहलाते हैं और विध्याचल के दक्षिण देश में बसते हैं

इस प्रकार पंचगौड़ और पंच द्राविड़ मिलकर दश ब्राह्मण कहलाते हैं। इनके अलावा और भी १२ प्रकार के गौड़ है, उनके नाम ये है

(१) मांडव्य (मालवी) गौड़ (२) श्री गौड़ (३) श्री हर्ष गौड़ (गङ्गा पुत्र गौड़) (४) हर्याणा गौड़ (५) वाल्मीकि गौड (६) वासिष्ठ गौड़ (७) सौरभ गौड़, (८) दालभ्य गौड़ (9) सुखसेन गौड़ (१०) नागर गौड़ (११) सूर्यध्वज गौड़ (१२) माथुर गौड़, ये द्वादश गौड़ कहलाते हैं इनमे पंच गौड़ों को मिलाने से १७ प्रकार के गौड़ होते हैं। अब तक गौड़ और द्राविड़ों का वृत्तान्त कहा। Read more आदि गौड़ ब्राह्मण