Naam Rashi Akshar नाम राशि अक्षर, नक्षत्र चरण के अनुसार नाम अक्षर नामकरण
राशि
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मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
नक्षत्र और उनके अक्षर-
नक्षत्रों का ज्योतिष महत्व
ज्योतिषशास्त्र में 12 राशियां होती हैं और 27 नक्षत्र हैं। हर राशि में 2 या 3 नक्षत्र आते हैं। कहा जाता है कि इन 27 नक्षत्रों के नाम दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के नाम पर आधारित हैं और दक्ष ने अपनी 27 बेटियों का विवाह चंद्रदेव से कर दिया था। इसलिए ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक चंद्रमा इन 27 नक्षत्रों में गोचर करता रहता है, तब कहीं 27.3 दिन में धरती की परिक्रमा पूरी कर पाता है। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा की स्थिति के अनुसार ही बच्चे का नामक्षर और उसकी राशि तय की जाती है। इसके अलावा प्रत्येक नक्षत्र का एक स्वामी होता है जिसका जातक के जीवन में गहरा प्रभाव पड़ता है।
नक्षत्रों को प्रमुख तौर पर देवगण, नरगण और राक्षसगण में विभाजित किया गया है। वहीं हिंदू धर्म में शादी या किसी शुभ तिथि को तय करने के लिए नक्षत्र की गणना की जाती है। ये नक्षत्र जातक के शारीरिक अंगों को परिभाषित करने के साथ-साथ बीमारियों को बताने के लिए जाने जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार 27 नक्षत्र होते हैं। परंतु इन 27 नक्षत्रों को भी तीन भागों में विभाजित कर दिया गया है। शुभ नक्षत्र, मध्यम नक्षत्र और अशुभ नक्षत्र।
शुभ, मध्यम और अशुभ नक्षत्र
शुभ नक्षत्र वे नक्षत्र होते हैं जिनमें किए गए समस्य कार्यों सिद्ध और सफल होते हैं। इनमें 15 नक्षत्र आते हैं – रोहिणी, अश्विन, मृगशिरा, पुष्य, हस्त, चित्रा, रेवती, श्रवण, स्वाति, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढा, उत्तरा फाल्गुनी, घनिष्ठा, पुनर्वसु। वहीं मध्यम नक्षत्र में वे नक्षत्र आते हैं जिनमें किए गए कार्य मध्यम फलदायी और सिद्धकारी होते हैं। इसमें हानि नहीं होती है लेकिन मध्यम फल ही प्राप्त होता है। जैसे -पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, विशाखा, ज्येष्ठा, आर्द्रा, मूला और शतभिषा। अंतिम में अशुभ नक्षत्र वे होते हैं, जिसमें किए गए कार्यों का फल अशुभ और बुरा मिलता है। साथ ही कार्य के दौरान बाधाएं जरूर आती हैं। वे नक्षत्र होते हैं – भरणी, कृतिका, मघा और आश्लेषा।
पंचक :-
अक्सर आपने पंचक और गंडमूल नक्षत्रों के बारे में कई बार सुना होगा। दरअसल इन नक्षत्रों में कोई भी शुभ काम की शुरुआत नहीं की जाती है और अगर इस नक्षत्र में कोई जातक जन्म लेता है तो जन्म के 27 दिन बाद मूलशांति की पूजा की जाती है। पंचक नक्षत्र तब होता है जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशि में गोचर करता है। उस वक्त घनिष्टा से रेवती के बीच में जितने नक्षत्र होते हैं उन्हें पंचक कहा जाता है। मान्यता है कि पंचक के दौरान जोखिम भरा कार्य करना वर्जित है और दक्षिण दिशा की तरफ यात्रा करना अशुभ माना जाता है। इस नक्षत्र के दौरान घर की छत यानि लेंटर नहीं डलवाना चाहिए।
गंडमूल नक्षत्र :-
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, इस नक्षत्र को सबसे अशुभ माना जाता है। अश्विनी,आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती को गंडमूल नक्षत्र कहा गया है। इस नक्षत्र में पैदा होने वाले जातक को जीवनभर कष्टों और संघर्षों का सामना करना पड़ता है। यदि इन 6 नक्षत्रों में किसी में भी बच्चा जन्म लेता है तो 27 दिन के पश्चात घर पर मूलशांति का पाठ करवाना पड़ता है और 27 दिन तक पिता बच्चे का मुख भी नहीं देखते हैं।
आइए जानते हैं नक्षत्र उनके चरणों के अक्षर और राशि के बारे में –
मेष राशि –
अश्विनि नक्षत्र:- चू, चे, चो, ला
भरणी नक्षत्र:-ला, ली, लू, ले, लो
कृतिका नक्षत्र:- आ,ई, ऊ, ए
वृष राशि-
कृतिका नक्षत्र:- आ,ई, ऊ, ए
रोहिणी नक्षत्र:- ओ, वा, वी, वू
मृगशिरा नक्षत्र:- वे, वो,का, की
मिथुन राशि-
मृगशिरा नक्षत्र:- वे, वो,का, की
आर्द्रा नक्षत्र:- कू, घ, ङ, छ
पुनर्वसु नक्षत्र:- के, को, हा, ही
कर्क राशि –
पुनर्वसु नक्षत्र:- के, को, हा, ही
पुष्य नक्षत्र:- हू, हे, हो, डा
अश्लेषा नक्षत्र:- डी, डू, डे, डो
सिंह राशि-
मघा नक्षत्र:- मा, मी, मू, मे
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र:- मो, टा, टी, टू
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र:- टे,टो,पा,पी
कन्या राशि –
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र:- टे,टो,पा,पी
हस्त नक्षत्र:- पू, ष, ण, ठ
चित्रा नक्षत्र:- पे,पो, रा,री
तुला राशि –
चित्रा नक्षत्र:- पे,पो, रा,री
स्वाती नक्षत्र:- रू, रे, रो, ता
विशाखा नक्षत्र:- ती, तू, ते, तो
वृश्चिक राशि –
विशाखा नक्षत्र:- ती, तू, ते, तो
अनुराधा नक्षत्र:- ना, नी, नू, ने
ज्येष्ठा नक्षत्र:- नो, या, यी, यू
धनु राशि –
मूल नक्षत्र:- ये, यो, भा, भी
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र:- भू, धा, फा, ढा
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र:- भे,भो, जा, जी
मकर राशि –
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र:- भे,भो, जा, जी
श्रवण नक्षत्र:- खी, खू, खे, खो
धनिष्ठा नक्षत्र:- गा, गी, गू, गे
कुंभ राशि –
धनिष्ठा नक्षत्र:- गा, गी, गू, गे
शतभिषा नक्षत्र:- गो, सा, सी, सू
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र:- से, सो, दा, दी
मीन राशि –
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र:- से, सो, दा, दी)
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र:- दू, थ, झ, ण
रेवती नक्षत्र:- दे, दो, चा, ची
12 राशि इंग्लिश मे
(अंक) Number | (राशि) Rashi | (अक्षर) Letter |
1 | (मेष) – Aries | (अ.ल.ई) – A, L, E |
2 | (वृषभ) – Taurus | (ब.व.उ) – B, V, U |
3 | (मिथुन) – Gemini | (क.छ.घ) – K, CHH, GH |
4 | (कर्क) – Cancer | (ड.ह) – D, H |
5 | (सिंह) – Leo | (म.ट) – M, T |
6 | (कन्या) – Virgo | (प.ठ.ण) – P, TH, N |
7 | (तुला) – Libra | (र.त) – R, T |
8 | (वृश्चिक) – Scorpio | (न.य) – N, Y |
9 | (धनु) – Sagittarius | (फ.ध.भ.ढ) – PHA, DHA, BHA, DHA |
10 | (मकर) – Capricornus | (ख.ज) – KHA, J |
11 | (कुंभ) – Aquarius | (ग.स.श.ष) – G, S, SH, SH |
12 | (मीन) – Pisces | (द.च.झ.थ) – D, C, JHA, THA |
12 राशि गुजराती मे
12 राशि स्वामी गुरु | 12 Rashi Swami
सभी 12 राशि (Rashi) के स्वामी
राशि नाम हिन्दी | राशि नाम अंग्रेजी | राशि स्वामी ग्रह | राशि तत्व | राशि दिशा |
मेष | Aries | मंगल | राजस | पूर्व |
वृषभ | Taurus | शुक्र | तामस | दक्षिण |
मिथुन | Gemini | बुध | सात्विक | पश्चिम |
कर्क | Cancer | चन्द्र | राजस | उत्तर |
सिंह | Leo | सूर्य | तामस | पूर्व |
कन्या | Virgo | बुध | सात्विक | दक्षिण |
तुला | Libra | शुक्र | राजस | पश्चिम |
वृश्चिक | Scorpio | मंगल | तामस | उत्तर |
धनु | Sagittarius | गुरु | सात्विक | पूर्व |
मकर | Capricorn | शनि | राजस | दक्षिण |
कुंभ | Aquarius | शनि | तामस | पश्चिम |
मीन | Pisces | गुरु | सात्विक | उत्तर |
राशियो के चिन्ह ( Symbol of Zodiac Hindi)
राशि | संकेत/चिन्ह |
मेष | मेढा |
वृष/वृषभ | बैल |
मिथुन | युवा दंपत्ति |
कर्क | कैकडा |
सिंह | शेर |
कन्या | कुवारी कन्या |
तुला | तराजू |
वृश्चिक | बिच्छु |
धनु | धनुष, धर्नुधारी |
मकर | मगरमच्छ |
कुम्भ | घड़ा, कलश |
मीन | मछली |
मूल नक्षत्र
गण्डमूल / मूल नक्षत्र
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के आधार पर चंद्र मण्डल से एक लाख योजन ऊपर नक्षत्र मण्डल है, जिस मण्डल में कुल २७ नक्षत्र हैं. कुल नक्षत्रों में ६ नक्षत्र गण्ड मूल नक्षत्रों की श्रेणी में माने गये हैं. जो निम्नवत हैं-
१. अश्वनी, २. आश्लेषा, ३. मघा, ४. ज्येष्ठा, ५. मूल और ६. रेवती
उपरोक्त नक्षत्रों में उत्पन्न जातक जातिका गण्ड मूलक कहलाते हैं, इन नक्षत्रों में उत्पन्न जातक स्वयं व कुटुम्बी जनों के लिये अशुभ माने गये हैं।
”जातो न जीवतिनरो मातुरपथ्यो भवेत्स्वकुलहन्ता ”
आइये जानते हैं कि गण्ड मूल किसे कहते हैं . जहाँ एक राशि और नक्षत्र समाप्त हो रहे हो उसे गण्ड कहते हैं। और जहाँ दूसरी राशि से नक्षत्र का आरम्भ हो उसे मूल कहते हैं। गण्ड मूल नक्षत्र संधि क्षेत्र में आने से दुष्परिणाम देने वाले होते हैं और राशि चक्र में यह स्थिति तीन बार आती है। राशि चक्र और नक्षत्र चक्र दोनों की छह नक्षत्रों पर संधि होती है संधि क्षेत्र हमेशा नाजुक और अशुभ होते हैं.
अब जानते हैं कि कैसे इन ६ नक्षत्रों को गण्ड मूल कहा गया है।
आश्लेषा नक्षत्र और कर्क राशि का एक साथ समाप्त होना और यही से मघा नक्षत्र और सिंह राशि का प्रारम्भ।
ज्येष्ठा नक्षत्र और वृश्चिक राशि का समापन और यही से मूल नक्षत्र और धनु राशि का प्रारम्भ।
रेवती नक्षत्र और मीन राशि का समापन और यही से अश्वनी नक्षत्र और मेष राशि का प्रारम्भ।
यहाँ तीन गण्ड नक्षत्र हैं- आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती
और तीन मूल नक्षत्र हैं- मघा, मूल और अश्वनी
जिस प्रकार एक ऋतु का जब समापन होता है और दूसरी ऋतु का आगमन होता है तो उन दोनों ऋतुओं का संक्रमण स्वास्थ्य के लिये उत्तम नहीं माना गया है इसी प्रकार नक्षत्रों का स्थान परिवर्तन जीवन और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक माना गया है।
जिन नक्षत्रों के स्वामी बुध और केतु होते हैं वो गण्ड मूल नक्षत्र की श्रेणी में आते हैं. रेवती, आश्लेषा, ज्येष्ठा का स्वामी बुध है ! अश्विनी, मघा, मूल का स्वामी केतु है !
इन्हें २ श्रेणी में विभाजित किया गया है – बड़े मूल व छोटे मूल।
मूल, ज्येष्ठा व आश्लेषा- बड़े मूल कहलाते है,
अश्वनी, रेवती व मघा- छोटे मूल कहलाते है।
बड़े मूलो में जन्मे बच्चे के लिए २७ दिन के बाद जब चन्द्रमा उसी नक्षत्र में जाये तो शांति करवानी चाहिए ऐसा पराशर का मत भी है, तब तक बच्चे के पिता को बच्चे का मुह नहीं देखना चाहिए ! जबकि छोटे मूलो में जन्मे बच्चे की मूल शांति उस नक्षत्र स्वामी के दूसरे नक्षत्र में करायी जा सकती है अर्थात् १०वें या १९वें दिन में यदि जातक के जन्म के समय चंद्रमा इन नक्षत्रों में स्थित हो तो मूल दोष होता है; इसकी शांति नितान्त आवश्यक होती है ! जन्म समय में यदि यह नक्षत्र पड़े तो दोष होता है !
दोष मानने का कारण यह है की नक्षत्र चक्र और राशी चक्र दोनों में इन नक्षत्रों पर संधि होती है और संधि का समय हमेशा से विशेष होता है ! उदाहरण के लिए रात्रि से जब दिन का प्रारम्भ होता है तो उस समय को हम ब्रह्ममूहूर्त कहते है। और ठीक इसी तरह जब दिन से रात्रि होती है तो उस समय को हम गदा बेला / गोधूली कहते है ! इन समयों पर भगवान का ध्यान करने के लिए कहा जाता है- जिसका सीधा सा अर्थ है की इन समय पर सावधानी अपेक्षित होती है ! संधि का स्थान जितना लाभप्रद होता है उतना ही हानि कारक भी होता है ! संधि का समय अधिकतर शुभ कार्यों के लिए अशुभ ही माना जाता है !
गण्डमूल में जन्म का फल:
गण्डमूल के विभिन्न चरणों में दोष विभिन्न लोगो को लगता है, साथ ही इसका फल हमेशा बुरा ही हो ऐसा नहीं है !
अश्विनी नक्षत्र में चन्द्रमा का फल:
प्रथम पद में- पिता के लिए कष्टकारी
द्वितीय पद में- आराम तथा सुख के लिए उत्तम
तृतीय पद में- उच्च पद
चतुर्थ पद में- राज सम्मान
आश्लेषा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल:
प्रथम पद में- यदि शांति करायीं जाये तो शुभ
द्वितीय पद में- संपत्ति के लिए अशुभ
तृतीय पद में- माता को हानि
चतुर्थ पद में- पिता को हानि
मघा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल:
प्रथम पद में- माता को हानि
द्वितीय पद में- पिता को हानि
तृतीय पद में- उत्तम
चतुर्थ पद में- संपत्ति व शिक्षा के लिए उत्तम
ज्येष्ठा नक्षत्र में चन्द्रमा का फल:
प्रथम पद में- बड़े भाई के लिए अशुभ
द्वितीय पद में- छोटे भाई के लिए अशुभ
तृतीय पद में- माता के लिए अशुभ
चतुर्थ पद में- स्वयं के लिए अशुभ
मूल नक्षत्र में चन्द्रमा का फल:
प्रथम पद में- पिता के जीवन में परिवर्तन
द्वितीय पद में- माता के लिए अशुभ
तृतीय पद में- संपत्ति की हानि
चतुर्थ पद में- शांति कराई जाये तो शुभ फल
रेवती नक्षत्र में चन्द्रमा का फल:
प्रथम पद में- राज सम्मान
द्वितीय पद में- मंत्री पद
तृतीय पद में- धन सुख
चतुर्थ पद में- स्वयं को कष्ट
स्वभाव (जातक का)
जातक बुद्धिमान, दम्भी, खर्चीला, कार्य को पूर्ण करने वाला, व्यवहार कुशल, धार्मिक उपदेशक, प्राय: धन की कमी वाला, व्यापार एवं चिकित्सा में सफल, विश्वविख्यात होता है. आयु, स्वास्थ्य, विवाह में समस्या उत्पत्ति होती है. अल्पायु (२७, ३१, पर ५६, ६०वें वर्षों में रोग से जूझना पड़ सकता है।)
उपाय- जन्म के २७वें दिन (शान्ति)
२७ छेदों वाले घडे में सात स्थानों- घुड़साल, साँपका बिल, गौशाला, तालाब, नदी का संगम, हाथी बाँधने का स्थान, राज्य द्वार की मिट्टी
सौ प्रकार की औषधी (या सतावर डाल की छाल)
२७ तीर्थों का जल (२७ स्थानों का जल)
२७ वृक्षों की छालों को पात्र में रखकर सभी कलशों का पूजन हवन करें
माता और बच्चे को ढ़ककर २७ तीर्थों का जल डालकर स्नान करना चाहिए
सरसों के तेल में नवजात शिशु की छाया पिता को देखनी चाहिए, उसके पश्चात् हि पिता को सन्तान को चेहरा देखना चाहिए. तेल का पात्र दान देना चाहिए. इसी को छाया दान कहा जाता है.
अभुक्तमूल
ज्येष्ठा की अंतिम एक घडी तथा मूल की प्रथम एक घटी अत्यंत हानिकर हैं, इन्हें ही अभुक्तमूल कहा जाता है, शास्त्रों के अनुसार पिता को बच्चे से ८ वर्ष तक दूर रहना चाहिए ! यदि यह संभव ना हो तो कम से कम ६ माह तो अलग ही रहना चाहिए ! मूल शांति के बाद ही बच्चे से मिलना चाहिए ! अभुक्तमूल पिता के लिए अत्यंत हानिकारक होता है ! यह तो था नक्षत्र गंडांत इसी आधार पर लग्न और तिथि गंडांत भी होता है।
लग्न गंडांत
मीन-मेष, कर्क-सिंह, वृश्चिक-धनु लग्न की आधी-२ प्रारंभ व अंत की घडी कुल २४ मिनट लग्न गंडांत होता है !
तिथि गंडांत
५, १०, १५ तिथियों के अंत व ६, ११, १ तिथियों के प्रारम्भ की २-२ घड़ियाँ तिथि गंडांत है रहता है ! जन्म समय में यदि तीनों गंडांत एक साथ पड़ रहे है तो यह महा-अशुभ होता है।
नक्षत्र गंडांत अधिक अशुभ, लग्न गंडांत मध्यम अशुभ व तिथि गंडांत सामान्य अशुभ होता है, जितने ज्यादा गंडांत दोष लगेंगे किसी कुंडली में उतना ही अधिक अशुभ फल कारक होंगे।
गण्ड का परिहार:
१. गर्ग के मतानुसार
रविवार को अश्विनी में जन्म हो या सूर्यवार बुधवार को ज्येष्ठ, रेवती, अनुराधा, हस्त, चित्रा, स्वाति हो तो नक्षत्र जन्म दोष कम होता है !
२. बादरायण के मतानुसार
गण्ड नक्षत्र में चन्द्रमा यदि लग्नेश से कोई सम्बन्ध, विशेषतया दृष्टि सम्बन्ध न बनाता हो तो इस दोष में कमी होती है !
३. वशिष्ठ जी के अनुसार
दिन में मूल का दूसरा चरण हो और रात में मूल का पहला चरण हो तो माता-पिता के लिए कष्ट होता है इसलिए शांति अवश्य कराये! अभिजीत मुहूर्त में जन्म होने पर गण्डांतादी दोष प्रायः नष्ट हो जाते है ! लेकिन यह विचार सिर्फ विवाह लग्न में ही देखें, जन्म में नहीं !
ब्रह्मा जी का वाक्य है की
चन्द्रमा यदि बलवान हो तो नक्षत्र गण्डांत व गुरु बलि हो तो लग्न गण्डांत का दोष काफी कम लगता है !
विशेष परिस्थितियों में गण्ड या गण्डांत का प्रभाव काफी हद तक कम हो जाता है (लेकिन फिर भी शांति अनिवार्य है) !
इन नक्षत्रों में जिनका जन्म हुआ हो तो उस नक्षत्र की शान्ति हेतु जप और हवन अवश्य कर लेनी चाहिए —
१. अश्वनी के लिये ५००० मन्त्र जप।
२. आश्लेषा के लिये १०००० मन्त्र जप।
३. मघा के लिये १०००० मन्त्र जप।
४. ज्येष्ठा के लिये ५००० मन्त्र जप।
५. मूल के लिये ५००० मन्त्र जप।
६. रेवती के लिये ५००० मन्त्र जप।
इन नक्षत्रों की शान्ति हेतु ग्रह, स्व इष्ट, कुल देवताओं का पूजन ,रुद्राभिषेक तथा नक्षत्र तथा नक्षत्र के स्वामी का पूजन अर्चन करने के बाद दशांश हवन किसी सुयोग्य ब्राह्मण से अवश्य करवाए ।
यदि नामकरण संस्कार समय पर अथवा जन्म के ११वें या १२वें दिन नहीं किया जाता है तो उचित मुहूर्त चुनने के लिये निम्नलिखित विचार आवश्यक हैं।
नक्षत्र: सभी स्थिर नक्षत्र अर्थात् रोहिणी (4), उत्तराफाल्गुनी (12), उत्तराषाढा (21), उत्तर भाद्रपद (२६), सभी चल नक्षत्र अर्थात् पुनर्वसु (7), स्वाति (15), श्रवण (22), धनिष्ठा (23), शतभिषा (24), सभी सौम्य और मैत्रीपूर्ण नक्षत्र अर्थात् मॄगशिरा (5), चित्रा (14), अनुराधा (१७), रेवती (२७), और सभी लघु नक्षत्र अर्थात् अश्विनी (1), पुष्य (8), हस्त (13) नामकरण संस्कार के लिये शुभ माने जाते हैं।
तिथि: शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा (1), द्वितीया (2), तृतीया (3), पञ्चमी (5), सप्तमी (7), दशमी (10), एकादशी (11), द्वादशी (12), त्रयोदशी (13) तिथियों को नामकरण के लिये शुभ माना जाता है।
दिन: नामकरण के लिये सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को शुभ माना जाता है।
लग्न: नामकरण के लिये चल लग्न अर्थात् मेष (1), कर्क (4), तुला (7) और मकर (10) को वर्जित माना जाता है।
कुण्डली: नामकरण के समय लग्न से आठवाँ भाव रिक्त होना चाहिये। इसके अतिरिक्त यह भी देखा जाना चाहिये कि लग्न में कोई अशुभ ग्रह स्थित नहीं हो या किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि लग्न पर न पड़ रही हो।
सामान्य: नामकरण के मुहूर्त के लिये तारा अस्त का विचार नहीं किया जाता है। इसी तरह महालय, चतुर्मास, होलाष्टक तथा सृजन के दिन अर्थात युगादि और मन्वादि तिथियों को भी इसमें वर्जित नहीं माना जाता है।
चन्द्र और तारा शुद्धि: नामकरण के समय, शिशु के लिये उचित चन्द्र और तारा शुद्धि होनी चाहिये।
वर्जित: नामकरण के लिये संक्रान्ति, ग्रहण और सामान्य पञ्चाङ्ग दोष वर्जित माने जाते हैं। साथ ही नामकरण संस्कार को उत्तरायण काल में, मध्याह्न के पूर्व करना उचित माना गया है। नामकरण संस्कार विशेषतः अपराह्न के पूर्व अर्थात् दिन के पहले भाग में करना सबसे शुभ माना गया है।
- चर राशि: मेष, कर्क, तुला, और मकर राशि चर राशि में आती हैं. चर राशि के लोगों में क्रियाशीलता, गति, अनुकूलनशीलता, परिवर्तन, तीव्रता, सुधार, स्वतंत्रता, आगे बढ़ना, लचीलापन, और असंतोष जैसी विशेषताएं होती हैं. जन्म कुंडली में ज़्यादातर ग्रह चर राशि में होने पर व्यक्ति की स्थिति चलायमान रहती है. ऐसे लोगों में यात्राएं ज़्यादा होती हैं और घर में कम ठहराव होता है.
- स्थिर राशि: वृषभ, सिंह, वृश्चिक, और कुंभ राशि स्थिर राशि में आती हैं.
- द्विस्वभाव राशि: मिथुन, कन्या, धनु, और मीन राशि द्विस्वभाव में आती हैं. द्विस्वभाव राशि में मिश्रित परिणाम होते हैं.
नामकरण पूजन
सामग्री विवरण
पूजन सामग्री
सामग्री | मात्रा |
रोली | 10 ग्राम |
पीला सिंदूर | 10 ग्राम |
पीला अष्टगंध चंदन | 10 ग्राम |
लाल सिंदूर | 10 ग्राम |
हल्दी (पिसी) | 50 ग्राम |
हल्दी (समूची) | 50 ग्राम |
सुपाड़ी (समूची बड़ी) | 100 ग्राम |
लौंग | 10 ग्राम |
इलायची | 10 ग्राम |
सर्वौषधि | 1 डिब्बी |
सप्तमृत्तिका | 1 डिब्बी |
पीली सरसों | 50 ग्राम |
जनेऊ | 5 पीस |
इत्र | 1 शीशी |
गरी का गोला (सूखा) | 2 पीस |
पानी वाला नारियल | 1 पीस |
जटादार सूखा नारियल | 1 पीस |
अक्षत (चावल) | 1 किलो |
धूपबत्ती | 1 पैकेट |
रुई की बत्ती (गोल / लंबी) | 1-1 पैकेट |
देशी घी | 500 ग्राम |
कपूर | 20 ग्राम |
कलावा | 5 पीस |
चुनरी (लाल / पीली) | 1/1 पीस |
बताशा | 500 ग्राम |
गंगाजल | 1 शीशी |
नवग्रह चावल | 1 पैकेट |
लाल वस्त्र | 1 मीटर |
पीला वस्त्र | 1 मीटर |
कुश (पवित्री) | 4 पीस |
लकड़ी की चौकी | 1 पीस |
दोना (छोटा-बड़ा) | 1-1 पीस |
मिट्टी का कलश (बड़ा) | 1 पीस |
मिट्टी का प्याला | 8 पीस |
मिट्टी की दियाली | 8 पीस |
हवन कुण्ड | 1 पीस |
माचिस | 1 पीस |
आम की लकड़ी | 2 किलो |
नवग्रह समिधा | 1 पैकेट |
हवन सामग्री | 500 ग्राम |
तिल | 100 ग्राम |
जौ | 100 ग्राम |
गुड़ | 100 ग्राम |
कमलगट्टा | 100 ग्राम |
शहद | 50 ग्राम |
पंचमेवा | 200 ग्राम |
पंचरत्न व पंचधातु | 1 डिब्बी |
धोती (पीली/लाल) | 1 पीस |
अगोंछा (पीला/लाल) | 1 पीस |
तत्काल लेने का सामान
सामग्री | मात्रा |
मिष्ठान | 500 ग्राम |
पान के पत्ते (समूचे) | 21 पीस |
केले के पत्ते | 5 पीस |
आम के पत्ते | 2 डंठल |
ऋतु फल | 5 प्रकार के |
दूब घास | 50 ग्राम |
फूल, हार (गुलाब) की | 2 माला |
फूल, हार (गेंदे) की | 2 माला |
गुलाब/गेंदा का खुला हुआ फूल | 500 ग्राम |
तुलसी की पत्ती | 5 पीस |
दूध | 1 लीटर |
दही | 1 किलो |
घर से लेने वाला सामान
सामग्री | मात्रा |
आटा | 100 ग्राम |
चीनी | 500 ग्राम |
अखंड दीपक (ढक्कन समेत) | 1 पीस |
तांबे/पीतल का कलश (ढक्कन समेत) | 1 पीस |
थाली | 2 पीस |
लोटे | 2 पीस |
कटोरी | 4 पीस |
चम्मच | 2 पीस |
परात | 2 पीस |
कैंची /चाकू (लड़ी काटने हेतु) | 1 पीस |
जल (पूजन हेतु) | |
गाय का गोबर | |
मिट्टी | |
बिछाने का आसन |
नामकरण संस्कार के लिए सामग्री
कॉपी | 1 पीस |
पेन | 1 पीस |
घर में प्रसाद बनाने हेतु
पंचामृत |
ब्राह्मणों के लिए वरण सामग्री
धोती |
कुर्ता |
अंगोछा |
पंच पात्र |
माला इत्यादि |