Holi 2022 : जानिए कैसे शुरु हुई रंगों से होली खेलने की परंपरा !
हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि (Phalguna Purnima) को होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन (Holika Dahan) को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. इसके अगले दिन प्रतिपदा तिथि पर रंगों और गुलाल से होली (Holi with Colors) खेली जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली खेलने की ये परंपरा कैसे शुरू हुई. पौराणिक कथाओं में रंगों की होली का संबन्ध श्रीकृष्ण और राधारानी से संबन्धित बताया गया है. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने ही अपने ग्वालों के साथ इस प्रथा को शुरू किया था. यही वजह है कि होली के त्योहार (Holi Festivals) को आज भी ब्रज में अलग ढंग से ही मनाया जाता है. यहां लड्डू होली, फूलों की होली, लट्ठमार होली, रंगों की होली आदि कई तरह की होली खेली जाती हैं और ये कार्यक्रम होली से कुछ दिनों पहले से शुरू हो जाता है. इस बार होली का पर्व 18 मार्च को मनाया जाएगा. यहां जानिए कि आखिर रंगों की होली खेलने का ये चलन कैसे शुरू हुआ.
ये है कथा
रंगों की होली के पीछे श्रीकृष्ण की शरारत की एक कथा है. श्रीकृष्ण का रंग सांवला था और राधारानी बहुत गोरी थीं. इस बात की शिकायत वो अक्सर अपनी यशोदा मैया से करते थे और उनकी मैया इस बात पर जोर से हंस देती थीं. एक बार उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा वे राधा को जिस रंग में देखना चाहते हैं, वो रंग राधा के चेहरे पर लगा दें. नटखट कन्हैया को मैया का सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने ग्वालों के साथ मिलकर कई तरह के रंग तैयार किए और बरसाना पहुंच कर राधा और उनकी सखियों को इससे रंग दिया. नटखट कन्हैया की ये शरारत सभी को आनंद दे रही थी और सभी ब्रजवासी खूब हंस रहे थे. माना जाता है कि इसी दिन से होलिका दहन के बाद रंगों की होली खेलने का चलन शुरू हो गया. लोग रंग बिरंगे गुलाल से होली खेलकर इस उत्सव को सेलिब्रेट करते हैं.
जीवन में उत्साह भरते हैं रंग
आपके नीरस जीवन में ये रंग उत्साह भरने का काम करते हैं और लोगों के बीच सकारात्मकता का भाव लेकर आते हैं. लाल रंग प्रेम का प्रतीक माना जाता है और हरा रंग समृद्धि का सूचक है. पीला रंग शुभ माना गया है और नीला रंग श्रीकृष्ण का रंग माना गया है. इस तरह रंगों से होली खेलकर हमारा मन आनंदित हो जाता है. ये त्योहार लोगों के मन से कटुता को समाप्त कर प्रेम भर देता है. वैसे तो होली का ये पर्व भारत के अधिकांश हिस्सों में मनाया जाता है, लेकिन ब्रज की होली आज भी पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इसे राधाकृष्ण के सच्चे प्रेम के प्रतीक के तौर पर सेलिब्रेट किया जाता है.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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