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chhath puja

छठ पूजा, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है, एक महत्वपूर्ण हिन्दू पर्व है।

छठ पूजा, भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसका उत्सव भारत के सीमाओं के बाहर भी मनाया जाता है। यह खासतर समुदायों में रहने वाले लोगों के लिए यह एक विशेष अवसर होता है।

 

छठ पूजा का महत्व:

 

छठ पूजा में भगवान सूर्य और छठी मय्या की पूजा की जाती है। इस पर्व में 36 घंटे का निर्जला व्रत रखकर और नियमों का पालन करके आराधना की जाती है, जिससे विधि विधान से व्रती को संतान सुख, बेहतर स्वास्थ्य, तेजस्वी बुद्धि और दीर्घायु प्राप्त होते हैं।

 

छठ पूजा की कथाएँ बताती हैं कि षष्ठी देवी की कृपा से बच्चों पर आने वाले हर संकट का नाश होता है। इस पर्व की शुरुआत का श्रेय महाभारत के योद्धा कर्ण को जाता है, जिन्होंने सूर्य भगवान की पूजा की थी।

 

छठ पूजा एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो सूर्य भगवान और छठी मय्या की आराधना करता है और व्रती को आत्मा की शुद्धि और आनंद की अनुभूति कराता है।”

 

 

 छठ पूजा नियम

 

 छठ पूजा हमारे देश के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस उत्सव में हम छठी माता और सूर्य देव की पूजा-अर्चना करते हैं। इस समय 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास रखा जाता है। कार्तिक मास की चतुर्थी तिथि को पहले दिन नहाकर खाने, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन डूबते सूर्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ पूजा में संतान की सेहत, सफलता और दीर्घायु के लिए पूरे 36 घंटे का निर्जल उपवास किया जाता है, जिसे महिलाएं और पुरुष दोनों ही अनुसरण करते हैं। यह व्रत बेहद कठिन होता है, इसलिए छठ पूजा में कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। आइए जानते हैं उन नियमों के बारे में…

 

प्रसाद बनाते समय विशेष ध्यान दें

छठ पूजा के समय प्रसाद में शामिल होने वाले सभी अनाजों की सफाई को ध्यान से करना आवश्यक है। यह घर पर ही धोकर, पीसकर, और बनाया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान चिड़ियाघर को भी जूता नहीं करने देना चाहिए, और उसके लिए विशेष ध्यान देना चाहिए। छठ पूजा के प्रसाद में उपयोग होने वाले अनाज में भूल से भी पैर नहीं लगनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से छठी माता नाराज हो सकती है।

 

नया चूल्हा

आपको कोशिश करनी चाहिए कि छठ पूजा के प्रसाद तैयार करते समय एक नये चूल्हे का उपयोग करें। यह चूल्हा ऐसा होना चाहिए जिसे आसानी से लिपा जा सके। यदि आप गैस का उपयोग करते हैं, तो आपको नये गैस स्टोव का उपयोग करना चाहिए, जिसे केवल छठ पूजा के दिनों में ही निकाला जाता हो। छठ पूजा में पहले उपयोग किए गए चूल्हे का पुनः उपयोग नहीं किया जाता है।

 

प्राकृतिक उपकरणों का प्रयोग करें

पूजा के लिए बांस से बनी सूप और टोकरी का ही उपयोग करना आवश्यक होता है। छठ पूजा के दौरान कभी भी स्टील या कांच के बर्तनों का उपयोग नहीं करना चाहिए। प्रसाद भी शुद्ध घी में बनाया जाता है और इसमें फलों का ही उपयोग किया जाता है। छठ पूजा में इन नियमों का पालन करना आवश्यक है, ताकि पूजा का पूरा फल मिल सके।

 

 

अर्घ्य देते समय पढ़ना न भूलें सूर्य मंत्र

 

 

छठ पूजा के दिन, विशेष रूप से भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।

 

 मान्यता है कि आज भगवान सूर्य की आराधना करने से और उनके मंत्रों का जाप करने से व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है। आज सूर्य देव की आरती का भी विशेष महत्व है। शास्त्रों में बताया गया है कि बिना आरती के पूजा सफल नहीं होती है, इसलिए आज सूर्य देव की आरती जरूर करें।

 

सूर्य देव मंत्र

 

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः ।।

 

ॐ सूर्याय नम: ।।

 

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा ।।

 

ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर: ।।

 

ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ ।।

 

 

सूर्य देव आरती

 

 

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।

 

जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।

 

धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।। ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी। तुम चार भुजाधारी।।

 

अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटि किरण पसारे। तुम हो देव महान।। ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते। सब तब दर्शन पाते।।

 

फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा। करे सब तब गुणगान।। ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते। गोधन तब घर आते।।

 

गोधूलि बेला में, हर घर हर आंगन में। हो तव महिमा गान।। ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

देव-दनुज नर-नारी, ऋषि-मुनिवर भजते। आदित्य हृदय जपते।।

 

स्तोत्र ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी। दे नव जीवनदान।। ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

तुम हो त्रिकाल रचयिता, तुम जग के आधार। महिमा तब अपरम्पार।।

 

प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते। बल, बुद्धि और ज्ञान।। ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

भूचर जलचर खेचर, सबके हों प्राण तुम्हीं। सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।

 

वेद-पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने। तुम ही सर्वशक्तिमान।। ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

पूजन करतीं दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल। तुम भुवनों के प्रतिपाल।।

 

ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी। शुभकारी अंशुमान।। ॐ जय सूर्य भगवान…।।

 

ॐ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।

 

जगत् के नेत्रस्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।स्वरूपा।।

 

धरत सब ही तव ध्यान, ॐ जय सूर्य भगवान।।

 

 

 

छठ पूजा: खास दिनों में क्रियाएँ

 

छठ पूजा में सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा विशेष मानी जाती है, और इसके दौरान अर्घ्य देने का विधान है। इस पर्व के 4 दिनों में खास क्रियाएँ होती हैं:

 

  1. पहले दिन – ‘नहाय खाय’: पहले दिन, सफाई और शुद्धता का महत्वपूर्ण होता है। इस दिन शाकाहारी भोजन करते हैं और गर्म पानी में नहाते हैं। छठ पर्व का आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होता है।

 

  1. दूसरे दिन – ‘खरना’: दूसरे दिन, उपवास रखा जाता है, और शाम को गुड़ की खीर, घी लगी रोटी, और फलों का सेवन किया जाता है। इस दिन जल भी नहीं पीते हैं। संध्या का भोजन घर के अन्य सदस्यों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

 

 

  1.  संध्या अर्घ्य: यह तीसरा दिन छठ पर्व का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जब कार्तिक शुक्ल की षष्ठी होती है। इस दिन, संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और विधिवत पूजन किया जाता है। शाम को बांस की टोकरी में ठेकुआ, चावल के लड्डू, और कुछ फल रखें जाते हैं, और फिर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसी दौरान, सूर्य को जल और दूध से भरे सूप के साथ छठी मैया की पूजा भी की जाती है। रात्रि को छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनाई जाती है।

 

  1. उषा अर्घ्य: यह छठ पर्व का समापन दिन होता है, और उसे ‘उषा अर्घ्य’ कहा जाता है। इस दिन सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर जाकर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पूजा के बाद, व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करते हैं, जिसे ‘पारण’ या ‘परना’ कहा जाता है।