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Bhaidooj: bond of love

भाईदूज: बंधन प्यार के

 

 

भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व होता है, और इन त्योहारों में भाईदूज एक विशेष स्थान रखता है। भाईदूज भाई-बहन के प्यार और समर्थन का प्रतीक होता है, जो सालों से चली आ रही परंपराओं और कथाओं से जुड़ा हुआ है।

 

भारतीय समृद्धि और संस्कृति की गहरी जड़ों में भाई-बहन के प्रेम का विशेष महत्व होता है। भाईदूज का पर्व बहनों के लिए उनके भाई की लम्बी आयु और खुशियों से भरी जिंदगी की कामना करता है, जबकि भाइयों के लिए यह एक अवसर होता है उनकी बहनों के प्रति अपने प्यार और समर्थन को प्रकट करने का।

 

भारतीय परंपरा में इस त्योहार का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। पुराने समय से ही भारतीय समाज में भाई-बहन के आपसी बंधन को मजबूती देने के लिए यह त्योहार मनाया जाता रहा है। ऐतिहासिक कथाओं और पुरानी ग्रंथों में भी इस त्योहार का वर्णन मिलता है।

 

भाईदूज का त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भारत भर में मनाया जाता है, और हर क्षेत्र में इसका अपना महत्वपूर्ण तरीके से मनाने का तरीका होता है। यह त्योहार सामाजिक एकता और परिवार के महत्व को प्रकट करता है, जो हमारे समाज के आधार होते हैं।

 

पुराणों में भाईदूज का वर्णन

 

भाईदूज, भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है जो भाई-बहन के प्रेम और संबंध को मनाने का एक विशेष दिन है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है, जिसे ‘यम द्वितीया’ भी कहते हैं। इस दिन बहन अपने भाइयों की लम्बी उम्र और खुशियाँ की कामना करती हैं, और भाई उन्हें उपहार देते हैं। इसके अलावा, परिवारों में आपसी प्यार और सम्मान का प्रतीक होने के नाते, यह पर्व खासी महत्वपूर्ण होता है।

 

 

यम-यमुना की कहानी

 

पुराणों के अनुसार, भगवान सूर्य और संज्ञा के दो पुत्र थे – यमराज और यमुना। संज्ञा, सूर्य के तेज को सहन करने में असमर्थ हो गई थी और वह उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी। इससे ताप्ती नदी और शनिदेव का जन्म हुआ। उत्तरी ध्रुव में बसने के बाद, यमराज और यमुना के बीच भाई-बहन का व्यवहार बदल गया। यमराज ने यमपुरी बसाई और यमुना गोलोक में निवास करने लगीं, लेकिन उनके बीच में स्नेह बना रहा।

 

वर्षों बाद, एक दिन यमराज को अपनी बहन यमुना की याद आई। उनके व्यस्त समय के कारण वे बहन से मिलने नहीं जा पाते थे। फिर एक दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया पर, यमुना ने यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण दिया और उनसे वादा किया कि वे उनके घर आएंगे। यमराज ने सोचा कि वे मृत्यु के देवता होने के कारण कोई भी उन्हें अपने घर नहीं बुलाएगा, लेकिन उनकी बहन की भावना का आदर करना भी उनका धर्म है। उन्होंने अपने आगंतुकों को मुक्ति देने का निर्णय लिया और यमुना के घर गए।

 

यमराज के आगमन से यमुना बहुत खुश हुई, और उन्होंने उन्हें स्वादिष्ट भोजन परोसा। यमराज को यमुना के आतिथ्य से प्रसन्नता मिली और उन्होंने यमुना से वर मांगने के लिए कहा। यमुना ने अपने भाई की भक्ति के साथ अपनी इच्छा व्यक्त की, और उन्होंने यमराज को वरदान प्रदान किया। इसके बाद, यमराज ने यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की ओर प्रस्थान किया। इस घटना के बाद से, यम द्वितीया को यम-द्वितीया या भाईदूज के नाम से जाना जाने लगा।

 

धार्मिक दृष्टिकोण से, यम-द्वितीया का यह महत्वपूर्ण संदेश है कि भाई और बहन के बीच की पवित्रता और स्नेह को महत्व दिया जाना चाहिए। यमुना ने अपने भाई के प्रति अपनी प्रेमभावना को प्रकट किया और उन्होंने यमराज की भी भक्ति की। यमराज ने यमुना की इच्छाओं को पूरा करने का आदर किया और उन्हें वरदान दिया।

 

इस प्रकार, यम-यमुना की कहानी से हमें पारिवारिक संबंधों की महत्वपूर्णता और भाई-बहन के प्रेम की महत्वपूर्णता का संदेश मिलता है।

 

भाई दूज व्रत विधि

 

इस पर्व के महत्वपूर्ण दिन पर, भाई अपनी बहनों के घर जाते हैं। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि इस विशेष बंधन के माध्यम से उनके बीच में स्नेह, सम्मान और साझा विश्वास को मजबूती मिलती है। इस दिन का पालन करने से विशेष रूप से धन, यश, आयुष्य, धर्म, अर्थ और सुख की प्राप्ति होती है।

 

भाई दूज के दिन, सभी बहनें अपने भाइयों को एक विशेष आसन पर बिठाती हैं। उन्हें धूप देकर आरती उतारती हैं और उनके माथे पर रोली और चावल से तिलक करती हैं। यह तिलक एक प्रतीक होता है जो भाई के लिए सुरक्षा, समृद्धि और उत्तम भविष्य की कामना प्रकट करता है। साथ ही, बहनें अपने भाइयों को फूलों का हार पहनाती हैं, जो स्नेह और सौभाग्य का प्रतीक होता है।

 

इसके बाद, बहनें अपने हाथों से अपने भाइयों के लिए उनकी पसंद का आहार तैयार करती हैं और उन्हें खिलाती हैं। इस विशेष मोमेंट में, परिवार की एकता और प्रेम का भाव अधिक महत्वपूर्ण होता है।

 

भाई दूज का यह आयोजन न केवल पारिवारिक समृद्धि की ओर एक कदम होता है, बल्कि यह भाई-बहन के बीच के आदर्श संबंध की महत्वपूर्णता को दर्शाता है।”

 

 

पूजा में उपयोग होने वाली सामग्री क्या-क्या होती है?

 

भाई दूज पूजा की सामग्री निम्नलिखित हो सकती है:

 

रोली (तिलक): बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाने के लिए रोली का उपयोग करती हैं।

 

चावल: तिलक के साथ चावल भी प्रयुक्त किए जाते हैं, जो कि आशा की ओर संकेत करते हैं।

 

फूलों का हार: बहनें अपने भाइयों को फूलों के हार भी पहनाती हैं, जिससे स्नेह और आदर का भाव प्रकट होता है।

 

आरती की थाली: आरती करने के लिए एक थाली जिसमें दीपक, धूप, अगरबत्ती, और अपने भाई की प्रतिमा हो सकती है।

 

स्वीट्स और नमकीन: बहनें अपने भाइयों के लिए स्वीट्स, मिठाई और नमकीन भी तैयार करती हैं, जिन्हें खिलाकर खुशी मनाती हैं।

 

उपहार: कुछ बहनें अपने भाइयों को उपहार भी देती हैं, जैसे कि वस्त्र, आभूषण, या उनकी पसंदीदा चीजें।

 

पूजा सामग्री: पूजा के लिए धूप, दीपक, अगरबत्ती, वस्त्र, फूल, आदि की सामग्री भी तैयार की जा सकती है।

 

व्रत कथा और पूजा पुस्तक: बहनें व्रत कथा और पूजा पुस्तक भी भाइयों के लिए रख सकती हैं, जिससे वे पूजा और व्रत की विधि को समझ सकें।

 

ये सामग्री भाई दूज पूजा के आयोजन में उपयोग होती है जो भाई-बहन के प्रेम और संबंध को मजबूती देता है। आपकी स्थानीय परंपरा और आपकी व्यक्तिगत पसंद के अनुसार, सामग्री में थोड़े बदलाव हो सकते हैं।

 

 

पूजा के समय कोनसे संस्कृत मंत्र का उच्चारण करें

 

भाई दूज के अवसर पर कुछ महत्वपूर्ण मंत्र जिन्हें उच्चारण किया जा सकता है, उनका संस्कृत मंत्र और उनका अर्थ निम्नलिखित है:

 

भाई दूज पूजा मंत्र:

संस्कृत मंत्र: येन बद्धो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

 

अर्थ: जिस प्राणी ने राजा बलि को बँध दिया था, जो दानवेन्द्र और महाबल थे, उसी से मैं तुम्हें बँधता हूँ। रक्षा करो, विचलन मत करो, विचलित मत होना।

 

भाई दूज आरती मंत्र:

संस्कृत मंत्र: याचेम यामुनातीरे तुलसीतोये शुचिस्मिते।

त्वदंघ्रिपङ्कजं स्पृष्ट्वा प्रदक्षिणं कुरु तेऽनघ।।

 

अर्थ: हे अनघ! मैं तुलसी जल के तट पर यमुना के तीर पर आपको आग्रह करता हूँ, कृपया मेरे चिरकाल तक जीवन को पावन करें।

 

मंत्रों का जाप भाई दूज पूजा में महत्वपूर्ण होता है। यह मंत्र उच्चारण द्वारा भाई और बहन के बीच विशेष आत्मीयता और स्नेह को बढ़ावा देता है। मंत्रों का जाप मन की शांति और सकारात्मकता को भी बढ़ावा देता है और पूजा के अवसर पर भक्ति और समर्पण की भावना को प्रकट करता है।

 

इस रूप में, भाई दूज के मंत्रों का उच्चारण और उनके अर्थ का समझना बहन और भाई के बीच के विशेष संबंध को मजबूती और समृद्धि प्रदान कर सकता है।

 

 

भारत के विभिन्न हिस्सों में भाई दूज के अलग-अलग नाम

 

यम द्वितीया / भैया दूज: हिन्दू पंचांग के कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भाईदूज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई के लिए तिलक लगाती है और उनकी लम्बी उम्र और खुशियाँ की कामना करती है। भाई बहन के बीच मिठास और प्यार का पर्व होता है।

 

भाई दूज / भाई बीज: इसे गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक क्षेत्र में “भाई दूज” या “भाई बीज” के नाम से मनाया जाता है। यह परंपरा भाई-बहन के बीच अद्भुत संबंध को मनाने का दिन होता है।

 

भाऊबीज: महाराष्ट्र में भाईदूज को “भाऊबीज” के नाम से जाना जाता है। इस दिन बहन अपने भाई के लिए पुष्पमाला बनाती है और उनकी लम्बी उम्र की कामना करती है।

 

भाई फोट / भाईफोटा: पंजाब में भाईदूज को “भाई फोट” या “भाईफोटा” के नाम से मनाया जाता है। बहन अपने भाई के लिए खास मिठाई बनाती है और उन्हें उपहार देती है।

 

भाई तीका: उत्तर प्रदेश, बिहार और नेपाल में भाईदूज को “भाई तीका” के नाम से मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई के चारण में तिलक लगाती है और उनकी खुशियाँ की कामना करती है।

 

ये केवल कुछ उदाहरण हैं, और भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भाईदूज की विभिन्न परंपराएँ होती हैं। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम और संबंध को मजबूती और सम्मान के साथ बढ़ावा देने का एक अद्वितीय मौका होता है।