श्री सप्तशती चन्डिका शाप विमोचन स्तोत्र
नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती एवं सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ विधि के अनुसार मेरे भक्तों को इसप्रकार🌷🌷🌷🌷
👉01..श्री सप्तशती चन्डिका शाप
विमोचन स्तोत्र 🌷🌷
02…🌷श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र हिन्दी भावार्थ सहित 🌷
03.🌷श्री-बृहत्-तांत्रोक्त महा-सिद्ध-कुञ्जिका-स्तोत्रम्(२)🌷
(श्री डामरतन्त्रे ईश्वरपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं )
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01..🌷श्री सप्तशती चन्डिका शाप विमोचन स्तोत्र 🌷🌷
पूजनकर्ता स्नान करके, आसन शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके, शुद्ध आसन पर बैठ जाएँ, साथ में शुद्ध जल, पूजन सामग्री और श्री दुर्गा सप्तशती की पुस्तक या यहाँ दी गई विधि के प्रिंट निकालकर साथ में रखें। इन्हें अपने सामने काष्ठ आदि के शुद्ध आसन पर विराजमान कर दें। माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें, शिखा बाँध लें, फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें। इस समय निम्न मंत्रों को बोलें-
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
तत्पश्चात प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर ‘पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ’ इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर निम्नांकित रूप से संकल्प करें-
चिदम्बरसंहिता में पहले अर्गला, फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है, किन्तु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गई है।
सप्तशती शाप विमोचन स्तोत्र
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक नाम अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्व-विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टिधनधान्यसमृद्ध्यर्थं श्री नवदुर्गाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थ- काममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली-महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्परं कवचार्गलाकीलकपाठ- वेदतन्त्रोक्त रात्रिसूक्त पाठ देव्यथर्वशीर्ष पाठन्यास विधि सहित नवार्णजप सप्तशतीन्यास- धन्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च ‘मार्कण्डेय उवाच॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः।’ इत्याद्यारभ्य ‘सावर्णिर्भविता मनुः’ इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च किरष्ये/करिष्यामि।
इस प्रकार प्रतिज्ञा (संकल्प) करके देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार की विधि से पुस्तक की पूजा करें, योनिमुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करें, फिर मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए। इसके अनेक प्रकार हैं।
‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा’
इस मंत्र का आदि और अन्त में सात बार जप करें। यह शापोद्धार मंत्र कहलाता है। इसके अनन्तर उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है।
इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है। यह मन्त्र इस प्रकार है- ‘ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।’ इसके जप के पश्चात् आदि और अन्त में सात-सात बार मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए, जो इस प्रकार है-
‘ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।’
मारीचकल्प के अनुसार सप्तशती-शापविमोचन का मन्त्र यह है-
‘ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं।’
इस मन्त्र का आरंभ में ही एक सौ आठ बार जाप करना चाहिए, पाठ के अन्त में नहीं। अथवा रुद्रयामल महातन्त्र के अंतर्गत दुर्गाकल्प में कहे हुए चण्डिका शाप विमोचन मन्त्र का आरंभ में ही पाठ करना चाहिए। वे मन्त्र इस प्रकार हैं-
ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचनमन्त्रस्य वसिष्ठ-नारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्री शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पितकार्यसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।
ॐ (ह्रीं) रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥1॥
ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठ विश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥2॥
ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥3॥
ॐ क्षुं धुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥4॥
ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥5॥
ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥6॥
ॐ तृं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव॥7॥
ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥8॥
ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥9॥
ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥10॥
ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥11॥
ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥12॥
ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥13॥
ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥14॥
ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥15॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥16॥
ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै
ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥17॥
ॐ ऐं ह्री क्लीं महाकालीमहालक्ष्मी-
महासरस्वतीस्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः॥18॥
इत्येवं हि महामन्त्रान् पठित्वा परमेश्वर।
चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशयः॥19॥
एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति यः।
आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशयः॥20॥
इस प्रकार शापोद्धार करने के अनन्तर अन्तर्मातृका बहिर्मातृका आदि न्यास करें, फिर श्रीदेवी का ध्यान करके रहस्य में बताए अनुसार नौ कोष्ठों वाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करें, इसके बाद छ: अंगों सहित दुर्गासप्तशती का पाठ आरंभ किया जाता है।
कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य- ये ही सप्तशती के छ: अंग माने गए हैं। इनके क्रम में भी मतभेद हैं। चिदम्बरसंहिता में पहले अर्गला, फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है, किन्तु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गई है।
जिस प्रकार सब मंत्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार यहाँ भी पहले कवच रूप बीज का, फिर अर्गला रूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलक रूप कीलक का क्रमशः पाठ होना चाहिए। यहाँ इसी क्रम का अनुसरण किया गया है।
(इसके बाद देवी कवच या दुर्गा कवचम् का पाठ करना चाहिए।)
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02…🌷श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र हिन्दी भावार्थ सहित 🌷
सिद्धकुंजिका स्तोत्र देवी माहात्म्य के अंतर्गत परम कल्याणकारी स्तोत्र है। यह स्तोत्र रुद्रयामल तंत्र के गौरी तंत्र भाग से लिया गया है। सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ के बराबर है।
इस स्तोत्र के मूल मन्त्र नवाक्षरी मंत्र ( ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ) के साथ प्रारम्भ होते है। कुंजिका का अर्थ है चाबी (key) अर्थात कुंजिका स्तोत्र दुर्गा सप्तशती की शक्ति को जागृत करता है जो महेश्वर शिव के द्वारा गुप्त (lock) कर दी गयी है।
इस स्तोत्र के पाठ के उपरान्त किसी और जप या पूजा की आवश्यकता नहीं होती, कुंजिका स्तोत्र के पाठ मात्र से सभी जाप सिद्ध हो जाते है।
कुंजिका स्तोत्र में आए बीजों (बीज मन्त्रो) का अर्थ जानना न संभव है और न ही अतिआवश्यक अर्थात केवल जप पर्याप्त है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र इस प्रकार है:-
🍀अथ सिद्ध कुंजिका स्तोत्र 🍀
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ।।१।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ।।२।।
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ।।३।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तंभोच्चाटनादिकम।
पाठमात्रेण संसिध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।।४।।
अथ मंत्रः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।।
। इति मंत्रः ।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ।।१।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।।२।।
ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तु ते।।३।।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ।।४।।
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ।।५।।
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ।।६।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।७।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे।।८।।
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ।।
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ।।
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
।। ॐ तत्सत्।।
🍀🍀कुंजिका स्तोत्र हिन्दी भावार्थ 🍀🍀
शिव जी बोले-
देवी !सुनो। मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूँगा, जिस मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप ( पाठ ) सफल होता है ।।१।।
कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है ।।२।।
केवल कुंजिका के पाठ से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। ( यह कुंजिका ) अत्यंत गुप्त और देवों के लिए भी दुर्लभ है ।।३।।
हे पार्वती ! स्वयोनि की भांति प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए। यह उत्तम कुंजिकास्तोत्र केवल पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि ( अभिचारिक ) उद्देश्यों को सिद्ध करता है ।।४।।
मन्त्र -ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ।।
( मंत्र में आये बीजों का अर्थ जानना न संभव है, न आवश्यक और न ही वांछनीय (Desirable)। केवल जप पर्याप्त है। )
हे रुद्ररूपिणी ! तुम्हे नमस्कार। हे मधु दैत्य को मारने वाली ! तुम्हे नमस्कार है। कैटभविनाशिनी को नमस्कार। महिषासुर को मारने वाली देवी ! तुम्हे नमस्कार है ।।१।।
शुम्भ का हनन करने वाली और निशुम्भ को मारने वाली ! तुम्हे नमस्कार है ।।२।।
हे महादेवी ! मेरे जप को जाग्रत और सिद्ध करो। ‘ऐंकार’ के रूप में सृष्टिरूपिणी, ‘ह्रीं’ के रूप में सृष्टि का पालन करने वाली ।।३।।
क्लीं के रूप में कामरूपिणी ( तथा अखिल ब्रह्माण्ड ) की बीजरूपिणी देवी ! तुम्हे नमस्कार है। चामुंडा के रूप में तुम चण्डविनाशिनी और ‘यैकार’ के रूप में वर देने वाली हो ।।४।।
‘विच्चे’ रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो। ( इस प्रकार ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ) तुम इस मन्त्र का स्वरुप हो ।।५।।
‘धां धीं धूं’ के रूप में धूर्जटी ( शिव ) की तुम पत्नी हो। ‘वां वीं वूं’ के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। ‘क्रां क्रीं क्रूं’ के रूप में कालिकादेवी, ‘शां शीं शूं’ के रूप में मेरा कल्याण करो ।।६।।
‘हुं हुं हुंकार’ स्वरूपिणी, ‘जं जं जं’ जम्भनादिनी, ‘भ्रां भ्रीं भ्रूं’ के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी ! तुम्हे बार बार प्रणाम ।।७।।
‘अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं’ इन सबको तोड़ो और दीप्त करो, करो स्वाहा। ‘पां पीं पूं’ के रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो। ‘खां खीं खूं’ के रूप में तुम खेचरी ( आकाशचारिणी ) अथवा खेचरी मुद्रा हो।।८।।
‘सां सीं सूं’ स्वरूपिणी सप्तशती देवी के मन्त्र को मेरे लिए सिद्ध करो। यह सिद्धकुंजिका स्तोत्र मन्त्र को जगाने के लिए है। इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए। हे पार्वती ! इस मन्त्र को गुप्त रखो। हे देवी ! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है।
( इस प्रकार श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में शिव पार्वती संवाद में सिद्ध कुंजिका स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ )
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03.🌷श्री-बृहत्-तांत्रोक्त महा-सिद्ध-कुञ्जिका-स्तोत्रम्(२)🌷
(श्री डामरतन्त्रे ईश्वरपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं )
डामर तंत्र में एक दूसरे प्रकार का भी कुंजिका स्तोत्र प्राप्त होता है
दोनों कुंजिका स्तोत्र सही है।साधक कोई भी एक का पाठ कर सकता है।
विनियोग
ॐ अस्य श्रीकुञ्जिकास्तोत्रमन्त्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्री त्रिगुणात्मिका देवता, ॐ ऐं बीजं, ॐ ह्रीं शक्तिः, ॐ क्लीं कीलकम् मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । संपूर्ण सिद्ध कुंजिका स्तोत्र।
॥शिव उवाच॥
शृणु देवि! प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिका-स्तोत्रमुत्तमम्। येन मन्त्र-प्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत्॥1॥
न कवचं नार्गला तु, कीलकं न रहस्यकम्। न सूक्तं नापि ध्यानं च, न न्यासो न च वाऽर्चनम्॥2॥
कुञ्जिका-पाठ-मात्रेण, दुर्गा-पाठ-फलं लभेत्। अति गुह्यतरं देवि! देवानामपि दुर्लभम्॥3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन, स्वयोनिरिव पार्वति! मारणं मोहनं वश्यं, स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्धयेत्, कुञ्जिका-स्तोत्रमुत्तमम्॥4॥
ॐ श्रूं श्रूं श्रूं श्रं फट् ऐं ह्रीं ज्वालोज्ज्वल, प्रज्वल, ह्रीं ह्रीं क्लीं स्रावय स्रावय।
वशीष्ठ-गौतम-विश्वामित्र-दक्ष-प्रजापति-ब्रह्मा ऋषयः। सर्वैश्वर्य-कारिणी श्री दुर्गा देवता।
गायत्र्या शापानुग्रह कुरु कुरु हूं फट्।
ॐ ह्रीं श्रीं हूं दुर्गायै सर्वैश्वर्य-कारिण्यै, ब्रह्म-शाप-विमुक्ता भव।
ॐ क्लीं ह्रीं ॐ नमः शिवायै आनन्द-कवच-रुपिण्यै, ब्रह्म-शाप-विमुक्ता भव।
ॐ काल्यै काली ह्रीं फट् स्वाहायै, ऋग्वेद-रुपिण्यै, ब्रह्म-शाप-विमुक्ता भव।
शापं नाशय नाशय, हूं फट्॥ श्रीं श्रीं श्रीं जूं सः आदाय स्वाहा॥
ॐ श्लों हुं क्लीं ग्लौं जूं सः ज्वलोज्ज्वल मन्त्र प्रबल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।
नमस्ते रुद्र-रूपायै नमस्ते मधु-मर्दिनि।
नमस्ते कैटभारि च नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्री च, निशुम्भासुर-घातिनि॥2॥
नमस्ते जाग्रते देवि! जपं सिद्धिं कुरुष्व मे।
ॐ ऐंकारी सृष्टि-रूपायै ह्रींकारी प्रति-पालिका॥3॥
क्लींकारी काम-रूपिण्यै बीजरूपे! नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्ड-घाती च यैङ्कारी वर-दायिनी॥4॥
विच्चे त्व-भयदा नित्यं नमस्ते मन्त्र-रूपिणि॥5॥
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं हंसः-सोऽहं अं आं ब्रह्म-ग्रन्थि भेदय भेदय। इं ईं विष्णु-ग्रन्थि भेदय भेदय। उं ऊं रुद्र-ग्रन्थि भेदय भेदय।
अं क्रीं, आं क्रीं, इं क्रीं, इं हूं, उं हूं, ऊं ह्रीं, ऋं ह्रीं, ॠं दं, लृं क्षिं, ॡं णें, एं कां, ऐं लिं, ओं कें, औं क्रीं, अं क्रीं, अः क्रीं, अं हूं, आं हूं, इं ह्रीं, ईं ह्रीं, उं स्वां, ऊं हां, यं हूं, रं हूं, लं मं, बं हां, शं कां, षं लं, सं प्रं, हं सीं, ळं दं, क्षं प्रं, यं सीं, रं दं, लं ह्रीं, वं ह्रीं, शं स्वां, षं हां, सं हं लं क्षं॥
महा-काल-भैरवी महा-काल-रुपिणी क्रीं अनिरुद्ध-सरस्वति! हूं हूं, ब्रह्म-ग्रह-बन्धिनी, विष्णु-ग्रह-बन्धिनी, रुद्र-ग्रह-बन्धिनी, गोचर-ग्रह-बन्धिनी, आदि-व्याधि-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-दुष्ट-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-दानव-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-देवता-ग्रह-बन्धिनी, सर्वगोत्र-देवता-ग्रह-बन्धिनी, सर्व-ग्रहोपग्रह-बन्धिनी! ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ॐ क्रीं हूं मम पुत्रान् रक्ष रक्ष, ममोपरि दुष्ट-बुद्धिं दुष्ट-प्रयोगाना् कुर्वन्ति, कारयन्ति, करिष्यन्ति, तान् हन। मम मन्त्र-सिद्धिं कुरु कुरु। मम दुष्टं विदारय विदारय। दारिद्रयं हन हन। पापं मथ मथ। आरोग्यं कुरु कुरु। आत्म-तत्त्वं देहि देहि। हंसः सोहम्। क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥
नव-कोटि-स्वरुपे, आद्ये, आदि-आद्ये अनिरुद्ध-सरस्वति! स्वात्म-चैतन्यं देहि देहि। मम हृदये तिष्ठ तिष्ठ। मम मनोरथं कुरु कुरु स्वाहा॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नीः! वां वीं वागेश्वरी तथा।
क्रां क्रीं क्रूं कुञ्जिका देवि! शां शीं शूं में शुभं कुरू॥
हूं हूं हूङ्कार-रूपायै, जां जीं जूं भाल-नादिनीं।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे ! भवान्यै ते नमो नमः॥7
ॐ अं कं चं टं तं पं सां विदुरां विदुरां, विमर्दय विमर्दय ह्रीं क्षां क्षीं क्षीं जीवय जीवय, त्रोटय त्रोटय, जम्भय जम्भय, दीपय दीपय, मोचय मोचय, हूं फट्, जां वौषट्, ऐं ह्रीं क्लीं रञ्जय रञ्जय, सञ्जय सञ्जय, गुञ्जय गुञ्जय, बन्धय बन्धय। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे ! संकुच संकुच, सञ्चल सञ्चल, त्रोटय त्रोटय, म्लीं स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा॥8
म्लां म्लीं म्लूं मूल-वीस्तीर्णा-कुञ्जिकायै नमो नमः॥
सां सीं सप्तशती देव्या मन्त्र-सिद्धिं कुरूश्व मे॥9
॥फल श्रुति॥
इदं तु कुंजिका स्तोत्रं मन्त्र-जागर्ति हेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं, गोपितं रक्ष पार्वति॥
विहीना कुञ्जिका-देव्या,यस्तु सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिः ह्यरण्ये रुदतिं यथा॥
॥इति श्रीरुद्रयामले, गौरीतन्त्रे, काली तन्त्रे शिव-पार्वती संवादे कुञ्जिका-स्तोत्रं॥
इति श्री डामरतन्त्रे ईश्वरपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
विशेषः- कोई भी दीक्षा-प्राप्त व्यक्ति इसका पाठ कर सकता है। निरन्तर सप्तशती का पाठ करनेवाला माँ जगज्जननी का भक्त सप्तशती के आरम्भ तथा अन्त में इसका पाठ अवश्य करे। “कुल्लुका महा-मन्त्र” के सम्बन्ध में संकेत मात्र है की- “क्रीम हूं स्त्रीं ह्रीं फट्” – इन ५ बीजों से जप के पूर्व कर-न्यास व हृदय-न्यास करने चाहिए।
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👉☘️संपूर्ण सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम का ममहत्व☘️
समस्त बाधाओं को शांत करने, शत्रु दमन, ऋण मुक्ति, करियर, विद्या, शारीरिक और मानसिक सुख प्राप्त करना चाहते हैं तो सिद्धकुंजिकास्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र की महिमा भगवान शंकर कहते हैं कि सिद्धकुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है।
क्यों है सिद्ध —
इसके पाठ मात्र से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति हो जाती है। इसमें स्वर व्यंजन की ध्वनि है।
कैसे करें
संपूर्ण सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए। प्रतिदिन की पूजा में इसको शामिल कर सकते हैं। लेकिन यदि अनुष्ठान के रूप में या किसी इच्छाप्राप्ति के लिए कर रहे हैं तो आपको कुछ सावधानी रखनी होंगी।
(1.) संकल्प: सिद्ध कुंजिका पढ़ने से पहले हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें।
(2.) जितने पाठ एक साथ ( 1, 2, 3, 5. 7.11) कर सकें, उसका संकल्प करें।
(3.) सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
प्रतिदिन अनार का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र में दशों महाविद्या, नौ देवियों की आराधना है।
सिद्धकुंजिका स्तोत्र के पाठ का समय
(1.) रात्रि 9 बजे करें तो अत्युत्तम । (2. ) रात को 9 से 11.30 बजे तक का समय रखें ।
आसन
लाल आसन पर बैठकर पाठ करें
दीपक
घी का दीपक दायें तरफ और सरसो के तेल का दीपक बाएं तरफ रखें। अर्थात दोनों दीपक जलाएं
किस इच्छा के लिए कितने पाठ करने हैं!
…विद्या प्राप्ति के लिए…. पांच पाठ ( अक्षत लेकर अपने ऊपर से तीन बार घुमाकर किताबों में रख दें)
यश-कीर्ति के लिए…. पांच पाठ ( देवी को चढ़ाया हुआ लाल
पुष्प लेकर सेफ आदि में रख लें)
धन प्राप्ति के लिए….9 पाठ (सफेद तिल से हवन करें)
.मुकदमे से मुक्ति के लिए… सात पाठ ( पाठ के बाद एक नींबू काट दें। दो ही हिस्से हों ध्यान रखें। इनको बाहर अलग-अलग दिशा में फेंक दें)
. ऋण मुक्ति के लिए…. सात पाठ ( जौं की 21 आहुतियां देते हुए अग्यारी करें। जिसको पैसा देना हो या जिससे लेना हो, उसका बस ध्यान कर लें)
घर की सुख-शांति के लिए… तीन पाठ ( मीठा पान देवी को अर्पण करें)
स्वास्थ्यके लिए…तीन पाठ (देवी को नींबू चढाएं और फिर उसका प्रयोग कर लें)
. शत्रु से रक्षा के लिए…, 3, 7 या 11 पाठ ( लगातार पाठ करने से मुक्ति मिलेगी)
रोजगार के लिए… 3, 5, 7 और 11( ऐच्छिक)
(एक सुपारी देवी को चढाकर अपने पास रख ले
. सर्वबाधा शांति- तीन पाठ ( लोंग के तीन जोड़े हवन पर चढ़ाएं या देवी जी के आगे तीन जोड़े लोंग के रखकर फिर उठा लें और खाने या चाय में प्रयोग कर लें।
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