Diwali
दीपावली, जिसे दीपावली या दिवाली के रूप में भी जाना जाता है। यह त्योहार चारों दिशाओं में खुशी और उत्साह की भावना को दर्शाने का एक श्रेष्ठ और आदर्श दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। दीपों की रौशनी, रंगों की खिलखिलाहट और समृद्धि की प्रतीकता के रूप में यह त्योहार जाना जाता है।
दीपावली का महत्व विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओं के साथ जुड़ा हुआ है। पुराने ग्रंथों के अनुसार, दीपावली का आयोजन श्री राम ने अयोध्या में अपने 14 वर्षीय वनवास के बाद अपने राज्याभिषेक के अवसर पर किया था। उनके आगमन के स्वागत में लोगों ने आभूषणों से सजीवन दिए जलाकर उनका स्वागत किया था, जिससे त्योहार का नाम ‘दीपावली’ पड़ा।
दीपावली को मनाने के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण है, जिसमें सामाजिक सद्भावना और सामाजिक एकता को बढ़ावा देने का उद्देश्य होता है। इस त्योहार में लोग अपने घरों को सजाकर उन्हें एक नया और उत्तम रूप देते हैं। वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते हैं, गिफ्ट विदाई देते हैं और मिलनसार भावनाओं का आदान-प्रदान करते हैं।
इसके अतिरिक्त, दीपावली का धार्मिक महत्व भी होता है। हिन्दू धर्म में दीपों की रौशनी का एक विशेष स्थान होता है, जिसे अज्ञानता और अंधकार की प्रतीकता से दूर भगाने का प्रतीक माना जाता है।
हम सब जानते हैं कि दिवाली का उत्सव भगवान राम, देवी सीता और लक्ष्मण के १४ साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है।
हालांकि, इसकी पीछे की कहानी क्या है? इसका महत्व क्या है? इन सब की जानकारी आप विस्तार से इस आर्टिकल में पढ़ सकते हैं।
देवी काली और दीपावली की कहानी
बंगाली परंपरा में, दीपावली को ‘काली पूजा’ के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां काली की पूजा के बारे में एक दिलचस्प कहानी है। माना जाता है कि इस दिन मां काली 64 हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुईं और उन्होंने रक्त बीज सहित कई राक्षसों को मार गिराया।
दीपावली की कहानी और पुराणिक परंपरा
दीपावली की कहानी और पुराणिक परंपरा विभिन्न पौराणिक ग्रंथों में मिलती है, लेकिन सबसे प्रसिद्ध कथा रामायण में है, जिसमें भगवान श्री राम के अयोध्या वापसी के दिन की खास महत्वपूर्णता होती है।
कथा के अनुसार, भगवान राम अपने वनवास के 14 वर्ष पूरे करके अयोध्या लौटने के लिए तैयारी कर रहे थे। उनके अयोध्या पहुंचने के दिन को सभी ने बड़े उत्साह और खुशी के साथ इंतजार किया। इस मौके पर उनके भक्त लोगों ने राम का स्वागत करने के लिए अपने घरों की खिड़कियों में दीपकों की रौशनी जलाई। इससे उनके आगमन की राह में प्रकाश का मार्ग प्रस्तुत होता है और उनका स्वागत किया जाता है।
विभिन्न पौराणिक कथाओं के अलावा, दीपावली को भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में धार्मिकता, शुभकामनाओं की बारिश, परिवार और समाज के साथ समृद्धि और सामाजिक सद्भावना का प्रतीक माना जाता है। यह एक आदर्श तरीका है अपने आप को परंपरागत मूल्यों और संस्कृति से जोड़ने का और समाज में एकता और सद्भावना की भावना को बढ़ावा देने का।
एक और कथा – श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध
एक और हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से असुर राजा नरकासुर का वध किया था। नरकासुर को एक श्राप मिला था कि वह स्त्री के हाथों मारा जाएगा, और उसी दिन नरकासुर का वध हुआ था, जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। नरकासुर के उन्माद से मुक्ति प्राप्त करने के सुख में लोग दीपक जलाने लगे थे और उसके अगले दिन दिवाली का उत्सव मनाया गया था। इससे दीपावली का पर्व आया, और यह त्योहार मनाने की प्रथा शुरू हुई।
दीपावली क्यूं मनाई जाती है?
धार्मिक महत्व के परिप्रेक्ष्य में, दीपावली के मनाने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण देवी लक्ष्मी के आगमन का माना जाता है। लक्ष्मी देवी को धन, समृद्धि, विकास और सफलता की प्रतीक माना जाता है, और उनके आगमन का स्वागत करते हुए लोग अपने घरों की सजीवन दियों की रौशनी से उनका स्वागत करते हैं। इसके साथ ही, दीपावली के दिन पूजा-अर्चना के साथ-साथ धन की प्राप्ति और समृद्धि की प्राप्ति की भी आशा की जाती है।
सांस्कृतिक परिवार्तन के परिप्रेक्ष्य में, दीपावली एक नए आरंभ का प्रतीक मानी जाती है। इस दिन लोग अपने घरों को सजाकर नए और उत्तम दिनों की शुरुआत करते हैं। यह एक प्रकार की आत्म-निर्माण और सकारात्मकता की भावना को प्रकट करता है। दीपों की रौशनी और रंगों की खिलखिलाहट से यह त्योहार सभी को उत्साहित करता है कि वे अपने जीवन में नए संभावनाओं की ओर बढ़ें और आगामी साल में नए उद्यमों का आरंभ करें।
इसके अलावा, दीपावली सामाजिक एकता और सद्भावना की भावना को भी बढ़ावा देने का माध्यम होती है। लोग इस त्योहार के माध्यम से अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते हैं, गिफ्ट विदाई देते हैं और समाज में बनाए रखने की प्रतिज्ञा करते हैं।
समारोहों, पूजा-अर्चना, और सकारात्मक आत्मविकास के साथ, दीपावली एक प्रकार से सभी के जीवन में नई ऊर्जा का संचार करती है और एक सशक्त और समृद्ध भविष्य की ओर प्रेरित करती है।
दिवाली पर माता लक्ष्मी की पूजा क्यों की जाती है?
शास्त्रों में इस बारे में बताया गया है कि जब देवता और असुर समुद्र मंथन कर रहे थे, तो समुद्र मंथन के दौरान 14 खजाने उभरे थे, जिनमें से एक खजाना माता लक्ष्मी भी थी। मान्यता के अनुसार, कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए दीपावली के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
लोग मानते हैं कि दीपावली के दिन माता लक्ष्मी अपनी आशीर्वाद देने के लिए जगह-जगह घरों में आती हैं। उन्हें खुश और सान्त देखकर लोग उनकी पूजा-अर्चना करते हैं ताकि वे घर में समृद्धि और सौभाग्य का संकेत दे सकें। इस पूजा में धन की वृद्धि और आर्थिक सफलता की प्राप्ति के लिए माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।
इसके अलावा, दीपावली के उत्सव के दौरान लोग अपने घरों की सजावट में लक्ष्मी पूजन का खास ख्याल रखते हैं। वे अपने घरों की सफाई करते हैं, उन्हें सजाते हैं और उन्हें दीपों और रंगोलियों से सजाते हैं। यह सब कार्य उनकी आराधना और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए होते हैं।
दीपावली कैसे मनाई जाती है?
दीपावली का उत्सव मनाने की परंपरा भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखती है, और यह त्योहार विशेषकर धार्मिक पूजा, आरती, प्रसाद, और परिवार साथीयों के साथ समय बिताने का एक अवसर होता है।
- पूजा पाठ विधि:
दीपावली के दिन, घर की सजावट की जाती है और घर में एक शुभ स्थान की तैयारी की जाती है जहां पर पूजा आयोजित की जाती है। इस स्थान पर देवी लक्ष्मी, गणेश और सरस्वती की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। फिर धूप, दीपक, फूल, अदरक, घी और मिश्रित प्रसाद के साथ पूजा आरंभ की जाती है।
- दीपमाला:
दीपावली के दिन, घरों की खिड़कियों, दरवाजों और आंगनों में दीपमाला लगाई जाती है। यह दीपक जलाने की रौशनी को बढ़ावा देता है और घर को रौंगते हुए दिखाता है।
- आरती और प्रसाद:
पूजा के बाद आरती की जाती है, जिसमें दीपकों की आरती उतारी जाती है और भगवान की महिमा का गान किया जाता है। इसके बाद पूजा के प्रसाद को बांटने का कार्य किया जाता है, जिसमें मिठाई, फल, नट्स, और खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं।
दीपावली के दिन, घरों को सजाने और उन्हें दीपों की रौशनी से सजाने के साथ ही, लोग अपने परिवार के साथ समय बिताते हैं और साथ मिलकर भगवान की पूजा करते हैं। इसके अलावा, अन्य पारंपरिक आयोजनों जैसे कि मिठाइयों की तैयारी, दोस्तों और परिवार के साथ खाने का आयोजन, और दिवाली के दिन धन की चुकानी भी की जाती है।
पूजा के समय कोनसे संस्कृत मंत्र का उच्चारण करें ?
संस्कृत मंत्र:
दीपावली के उत्सव के दौरान, पूजा के समय विशेष मंत्रों का उच्चारण करना महत्वपूर्ण होता है। ये मंत्र भगवान की कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए अवश्य जरूरी होते हैं। यहां कुछ प्रमुख संस्कृत मंत्र दिए जा रहे हैं:
लक्ष्मी मंत्र:
ऊँ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः।
(इस मंत्र का जप करने से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है।)
गणेश मंत्र:
ऊँ गं गणपतये नमः।
(शुरुआत में गणेश जी की पूजा के लिए उच्चारित किया जाता है।)
सरस्वती मंत्र:
ऊँ ऐं वाग्देव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि।
तन्नो देवी प्रचोदयात्।
(विद्या और बुद्धि की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जप किया जाता है।)
शुभ आचरण:
दीपावली के दिन, निम्नलिखित आचरण करना भी महत्वपूर्ण होता है जो समृद्धि, शुभकामनाएँ और परिवार में सद्भावना को प्रकट करते हैं:
घर की सजावट:
घर की सजावट करें और उसे दीपों की रौशनी से प्रकाशित करें।
दीपमाला और रंगोली:
घर के आंगन में दीपमाला और रंगोली बनाएं, जो उत्सव की रंगीनता को बढ़ावा देते हैं।
पूजा आरती:
भगवान और देवी-देवताओं की पूजा आरती के साथ करें और उनके सामने उपहार रखें।
प्रसाद बांटना:
पूजा के बाद प्रसाद को बांटें और परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिलकर भोजन करें।
धनतेरस की खरीददारी:
दीपावली के पूर्व, धनतेरस के दिन सोने और चांदी की खरीददारी की जाती है, जिससे समृद्धि और धन की प्राप्ति हो।
पर्यावरण संरक्षण: पटाखों के बजाय दीपों का उपयोग
दीपावली हम सभी के लिए एक खास मौका होती है, जब हम घरों को दीपों से सजाते हैं और रोशनी से भर देते हैं। लेकिन अब दिनों पटाखों का इस्तेमाल कर प्रदूषण बढ़ गया है। पटाखों के चलने से वायुमंडल में बुरे गैसेस आती है, जो हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक है।
हमें इस दीपावली में पटाखों के बजाय दीपों का उपयोग करना चाहिए। दीपों की रौशनी से हम न सिर्फ अपने घर को रोशन करेंगे, बल्कि प्रदूषण को भी कम कर सकेंगे।
शब्दशोर की रोकथाम: प्रदूषण मुक्त दीपावली का संकल्प
दीपावली के दिन, पटाखों की ध्वनि और शोर ने हमारे पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया है। यही नहीं, यह पशुपक्षियों के लिए भी कष्टकारी होता है। हमें शब्दशोर कम करने का प्रयास करना चाहिए और प्रदूषण मुक्त दीपावली का संकल्प लेना चाहिए।
इस तरह, हम दीपावली को पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से भी देख सकते हैं, और हमें चाहिए कि हम सभी मिलकर प्रदूषण मुक्त और स्वच्छ दीपावली का संकल्प लें।
दीपावली के उपहार और आदतें
उपहारों का चयन: आनंद का संकेत देने वाले उपहार
दीपावली हर किसी के लिए एक खास मौका होती है, जब हम अपने प्रियजनों के साथ खुशियाँ मनाते हैं और उन्हें उपहार देते हैं। उपहारों को चुनते समय, हमें उनकी पसंद और रुचियों का ध्यान रखना चाहिए। आच्छा होता है जब हम ऐसे उपहार चुनते हैं जो आनंद और प्यार की भावना को स्पष्टता से पहुँचाते हैं। किताबें, सुगंधित मोमबत्तियाँ, खास खाद्य पदार्थ, और फूल जैसे उपहार अक्सर चुने जाते हैं जो एक खास माहौल और खुशियों का संकेत देते हैं।
सामाजिक आदतें: दान, दिन-चर्या और मिलन-भागत की महत्वपूर्णता
दीपावली के महत्व को सिर्फ उपहारों तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि यह एक सामाजिक मेलजोल के अवसर का भी हिस्सा होता है। हमें इस दिन दान करने, साफ़-सफ़ाई करने और मिलकर समय बिताने की महत्वपूर्णता को समझना चाहिए। दान करके हम उन लोगों की मदद कर सकते हैं जो जरूरतमंद हैं और उन्हें खुशियों का एहसास दिला सकते हैं। साफ़-सफ़ाई करके हम स्वच्छता के महत्व को समझते हैं और अपने घर को शुद्ध रखकर खुशियों को बढ़ावा देते हैं। मिलकर समय बिताकर हम परिवार और दोस्तों के साथ खुशियों से भरपूर जीवन जीने के महत्व को अनुभव करते हैं।
इस तरह, दीपावली हमें उपहार देने के साथ-साथ सामाजिक आदतों की महत्वपूर्णता को भी सिखाती है और हमें एक खुशहाल और समृद्ध जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करती है।