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Navratri – Importance of worshiping Goddess Durga

नवरात्रि, हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है जो माता दुर्गा की पूजा के लिए मनाया जाता है। यह अद्वितीय आध्यात्मिक उत्सव आठ दिनों तक चलता है और आधारित है भगवानी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा पर। नवरात्रि का मतलब है ‘नौ रातें’ और यह उत्सव वर्षा ऋतु में मनाया जाता है, जब माता दुर्गा की शक्ति का संकेत होता है।

 

माता दुर्गा के रूपों की महत्वपूर्णता उसकी अद्वितीय शक्तियों की प्रतिष्ठा को दर्शाती है। प्रत्येक रूप अपने विशेष गुणों और महत्वपूर्ण कार्यों के साथ जुड़ा होता है। प्रथम तीन दिन ब्रह्मचारिणी, चंडीका और कूष्मांडा के रूप में माता की पूजा की जाती है, जो उनकी सामाजिक और आध्यात्मिक शक्तियों को प्रतिनिधित्व करते हैं। बाकी पांच दिन उनके रूपों के महत्वपूर्ण रूपों – स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के रूपों की पूजा में समर्पित हैं।

 

नवरात्रि का महत्व उसके दौरान भगवानी दुर्गा की पूजा के माध्यम से शक्ति की प्राप्ति और बुराई के प्रति अच्छाई की विजय का संकेत होता है। यह समय आध्यात्मिक उन्नति और सामाजिक समृद्धि की प्राप्ति के लिए आदर्श होता है। नवरात्रि के दौरान भक्त व्रत, पूजा, पाठ और दान आदि के माध्यम से अपनी श्रद्धा और विश्वास को प्रकट करते हैं और माता दुर्गा के शक्तिशाली आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं।

 

नवरात्रि दो बार मनाने के पीछे ये कारण

 

नवरात्रि दो बार मनाने के पीछे एक प्राकृतिक कारण ऋतु परिवर्तन है। गर्मी और ठंड के मौसम के शुरू होने से पहले चैत्र व शारदीय नवरात्रि धूमधाम से मनाए जाते हैं। इस दाैरान लगता है कि खुद प्रकृति भी नवरात्रि के उत्सव के लिए तैयार रहती है। वहीं पाैराणिक मान्यता के मुताबिक पहले सिर्फ चैत्र नवरात्रि होते थे लेकिन जब श्रीराम ने रावण से युद्ध किया और उनकी विजय हुई। इसके बाद वे मां का आशीर्वाद व दर्शन करने के लिए नवरात्रि का इंतजार नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने भव्य दुर्गा पूजा आयोजित की थी। इसके बाद से शारदीय नवरात्रि मनाए जाने लगे। वहीं आधात्यामिक पहलू के मुताबिक गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में आने वाली सौर-ऊर्जा से लोग सबसे ज्यादा प्रभाावित होते हैं क्योंकि यह फसल पकने का समय होता है। इसलिए दैवीय शक्तियों की आराधना के लिए यह समय सबसे अच्छा माना जाता है।

 

 

 

 नवरात्रि क्या है

 

नवरात्रि, हिन्दू धर्म में माता दुर्गा की पूजा के लिए मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण आठ दिनों का धार्मिक उत्सव है। “नवरात्रि” शब्द का अर्थ होता है “नौ रातें”, जिसका अभिप्राय यह है कि यह उत्सव नौ दिनों तक चलता है और हर दिन एक विशेष देवी की पूजा के साथ मनाया जाता है।

 

नवरात्रि का महत्वपूर्ण अर्थ और महत्व है, क्योंकि यह शक्ति की प्रतीक्षा और माता दुर्गा की महत्वपूर्णता को प्रकट करता है। इस उत्सव के दौरान, भक्त दुर्गा माता की पूजा-अर्चना करके उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं और उनकी शक्तियों का आदर करते हैं।

 

नवरात्रि को मनाने के पीछे कई कारण होते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से, इस उत्सव को शक्ति की पूजा के रूप में माना जाता है जिससे भक्त शक्ति की महत्वपूर्णता को समझ सकें और उसकी आवश्यकता को महसूस कर सकें। इसके अलावा, पौराणिक कथाओं में भी नवरात्रि का महत्व वर्णित है, जैसे कि माता दुर्गा ने राक्षस महिषासुर को मारकर धरती की सुरक्षा की थी।

 

नवरात्रि की खासियत है कि इसके दौरान भगवानी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिनमें हर एक रूप अपनी विशेषता और शक्ति को प्रकट करता है। यह दस दिन शक्ति के प्रतीक होते हैं और विभिन्न आयामों में माता की महत्वपूर्णता को प्रकट करते हैं। नवरात्रि का उत्सव धार्मिकता, आध्यात्मिकता और सामाजिक एकता की भावना को मजबूत करता है और लोगों को अच्छे और सच्चे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

 

 

कलश स्थापना की सरल विधि

 

  • शारदीय नवरात्रि के पहले दिन, सुबह उठकर स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
  • फिर मंदिर की सफाई करें और गंगाजल से मंदिर को शुद्ध करें।
  • इसके बाद, एक लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर थोड़े चावल रखें।
  • एक मिट्टी के पात्र में जौ की बोने।
  • उसके साथ ही, एक ऊँटिया या छोटी बोतल में पानी भरकर उसे अच्छे से बंद कर लें।
  • फिर उस पानी भरे हुए बोतल को पत्रिका या पात्र में रखकर उसके आस-पास जौ के बीज बिछा दें।
  • इसके बाद, वह पात्र उस लाल कपड़े पर रखें जिस पर चावल हैं।
  • उस पर चावल रखने के बाद, पानी भरी बोतल को उसके आस-पास रखें और उसे ऊपर से धककर बंद कर दें।
  • उसके बाद, वो पात्र कलश के सामने रख दें।
  • फिर, आपको कलश की ऊपर दिशा में चारों ओर से आम या अशोक की पत्तियाँ चढ़ानी हैं, और उसके बाद स्वास्तिक बनाना है।
  • इसके बाद, कलश में साबुत सुपारी, सिक्का, और अक्षत डालें।
  • फिर, एक नारियल को चुनरी में लपेटकर कलावा से बांध दें और उसे कलश पर रख दें।
  • इसके बाद, दीपक जलाकर कलश की पूजा करें।

 

 

पूजा के समय कोनसे संस्कृत मंत्र का उच्चारण करें

 

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।

मंत्र – ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।

 

 

 

देवी दुर्गा के रूप

 

देवी दुर्गा के नौ विभिन्न रूप नवरात्रि के उत्सव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो उनकी अद्वितीय शक्तियों को प्रकट करते हैं। प्रत्येक रूप अपने विशिष्ट गुणों और कार्यों के साथ जुड़ा होता है:

 

  1. शैलपुत्री: पहले दिन का रूप, वह भगवान शैलपुत्री के रूप में पूजी जाती है। उन्हें पर्वतराज नन्दनी भी कहते हैं और उनका वाहन वृषभ होता है।

 

  1. ब्रह्मचारिणी: दूसरे दिन, उनका ब्रह्मचारिणी रूप पूजा किया जाता है, जिन्होंने अपनी ब्रह्मचर्य व्रत के पालन से माता दुर्गा की प्राप्तिस्थान की थी।

 

  1. चंद्रकांता: तीसरे दिन, उनका चंद्रकांता रूप पूजा किया जाता है, जिन्होंने चंद्रमा के प्रतीक की तरह उदय और अस्त होने की कथा में भूमिका निभाई थी।

 

  1. कूष्मांडा: चौथे दिन, उनका कूष्मांडा रूप पूजा किया जाता है, जिन्होंने राक्षस शुम्ब्ह और निशुम्भ का वध किया था।

 

  1. स्कंदमाता: पांचवे दिन, उनका स्कंदमाता रूप पूजा किया जाता है, जिन्होंने अपने पुत्र स्कंद (कार्तिकेय) को जन्म दिया था।

 

  1. कात्यायनी: छठे दिन, उनका कात्यायनी रूप पूजा किया जाता है, जिन्होंने महिषासुर की प्रतिक्रिया के रूप में प्रकट हुई थी।

 

  1. कालरात्रि: सातवे दिन, उनका कालरात्रि रूप पूजा किया जाता है, जो रात्रि की देवी हैं और बुराई के खिलाफ युद्ध करती हैं।

 

  1. महागौरी: आठवे दिन, उनका महागौरी रूप पूजा किया जाता है, जो पवित्रता और शुद्धता की प्रतीक हैं।

 

  1. सिद्धिदात्री: नौवे दिन, उनका सिद्धिदात्री रूप पूजा किया जाता है, जो सभी आशीर्वाद प्रदान करने वाली हैं।

 

इन नौ रूपों के माध्यम से देवी दुर्गा की विभिन्न शक्तियों का प्रतीक है, जो भक्तों को उनके दर्शन कराते हैं और उन्हें आध्यात्मिक उन्नति और सफलता की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं।

 

 

नवरात्रि के व्रत और उपवास:

 

नवरात्रि में व्रत और उपवास का महत्व:

 

नवरात्रि में व्रत और उपवास करना धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होता है। यह उपासना और तप का एक विशेष रूप होता है जो माता दुर्गा की पूजा में शक्ति और श्रद्धा की भावना को जीवंत करता है। व्रत करने से मन, शरीर और आत्मा का पवित्रता और शुद्धि होती है और उपवास के माध्यम से आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ावा मिलता है।

 

व्रत करने की विशेष विधियाँ और नियम:

 

नवरात्रि में व्रत करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम होते हैं। व्रती व्यक्ति को माता दुर्गा के पूजन स्थल पर आसन लेते हुए अपनी नियमित पूजा-अर्चना की जाती है। उन्हें सत्विक आहार खाने की सलाह दी जाती है और उन्हें माता के नौ रूपों की पूजा करनी चाहिए।

 

उपवास के फायदे और उनका विवरण:

 

उपवास का अर्थ होता है भोजन की परिमिति करके या बिना भोजन के रहना। यह नवरात्रि में विशेष रूप से किया जाता है ताकि शरीर को शुद्धि और पवित्रता मिल सके। यह आत्मा की ऊर्जा को बढ़ावा देता है और मानसिक शांति प्रदान करता है। उपवास से अन्न और पानी की सीमितता के कारण शरीर के अंदर की विषादता और जीर्णता कम होती है और यह आत्मा को अध्यात्मिक अनुभव के प्रति संवेदनशील बनाता है।

उपवास करने से दिल, गुर्दे, पाचन तंत्र, और मस्तिष्क को आराम मिलता है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है। यह आत्म-निग्रह का एक माध्यम भी होता है जो स्वाधीनता और आत्म-नियंत्रण की भावना को बढ़ावा देता है।

 

समारोह की भावना के साथ, नवरात्रि के व्रत और उपवास धार्मिकता, आध्यात्मिकता, और आत्म-पुनर्निर्माण की भावना को प्रकट करते हैं और व्यक्ति को शक्ति और श्रद्धा के साथ अपने जीवन का मार्ग प्रशस्त करने में मदद करते हैं।

 

 

 

नवरात्रि पूजा पाठ विधि:

 

नवरात्रि का त्योहार हिन्दू धर्म में मां दुर्गा की पूजा के रूप में मनाया जाता है, जो नौ दिन तक चलता है। यह पूजा देवी दुर्गा के शक्ति और साहस की प्रतीक है और इसके दौरान विशेष आयामित आहार, व्रत और पूजा किए जाते हैं। नवरात्रि की पूजा पाठ विधि कुछ इस प्रकार है:

 

पूजा की आवश्यक सामग्री:

 

मां दुर्गा की मूर्ति या छवि

पूजा की थाली

अक्षत (चावल के दाने)

कुमकुम (हल्दी और कुंकुम)

सुपारी

पान के पत्ते

फूल (गेंदा, रोज़, चमेली आदि)

दीपक और घी

धूप और दीप

पुष्प (फूलों का हार)

पंचामृत (दूध, दही, घी, मधु, शहद का मिश्रण)

फल

मिठाई

कलश (एक बड़ा बर्तन)

नारियल

धातु की कटोरी

बेल पत्र

 

पूजा की विधि:

 

  • पूजा की शुरुआत मां दुर्गा की मूर्ति या छवि के सामने करें।
  • पूजा की थाली पर अक्षत, कुमकुम, सुपारी, पान के पत्ते, फूल, दीपक, धूप, पुष्प, पंचामृत, फल और मिठाई रखें।
  • कलश को नारियल के साथ पूजा स्थल पर रखें और उसमें पानी डालें।
  • कलश के ऊपर धातु की कटोरी को रखें और उसमें चावल डालें।
  • बेल पत्र को कलश के ऊपर रखें।
  • मां दुर्गा के मंत्रों का उच्चारण करें, जैसे “ॐ दुं दुर्गायै नमः” या “सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।”
  • मां दुर्गा की पूजा में विशेष भक्ति और समर्पण के साथ उनके चरणों को स्पर्श करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।
  • पूजा के बाद प्रसाद बांटें और उसे सभी को खिलाएं।

 

 

नवरात्रि के आवश्यक आहार

 

 नवरात्रि के व्रत के दौरान आपकी सेहत की देखभाल और सावधानी से आहार का चयन करना महत्वपूर्ण होता है। यहां कुछ आहार और शारीरिक स्थिति की देखभाल के उपाय दिए गए हैं:

 

व्रत के दौरान सेहतमंद रहने के आहार:

 

फल और शाकाहारी आहार: नवरात्रि के दौरान फल, सब्जियाँ, दाल, समक चावल, कट्टे हुए फल, दही, नारियल और खासकर सब्जियों का सेवन कर सकते हैं।

साबूदाना और कुट्टू के आटे की खाजली: ये आहार व्रत में आमतौर पर पसंद किए जाते हैं और सेहतमंद भी होते हैं।

 

द्राक्षा, खजूर और अनार: इन फलों का सेवन शुद्ध और सेहत के लिए फायदेमंद होता है।

घी, शहद और मिश्रित द्रव्यों का सेवन: ये सेहत के लिए उपयुक्त और पौष्टिक आहार होते हैं।

उपवास के दौरान शारीरिक स्थिति की देखभाल:

 

प्राणायाम और ध्यान: नवरात्रि के दौरान प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करने से मानसिक शांति बनी रहती है और शारीरिक स्थिति में सुधार होता है।

आराम और पर्याप्त नींद: सही समय पर आराम करें और पर्याप्त नींद लें, ताकि शारीर और मानसिकता दोनों स्वस्थ रहें।

 

हाइड्रेशन: पर्याप्त पानी पीना महत्वपूर्ण है, ताकि आपका शारीर उपवास के दौरान भी हाइड्रेटेड रहे।

व्यायाम: योग, प्राणायाम या थोड़ी सी शारीरिक गतिविधि का सेवन करने से सेहत बनी रहेगी।

 

नोट: आपकी स्वास्थ्य स्थिति, व्रत की अवधि और आपके शारीरिक आवश्यकताओं के आधार पर, आहार और शारीरिक स्थिति की देखभाल का विचार करना महत्वपूर्ण है। यदि आप व्रत के दौरान किसी विशेष आहार या व्यायाम का पालन कर रहे हैं, तो एक चिकित्सक से सलाह लेना भी उपयुक्त हो सकता है।

 

 

 

 

 

नवरात्रि के उत्सव में होने वाले प्रमुख कार्यक्रम

 

देवी दुर्गा की पूजा: नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की पूजा का विशेष महत्व होता है। लोग मां दुर्गा के रूपों की पूजा करते हैं जैसे कि शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।

 

ध्यान और प्रार्थना: उत्सव के दौरान ध्यान और प्रार्थना का महत्व बढ़ जाता है। लोग ध्यान के माध्यम से आत्मा के उन्नति का प्रयास करते हैं और मां दुर्गा से आशीर्वाद मांगते हैं।

 

भव्य प्रोसेशन और जागरान: कुछ स्थानों पर भव्य प्रोसेशन और जागरान आयोजित किए जाते हैं, जिनमें लोग गीत और भजन गाते हैं और मां दुर्गा के नाम का जाप करते हैं।

 

रात्रि की पूजा: नवरात्रि के उत्सव के दौरान रात्रि की पूजा भी विशेष महत्वपूर्ण होती है। रात्रि के समय विशेष पूजा और आराधना की जाती है और मां दुर्गा का विशेष भक्ति और समर्पण किया जाता है।

 

 

नवरात्रि का अंत:

 

नवरात्रि के दसवें दिन को “विजयदशमी” या “दशहरा” के रूप में मनाया जाता है। यह दिन नवरात्रि के अंत की सूचना देता है और हिन्दू पंचांग में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। विजयदशमी का मतलब होता है “विजय की दशमी” जो जीत की प्रतीक होती है। इस दिन भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया था और माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था, इसलिए यह दिन विजय का प्रतीक माना जाता है।

 

विसर्जन पूजा का महत्व और तरीका:

विजयदशमी के दिन मां दुर्गा की मूर्ति को पूजा के बाद विसर्जित करने का रितुअल होता है, जिसे “विसर्जन पूजा” कहते हैं। यह पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होती है।

 

विसर्जन पूजा का महत्व:

 

समर्पण और अनुष्ठान: विसर्जन पूजा में मां दुर्गा की मूर्ति का समर्पण किया जाता है, जिससे हम उनके प्रति अपने समर्पण और भक्ति का संकेत देते हैं।

 

समृद्धि और विजय: यह पूजा विजय और समृद्धि की प्राप्ति के लिए की जाती है, क्योंकि इसका मतलब होता है कि जैसे भगवान श्रीराम और माता दुर्गा ने जीत हासिल की थी, वैसे ही हम भी जीतने के लिए प्रेरित होते हैं।

 

विसर्जन पूजा का तरीका:

 

  • मां दुर्गा की मूर्ति को पूजनीय स्थान पर स्थापित करें।
  • पूजनीय सामग्री जैसे कि रोली, कुमकुम, अक्षत, फूल, धूप, दीप आदि का आयोजन करें।
  • मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें और उन्हें पुष्प, अक्षत और रोली से चढ़ाएं।
  • उनका आरती करें और उन्हें प्रणाम करें।
  • मां दुर्गा की मूर्ति को विसर्जित करने के लिए तैयार करें।
  • विसर्जन के समय, मां दुर्गा की मूर्ति को ध्यान से समुद्र या नदी में धलवाएं।
  • विसर्जन के पश्चात्, पूजा स्थल को साफ-सफाई करें और उसे प्रसाद दें।
  • विसर्जन पूजा के माध्यम से हम आत्मा की शुद्धि, समर्पण और समृद्धि की प्राप्ति का प्रयास करते हैं और मां दुर्गा की कृपा की प्राप्ति की आशा करते हैं।