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Chaturmash ya Chaumasha

हिन्दू धर्म में सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह का विशेष महत्व बताया गया है. इन चारों महीनों को मिलाकर चातुर्मास बनता है. देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो कार्तिक के देव प्रबोधिनी एकादशी तक चलती है. इस समय में श्री हरि विष्णु योगनिद्रा में लीन रहते हैं, इसलिए शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं. इसी अवधि में आषाढ़ के महीने में भगवान विष्णु ने वामन रूप में अवतार लिया था. 

चातुर्मास को चौमासा भी कहते हैं. चातुर्मास में भगवान श्रीहरि विष्णु योग निद्रा में होते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में होता है. वे पालक और संहारक दोनों ही भूमिका में होते हैं. चातुर्मास में मांगलिक कार्य बंद होते हैं और इसमें लोगों को संयम की आवश्यकता होती है. जो लोग चातुर्मास के नियमों का पालन करते हैं, वे सुखी रहते हैं और परिवार की उन्नति होती है, साथ ही सुख-समृद्धि भी बढ़ती है. श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी बता रहे हैं चातुर्मास के नियमों के बारे में.

चातुर्मास में किसकी पूजा होती है?
चातुर्मास के चारों महीने हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र माने जाते हैं. आषाढ़ के महीने में अंतिम समय में भगवान वामन और गुरु पूजा का विशेष महत्व होता है. सावन के महीने में भगवान शिव की उपासना होती है और उनकी कृपा सरलता से मिलती है. भाद्रपद में भगवान कृष्ण का जन्म होता है और उनकी कृपा बरसती है. आश्विन के महीने में देवी और शक्ति की उपासना की जाती है. कार्तिक के महीने में पुनः भगवान विष्णु का जागरण होता है और सृष्टि में मंगल कार्य आरम्भ हो जाते हैं.

चातुर्मास के 10 नियम
1. चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि तक होता है. इन चार माह में प्रतिदिन सूर्योदय पूर्व उठकर रोज नहाना चाहिए. भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. इसमें सावन माह शिव पूजा के लिए उत्तम है.

2. पूरे चातुर्मास में ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करें. तामसिक विचार और तामसिक वस्तुओं से दूरी बनाकर रखें. मन, कर्म और वचन से शुद्ध रहकर क्षमता अनुसार दान पुण्य करें.

3. चातुर्मास में एक समय भोजन करना चाहिए. भू​मि या फर्श पर समय से सोना चाहिए. व्रत, जप, तप, साधना, योग आदि करना चाहिए. इससे शरीर और मन दोनो स्वस्थ रहेंगे.

4. चातुर्मास के व्रतों को विधिपूर्वक रखकर पूजा करनी चाहिए. बेकार की बातों में अपनी शक्ति न लगाएं. क्रोध पर नियंत्रण रखें, दूसरे की बुराई से बचें. घमंड न करें. आत्म चिंतन करें.

5. चातुर्मास में प्रत्येक दिन संध्या आरती जरूर करें. नया जनेऊ धारण करें. चातुर्मास में भगवान विष्णु, महादेव के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, माता पार्वती, गणेश जी, राधाकृष्ण, पितृ देव आदि का पूजन करना चाहिए.

6. चातुर्मास में विवाह, सगाई, गृह प्रवेश आदि जैसे मांगलिक कार्य न करें क्योंकि इस समय में देव सो रहे होते हैं. ऐसे में इन कार्यों को करने से शुभ फल नहीं मिलता है.

7. चातुर्मास में पान, दही, तेल, बैंगन, साग, शकर, मसालेदार भोजन, मांस, मदिरा, नमकीन खाद्य पदार्थ आदि का सेवन नहीं करते हैं. मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास में पान छोड़ने से भोग, दही छोड़ने से गोलोक, गुड़ छोड़ने से मधुरता, नमक छोड़ने से पुत्र सुख की प्राप्ति होती है.

8. चातुर्मास के सावन में पत्तेदार सब्जियां, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक में लहसुन-प्याज का सेवन वर्जित है. साथ ही चातुर्मास में काले या नीले वस्त्र धारण न करें.

9. चातुर्मास में व्यक्ति को 5 प्रकार के दान करने चाहिए, जिसमें दीपदान, अन्न दान, वस्त्र दान, छाया दान और श्रम दान शामिल है.

10. चातुर्मास में आप भगवान विष्णु के मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय और शिव जी के पंचाक्षरी मंत्र ओम नम: शिवाय का जाप कर सकते हैं. चातुर्मास में शिव और विष्णु भक्ति से मनोरथ सिद्ध होंगे.

देवशयनी एकादशी इस दिन से भगवान विष्णु समेत सभी देव शयन करते हैं और भगवान शिव पूरी सृष्टि की बागडोर अपने हाथों में संभाल लेते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ होता है, जिसमें भगवान विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं. एक मान्यता यह भी है कि देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु पाताल लोक में निवास करते हैं और योग निद्रा में होते हैं. पूरे चातुर्मास तक श्रीहरि पाताल लोक में रहते हैं. इसके पीछे एक रोचक पौराणिक कथा है, उस बारे में बता रहे हैं तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव.

चातुर्मास में भगवान विष्णु के पाताल लोक में रहने का कारण
कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने राजा बलि को वचन दिया था कि वह पाताल लोक में उसके साथ रहेंगे. राजा बलि ने अपना सबकुछ दान करने के बाद भगवान विष्णु से कहा था कि उसकी इच्छा है कि जब भी वह आंखें खोले तो उसके समक्ष आप साक्षात् दर्शन दें. भगवान वे उसे वरदान दे दिया और उसके साथ ही पाताल लोक में रहने लगे. बाद में माता लक्ष्मी राजा बलि के बंधन से मुक्त कराकर विष्णु जी को वैकुंठ लाईं. लेकिन भगवान विष्णु ने बलि से कहा कि वे चार माह पाताल लोक में निवास करेंगे. तब से चातुर्मास में हर साल भगवान विष्णु पाताल लोक में योग निद्रा में होते हैं. इसकी पूरी कथा कुछ इस प्रकार है.

राजा बलि ने वामन देव को कर दिया सबकुछ दान
वामन अवतार में भगवान विष्णु असुरों के राजा बलि के पास पहुंचते हैं और 3 पग भूमि दान में मांगते हैं. शुक्राचार्य बलि को मना करते हैं. लेकिन बलि के समक्ष कोई भी व्यक्ति जो भी वस्तु मांगता था, उसे दान में मिल जाती थी. वह अपने दान पुण्य के लिए लोकप्रिय था. वामन देव ने दो पग में पूरी पृथ्वी और स्वर्ग को नाप दिया. तीसरा पग बलि ने अपने सिर पर रख लिया. इससे प्रसन्न होकर वामन देव वास्तविक स्वरूप में आए. भगवान विष्णु ने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा.

वरदान से बलि के बंधन में बंध गए भगवान विष्णु
उससे पूर्व उन्होंने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और कहा कि कलयुग के अंत तक वहां निवास करोगे. तब बलि ने भगवान विष्णु से कहा कि वह चाहता है कि जब भी सोकर उठे तो साक्षत् आपके दर्शन हो. आप पाताल लोक की शत्रुओं से रक्षा करें. वचनबद्ध होने के कारण भगवान विष्णु ने उसे वरदान दे दिया और उसके साथ पाताल लोक चले गए.

काफी समय बीत जाने के बाद जब भगवान विष्णु वैकुंठ लोक नहीं पहुंचे तो माता लक्ष्मी सहित सभी देवी और देवता चिंतित हो गए. तब नारद जी ने माता लक्ष्मी को उपाय बताया. उसको मानकर माता लक्ष्मी श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि के घर पहुंची और मदद की गुहार लगाई. उन्होंने पहले रा​जा बलि को राखी बांधी, उसके बाद पूरा बात बताई. उन्होंने बलि को भाई बनाकर कहा कि तुम भगवान विष्णु को पाताल लोक से वैकुंठ भेज दो.

ऐसे मुक्त हुए भगवान विष्णु
माता लक्ष्मी को वचन देने के कारण राजा बलि ने भगवान विष्णु को उनके वरदान से मुक्त कर दिया. तब भगवान विष्णु ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि वे चातुर्मास में पाताल लोक में निवास करेंगे. राजा बलि ने कहा कि आप दोनों मेरे संबंधी हो गए हैं तो कुछ दिन और पाताल लोक में रहें और सेवा का मौका दें. रक्षाबंधन से लेकर धनतेरस तक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी पातला लोक में रहे. फिर वहां से वापस वैकुंठ लौट आए.