शादी - विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश, काल सर्प दोष , मार्कण्डेय पूजा , गुरु चांडाल पूजा, पितृ दोष निवारण - पूजा , महाम्रत्युन्जय , गृह शांति , वास्तु दोष

Vivah 36 Gun Var Vadhu Kundali Milan

विवाह पूर्व कुंडली मिलान में अष्टकूट या मेलापक

कुण्डली मिलान

गणना

ज्ञानगुण गुण अंक
वर्ण
वश्य
तारा
योनि
गृह मैत्री
गण मैत्री
भकूट
नाड़ी
कुल गुण ३६
★ नाड़ी और भकूट के गुण अवश्य सम्मिलित होने चाहिए
★ कम से कम 18 गुण अवश्य सम्मिलित होने चाहिए

१. वर्ण ज्ञान (राशि परिचय)

१. कर्क, वृश्चिक, मीन (४, ८, १२) = ब्राह्मण वर्ण (B)

२. मेष, सिंह, धनु (१, ५, ९) = क्षत्रिय वर्ण (R)

३. वृष, कन्या, मकर (२, ६, १०) = वैश्य वर्ण (V)

४. मिथुन, तुला, कुम्भ (३, ७, ११) = शूद्र वर्ण (S)

वर​

वधू

B R V S
B
R
V
S

(२) वश्य ज्ञान

१. मेष, वृष, सिंह व धनु (उत्तरार्ध) और मकर राशि (पूर्वार्ध) (१, २, ५, ९, १०) = चतुष्पद

२. कर्क राशि (४) = कीट

३. वृश्चिक (८) = सर्प

४. मिथुन, कन्या, तुला तथा धनु (पूर्वार्ध) (३, ६, ७, ९) = द्विपद

५. कुम्भ, मीन तथा मकर (उत्तरार्द्ध) (१०, ११, १२) = जलचर

वर​

वधू

चतुष्पद कीट सर्प द्विपद जलचर
चतुष्पद १/२
कीट
सर्प ० १
द्विपद २ १
जलचर

(३) तारा ज्ञान

★ कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के जन्म नक्षत्र तक गिनने से जो संख्या आये = कन्या तारा, तथा

★ वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के जन्म नक्षत्र तक गिनने से जो संख्या आये = वर तारा

★ इन दोनों को अलग-अलग ९ पर भाग देने पर शेष अंक से तारा ज्ञान

वर​

वधू

३/२ ३/२ ३/२
३/२ ३/२ ३/२
३/२ ३/२ ३/२ ३/२ ३/२ ३/२
३/२ ३/२ ३/२
३/२ ३/२ ३/२ ३/२ ३/२ ३/२
३/२ ३/२ ३/२
३/२ ३/२ ३/२ ३/२ ३/२ ३/२
३/२ ३/२ ३/२
३/२ ३/२ ३/२

४. योनि ज्ञान

अश्विनी, शतभिषा (१, २४) = अश्व

स्वाति, हस्त (१३, १५) = महिष

धनिष्ठा, पूर्वा भाद्रपद (२३, २५) = सिंह

भरणी, रेवती (२, २७) = गज

कृत्तिका, पुष्य (३, ८) = मेष

श्रवण व पूर्वाषाढ़ा (२०, २२) = वानर

अभिजित, उत्तराषाढ़ा (२१, २८) = नकुल

मृगशिरा, रोहिणी (४, ५) = सर्प/मृग

ज्येष्ठ, अनुराधा (१७, १८) = सर्प/मृग

मूल, आर्द्रा (६, १९) = श्वान

पुनर्वसु, आश्लेषा (७, ९) = मार्जार

मघा, पूर्वफाल्गुनी (१०, ११) = मूषक

विशाखा, चित्रा (१४, १६) = व्याघ्र

उत्तरभाद्रपद, उत्तरफाल्गुनी (१२, २६) = गौ

वर​

वधू

अश्व गज मेष सर्प श्वान मार्जार मूषक गौ महिष व्याघ्र मृग वानर नकुल सिंह
अश्व
गज
मेष
सर्प
श्वान
मार्जार
मूषक
गौ
महिष
व्याघ्र
मृग
वानर
नकुल
सिंह

५. ग्रह मैत्री ज्ञान

वर​ का राशी स्वामी

वधू का राशी स्वामी

सूर्य चंद्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि
सूर्य
चंद्र १/२ १/२
मंगल १/२ १/२
बुध १/२ १/२
गुरु १/२ १/२
शुक्र १/२ १/२
शनि १/२ १/२

६. गण ज्ञान

१. अनुराधा, पुनर्वसु, मृगशिरा, श्रवण, रेवती, स्वाति, हस्त, अश्विनी और पुष्य = देवता

२. उत्तराफाल्गुनी, पूर्व फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तरभाद्रपद, पूर्वभाद्रपद, भरणी, रोहिणी और आर्द्रा = मनुष्य

३. आश्लेषा, मघा, धनिष्ठा, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा, कृतिका, चित्रा, और विशाखा = राक्षस

वर​

वधू

देवता गण मनुष्य गण राक्षस गण
देवता गण
मनुष्य गण
राक्षस गण

७. भकूट ज्ञान

★ कन्या की राशि से वर की राशि तक गणना करनी चाहिए और

★ वर की राशि से कन्या की राशि तक गिनना चाहिए

★ यदि वर-कन्या दोनों की राशि गणना से २, ५, ६, ८, ९, १२ आए तो वैवाहिक सम्बन्ध नहीं करना चाहिए

वर​

वधू

मेष वृष मिथुन कर्क सिंह कन्या तुला वृश्चिक धनु मकर कुम्भ मीन
मेष
वृष
मिथुन
कर्क
सिंह
कन्या
तुला
वृश्चिक
धनु
मकर
कुम्भ
मीन

८. नाड़ी ज्ञान

१. अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तरफाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, शतभिषा तथा पूर्वभाद्रपद = आदि नाड़ी

२. भरणी, मृगशिरा, पुष्प, पूर्वफाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराभाद्र‌पद व धनिष्ठा = मध्य नाड़ी

३. कृत्तिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढा, श्रवण व रेवती = अन्त्य नाड़ी

वर​

वधू

आदि मध्य अन्त्य
आदि
मध्य ०**
अन्त्य ८*

*वर-कन्या के नक्षत्र क्रमश: आदि और अन्त्य नाड़ी के हों तो विवाह शुभ नहीं है माना जाता है।

**दोनों के नक्षत्र मध्य नाड़ी के हो तो मृत्युकारक होते हैं।

नोट​: वर के सप्तमेश की राशि कन्या की जन्म राशि हो, वर के सप्तमेश की उच्च राशि कन्या की नाम राशि हो, वर के शुक्र की राशि कन्या की राशि हो, वर के लग्न की जो सप्तमांश राशि हो वही कन्या की जन्म राशि हो, वर के लग्नेश की राशि (जिस स्थान में वर का लग्नेश स्थित हैं) कन्या की नाम राशि हो तो दाम्पत्य जीवन सुखमय रहता है। वर और कन्या की राशियों तथा लग्नेशों के तत्त्वों की मित्रता-शत्रुता का भी विचार कर लेना चाहिए।

Kundali Gun Milan: एक सफल गृहस्थ जीवन के लिए पति-पत्नी के बीच गुणों का मिलना बहुत जरुरी होता है, ये गुण कुंडली के द्वारा मिलाए जाते हैं। किसी भी मनुष्य की कुंडली उसकी जन्म तारीख, समय और स्थान के आधार पर बनाई जाती है। जन्म के समय गृह नक्षत्रों की स्थिति को देखते हुए ये कुंडली बनती है। फिर शादी के समय लड़का लड़की का कुंडली मिलान होता है। वैवाहिक दृष्टि से  कुंडली मिलान इन पांच महत्वपूर्ण आधार पर किया जाता है – कुंडली अध्ययन,भाव मिलान, अष्टकूट मिलान, मंगल दोष विचार, दशा विचार। उत्तर भारत में गुण मिलान के लिए अष्टकूट मिलान प्रचलित है जबकि दक्षिण भारत में दसकूट मिलान की विधि अपनाई जाती है। उपरोक्त पांच महत्वपूर्ण पहलुओं में से विचारणीय पहलू अष्टकूट मिलान के महत्वपूर्ण आठ कूटो का विचार होता है। अष्टकूट मिलान अर्थात आठ प्रकार से वर एवं कन्या का परस्पर मिलान को गुण मिलान के रूप में जाना जाता है। आइए जानते हैं  क्या है ये अष्टकूट मिलान- 

Kundali Gun Milan – फोटो : self
वर्ण -(1 अंक)
वर्ण का निर्धारण चन्द्र राशि से निर्धारण किया जाता है जिसमें 4(कर्क) ,8 (वृश्चिक) , 12 (मीन) राशियां विप्र या ब्राह्मण हैं 1(मेष ), 5(सिंह) ,9(धनु) राशियां  क्षत्रिय है 2(वृषभ) , 6(कन्या) ,10(मकर) राशियाँ वैश्य हैं जबकि 3(मिथुन) ,7(तुला),11(कुंभ) राशियां शूद्र मानी गयी हैं।

वश्य- (2अंक)
वश्य का संबंध मूल व्यक्तित्व से है। वश्य 5 प्रकार के होते हैं- द्विपाद, चतुष्पाद, कीट, वनचर, और जलचर। जिस प्रकार कोई वनचर जल में नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई जलचर जंतु कैसे वन में रह सकता है? द्विपदीय राशि के अंतर्गत मिथुन, कन्या, तुला और धनु राशि आती हैं। चतुष्पदी राशि के अंतर्गत मेष, वृषभ, मकर, जलचर राशि के अंतर्गत कर्क, मकर और मीन कीट राशि के अंतर्गत वृश्चिक राशि और वनचर राशि के अन्तर्गत सिंह राशि आती है। 

तारा (3 अंक) 
तारा का संबंध दोनों (वर-वधु )के भाग्य से है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाए गए हैं- जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र। वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने पर विपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिए, शेष तारे ठीक होते हैं। वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के नक्षत्र तक गिने और प्राप्त संख्या को 9 से भाग करें यदि शेष फल 3 ,5 , 7 आता है तो अशुभ होता है ,जबकि अन्य स्थिति मे तारा शुभ होता है तारा शुभ होने पर 1-1/2 अंक प्रदान करते हैं। ऐसा ही कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक गिन जाता है। अतः इस प्रकार दोनों के नक्षत्र से गिनने पर शुभ तारा आता है पूर्णांक 3 दिए जाते हैं, यदि एक शुभ और दूसरा अशुभ तारा आता है तो 1 – 1/2 अंक दिए जाते हैं अन्य स्थिति में कोई भी अंक नहीं दिया जाता है।

Kundali Gun Milan – फोटो : self
योनि (4अंक)
जिस तरह कोई जलचर का संबंध वनचर से नहीं हो सकता, उसी तरह से ही संबंधों की जांच की जाती है। विभिन्न जीव-जंतुओं के आधार पर 13 योनियां नियुक्त की गई हैं- अश्व, गज, मेष, सर्प, श्वान, मार्जार, मूषक, महिष, व्याघ्र, मृग, वानर, नकुल और सिंह। हर नक्षत्र को एक योनि दी गई है। इसी के अनुसार व्यक्ति का मानसिक स्तर बनता है। विवाह में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण योनि के कारण ही तो होता है। शरीर संतुष्टि के लिए योनि मिलान भी आवश्यक होता है। जन्म नक्षत्र के आधार पर योनि निर्धारित होती हैं जिसका विवरण इस प्रकार से है – यदि योनियां एक ही है तो 4 अंक , यदि मित्र है तो 3 अंक , यदि सम है तो 2अंक , शत्रु है तो 1अंक , और यदि अति शत्रु है तो कोई भी अंक नहीं दिया जाता है।  

ग्रह मैत्री (5 अंक)  
वर एवं कन्या के राशि स्वामी से ग्रह मैत्री देखी जाती है। राशि का संबंध व्यक्ति के स्वभाव से है। लड़के और लड़कियों की कुंडली में परस्पर राशियों के स्वामियों की मित्रता और प्रेमभाव को बढ़ाती है और जीवन को सुखमय और तनावरहित बनाती है। 

गण ( 6 अंक )
गण का संबंध व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को दर्शाता है। गण 3 प्रकार के होते हैं- देव, राक्षस और मनुष्य। हम इसे यह भी कह सकते हैं कि सभी नक्षत्रों को तीन समूहों देव, मनुष्य और राक्षस में बांटा गया है। अनुराधा , पुनर्वसु , मृगशिरा , श्रवण , रेवती , स्वाति , हस्त ,अश्विनी और पुष्य इन नौ नक्षत्रों का देव गण होता है। पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, भरणी और आद्रा इन नौ नक्षत्रों का मनुष्य गण होता है। मघा ,आश्लेषा, धनिष्टा ,ज्येष्ठा , मूल , शतभिषा , विशाखा , कृतिका ,और चित्रा का राक्षस गण होता है । इस प्रकार यदि वर-कन्या दोनों के गण एक ही हो तो पूर्णांक 6 अंक, वर देव गण हो कन्या नर गण की हो तो भी 6 अंक, यदि कन्या का देव गण हो वर का नर हो तो 5 अंक यदि वर राक्षस गण का हो कन्या देव गण की हो तो 1 अंक और अन्य परिस्थितियों में कोई अंक नहीं दिया जाता है।

भकूट (7 अंक)
भकूट का संबंध जीवन और आयु से होता है। विवाह के बाद दोनों का एक-दूसरे का संग कितना रहेगा, यह भकूट से जाना जाता है। दोनों की कुंडली में राशियों का भौतिक संबंध जीवन को लंबा करता है और दोनों में आपसी संबंध बनाए रखता है। वर और कन्या की चंद्र राशि के आधार पर भकूट देखा जाता है। वृष और मीन, कन्या और वृश्चिक, धनु और सिंह हो तो शून्य अंक,  तुला और तुला, कर्क और मकर, मिथुन और कुंभ हो तो सात अंक और समान राशि होने पर भी 7 अंक प्राप्त होंगे।  

नाड़ी ( 8 अंक)

नाड़ी का संबंध संतान से है। दोनों के शारीरिक संबंधों से उत्पत्ति कैसी होगी, यह नाड़ी पर निर्भर करता है। शरीर में रक्त प्रवाह और ऊर्जा का विशेष महत्व है। दोनों की ऊर्जा का मिलान नाड़ी से ही होता है। जन्म नक्षत्र के आधार पर तीन प्रकार की नाड़ियां होती हैं आदि, मध्य और अंत्या। इस कूट मिलान मे वर -कन्या की एक नाड़ी नहीं होनी चाहिए , यदि दोनों की अलग-अलग नाड़ी हो तो पूर्णांक 8 अंक दिए जाते हैं जबकि अन्य स्थिति में ( जहां दोनों की एक ही नाड़ी होती है) कोई भी अंक नहीं दिया जाता है। जन्म राशि एक किन्तु नक्षत्र भिन्न अथवा नक्षत्र एक परन्तु राशि भिन्न अथवा चरण भिन्न होने पर दोष नहीं माना जाता है।
 
कितने गुण मिलने से विवाह माना जाता है उत्तम 
कुंडली में ये सभी मिलकर  36 गुण होते हैं, जितने अधिक गुण लड़का लड़की के मिलते हैं, विवाह उतना ही सफल माना जाता है। 
18 से कम- विवाह योग्य नहीं अथवा असफल विवाह 
18 से 25- विवाह के लिए अच्छा मिलान 
25 से 32- विवाह के उत्तम मिलान, विवाह सफल होता है 
32 से 36- ये अतिउत्तम मिलान है, ये विवाह सफल रहता है
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