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Ekadashi

एकादशी

हिन्दू पंचांग में ग्यारहवीं तिथि को ‘एकादशी’ कहा जाता है। यह तिथि मास में दो बार आती है, एक पूर्णिमा के दिन और दूसरी अमावस्या के दिन। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को ‘कृष्ण पक्ष की एकादशी’ कहा जाता है, जबकि अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को ‘शुक्ल पक्ष की एकादशी’ कहा जाता है। इन दोनों प्रकार की एकादशियों का हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान है।

 

एकादशी का महत्व:

एकादशी का नाम ‘एक’ और ‘दशी’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है ‘ग्यारहवां दिन’। यह प्रतिमा आराधना और व्रत का एक महत्वपूर्ण दिन होता है जिसमें भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन भक्त अन्न और पानी का त्याग कर उपवास करते हैं ताकि उनकी आत्मा शुद्ध हो और उन्हें आध्यात्मिक सुख प्राप्त हो।

 

एकादशी व्रत की शुरुआत कैसे हुई? भगवती एकादशी कौन है, इसके संबंध में पद्म पुराण में कहानी है कि एक बार पुण्यश्लोक धर्मराज युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने सभी दुखों से मुक्ति प्रदान करने के लिए एकादशी व्रत का निर्देश दिया, जो हजारों यज्ञों के समान है और चारों पुरुषार्थों को सरलता से प्राप्त करता है।

 

एकादशी व्रत-उपवास का महत्व बहुत अधिक होता है, और सभी धर्मों के अलग-अलग नियम होते हैं। विशेषकर हिन्दू धर्म के अनुसार, एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को दशमी के दिन से ही कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना चाहिए।

 

 

एकादशी पूजा- विधि

 

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
  • घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
  • भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
  • भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
  • अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
  • भगवान की आरती करें।
  • भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
  • इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
  • इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।

 

 

एकादशी उपवास के नियम…

 

  • एकादशी व्रत करने वालों को दशमी की रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।

 

  • एकादशी का व्रत-उपवास करने वालों को दशमी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल, आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए।

 

  • एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ साफ कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है, अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें।

 

  • यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें। फिर स्नान कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें।

 

  • फिर प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि ‘आज मैं चोर, पाखंड़ी और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूंगा।’

 

  • तत्पश्चात ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश मंत्र का जाप करें। राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्रनाम को कंठ का भूषण बनाएं।

 

  • भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें और कहे कि- ‘हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है, अतः मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना।’

 

  • क्रोध नहीं करते हुए मधुर वचन बोलना चाहिए।

 

  • यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर भी ली तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा मांग लेना चाहिए।

 

  • एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए और अधिक बोलने से बचना चाहिए।

 

  • इस दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए, किंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें।

 

  • दशमी के साथ मिली हुई एकादशी को वृद्ध मानी जाती है, और वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारण करें।

 

  • एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए।

 

  • केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें।

 

  • प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।

 

  • द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न और दक्षिणा देना चाहिए। इस व्रत को करने से जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं और उपवास करने वाला दिव्य फल प्राप्त करता है।

 

 

पूजा के समय कोनसे संस्कृत मंत्र का उच्चारण करें ?

 

श्रीहरि विष्‍णु के विविध मंत्र, जिनका जाप कर धन-वैभव, समृद्धि तथा जीवन के अनेक कष्टों से मुक्ति पाई जा सकती हैं

 

आइए जानें श्रीहरि नारायण के सरलतम चमत्कारी मंत्र :- 

 

* शीघ्र फलदायी मंत्र 

 

– श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे।

  हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।

– ॐ नारायणाय विद्महे।

 वासुदेवाय धीमहि।

 तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।

– ॐ विष्णवे नम:

 

* धन-समृद्धि की चाह रखने वाले ये विशेष मंत्र पढ़ें :-

 

– ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।

ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

धन लाभ के लिए रोज बोलें :-

 

* लक्ष्मी विनायक मंत्र –

 

दन्ताभये चक्र दरो दधानं,

कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।

धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया

लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।

 

* विष्णु के पंचरूप मंत्र –

 

– ॐ अं वासुदेवाय नम:

– ॐ आं संकर्षणाय नम:

– ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:

– ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:

– ॐ नारायणाय नम:

* ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।

यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्‍टं च लभ्यते।।

एकदम सरल एवं लाभदायी मंत्र :-

 

सरल मंत्र –

 

ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।

– ॐ हूं विष्णवे नम:।

 

 

एकादशी के प्रकार

 

व्रत कई प्रकार के होते हैं, जैसे कि निर्जला एकादशी और फलहारी एकादशी। निर्जला एकादशी में भक्त निर्जल (बिना पानी के) व्रत करते हैं, जबकि फलहारी एकादशी में वे फल और सागर आदि खा सकते हैं।

 

आध्यात्मिक महत्व:

एकादशी का व्रत रखने से शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि होती है। यह व्रत व्यक्ति को आत्मा से जुड़ने का मार्ग दिखाता है और उसकी मानसिक शक्ति को बढ़ावा देता है। यह एक मानसिक और आध्यात्मिक अनुभव होता है जो व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर करता है।

 

सामाजिक महत्व:

एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति का दयालुता बढ़ता है और वह अपने समाज में सहयोगी बनता है। यह व्यक्ति को अपने आस-पास के लोगों के प्रति सहानुभूति और समर्पण की भावना देता है।

 

निष्काम कर्म:

एकादशी के व्रत में अन्न और पानी की त्यागी जाती है, जिससे व्यक्ति को निष्काम कर्म की महत्वपूर्णता का अनुभव होता है। यह सिखाता है कि भोग और अभिलाषाओं से दूर रहकर आत्मा की उन्नति के लिए कामना करनी चाहिए।

 

निष्कलंक भक्ति:

एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करके व्यक्ति अपने मन को निष्कलंक भक्ति की ओर ले जाता है। यह उसके मन को शुद्ध करके उसके आत्मा को भगवान के प्रति अधिक समर्पित करता है।

 

निष्कर्मण्यता:

एकादशी का व्रत व्यक्ति को निष्कर्मण्यता की ओर अग्रसर करता है, जिससे उसके कर्मों में सकामता कम होती है और उसका मन शांत और स्थिर रहता है।

 

किस महीने में कौन-सी एकादशी आती है

 

चैत्र माह: इस माह में, कामदा और पापमोचिनी एकादशी आती है। कामदा एकादशी से व्यक्ति राक्षसों और अन्य दुष्ट शक्तियों से मुक्त होता है, और यह सभी कार्यों को सिद्ध करती है। पापमोचिनी एकादशी व्रत से पापों का नाश होता है और संकटों से मुक्ति मिलती है।

 

वैशाख माह: वैशाख में, वरुथिनी और मोहिनी एकादशी आती है। वरुथिनी एकादशी सौभाग्य देने वाली है, सभी पापों को नष्ट करती है, और मोक्ष देती है। मोहिनी एकादशी विवाह, सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करती है, साथ ही मोह-माया के बंधनों से मुक्ति प्रदान करती है।

 

ज्येष्ठ माह: ज्येष्ठ में, अपरा और निर्जला एकादशी आती है। अपरा एकादशी से मनुष्य को अपार खुशियों की प्राप्ति होती है, और समस्त पापों से मुक्ति मिलती है। निर्जला एकादशी का अर्थ है कि व्रती बिना आहार और पानी के व्रत करता है, और इससे हर प्रकार की मनोरथ सिद्धि होती है।

 

आषाढ़ माह: आषाढ़ में, योगिनी और देवशयनी एकादशी आती है। योगिनी एकादशी से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति पारिवारिक सुख पाता है। देवशयनी एकादशी के व्रत से सभी दुःख दूर होते हैं और मुक्ति मिलती है।

 

श्रावण माह: श्रावण में, कामिका और पुत्रदा एकादशी आती है। कामिका एकादशी से सभी पापों से मुक्त होते हैं और व्यक्ति को कुयोनि में नहीं जाना पड़ता, जबकि पुत्रदा एकादशी करने से संतान सुख प्राप्त होता है।

 

भाद्रपद माह: भाद्रपद में, अजा और परिवर्तिनी एकादशी आती है। अजा एकादशी से पुत्र पर कोई संकट नहीं आता, दरिद्रता दूर होती है, खोया हुआ सब कुछ पुनः प्राप्त होता है। परिवर्तिनी एकादशी के व्रत से सभी दुःख दूर होते हैं और मुक्ति मिलती है।

 

आश्विन माह: आश्विन में, इंदिरा और पापांकुशा एकादशी आती है। इंदिरा एकादशी के व्रत से स्वर्ग की प्राप्ति होती है, और पापांकुशा एकादशी से सभी पापों से मुक्ति मिलती है, साथ ही अपार धन, समृद्धि, और सुख भी प्रदान किए जाते हैं।

 

कार्तिक मास: कार्तिक में, रमा और प्रबोधिनी एकादशी आती है। रमा एकादशी करने से सभी सुख और ऐश्वर्य मिलते हैं, और देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से भाग्य जाग्रत होता है, साथ ही तुलसी पूजा भी की जाती है।

 

मार्गशीर्ष मास: मार्गशीर्ष में, उत्पन्ना और मोक्षदा एकादशी आती है। उत्पन्ना एकादशी करने से हजार वाजपेय और अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है, और देवता और पितर तृप्त होते हैं। मोक्षदा एकादशी मोक्ष देने वाली होती है।

 

पौष मास: पौष में, सफला और पुत्रदा एकादशी आती है। सफला एकादशी से दुर्भाग्य, दरिद्रता, और अनेक प्रकार के कष्ट दूर होते हैं, और ब्रह्महत्यादि पापों से छुट कर उत्तम गति प्राप्त होती है। पुत्रदा एकादशी से पुत्र सुख प्राप्त होता है।

 

माघ मास: माघ में, षटतिला और जया एकादशी आती है। षटतिला एकादशी करने से भयंकर परेशानी से व्यक्ति छुटकारा पाता है और इससे शत्रुओं का नाश होता है। जया एकादशी के व्रत से ब्रह्महत्यादि पापों से छुट व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है, और भूत-पिशाच आदि योनियों में नहीं जाता है।

 

अधिकमास मास: अधिकमास में, पद्मिनी (कमला) और परमा एकादशी आती है। पद्मिनी एकादशी का व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है, साथ ही यह पुत्र, कीर्ति और मोक्ष देने वाला है। परमा एकादशी धन-वैभव देती है और पापों का नाश कर उत्तम गति प्रदान करती है।

समापन

एकादशी का व्रत रखकर व्यक्ति अपने शरीर, मन और आत्मा की देखभाल करता है और आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ता है। यह एक मानव के आत्मा की शुद्धि और सुख की प्राप्ति का एक अद्वितीय मार्ग है, जो हमें आदर्श जीवन की ओर प्रेरित करता है।