tulsi marriage
तुलसी विवाह
सनातन धर्म में तुलसी के पौधे को पूजनीय माना गया है। तुलसी का पौधा औषधीय गुणों से तो परिपूर्ण हैं ही, साथ ही धार्मिक दृष्टि से भी इसका बहुत अधिक महत्व है। तुलसी के बीजों को सब्जा बीज के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का दिन शुभ दिनों में से एक माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागते हैं और द्वादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु और तुलसी जी का विवाह होता है।
तुलसी विवाह का आयोजन
तुलसी विवाह के दिन अपने घर में यज्ञ और सत्यनारायण की कथा कराने से विशेष लाभ मिलता है। तुलसी विवाह घर या मंदिर में मनाया जा सकता है। इस दिन शाम तक या तुलसी जी का विवाह होने तक व्रत रखा जाता है। सबसे पहले तुलसी जी के पौधे और भगवान विष्णु की मूर्ति को स्नान कराया जाता है। इसके बाद तुलसी के पौधे को लाल साड़ी या चुनरी, आभूषण और बिंदी आदि के साथ एक दुल्हन की तरह सजाया जाता है। विष्णु जी की मूर्ति को धोती पहनाई जाती है। अब इन दोनों को धागे के माध्यम से एक साथ बांधा जाता है। विवाह में तुलसी जी और भगवान विष्णु पर सिंदूर और चावल की वर्षा की जाती है। इसके बाद सभी भक्तों को प्रसाद बांटा जाता है।
तुलसी विवाह का शुभ संयोग
तुलसी विवाह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन किया जाता है। तुलसी जी को धन की देवी मां लक्ष्मी का अवतार माना गया है, वहीं शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी को समर्पित है। ऐसे शुभ संयोग में अपने घर में शालिग्राम-तुलसी विवाह रचाने से व्यक्ति को अपार धन और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी।
तुलसी विवाह कैसे होता है?
- तुलसी और शालिग्राम की मूर्ति की तैयारी: तुलसी विवाह के लिए पहले तुलसी और शालिग्राम की मूर्तियों की तैयारी करें। तुलसी के पौधे को साफ पानी में धोकर उन्हें सजाने के लिए तैयार करें। शालिग्राम की मूर्ति को भी साफ करें और पूजन के लिए तैयार करें।
- पूजा और व्रत: तुलसी विवाह के दिन, सुबह उठकर नियमित व्रत रखें। तुलसी और शालिग्राम की मूर्तियों की पूजा करें, और उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- पूजा सामग्री: पूजा के लिए कुछ आवश्यक सामग्री जैसे कि कुमकुम, अक्षत, धूप, दीपक, फूल आदि की तैयारी करें।
- मन्त्र जाप और पाठ: तुलसी विवाह के दिन, तुलसी माता के मंत्र जैसे “ॐ तुलस्यै नमः” का जाप करें। भगवान विष्णु की आराधना के लिए विष्णु सहस्त्रनामा या भगवद गीता के अध्यायों का पाठ करें।
- तुलसी विवाह की कथा: तुलसी विवाह के महत्व को समझने के लिए तुलसी विवाह की कथा का पाठ करें। इसके माध्यम से आप इस विवाह के पीछे के धार्मिक महत्व को समझ सकते हैं।
- विवाह की समारोह: तुलसी विवाह के दिन, तुलसी और शालिग्राम की मूर्तियों को विवाह के रूप में सजाकर उन्हें मिलाएं। धागे के माध्यम से तुलसी और शालिग्राम की मूर्तियों को बांधें।
- पूजा और आरती: तुलसी विवाह के बाद पूजा और आरती का आयोजन करें। भगवान विष्णु और तुलसी माता की पूजा करें और उनका आरती उतारें।
- प्रसाद: पूजा के बाद भगवान का प्रसाद तैयार करें और सभी व्रतियों को बांटें।
तुलसी विवाह का यह पवित्र त्योहार आपके जीवन में खुशियाँ, समृद्धि और शांति लेकर आए। इसके माध्यम से आप आपके आस-पास के लोगों के साथ प्रेम और समर्पण की भावना को मजबूती से बढ़ा सकते हैं।
तुलसीविवाह का महत्व
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, तुलसी जी मां महालक्ष्मी की अवतार हैं। वहीं शालिग्राम को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, तुलसी विवाह के दिन तुलसी के पौधे और शालिग्राम का विवाह कराने की परंपरा है। माना जाता है कि इस दिन विधि-पूर्वक तुलसी विवाह संपन्न कराने से शादीशुदा जीवन में खुशहाली बनी रहती है।
इस दिन कुछ खास उपाय करने से वैवाहिक जीवन से जुड़ी समस्याएं खत्म हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप शादीशुदा जीवन में हमेशा खुशहाली बनी रहती है। इस दिन वैवाहिक जीवन से जुड़ी दिक्कतों को दूर करने के लिए यदि कुछ उपाय किए जाएं, तो दांपत्य जीवन सुखी बना रहेगा।
भगवान विष्णु और वृंदा की कथा
एक पुरानी कहानी के अनुसार, भगवान विष्णु ने एक बार वृंदा के साथ छल किया था। इस छल के बाद, वृंदा ने अपने पति के वियोग में भगवान विष्णु को श्राप दिया। उन्होंने कहा – आपने मेरे साथ छल किया है, इसके परिणामस्वरूप आपकी पत्नी भी अपहरण के साथ ही छल का सामना करेगी। आपको भी अपनी पत्नी के वियोग में दुःख झेलना होगा। यह श्राप देने के बाद, वृंदा अपने पति जलन्धर के साथ सती हो गई। सती होने के बाद, राख से एक तुलसी के पौधे का जन्म हुआ।
बाद में, भगवान विष्णु ने अपने किए पर पछताया क्योंकि उन्होंने वृंदा का पतिव्रता धर्म उल्लंघन किया। उन्हें लगा कि उन्होंने गलती की है। तब वे वृंदा को आशीर्वाद दिया कि वह तुलसी के रूप में हमेशा उनके साथ रहेगी।
इस घटना के बाद से, हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु के रूप में वृंदा का विवाह तुलसी के साथ सम्पन्न होता है। इस उपाय का पालन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस कथा के आधार पर, लोग तुलसी के विवाह का महत्व जानकर इसे मनाने लगे।
ननद और भाभी की कहानी
इस त्योहार के बारे में एक लोककथा भी चलती है। कहते हैं कि किसी गांव में एक परिवार था, जिसमें ननद और भाभी रहती थीं। ननद ने अभी हाल ही में शादी नहीं की थी और वह रोज़ाना तुलसी के पौधे की सेवा करती थी। लेकिन भाभी को यह पसंद नहीं आता था। वह कई बार नाराज़ होकर कहती थी कि ‘तुम्हारा विवाह होगा, तो तुलसी के पौधे को ही तुम्हारी दहेज में दूंगी, और तुम्हें खाने में भी सिर्फ़ तुलसी ही मिलेगी।’
सालों बाद, जब ननद की शादी हो गई, तो भाभी ने बारात के सामने तुलसी के पौधे का एक गमला फोड़ दिया। परंतु वो गमला चमकदार और सुगंधित व्यंजनों में बदल गया। और यहाँ तक कि भाभी ने ननद को तुलसी की पत्तियों से बनी माला पहनाई, जिसकी जगह वोह सोने के आभूषण पहन रही थीं। इन अनूठी घटनाओं के बाद, भाभी की आँखों में आश्चर्य था। उन्होंने यह देखकर समझा कि तुलसी की महत्वपूर्णता क्या हो सकती है। इसके बाद से, उन्होंने भी तुलसी की पूजा करना शुरू किया।
शालीग्राम पत्थर के अवतार में
तुलसी विवाह के पर्व के संबंध में एक और कथा प्रचलित है। मान्यता है कि एक बार तुलसी माता ने भगवान विष्णु को श्राप देने का निर्णय किया कि वे काले पत्थर के रूप में प्रकट होंगे। ताकि वे उस श्राप से मुक्ति पा सकें। भगवान विष्णु ने खुद को शालीग्राम पत्थर के रूप में प्रकट किया, जिससे वे उस श्राप से छुटकारा पा सकें। इसके बाद, उन्होंने तुलसी माता से विवाह की और उन्हें अपनी पत्नी बनाया।
तुलसी माता को माता लक्ष्मी के अवतार के रूप में भी पुजा जाता है। इस घटना के बाद से, हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी को लोग तुलसी माता और भगवान शालीग्राम की विवाह का आयोजन करते हैं। यह परंपरा आज भी जीवंत है और लोग इसे धार्मिक आयोजन के रूप में मनाते हैं।
तुलसी विवाह में इन बातों का रखें ध्यान-
- प्रत्येक सुहागन स्त्री को आवश्यक रूप से तुलसी विवाह में भाग लेना चाहिए। यह क्रिया पवित्र वैवाहिक सुख और समृद्धि की प्राप्ति करने में मदद करती है।
- पूजा के समय, तुलसी पौधे को सुहाग की निशानियों जैसे सिन्दूर और लाल चुनरी की प्रस्तावना अवश्य करें।
- शालीग्राम को तुलसी के पौधे के साथ एक ही गमले में रखें और तिल का प्रसाद भी दें।
- तुलसी और शालीग्राम को दूध में भीगी हुई हल्दी की तिलक लगाएं।
- पूजा के बाद, 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
- मिठाई और प्रसाद का भोग उपहारित करें और इसे मुख्य आहार के साथ परोसें और सेवा करें।
पूजा के समय कोनसे संस्कृत मंत्र का उच्चारण करें ?
ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।
इस मंत्र का जाप करने से आप तुलसी विवाह के पवित्र अवसर पर भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
ॐ नमो भगवते तुलसीवासनायै।
इस मंत्र के जाप से तुलसी देवी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
ॐ तुलसी कल्याणी नमः।
यह मंत्र तुलसी देवी की शुभकामनाओं को प्रकट करने के लिए जाप किया जा सकता है।
ॐ व्रिन्दायै नमः।
इस मंत्र के जाप से तुलसी देवी की अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि व्रिन्दा भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय सखी थीं।
इन मंत्रों के जाप के साथ-साथ, आप अपनी आत्मा को शुद्धि और शांति की दिशा में मोड़ने के लिए ध्यान और प्रार्थना भी कर सकते हैं। यह आपके मानसिक और आध्यात्मिक विकास में मदद करेगा और आपके जीवन को सफलता और सुखमय बनाने में मदद करेगा।
तुलसी विवाह के अवसर पर पूजा विधि
- तुलसी विवाह के दिन सुबह के समय, स्नान आदि करके शुद्ध वस्त्र पहनें।
- तुलसी विवाह की पूजा संध्या में आचरण की जाती है।
- पूजा के लिए एक चौकी पर साफ कपड़ा बिछाएं और उस पर तुलसी का पौधा और शालिग्राम रखें।
- इसके बाद, तुलसी जी और शालिग्राम को गंगाजल से स्नान कराएं।
- चौकी के पास एक कलश में पानी रखें और उसमें घी की दिया जलाएं।
- इसके पश्चात्, तुलसी और शालिग्राम को रोली और चंदन से तिलक लगाएं।
- तुलसी के पौधे के नीचे एक मंडप बनाएं और उसमें गन्ने का रस डालें।
- तुलसी पौधे की पत्तियों पर सिंदूर लगाएं, लाल चुनरी ओढ़ें और श्रृंगार जैसे कि सिंदूर, चूड़ी, बिंदी आदि को उपहार स्वरूप में चढ़ाएं।
- हाथ में शालिग्राम लेकर तुलसी जी की पूजा के चारों ओर प्रदक्षिणा करें और इसके बाद आरती भी दिलाएं।
- पूजा समापन होने के बाद, हाथ जोड़कर तुलसी माता और भगवान शालिग्राम से खुशहाल वैवाहिक जीवन की कामना करें।