श्रीराधे बोलकर रोजाना करें श्रीकृष्ण का ये पाठ, जीवन की विपत्तियां ऐसे गायब होंगी कि आप हैरान हो जाएंगे
भगवान श्रीकृष्ण (Lord Shri Krishna) को नारायण का पूर्ण अवतार माना गया है क्योंकि वे एकमात्र ऐसे अवतार रहे हैं, जो सोलह कलाओं में निपुण थे. मनुष्य रूप में उन्होंने गुरु सांदीपनि से इन सभी 16 कलाओं को सीखा था. श्रीकृष्ण ने मनुष्य रूप में जीवन का हर कष्ट समभाव में रहकर भोगा और लगातार कर्म करते हुए आगे बढ़ते रहे. गीता के रूप में उन्होंने इंसान को जीवन को जीने की कला सिखाई और कर्म का महत्व समझाया. वहीं श्रीराधा (Shri Radha) के साथ विवाह न करके भी आजीवन आत्मिक प्रेम किया और लोगों को सच्चे प्रेम का सही अर्थ समझाया. श्रीकृष्ण लोगों के लिए सिर्फ भगवान ही नहीं, बल्कि एक आदर्श के रूप में भी हैं. माना जाता है कि श्रीकृष्ण की पूजा (Shri Krishna Worship) करने से जीवन में सफलता, सिद्धि-बुद्धि, धन-बल और ज्ञान-विवेक सुख और शांति की प्राप्ति होती है.
श्रीकृष्ण पूजन के लिए वैसे तो आप कृष्ण भगवान के मंत्रों का जाप कर सकते हैं, गीता का पाठ कर सकते हैं. लेकिन अगर आपके जीवन में परेशानी और दुख का सिलसिला समाप्त ही नहीं होता तो आप श्रीकृष्ण का पूजन करने के बाद नियमित रूप से श्रीकृष्ण चालीसा का पाठ करें. चालीसा के पाठ को शुरू करने से पहले श्रीराधा का नाम लें. इससे माना जाता है कि इससे जीवन का हर दुख और विपत्ति समाप्त हो जाती है.
ये है श्रीकृष्ण चालीसा
दोहा
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज
चौपाई
जय यदुनंदन जय जगवंदन, जय वसुदेव देवकी नन्दन,
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे, जय प्रभु भक्तन के दृग तारे,
जय नटनागर, नाग नथइया, कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया,
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो, आओ दीनन कष्ट निवारो.
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ, होवे पूर्ण विनय यह मेरौ,
आओ हरि पुनि माखन चाखो, आज लाज भारत की राखो,
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे, मृदु मुस्कान मोहिनी डारे,
राजित राजिव नयन विशाला, मोर मुकुट वैजन्तीमाला.
कुंडल श्रवण, पीत पट आछे, कटि किंकिणी काछनी काछे,
नील जलज सुन्दर तनु सोहे, छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे,
मस्तक तिलक, अलक घुँघराले, आओ कृष्ण बांसुरी वाले,
करि पय पान, पूतनहि तार्यो, अका बका कागासुर मार्यो.
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला, भै शीतल लखतहिं नंदलाला,
सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई, मूसर धार वारि वर्षाई,
लगत लगत व्रज चहन बहायो, गोवर्धन नख धारि बचायो,
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई, मुख मंह चौदह भुवन दिखाई.
दुष्ट कंस अति उधम मचायो, कोटि कमल जब फूल मंगायो,
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें, चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें,
करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करी अभिलाषा,
केतिक महा असुर संहार्यो, कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो.
मातपिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहँ राज दिलाई,
महि से मृतक छहों सुत लायो, मातु देवकी शोक मिटायो,
भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दश सहसकुमारी,
दै भीमहिं तृण चीर सहारा, जरासिंधु राक्षस कहँ मारा.
असुर बकासुर आदिक मार्यो, भक्तन के तब कष्ट निवार्यो,
दीन सुदामा के दुःख टार्यो, तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो,
प्रेम के साग विदुर घर मांगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे,
लखि प्रेम की महिमा भारी, ऐसे श्याम दीन हितकारी.
भारत के पारथ रथ हांके, लिए चक्र कर नहिं बल ताके,
निज गीता के ज्ञान सुनाये, भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये,
मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजाकर ताली,
राना भेजा सांप पिटारी, शालिग्राम बने बनवारी.
निज माया तुम विधिहिं दिखायो, उर ते संशय सकल मिटायो,
तब शत निन्दा करी तत्काला, जीवन मुक्त भयो शिशुपाला,
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई,
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला, बढ़े चीर भै अरि मुँह काला.
अस नाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भंवर बचावत नैया,
सुन्दरदास आस उर धारी, दयादृष्टि कीजै बनवारी,
नाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहु बेगि अपराध हमारो,
खोलो पट अब दर्शन दीजै, बोलो कृष्ण कन्हैया की जै.
दोहा
यह चालीसा कृष्ण का,पाठ करै उर धारि,
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल,लहै पदारथ चारि.
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