शादी - विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश, काल सर्प दोष , मार्कण्डेय पूजा , गुरु चांडाल पूजा, पितृ दोष निवारण - पूजा , महाम्रत्युन्जय , गृह शांति , वास्तु दोष

सूर्य सिद्धान्त

छः शास्त्रों का बनना  इसी प्रकार पृथ्वी और सूर्य चन्द्रमा तथा नक्षत्रों के घूमने और उदय अस्त पर वर्षों तक ध्यान दिया और यहाँ तक हद्द करदी कि दृथ्वी मुय चन्द्रमा की परिधियों को ठीक ठीक नाप लिया और उनके चक्रों का हिसाब समझ कर सूर्य चन्द्रमा के ग्रहण लगने का गुरु ऐसा सच्चा बना लिया था जो आज तक असत्य नहीं हुआ। इस समय के बने शास्त्र का नाम “सूर्य सिद्धान्त” हैं ।

जब शरीर के रोगों से बचाने के उपाय सोचे गये तब ऐसे यन्त्र बनाये गये थे कि जिनके द्वारा चौपधियों के गुणों की परीक्षा होती थी और शरीर के अवयवों को चीर फाड कर जोड़ने की विद्या को यहाँ तक चर्मसीमा तक पहुंचाया था कि किसी का शिर और किसी का धड़ मी जोड़ दिया करते थे। इस समय के बने शास्त्र चरक, सुश्रुत, वाग्भट्ट, निघुट आदि हैं।

जब ऋग्वेद और अथर्ववेद के मंत्रों पर विचार किया तब अग्नि विद्या और बिजली की विद्या को भी जान लिया था । फिर समुद्र पर दौड़ने वाली सवारी तार भृगर्भादि और आ काश में उड़ने वाले अनेक विमान भी बना लिये थे। जब क्षत्रियों का धनुविधा सिखाने की आवश्यकता हुई तब शीतल बाण, अग्निवाण, और लखसंघारीबाण बनाये गये थे। इस समय के ऋषि मनु स्वप्टा तथा विश्वकर्मा आदि हुये हैं।

जब सामवेद पर ध्यान दिया गया तब षड़ज्ञ, रिषभ, गंधार, मध्यम, पञ्चम, धैवत, निषाद, इन सात स्वरों को पहिचान कर ऐसे राग रागिनी बनाये थे कि जिनसे सर्प, हाथी, सिंह, आदि जंगली जानवरों को मोह लेते थे। Read more  ब्राह्मण एक ही जाति

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