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Janmashtami: Importance of the birth anniversary of Lord Krishna

जन्माष्टमी क्या है?

 

जन्माष्टमी, हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जिसे जन्माष्टमी कहा जाता है। यह त्योहार भगवान कृष्ण की पूजा, भक्ति और उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं की याद में मनाया जाता है।

 

 

कृष्ण जन्म कथा में मखन चोरी, गोपियों के साथ वनवास, गोकुल में नागराज कांस के खिलवाड़ का वर्णन, और गीता में उनके द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश का समावेश होता है।

 

जन्माष्टमी के दिन, भक्त भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं और उनके जन्म कथा की कथा का समर्थन करते हैं। भगवान की प्रतिमा को खास ढंग से सजाकर रखा जाता है और उनके चरणों में फूल, फल, चरणामृत, दूध, मक्खन आदि समर्पित किया जाता है। रात्रि में, विशेष भजन, कीर्तन और नृत्य के साथ मनाया जाता है जो भक्तों को दिव्यता की अनुभूति कराते हैं।

 

समागम में, नृत्य, संगीत और धार्मिक आयोजनों के माध्यम से जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के आदर्शों की महत्वपूर्णता को स्वीकारने का एक माध्यम बनता है, जो उनके जीवन और उपदेशों से प्राप्त होता है।

 

क्यों मनाई जाती है जन्माष्टमी?

जन्माष्टमी का उत्सव भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की स्मृति में मनाया जाता है और इसका महत्वपूर्ण कारण भगवान कृष्ण के अवतार के पीछे छिपे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक आयामों में है।

 

भगवान कृष्ण के अवतार का महत्व अत्यंत गहरा है। उनके आवतार से ही उन्होंने धरती पर धर्म की स्थापना की और अधर्म का नाश किया। उनके जीवन और उपदेश ने मानवता को जीवन के सारे पहलुओं का सही दिशा में मार्गदर्शन किया। उनके विचार जीवन के विभिन्न पहलुओं को संतुलित रूप से जीने की कला को सिखाते हैं, जैसे की कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग।

 

कैसे मनाएं जन्माष्टमी?

 

यह त्योहार भक्तों के दिल में उत्साह और आनंद का आभास कराता है और विशेष रूप से ब्रजभूमि में धूमधाम से मनाया जाता है। जन्माष्टमी के दिन भक्त भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना, पाठ-पुजा, व्रत और उपासना के साथ उनकी आवश्यक चरणों का पालन करते हैं।

 

पूजा पाठ की विधि

जन्माष्टमी के दिन, भक्त अपने घरों में भगवान कृष्ण की मूर्ति या प्रतिमा की पूजा करते हैं। श्रीमद् भगवद गीता से भगवान के उपदेशों का पाठ भी किया जाता है।

 

व्रत और उपासना का तरीका:

जन्माष्टमी के दिन भक्त व्रत रखते हैं और उन्हें पूरी दिन न खाने की परंपरा होती है। कई लोग एक दिन के अंतराल में फल, दूध, पानी आदि से उपवास अपनाते हैं।

 

जन्माष्टमी के दिन की आवश्यक चरण

 

  • मध्यरात्रि के समय, भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, इसलिए भक्त उस समय पर पूजा करने के लिए जागते हैं।
  • पूजा के दौरान, शंख, घंटी, डमरू, और मृदंग की ध्वनि से आराधना की जाती है।
  • भगवान के 108 नामों का जाप परंपरागत रूप से किया जाता है।
  • पूजा के बाद, माखन-मिश्री, पंजीरी, फल, दूध, और चावल से प्रसाद बनाकर भगवान को चढ़ाया जाता है।
  • इस तरीके से जन्माष्टमी का उत्सव मनाने से भक्त भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करते हैं और उनके दिव्य जीवन के महत्वपूर्ण सिखों को आधार बनाते हैं।

 

जन्माष्टमी के मंत्र और उनका महत्व

 

जन्माष्टमी के अवसर पर संस्कृत मंत्रों का उच्चारण एक महत्वपूर्ण प्रथा है जो भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण के साथ अध्यात्मिक जुड़ाव में लाता है। ये मंत्र भक्तों को उनके आदर्श और शिक्षाओं की स्मरण दिलाते हैं और उनके मानसिक और आध्यात्मिक स्थिति को सुधारने में मदद करते हैं।

 

संस्कृत मंत्रों का अर्थ और प्रभाव:

जन्माष्टमी के दिन बहुत से प्राचीन संस्कृत मंत्रों का जाप किया जाता है, जैसे कि “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।” ये मंत्र भगवान के नामों की महत्वपूर्णता को प्रकट करते हैं और उनके भक्तों को उनकी शरणागति और सेवा का मार्ग दिखाते हैं।

 

जन्माष्टमी के दिन पढ़े जाने वाले मंत्र:

 

“ॐ कृष्णाय नमः”: यह मंत्र भगवान कृष्ण की पूजा के लिए अद्वितीय एवं प्राचीन मंत्र माना जाता है।

“ॐ वासुदेवाय नमः”: यह मंत्र भगवान वासुदेव की आराधना और स्तुति के लिए प्रयोग होता है।

“हरे कृष्ण हरे राम”: यह मंत्र भगवान के नामों की महत्वपूर्णता को बताता है और भक्तों को दिव्य आनंद में ले जाता है।

“श्री कृष्ण शरणम मम”: यह मंत्र भगवान के चरणों में समर्पण की भावना को प्रकट करता है।

जन्माष्टमी पर ये मंत्र भगवान कृष्ण की आराधना, ध्यान और उपासना के लिए प्रयोग किए जाते हैं और भक्तों को उनके आदर्शों की दिशा में अग्रसर करते हैं।

 

लाभ

 

जन्माष्टमी का महत्व आध्यात्मिक और मानविक दृष्टिकोण से विशिष्ट होता है और इसके लाभ भगवान कृष्ण के उपदेशों को अपनाने और समाज में एकता का संदेश प्रसारित करने में साहित्यिक होते हैं।

 

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, जन्माष्टमी भगवान कृष्ण की दिव्यता की स्मृति कराता है और उनके उपदेशों की महत्वपूर्णता को याद दिलाता है। श्रीमद् भगवद गीता के उपदेशों में छिपी ज्ञान और कर्मयोग की महत्वपूर्णता इस दिन को एक महत्वपूर्ण उपहार बनाते हैं।

 

मानविक दृष्टिकोण से, जन्माष्टमी समाज में सामाजिक एकता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देता है। इस अवसर पर भक्तों के द्वारा विभिन्न कार्यक्रम, पूजा-अर्चना, और सांस्कृतिक गतिविधियां आयोजित होती हैं जो विभिन्न समुदायों को एक साथ आने और एकता की भावना को स्थापित करने में मदद करती हैं।

 

संक्षिप्त में, जन्माष्टमी का महत्व आध्यात्मिक और सामाजिक विकास में है जो भगवान कृष्ण के उपदेशों को अपनाने और समाज में एकता और सहयोग की भावना को प्रोत्साहित करता है।

 

 

जन्माष्टमी के रंग और उत्सव

यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है और भक्तों के बीच उत्सव की भावना फैलाता है। जन्माष्टमी के इस अवसर पर लोग अपने घरों में मूर्तियों की पूजा करते हैं और भगवान के लीला कथाओं को सुनकर अपने मनोबल को बढ़ाते हैं।

 

जन्माष्टमी का एक महत्वपूर्ण पहलू है ‘माखन चोरी’ और ‘ढाल बंधन’ का खेल। बचपन से ही यह खेल प्रिय होता है, जिसमें श्रीकृष्ण और उसके साथियों का माखन चुराने का प्रसंग दिखाया जाता है, जिससे एक आनंदमय और मित्रभावना भरा वातावरण बनता है। इसके साथ ही ‘ढाल बंधन’ का पर्व भी मनाया जाता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की परम प्रिय श्रीराधा रानी के साथ उनके प्रेम की खास कहानी दिखाई जाती है।

 

जन्माष्टमी के उत्सव में धार्मिक गीतों का विशेष महत्व होता है। भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में भव्य रस और आत्मा की अद्भुतता को व्यक्त करने वाले गीत जैसे कि ‘भगवद गीता’ जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ का सवारिया एक महत्वपूर्ण अंश होता है।

 

इस प्रकार, जन्माष्टमी उत्सव भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी और प्रेम की अनूठी कहानियों को याद करते हुए मनाने का एक अद्भुत तरीका है। यह उत्सव हमें धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को समझने और उन्हें अपने जीवन में अंतर्निहित करने का अवसर प्रदान करता है।

 

 

 

 

संक्षिप्त में: जन्माष्टमी का संदेश

 

भगवान श्रीकृष्ण के जन्माष्टमी का त्योहार हमें जीवन के मूल सिद्धांतों का अद्भुत संदेश देता है। श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और उनके उद्धारणों से हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं की महत्वपूर्ण सीखें मिलती हैं।

 

भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी की कथा से हमें यह सिख मिलती है कि किसी काम को दिल से करने में आनंद मिलता है, चाहे वो कितना भी कठिन क्यों न हो। उनकी मित्रों के साथ ये खेल दिखाते हैं कि जीवन में आनंद को महत्व देना चाहिए, चाहे समस्याएं जैसी भी हों।

 

ढाल बंधन की कथा से हमें प्रेम और विश्वास की महत्वपूर्ण सीख मिलती है। भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराधा रानी के प्रेम की यह आद्भुत कहानी हमें यह बताती है कि प्रेम में समर्पण और समझदारी होना आवश्यक होता है।

 

भगवान श्रीकृष्ण की भगवद गीता में दी गई उपदेशों से हमें कर्म और धर्म के महत्व की समझ मिलती है। उन्होंने अर्जुन को कर्म करने की महत्वपूर्णता और धर्म का पालन करने की जरूरत बताई।

 

जन्माष्टमी के त्योहार से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन में उत्सव का महत्व होता है, और हमें भगवान के उद्धारण से जीवन के मूल सिद्धांत सीखने का अवसर प्राप्त होता है। इन सिखाए गए मूल सिद्धांतों को अपने जीवन में अमल करके हम एक सत्य, सहयोग, प्रेम, और धर्मयुक्त जीवन जी सकते हैं।

 

 

निष्कर्ष

 

यह त्योहार हमें भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जीवन के मूल मूल्यों और सिद्धांतों को समझने का अवसर प्रदान करता है। उनकी लीलाएँ हमें आनंद की महत्वपूर्णता और उसे जीने के तरीके को सिखाती हैं।

 

श्रीकृष्ण की माखन चोरी और ढाल बंधन की कथाएँ हमें मिलनसार संयम और सहयोग की महत्वपूर्णता को प्रेरित करती हैं। वे हमें यह शिक्षा देते हैं कि जीवन की मधुरता को महत्वपूर्णता देने के लिए यदि हम साथी और परिवार के साथ सहयोग और विश्वास के साथ रहते हैं, तो समस्याओं को आसानी से पार कर सकते हैं।

 

उनकी भगवद गीता के उपदेश हमें धर्म, कर्म, और उनके पीछे के आदर्शों की महत्वपूर्णता को समझाते हैं। जन्माष्टमी के संदेश से हमें जीवन को ध्यान, विवेक, और सही मार्ग पर चलने की महत्वपूर्णता का आदर्श प्राप्त होता है।

 

इस त्योहार के समापन से हमें यह सिखने को मिलता है कि जीवन को जीने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है सहयोग, समर्पण, प्रेम, और सही मार्ग पर चलना। जन्माष्टमी हमें एक उद्देश्यपूर्ण जीवन की दिशा में प्रेरित करता है।

 

 

जन्माष्टमी के इस पवित्र अवसर पर, आप भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों को अपने जीवन में अंकित करने का संकल्प लें। आप अपने दिल में उनके दिव्य प्रेम और आदर्शों को समर्पित करके अपने जीवन को सरल, सार्थक और धार्मिक बना सकते हैं।

 

इस जन्माष्टमी पर, आप भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करें और उनके चरणों में अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करें। उनके नामों का जाप करके अपने मन को शुद्धि और शांति की प्राप्ति के लिए प्रेरित करें। इसके साथ ही, आप समाज में एकता, सद्भावना और सहयोग की भावना को बढ़ावा देने के लिए उत्साहित करें।