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Sanadhya Brahman सनाढ्य ब्राह्मण समाज का परिचय व इतिहास

सनाढ्य ब्राह्मणब्राह्मणों की एक उपजाति हैं. सनाढ्य शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘सन्’ और ‘आढ्य’. ‘सन्’ का अर्थ है तप और ‘आढ्य’ का अर्थ है ब्रह्मा. यानी, सनाढ्य ब्राह्मण का अर्थ है ब्रह्मा के तप से उत्पन्न ब्राह्मण या तपस्या में लगे ब्राह्मण. सनाढ्य ब्राह्मणों को सनाढ्य गौड़ ब्राह्मण, सानिद्य ब्राह्मण, या सनाढ्य ब्राह्मण भी कहा जाता है. 

सनाढ्य ब्राह्मण, ब्राह्मणों का एक समूह है जिन्हें भगवान श्री राम ने सनाढ्य की उपाधि दी थी

 
 
भगवान श्री राम ने ब्राह्मणों को सनाढ्य की उपाधि इस तरह दी थी:

 

    • जब भगवान श्री राम लंका विजय के बाद लौटे, तो उन पर रावण के वध के कारण ब्रह्म हत्या का दोष लगा.
    • गुरु वशिष्ठ जी ने इस दोष से मुक्ति पाने के लिए पूजा-पाठ और दान करने की सलाह दी.
    • कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने लंका विजय के बाद ब्राह्मणों को सनाढ्य की उपाधि दी थी. सनाढ्य ब्राह्मणों को सरयू नदी के पास की ज़मीन पर बसने के लिए 10 गांव दान किए गए थे.
  • ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया, लेकिन वे सहमत नहीं हुए.
  • ब्राह्मण सरयू नदी पार करके चले गए.
  • भगवान श्री राम ने ब्राह्मणों से करबद्ध प्रार्थना की और ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति दिलाने की मांग की.
  • ब्राह्मणों के इस विशाल हृदय को देख भगवान श्री राम करुणा से भर गए और उन्होंने ब्राह्मणों को सनाढ्य की उपाधि दी. 
 
सनाढ्य ब्राह्मणों से जुड़ी कुछ खास बातें:
  • सनाढ्य ब्राह्मणों का मुख्य केंद्र भारत के पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, और मध्य प्रदेश में है. 
     
  • हिन्दी कवि केशवदास मिश्र सनाढ्य थे और उन्होंने अपनी ‘रामचंद्रिका’ में उनके समुदाय की प्रशंसा की है. 
     
  • सनाढ्य शब्द मूल रूप से सारस्वत का अपभ्रंश है. 
     
  • सनाढ्य ब्राह्मण, सारस्वत भूमिहार या भूस्वामी ब्राह्मणों से निकले हैं. 

    सनाढ्य ब्राह्मण, उत्तर और मध्य भारत में रहते हैं.

    सनाढ्य ब्राह्मण, हिंदू धर्म में सबसे ऊंची जाति या वर्ण माने जाते हैं.

    सनाढ्य ब्राह्मण, हिंदू धर्म की पवित्र शिक्षा के शिक्षक और संरक्षक हैं.

    सनाढ्य ब्राह्मणों में से ज़्यादातर लोग हिन्दी बोलते हैं.

    सनाढ्य ब्राह्मण, सरकार, व्यापार, और शिक्षा में अग्रणी भूमिका निभाते हैं.

    सनाढ्य ब्राह्मण, हिंदू देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं.

     
सनाढ्य ब्राह्मण ( जिन्हें सनाढ्य ब्राह्मण, सनाढ ब्राह्मण, सानिद्य ब्राह्मण या सनाढ्य गौड़ ब्राह्मण )भी कहा जाता है । ब्राह्मणों की एक उपजाति है।इनका मुख्य संकेंद्रण भारत के पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और मध्य प्रदेश क्षेत्र में है। हिंदी कवि केशवदास मिश्र सनाढ्य थे और उन्होंने अपनी ‘रामचंद्रिका’ में उनके समुदाय की प्रशंसा की है।

सनाढ्य ब्राह्मणों के गोत्र – सनाढ्यों ऋषि गोत्र तथा 7 शाखाएं हैं। वशिष्ठ पाराशर अगस्त्य वत्स शांडिल्य भारद्वाज कृष्णात्रेय च्यवन कश्यप उपमन्यु कृष्णात्रि अत्रि कौशिक साथ ही 7 शाखा भेद है इस प्रकार गोत्र संख्या 17 है

10 प्रकार के ब्राह्मण कौन से हैं?
 

ब्राह्मणों को 10 मुख्य क्षेत्रीय प्रभागों में विभाजित किया गया है, जिनमें से पाँच उत्तर से जुड़े हैं और पाँच दक्षिण से। उत्तरी समूह में सरस्वती , गौड़, कन्नौज, मैथिल और उत्कल ब्राह्मण शामिल हैं, और दक्षिणी समूह में महाराष्ट्र, आंध्र, द्रविड़, कर्नाटक और मालाबार ब्राह्मण शामिल हैं । 

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