Karva Chauth
करवा चौथ, एक प्रमुख हिन्दू त्योहार, महिलाओं की शक्ति, साहस और परिश्रम का प्रतीक होता है जो उनके पतियों की दीर्घायु और उनके परिवार की सुख-संपत्ति की कामना के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत भारतीय समाज में प्रेम और सम्मान के प्रतीक के रूप में महत्वपूर्ण रूप से माना जाता है।
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ, कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है, जिसका मतलब होता है कि यह त्योहार चारदिन के बाद आता है। यह पर्व महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण दिन होता है, जब वे उपवास करती हैं और पति की लंबी आयु और परिवार की सुख-संपत्ति की कामना करती हैं।
करवा चौथ का मतलब होता है ‘चौथे दिन का व्रत’, जिसका तात्पर्य होता है कि इस व्रत को चारदिन की अवधि तक रखना होता है। इस दिन महिलाएं सवा बजे से व्रत रखती हैं और सुनसान पेट के साथ सुबह से लेकर चाँद को देखकर उपवास का पूरा करती हैं। इस व्रत के पश्चात् पतिव्रता महिलाएं पूजा करती हैं और पति की लंबी आयु और परिवार की सुख-संपत्ति की कामना करती हैं।
करवा चौथ के दिन महिलाएं सज-धजकर तैयार होती हैं और एक-दूसरे के साथ व्रत की कथा सुनती हैं। इसके बाद, व्रत के नियमानुसार, प्रशाद खाने के बाद व्रत खोलती हैं। करवा चौथ के पर्व का उद्देश्य महिलाओं के साहस, स्नेह और पतिव्रता भाव को महत्वपूर्णता
करवा चौथ व्रत कथा
एक गांव में एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की रहते थे। उनकी लड़की और बहुएं हर साल करवा चौथ का व्रत रखती थीं। एक बार वो व्रत रखने का दिन आया। रात्रि को उनके सातवें भाई ने भोजन की विनंती की। बहन ने उन्हें बताया कि वो खाना चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही खा सकती हैं। बात सुनकर सातवे भाई ने अपनी बहन के लिए एक दीपक चलनी की ओट में छिपा दिया। दीपक जलते समय वह दीपक चाँद की तरह प्रकट हो गया।
बहन दीपक को देखकर चांद को समझती हैं और उसे अर्घ्य देकर खाना खाती हैं, लेकिन जैसे ही वो पहला टुकड़ा खाती हैं, उन्हें छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा खाते ही उनके बाल निकलते हैं और तीसरा टुकड़ा खाते ही उनके पति की आपातकाल की खबर मिलती है। वो अत्यंत दुःखित हो जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई बताती है कि उसे व्रत के नियमों का पालन सही तरीके से करना चाहिए था। व्रत टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए थे। यह बात समझकर बहन निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार करेगी और उनके सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाएगी। उसका इस व्रत के बाद एक साल तक अपने पति के पास रहना, उनकी देखभाल करना और व्रत का पालन करना होता है। उनके सतीत्व और प्रेम की शक्ति से उनके पति को फिर से जीवन मिलता है।
इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है कि एक सच्ची पतिव्रता पत्नी की शक्ति और प्रेम किस प्रकार उनके पति के जीवन को सुखमय और समृद्धि से भर देते हैं।
करवा चौथ कैसे मनाया जाता है?
करवा चौथ एक प्रमुख हिन्दू पर्व है जो पतिव्रता पत्नियों के लिए महत्वपूर्ण होता है। यह पर्व भारतीय संस्कृति में पतिपरमेश्वर से प्रेम और विश्वास की महत्वपूर्ण प्रतीक है। इस पर्व को खास तौर पर उत्तर भारतीय राज्यों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन आजकल यह पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।
ऐसे करें दिन की शुरुआत
देश के हर हिस्से में करवा चौथ का व्रत अलग-अलग तरीके से रखा जाता है। जैसे पंजाब में महिलाऐं सुबह सरगी खाने के साथ इस व्रत की शुरुआत करती हैं। तो कुछ महिलाऐं करवा चौथ के दिन रात में चाँद देखे बिना कुछ भी खाती या पीती नहीं हैं। करवा चौथ के दिन सूरज उगने से पहले सास अपनी बहू को सरगी देती है। सरगी में बहू के लिए कपड़े, सुहाग का सामान जैसे चूड़ी, बिंदी, सिंदूर और खाने की चीज़ें जैसे फेनियाँ, शक्करपारे, फ्रूट्स, ड्राईफ्रूट, नारियल आदि रखा जाता है। सास की दी हुई सरगी खाकर बहू अपने व्रत की शुरुआत करती है। अगर ससुराल से दूर रहती हैं तो सास अपनी बहू के लिए सरगी के पैसे भिजवा सकती हैं। करवा चौथ के दिन महिलाऐं सुबह नहाकर सास का दिए हुए कपड़े और शृंगार की चीज़ें पहनती हैं। इसके बाद सूरज डूबने से पहले करवा चौथ की कथा सुनी जाती है।
रात में इस तरह तोड़ें व्रत
करवा चौथ के दिन कुछ औरतें शाम को कथा सुनने के बाद पानी, चाय या जूस आदि पी लेती हैं और फल व ड्राईफ्रूट भी खाती हैं। वहीं, कुछ जगहों पर चाँद देखने के बाद ही पानी पीने का रिवाज होता है। रात में चाँद को अर्घ्य देने और पूजा करने के बाद औरतें छलनी से पहले चाँद को और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर करवा चौथ का व्रत खोला जाता है। चाँद देखने के बाद आप खाना खा सकती हैं। करवा चौथ के दिन विशेष पकवान बनाए जाते हैं। जैसे पंजाब में करवा चौथ के दिन साबुत उड़द की दाल और फेनियाँ जरूर बनाई जाती है। वहीं, उत्तर प्रदेश में इस दिन चावल के आटे से फरे बनाए जाते हैं। कुछ लोग इस दिन पूड़ी-सब्ज़ी, कढ़ी, खीर आदि भी खाते हैं। हालाँकि, आजकल तो ज़्यादातर वर्किंग औरतें बाहर डिनर करना ही पसंद करती हैं।
करवा चौथ के पूजा और व्रत विधि:
परिवारों में इस दिन विशेष पूजा की जाती है, जिसमें पतिव्रता पत्नियाँ मां गौरी और प्रेम पति शिव की पूजा करती हैं। इस पूजा के दौरान विशेष मंत्र और श्लोकों का पाठ किया जाता है। व्रत के अंत में चांद को देखकर पतिव्रता पत्नियाँ उसे दाहिने हाथ से देखकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं और फिर उपवास को खत्म करती हैं।
करवा चौथ पर्व का महत्वपूर्ण हिस्सा होने का कारण है कि यह पतिपरमेश्वर के प्रति महिलाओं की श्रद्धा, प्रेम और परिपूर्ण समर्पण का प्रतीक है। इस दिन का उपवास न केवल आत्म-विकास के लिए बल्कि परिवार में एकता और समरसता को बढ़ावा देने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
करवा चौथ के व्रत के दौरान ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बातों की सूची:
- नियमित उपवास: व्रत के दिन उपवास रखें और ब्रह्मा मुहूर्त में नियमित व्रत आदि का पालन करें।
- निर्जला उपवास: करवा चौथ में निर्जला उपवास (बिना पानी के) करना अधिक प्रासंगिक माना जाता है।
- मंत्र जाप और पूजा: व्रत के दौरान विशेष मंत्रों का जाप करें और पूजन करें।
- सुहागिन स्त्रीयाँ: करवा चौथ का व्रत सुहागिन स्त्रीयों के लिए होता है, इसलिए सिंदूर, साड़ी, बिचुए, हर, चूड़ियाँ आदि पहनकर व्रत करें।
- प्रायश्चित्त पूजा: अगर व्रत के दौरान कोई दोषी हो जाए, तो प्रायश्चित्त पूजा करने का प्रयास करें।
- पति की पूजा: सूर्यास्त और सूर्यास्त के बाद पति की पूजा करें और उनके आशीर्वाद प्राप्त करें।
- आहार: व्रत के बाद खानपान में विशेष सावधानी बरतें।
- व्रत का संबंध: करवा चौथ का व्रत पतिव्रता धर्म का प्रतीक है, इसलिए इसे एक साथी के साथ मनाएं।
- स्त्री सम्मान: सास, ससुर और पति के प्रति सम्मानपूर्वक व्यवहार करें।
- सकारात्मक भावना: व्रत के दिन पूरी भावना और शुभचिंतक विचारों को बनाए रखने का प्रयास करें।
करवा चौथ के व्रत में ये महत्वपूर्ण बातों का पालन करने से आपके व्रत की महिमा बढ़ेगी और आपके परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी।
करवा चौथ का पूजा पाठ विधि:
करवा चौथ के व्रत में पूजा पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन करें:
पूजा सामग्री:
- दीपक और घी का बत्ती
- करवा चौथ की कथा
- मंत्रों की पुस्तक (यदि आपके पास हो)
- कलश, गंगाजल, रोली, चावल, मिश्री, फूल, बेल पत्र, सिन्दूर, सुपारी, पान की पत्तियाँ, चांदन, अक्षत (चावल के दाने)
पूजा पाठ विधि:
पूजा का स्थान तैयार करें: एक शुद्ध स्थान पर पूजा के लिए सजाएं। पूजा के लिए विशेष टेबल, आसन या चौकी रखें।
- पूजा सामग्री स्थान पर रखें: पूजा सामग्री को एकत्रित करें और पूजा स्थान पर रख दें।
- कलश स्थापना: कलश में गंगाजल, चावल, सिन्दूर डालें और उसके ऊपर बेल पत्र रखें। फिर उसको पूजा स्थान पर स्थापित करें।
- पूजा का आरंभ: पूजा स्थान पर बैठकर दीपक की आरती करें और घी का बत्ती जलाएं।
- कथा का पाठ: करवा चौथ की कथा का पाठ करें। यह कथा व्रत की महत्वपूर्ण भाग है जिसमें सुहागिन स्त्रीयों द्वारा व्रत का करने का कारण और उपयोगिता बताई जाती है।
- मंत्रों का जाप: पूजा में विशेष मंत्रों का जाप करें। “ॐ हरि श्री गणेशाय नमः” और “ॐ दुर्गायै नमः” जैसे मंत्र का जाप करें।
- चांदन, कुंकुम और अक्षत की अर्चना: चांदन और कुंकुम की अर्चना करें और उन्हें कलश के ऊपर लगाएं। फिर अक्षत की अर्चना करें और उन्हें अपने हाथों से लेकर गंगाजल से पंख दें।
- व्रत कथा का सुनना: पाठ करने के बाद व्रत कथा
को सुनें।
- पूजा का समापन: पूजा के बाद पूजा सामग्री को अपने हाथों से लेकर फिर से दीपक की आरती करें और अपनी इच्छाओं की प्रार्थना करें।
- खान-पान: पूजा के बाद उपवास समाप्त होने पर प्रासाद के रूप में फल, मिश्री, चावल आदि खाएं।
इस तरह से करवा चौथ के व्रत के दौरान पूजा पाठ का आयोजन करें और माता पार्वती और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करें।
पूजा के समय कोनसे संस्कृत मंत्र का उच्चारण करें ?
करवा चौथ व्रत के दौरान विशेष संस्कृत मंत्रों का उच्चारण करने से आप पूजा की महत्वपूर्ण भागीदारी महसूस कर सकते हैं। यहां कुछ प्रमुख संस्कृत मंत्र शीर्षकों के साथ दिए जा रहे हैं:
दीपदान मंत्र:
शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
माता पार्वती का मंत्र:
ऊँ वल्लभायै च विद्महे महादेव्यै धीमहि।
तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥
कार्तिकेय मंत्र:
ऊँ शारदायै नमः॥
करवा चौथ व्रत मंत्र:
ऊँ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः॥
सुहागिन स्त्री का मंत्र:
ऊँ सोभाग्यायै नमः॥
पति की लम्बी उम्र के लिए मंत्र:
ऊँ पुत्राय नमः॥
उपवास संबंधित मंत्र:
ऊँ नमः शिवायै॥
आशीर्वाद मंत्र:
ऊँ सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
ये मंत्र आपके करवा चौथ व्रत के दौरान पूजा, जाप, ध्यान आदि में उपयोगी हो सकते हैं और आपके व्रत को और भी पवित्र बना सकते हैं। ध्यान दें कि आपको मंत्रों के उच्चारण में सही उच्चारण और मानसिक स्थिरता रखनी चाहिए।
समापन
यह व्रत पतिव्रता धर्म का प्रतीक होता है और पतियों के लंबे जीवन और सुख-शांति की कामना करता है। व्रत के दिन महिलाएं विशेष तौर पर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक उपवास करती हैं और पूजा-अर्चना करती हैं। इसके अलावा, करवा चौथ का महत्वपूर्ण हिस्सा उसकी पतिपरमेश्वर भक्ति और श्रद्धा होती है।
इस व्रत की विशेषता उसके पूजा पाठ की विधि और संस्कृत मंत्रों के उच्चारण में होती है। संगीतमय भजनों और उपासना के माध्यम से महिलाएं भगवान सूर्य और चांद्रमा की कृपा को प्राप्त करने का प्रयास करती हैं। इसके बाद, उनके पतिदेव का आदर करती हैं और उनके दीर्घायु और कुटुम्ब की कामना करती हैं।
करवा चौथ के व्रत के उद्देश्य सिर्फ फिजिकल आहार से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और मानसिक तत्त्वों में भी सुख और संयम की प्राप्ति होती है। यह व्रत पत्नियों की सशक्त इच्छाशक्ति और प्रेम की प्रतीक होता है जो उनके परिवार को एकसाथ बाँधने में मदद करता है।
इसके अतिरिक्त, करवा चौथ का पर्व सामाजिक महत्व भी रखता है, जिसमें महिलाएं एक-दूसरे के साथ समाजिक रिश्तों को मजबूत करती हैं। इस व्रत के द्वारा महिलाएं अपने पतियों के साथ प्रेम और समर्पण की भावना को मजबूती देती हैं और उनके परिवार के बंधनों को मजबूत करती हैं।
करवा चौथ के व्रत के इन सभी पहलुओं से स्पष्ट होता है कि यह एक महत्वपूर्ण और आदर्श पर्व है, जो महिलाओं के जीवन में प्रेम, समर्पण, और परिवार के महत्व की महत्वपूर्ण प्रतीक है।