शादी - विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश, काल सर्प दोष , मार्कण्डेय पूजा , गुरु चांडाल पूजा, पितृ दोष निवारण - पूजा , महाम्रत्युन्जय , गृह शांति , वास्तु दोष

दींन दयाल विरद सम्भारी | हरहु नाथ मम संकट भारी

दींन दयाल विरद सम्भारी | हरहु नाथ मम संकट भारी

॥दोहा॥
श्री गुरु चरन सरोज रज , निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु , जो दायकु फल चारि ॥

॥ चौपाई ॥
जब तें रामु ब्याहि घर आए।   नित नव मंगल मोद बधाए
भुवन चारिदस भूधर भारी ।  सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी

रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई । उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई॥
मनिगन पुर नर नारि सुजाती ।  सुचि अमोल सुंदर सब भाँती॥2
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती । जनु एतनिअ बिरंचि करतूती
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी
मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ । प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ
[ श्री रामचरितमानस: अयोध्या काण्ड: मंगलाचरण]

अर्थात

श्री गुरुजी के चरण कमलों की रज से अपने मन रूपी दर्पण को साफ करके मैं श्री रघुनाथजी के उस निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फलों को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) देने वाला है।

जब से श्री रामचन्द्रजी विवाह करके घर आए, तब से (अयोध्या में) नित्य नए मंगल हो रहे हैं और आनंद के बधावे बज रहे हैं। चौदहों लोक रूपी बड़े भारी पर्वतों पर पुण्य रूपी मेघ सुख रूपी जल बरसा रहे हैं॥1॥

ऋद्धि-सिद्धि और सम्पत्ति रूपी सुहावनी नदियाँ उमड़-उमड़कर अयोध्या रूपी समुद्र में आ मिलीं। नगर के स्त्री-पुरुष अच्छी जाति के मणियों के समूह हैं, जो सब प्रकार से पवित्र, अमूल्य और सुंदर हैं॥2॥

नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता। ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्माजी की कारीगरी बस इतनी ही है। सब नगर निवासी श्री रामचन्द्रजी के मुखचन्द्र को देखकर सब प्रकार से सुखी हैं॥3॥

सब माताएँ और सखी-सहेलियाँ अपनी मनोरथ रूपी बेल को फली हुई देखकर आनंदित हैं। श्री रामचन्द्रजी के रूप, गुण, शील और स्वभाव को देख-सुनकर राजा दशरथजी बहुत ही आनंदित होते हैं॥4॥

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गोविन्द दामोदर स्तोत्र

करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्।  वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि।।

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव।  जिह्वे पिवस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति।।

विक्रेतुकामाखिलगोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्ति:। दध्यादिकं मोहवशादवोचद् गोविन्द दामोदर माधवेति।। 

त्वामेव याचे मम देहि जिह्वे समागते दण्डधरे कृतान्ते। वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या गोविन्द दामोदर माधवेति।।

श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश गोपाल गोवर्धननाथ विष्णो। जिह्वे पिवस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति।।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र – सिद्ध कुंजिका स्तोत्र  – Siddha Kunjika Stotram with Lyrics

 ऊँ श्रीकुञ्जिकास्तोत्रसिद्ध कुंजिका स्तोत्र

विनियोग : ॐ अस्य श्री कुन्जिका स्त्रोत्र मंत्रस्य सदाशिव ऋषि:॥ अनुष्टुपूछंदः

॥ श्रीत्रिगुणात्मिका देवता ॥ ॐ ऐं बीजं ॥ ॐ ह्रीं शक्ति: ॥ ॐ क्लीं कीलकं ॥ मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोग: ॥

शिव उवाच  – शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम।  येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ॥1॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।  न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥

  कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् । अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति। मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।

पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥

अथ मंत्र :

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः  ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।”

 ॥ इति मंत्रः॥

 “नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।  नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनी ॥1॥

 नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनी ॥2॥

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे। ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥

 क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते। चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥

 विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणी ॥5॥  

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी। क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥

 हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥

 अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं  धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥  

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं कुरुष्व मे॥  इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥  
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् । न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
।। श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे सिद्ध कुंजिका स्तोत्र संपूर्णम् ।।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र:
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायंप्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥

॥ श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम् ॥
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥
मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय, नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय, तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द, सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य, मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनायतस्मै व काराय नमः शिवाय ॥४॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥५॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

AARATI HSANKER JI KI

ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु जय शिव ओंकारा।   ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे। शिव पंचानन राजे। हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव.॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। प्रभु दस भुज अति सोहे। तीनों रूप निरखते। त्रिभुवन मन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी। शिव मुण्डमाला धारी। चंदन मृगमद चंदा, सोहे त्रिपुरारी॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। शिव बाघम्बर अंगे। ब्रह्मादिक सनकादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता। शिव कर में त्रिशूल धर्ता। जगकर्ता जगहर्ता जगपालनकर्ता॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। स्वामी जानत अविवेका। प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे। प्रभु प्रेम सहित गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव॥


लिंगाष्टकम
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंगं निर्मलभासितशोभित लिंगम् । जन्मजदुःखविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥१॥ 
देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहं करुणाकरलिंगम् ।रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥२॥ 
सर्वसुगंधिसुलेपितलिंगं बुद्धिविवर्धनकारणलिंगम् ।सिद्धसुरासुरवंदितलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥३॥ 
कनकमहामणिभूषितलिंगं फणिपतिवेष्टितशोभितलिंगम् ।दक्षसुयज्ञविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥४॥ 
कुंकुमचंदनलेपितलिंगं पंकजहारसुशोभितलिंगम् ।संचितपापविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥५॥ 
देवगाणार्चितसेवितलिंगं भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम् ।दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥६॥ 
अष्टदलोपरिवेष्ठित लिंगं सर्वसमुद्भवकारणलिंगम् ।अष्टदरिद्रविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥७॥ 
सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगं सुरवनपुष्पसदार्चितलिंगम् ।परात्परं परमात्मकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥८॥
लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥९॥ इति श्रीलिंगाष्टकस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

33 कोटि देवता
त्रिदेव,   नवदुर्गा, एकादश रुद्र,    नवग्रह,   दश दिक्पाल,  षोडश लोकपाल ,  सप्तमातृका,
दश महाविद्या,  बारह यम, आठ वसु , चौदह मनु, सप्त ऋषि, घृतमातृका, दश अवतार, चौबीस अवतार
आदि

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