शादी - विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश, काल सर्प दोष , मार्कण्डेय पूजा , गुरु चांडाल पूजा, पितृ दोष निवारण - पूजा , महाम्रत्युन्जय , गृह शांति , वास्तु दोष

पृथ्वी के “प्रथम शासक” आदि गौड़ या गौड़ ब्राह्मण

यूं तो प्रभु परशुराम ने प्रभु श्रीराम के पृथ्वी पर आगमन से पूर्व ही बार-बार यह पृथ्वी जीत कर ब्राह्मणों को शासन स्वरूप देना प्रारंभ कर दिया था। उस समय पृथ्वी पर रहने वाले समस्त उत्तर भारतीय ब्राह्मण संयुक्त रुप से गौड़ कहलाते थे। परंतु लंका विजय के बाद, इन ब्राह्मणों में वर्ग या समूह स्थापित होने प्रारंभ हो गए। 

गौड़ ब्राह्मण, आदि गौड़, श्री आदि गौड़ एक ही वंश है

आदि गौड़ (सृष्टि के प्रारंभ से गौड़ या आदि काल से गौड़ ) या गौड़ ब्राह्मण “पृथ्वी के प्रथम शासक ब्राह्मण” उत्तर भारतीय ब्राह्मणों की पांच गौड़ब्राह्मणों की मुख्य शाखा का प्रमुख भाग है, गौड़ ब्राह्मण, आदि गौड़ तथा श्री आदि गौड़ एक ही ब्राह्मण वंश हैl

(ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्डय प्रथम प्रकरण के अनुसार) राजा जन्मेजय ने सर्पदमन यज्ञ  ( अभिमन्यु के पुत्र ,राजा परीक्षित थे। राजा परीक्षित के बाद उन के लड़के जनमेजय राजा बने ) करने हेतु महामुनि बटटेश्वर / बटुकेश्वर / तुर को आमंत्रित किया मुनि अपने 1444 शिष्यों सहित ‘सर्पदमन’ वर्त्तमान ‘सफीदों’ कुरुक्षेत्र नमक स्थान पर (कहीं कहीं यह स्ताहन हिरन ग्राम उत्तरप्रदेश भी बताया जाता है) पधारें तथा यज्ञ अरंभ किया, यह यज्ञ इतना भयंकर था कि विश्व के सारे सर्पों का महाविनाश होने लगा। परन्तु वास्तविक स्थान ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्डाय के अनुसरा सर्पदमन ग्राम ही है

यज्ञ की समाप्ति होने पर राजा जन्मेजय अपने गुरु बटेश्वर मुनि को शिष्यों समेत महा पूजा करके दक्षिणा देने को तैयार हुआ।  बटेश्वर मुनि अयाचक ब्राह्मण थे वे राज प्रतिग्रह भी नहीं करते थे, इसलिए उन्होंने दक्षिणा लेना स्वीकार नहीं किया।  तब महाराजा जनमेजय ने कहा की हे ब्राह्मण ! बिना दक्षिणा दिए यज्ञ पूरा नहीं होता।  इस प्रकार राजा के बहुत कहने पर मुनि और शिष्यों ने केवल एक-एक पान का बीड़ा लेना स्वीकार किया, तब महाराजा ने बड़ी चतुरता से 1444 संकल्प पत्रिका लिखवाई अर्थात हर एक चिट्ठी मैं एक-एक ग्राम दान का संकल्प था सो एक-एक चिट्टी एक-एक पान के बीड़ा मैं रखवाकर चलते समय मुनि और शिष्यों को बाँट दी।  तब मुनि और शिष्यों ने महाराजा जनमेजय को आशीर्वाद दिया।  जब पान खोलकर देखे गए तब यह गुप्त दान का भेद खुला।  अंत मैं यही हुआ की जो ग्राम जिस – जिस को मिला वह उसी में बसा और जिस ग्राम या नगर मैं जो बसा उसी पर उसका शाशन हुआ।  जिन को कोई अल्ल व अवंटक भी कहते हैं।  इन बटेश्वर मुनि के 1444 शिष्यों के गोत्र – अत्रि , गर्ग , गौतम , जैमिनी , धनंजय , पराशर , भारद्वाज , भार्गव , यमदग्नि , वत्स , वशिष्ठ , शांडिल्य , शौनक और सांकृत थे।      

जब गौड़ ब्राह्मणों को पंच गौड़ ब्राह्मण की विभिन्न शाखाओं के रूप में जाने जाने लगा। गौड़, सारस्वत, उत्कल, मैथिल और कान्यकुब्ज । तब वास्तविक गौड़ ब्राह्मणों स्वयं की मूल पहचान सिद्ध करने हेतु स्वयं के नाम के आगे आदि शब्द का प्रयोग किया गया, ताकि यह बात समझी जा सके कि पंच गौड़ ब्राह्मणों में वह मूल गौड़ ब्राह्मण है जिनका का संबंध सृष्टि के प्रारंभ से है। भारत में सभाओं के नाम के आगे श्री शब्द लगाने का प्रचलन आदिकाल से है , अतः गौड़ ब्राह्मणों की सभा के सम्मुख श्री शब्द का प्रयोग कुछ ब्राह्मणों द्वारा किए जाने लगा। जिससे ब्राह्मणों में यह भ्रांति उत्पन्न हो गई कि यह समस्त ब्राह्मण भिन्न भिन्न है। वास्तव में यह सभी ब्राह्मण मूल गौड़ ब्राह्मण ही है। इन सभी ब्राह्मणों के शासन वही 1444 शासन में से है जो महाराजा जन्मेजय द्वारा मूल गौड़ ब्राह्मणों को प्रदत्त किए गए थे।

ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्डया के अनुसार पृथ्वी के प्रथम ब्राह्मण जो छुआछूत के विरोधी 

आदि गौड़ या गौड़ ब्राह्मण केवल और केवल वेदों को ही सत्य मानते हैं और उन्ही केनुसरण की शिक्षा देते हैं, ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्डया के अनुसार पृथ्वी के प्रथम ब्राह्मण हैं जो छुआछूत के दोष को नहींमानते तथा मनव मात्र के हाथ का भोजन ग्रहण करने में कोई बुराई नहीं मनाता क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में इश्वर का वास् होता है गौड़ ब्राह्मणों का यह गुण, दूसरों के द्वारा पृथ्वी के ‘आधुनिक ब्राह्मण’ कहा गया वेदों में भी छुआछूत को अपराध कहागया है अतः गौड़ वंश आदि काल से छुआछूत का विरोधी रहा है इसप्रकार आदि गौड़ वंश समाज में छुआछूत को एक धार्मिक षड़यंत्र कहता आया है