Makar Sankranti 2022: जानें इस दिन किये जाने वाले कर्मकाण्डों का महत्व
मकर संक्रांति का पावन पर्व 14 जनवरी को मनाया जायेगा। यह पर्व हिन्दू धर्म के लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं। इस दिन मकर राशि में सूर्य प्रवेश कर जाते हैं और इसलिए ही इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। बहुत सी जगहों पर इसे ‘खिचड़ी’ और ‘उत्तरायण’ भी कहते हैं।
मकर संक्रांति पर प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालुओं का मेला विभिन्न नदियों के घाटों पर लगता है। इस शुभ दिन तिल खिचड़ी का दान करते हैं। वास्तव में स्थूल परम्पराओं मे आध्यात्मिक रहस्य छुपे हुए हैं। तो आइये जानते हैं इस बेहद शुभ और पावन दिन का आध्यात्मिक रहस्य और इस दिन से जुड़ी कई अन्य महत्वपूर्ण बातें। यह सभी जानकारियाँ आचार्य तुषार जोशी जी की कलम से तैयार की गयी हैं।
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मकर संक्रांति 2022: शुभ मुहूर्त
पुण्य काल मुहूर्त: 14:12:26 से 17:45:10 तक
अवधि: 3 घंटे 32 मिनट
महापुण्य काल मुहूर्त:14:12:26 से 14:36:26 तक
अवधि: 0 घंटे 24 मिनट
संक्रांति पल: 14:12:26
जानकारी: ऊपर दिया गया मुहूर्त नई दिल्ली के लिए मान्य है। अपने शहर के अनुसार शुभ मुहूर्त जानने के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं।
मकर संक्रांति: खिचड़ी दान का महत्व
अभी कलियुग का अंतिम समय चल रहा है। सारी मानवता दुखी-अशांत हैं। हर कोई परिवर्तन के इंतजार में है। सारी व्यवस्थाएं व मनुष्य की मनोदशा जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है। ऐसे समय में विश्व सृष्टिकर्ता परमात्मा शिव कलियुग, सतयुग के संधिकाल अर्थात संगमयुग पर ब्रह्मा के तन में आ चुके हैं।
जिस प्रकार भक्ति मार्ग में पुरुषोत्तम मास में दान-पुण्य आदि का महत्व होता है, उसी प्रकार पुरुषोत्तम संगमयुग, जिसमें ज्ञान स्नान करके बुराइयों का दान करने से, पुण्य का खाता जमा करने वाली हर आत्मा उत्तम पुरुष बन सकती है। मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी और तिल का दान करते हैं, इसका भाव यह है कि मनुष्य के संस्कारों में आसुरियता की मिलावट हो चुकी है, अर्थात उसके संस्कार खिचड़ी हो चुके हैं, जिन्हें परिवर्तन करके अब दिव्य संस्कार धारण करने हैं।
इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक मनुष्य को ईर्ष्या-द्वेष आदि संस्कारों को छोड़कर संस्कारों का मिलन इस प्रकार करना है, जिस प्रकार खिचड़ी मिलकर एक हो जाती है। परमात्मा की अभी आज्ञा है कि तिल समान अपनी सूक्ष्म से सूक्ष्म बुराइयों को भी हमें तिलांजलि देना है। जैसे उस गंगा में भाव-कुभाव से ज़ोर जबर्दस्ती से एक दो को नहलाकर खुश होते हैं और शुभ मानते हैं; इसी प्रकार अब हमें ज्ञान गंगा में नहलाकर मुक्ति-जीवनमुक्ति का मार्ग दिखाना है। जैसे जब नयी फसल आती है तो सभी खुशियाँ मनाते हैं। इसी प्रकार वास्तविक और अविनाशी खुशी प्राप्त होती है, बुराइयों का त्याग करने से।
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मकर संक्रांति: अर्थ और महत्व
फसल कटाई का समय देशी मास के हिसाब से पौष महीने के अंतिम दिन तथा अंग्रेजी महीने के 14,15 जनवरी को आता है। इस समय एक सूर्य राशि से दूसरी राशि में जाता है इसलिए इसे संक्रमण काल कहा जाता है, अर्थात एक दशा से दूसरी दशा में जाने का समय।
यह संक्रमण काल उस महान संक्रमण काल का यादगार है जो कलियुग के अंत सतयुग के आरंभ में घटता है। इस संक्रमण काल में ज्ञान सूर्य परमात्मा भी राशि बदलते हैं। वे परमधाम छोड़ कर साकार वतन में अवतरित होते हैं। संसार में अनेक क्रांतियाँ हुई। हर क्रांति के पीछे उद्देश्य–परिवर्तन रहा है… हथियारों के बल पर जो क्रांतियाँ हुई उनसे आंशिक परिवर्तन तो हुआ, किन्तु सम्पूर्ण परिवर्तन को आज मनुष्य तरस रहा है।
सतयुग में खुशी का आधार अभी का संस्कार परिवर्तन है, इस क्रांति के बाद सृष्टि पर कोई क्रांति नहीं हुई।
संक्रांति का त्योहार संगमयुग पर हुई उस महान क्रांति की यादगार में मनाया जाता है।
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मकर संक्रांति पर किये जाने वाले कर्मकाण्ड और उनका तात्पर्य
1) स्नान – ब्रह्म मुहूर्त में उठ स्नान, ज्ञान स्नान का यादगार है।
2) तिल खाना- तिल खाना, खिलाना, दान करने का भी रहस्य है। वास्तव में छोटी चीज़ की तुलना तिल से की गयी है। आत्मा भी अति सूक्ष्म है। अर्थात तिल आत्म स्वरूप में टिकने का यादगार है।
3) पतंग उड़ाना- आत्मा हल्की हो तो उड़ने लगती है; देहभान वाला उड़ नहीं सकता है। जबकि आत्माभिमानी अपनी डोर भगवान को देकर तीनों लोकों की सैर कर सकता है।
4) तिल के लड्डू खाना- तिल को अलग खाओ तो कड़वा महसूस होता है। अर्थात अकेले में भारीपन का अनुभव होता है। लड्डू एकता एवं मिठास का भी प्रतीक है।
5) तिल का दान- दान देने से भाग्य बनता है। अतः वर्तमान संगंयुग में हमें परमात्मा को अपनी छोटी कमज़ोरी का भी दान देना है।
6) आग जलाना- अग्नि में डालने से चीज़ें पूरी तरह बदल जाती है। सामूहिक आग – योगीजन संगठित होकर एक ही स्मृति से ईश्वर की स्मृति मे टिकते हैं, जिसके द्वारा न केवल उनके जन्म-जन्म के विकर्म भस्म होते हैं, बल्कि उनकी याद की किरणें समस्त विश्व में फाइल कर शांति, पवित्रता, आनंद, प्रेम, शक्ति की तरंगे फैलाती हैं।
यदि इस पर्व को निम्नलिखित विधि द्वारा मनाए तो न केवल हमें सच्चे सुख की प्राप्ति होगी बल्कि हम परमात्म आशीर्वाद के भी अधिकारी बनेंगे।
मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक बातें
सूर्य की सातवीं किरण को अपने भीतर उतार लेने का दिन है मकर संक्रांति, पढ़ें 11 पौराणिक बातें।
मकर संक्रांति का पर्व हिन्दू माह के पौष मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। इस वर्ष 14 जनवरी 2022, शुक्रवार को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। तो आइये जानते हैं कि आखिर मकर संक्रांति के दिन सूर्य की सातवीं किरण का क्या है रहस्य होता है।
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सूर्य की सातवीं किरण
कहते हैं कि सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। रश्मि अर्थात किरण। कहते हैं कि सूर्य की सातवीं किरण भारतवर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा और यमुना नदी के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।
गंगा जा मिली थी गंगा सागर में: मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथजी के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
श्रीहरि विष्णु ने किया था असुरों का वध: इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
सूर्यवंशी राजा करते हैं सूर्य की पूजा: रामायण काल से ही भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। रामकथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य की विशेष आराधना होती है।
भीष्म पितामह: महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का ही इंतजार किया था। कारण कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है।
सूर्य जाते हैं अपने पुत्र शनि के घर: हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार इसी दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है।
यशोदाजी ने किया था व्रत: कहते हैं कि माता यशोदा जी ने श्रीकृष्णजी के लिए व्रत किया था तब सूर्य उत्तरायण हो रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। तभी से मकर संक्रांति के व्रत का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
उत्तरायण होता है सूर्य तब देवताओं का प्रारंभ होता है दिन: मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण गति करने लगते हैं। इस दिन से देवताओं का छह माह का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है।
पुण्यकाल: सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं। मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए।
पावन व्रत: सूर्य संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। संत-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। मकर संक्रांति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है।
तिल के छः प्रयोग: विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं- तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण, तिल से आहुति, तिल का उबटन लगाना।
उम्मीद करते हैं कि मकर संक्रांति के इस पावन पर्व पर लिखा हमारा यह लेख आपको पसंद आया होगा। आप सबको इस महान पर्व मकर सक्रांति की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
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