Significance of Shivling : सनातन परंपरा में शिवलिंग की पूजा का क्या है महत्व, जानें इससे जुड़े सरल उपाय
देश का शायद ही कोई ऐसा कोना हो जहां पर भगवान शिव (Lord Shiva) की साधना न की जाती हो. पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक कल्याण के देवता माने जाने वाले शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग (12 Jyotirlingas) समेत आपको कई ऐसे सिद्ध मंदिर मिल जाएंगे, जहां प्रतिदिन शिव भक्तों का तांता लगा रहता है. भगवान शिव की साधना में उनके निराकार स्वरूप लिंग की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व है. आइए सनातन परंपरा में शिवलिंग का धार्मिक महत्व (Significance of Shivling) और इसकी पूजा का नियम और उपाय जानते हैं.
शिवलिंग की पूजा का फल
शास्त्रों में कहा गया है – ‘शिवः अभिषेक प्रियः’ यानि कल्याण के देवता माने जाने वाले शिव को अभिषेक अत्यंत प्रिय है. मान्यता है कि सभी मनोकामनाओं को पूरा करने की शक्ति शक्ति शिवलिंग के अभिषेक में समाहित है. मान्यता यह भी है कि शिवलिंग की साधना का फल उसी क्षण मिल जाता है और साधक मनोकूल फल की प्राप्ति होती है. यही कारण है कि शिव के अनन्य भक्त प्रतिदिन उनकी साधना-आराधना अनेक प्रकार की विधि से करते हैं.
विभिन्न प्रकार के शिवलिंग का महत्व
मान्यता है कि विभिन्न प्रकार के रत्नों से बना शिवलिंग धन और ऐश्वर्य प्रदान करने वाला और पत्थर से बना शिवलिंग सभी प्रकार के कष्टों को दूर करके मनोकामनाओं को पूरा करने वाला और धातु से बना शिवलिंग धन-धान्य प्रदान करने वाला और शुद्ध मिटटी से बना हुआ (पार्थिव) शिवलिंग सभी सिद्धियों की प्राप्ति कराने वाला माना गया है. भगवान शंकर को पारा अतिप्रिय है. इसे शम्भुबीज कहा गया है. इसकी उत्पत्ति महादेव के शरीर से उत्पन्न पदार्थ शुक्र से मानी गई है. ऐसे में पारद शिवलिंग की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं शीघ्र ही पूरी होती हैं.
शिवलिंग की पूजा के नियम
शिवलिंग की पूजा में हमेशा भगवान शंकर की प्रिय प्रिय चीजें जैसे सफेद पुष्प, धतूरा, बेलपत्र अवश्य अर्पित करना चाहिए.
शिवलिंग पर भूलकर भी कुटज, नागकेसर, बंधूक, मालती, चंपा, चमेली, कुंद, जूही, केतकी, केवड़ा आदि के फूल नहीं चढ़ाएं.
सभी प्रकार के रोग-शोक को दूर करने के लिए कच्चे दूध एवं गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए.
मान्यता है कि शिवलिंग की विधि-विधान से पूजा करने पर साधक के ग्रह-गोचर अनुकूल होने लगते हैं और उसके जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर होते हैं.
चूंकि शिवलिंग पर चढ़ाया जाने वाला जल अत्यंत पवित्र होता है. ऐसे में शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल जिस तरफ से निकलता है, उसे लांघना दोष माना गया है. यही कारण है कि शिवलिंग की आधी परिक्रमा का विधान है.
शिवलिंग पर बेलपत्र को चढ़ाने से पहले उसकी डंठल की ओर के मोटे भाग, जो कि वज्र कहलाता है, उसे तोड़कर अवश्य निकाल दें. इसी प्रकार बेलपत्र को हमेशा उलट कर चढ़ाना चाहिए. शिवलिंग पर भूलकर भी कटा-फटा बेलपत्र न चढ़ाएं.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)