Pandit and Brahmin Terk
पंडित और ब्राह्मण , पुरोहित, गुरु, पुजारी क्या है ?
किसी विशेष विद्या का ज्ञान रखने वाला ही पंडित होता है। प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि के बहुत बड़े ज्ञाता को पंडित कहा जाता था। ब्राह्मण : ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना है, जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर अन्य किसी को नहीं पूजता, वह ब्राह्मण कहा गया है। जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है।
पंडित : पंडः का अर्थ होता है विद्वता, किसी विशेष ज्ञान में पारंगत होने को ही पांडित्य कहते हैं। पंडित का अर्थ होता है किसी ज्ञान विशेष में दश या कुशल। इसे विद्वान या निपुण भी कह सकते हैं। किसी विशेष विद्या का ज्ञान रखने वाला ही पंडित होता है। प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि के बहुत बड़े ज्ञाता को पंडित कहा जाता था।
ब्राह्मण : ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना है, जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर अन्य किसी को नहीं पूजता, वह ब्राह्मण कहा गया है। जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है। जो ज्योतिषी या नक्षत्र विद्या से अपनी जीविका चलाता है वह ब्राह्मण नहीं, ज्योतिषी है। इस तरह वेद और ब्रह्म को छोड़कर जो कुछ भी कर्म करता है वह ब्राह्मण नहीं है। स्मृतिपुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। 8 प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है जिसका किसी जाति या समाज से कोई संबंध नहीं।
पुरोहित : पुरोहित दो शब्दों से बना है:- ‘पर’ तथा ‘हित’, अर्थात ऐसा व्यक्ति जो दुसरो के कल्याण की चिंता करे। प्राचीन काल में आश्रम प्रमुख को पुरोहित कहते थे जहां शिक्षा दी जाती थी। हालांकि यज्ञ कर्म करने वाले मुख्य व्यक्ति को भी पुरोहित कहा जाता था। प्रचीनकाल में किसी राजघराने से भी पुरोहित संबंधित होते थे। राज दरबार में पुरोहित नियुक्त होते थे, जो धर्म-कर्म का कार्य देखने के साथ ही सलाहकार समीति में शामिल रहते थे।
आचार्य : आचार्य उसे कहते हैं जिसे वेदों और शास्त्रों का ज्ञान हो और जो गुरुकुल में विद्यार्थियों को शिक्षा देने का कार्य करता हो। आचार्य का अर्थ यह कि जो आचार, नियमों और सिद्धातों आदि का अच्छा ज्ञाता हो और दूसरों को उसकी शिक्षा देता हो।
गुरु: गु का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ प्रकाश, अर्थात जो व्यक्ति आपको अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए वह गुरु होता है। गुरु का अर्थ अंधकार का नाश करने वाला। प्रत्येक गुरु संत होते तो हैं लेकिन प्रत्येक संत गुरु हो ये जरूरी नहीं, केवल कुछ संतों में ही गुरु बनने की पात्रता होती है। गुरु का अर्थ ब्रह्म ज्ञान का मार्गदर्शक।
पुजारी :
पूजा और पाठ से संबंधित जो व्यक्ति मंदिर या अन्य किसी स्थान पर पूजा पाठ करता हो वह पुजारी होता है। किसी देवी-देवता की मूर्ति या प्रतिमा की पूजा करने वाले व्यक्ति को पुजारी कहा जाता है। कई लोगों ने पुजारी नाम के अर्थ का अनर्थ कर दिया है। ईश्वर तो कण कण में है, इस मूर्ति में भी लेकिन यह मूर्ति ईश्वर नहीं पुजारि ने सभी अंधविश्वासियों को यही समझाने का प्रयास किया |
ब्राह्मण के प्रकार कौन कौन से हैं
ब्राह्मण का तब किसी जाति या समाज से नहीं था। समाज बनने के बाद अब देखा जाए तो भारत में सबसे ज्यादा विभाजन या वर्गीकरण ब्राह्मणों में ही है जैसे:- सरयूपारीण, कान्यकुब्ज , जिझौतिया, मैथिल, मराठी, बंगाली, भार्गव, कश्मीरी, सनाढ्य, गौड़ बामन , महा-बामन और भी बहुत कुछ।
ब्राह्मण का असली नाम क्या है?
ब्राह्मण : ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है।
गोत्र का क्या तात्पर्य है ? ;इसकी क्या आवश्यकता पड़ी ?
‘गोत्र’ शब्द का वास्तविक अर्थ पशु बांधने का स्थान था। अति प्राचीन काल में जिनके पशु एक ही शाला में बाँधे जाते थे, वे सगोत्री कहलाते थे। साधारणतया ऐसे लोगों में एक ही पूर्वज की संतान सम्मिलित होने से ‘गोत्र’ शब्द का लौकिक अर्थ वंश हो गया। श्रौत सूत्रों के परिशिष्टों में कहा गया है – ‘यदपत्यं तद्गोत्रमित्युच्यते’ अर्थात् उन (ऋषियों) की संतानों को गोत्र कहते हैं। पाणिनी ने भी कहा है -‘अपत्यं पौत्रप्रभृतिगोत्रम्’ अर्थात् बेटे, पोते आदि संतान ही गोत्र है। पहले सब एक ही स्थान पर रहते थे। कालान्तर में जब वंश के लोगों की संख्या बढ़ी तो लोगों का एक स्थान पर रहना असंभव हो गया तो उन लोगों ने पृथक हो कर अपने रहने के अलग-अलग स्थान बनाए अर्थात् गोत्रों की शाखाएँ हो गई। ऋग्वेद से ज्ञात होता है कि पहले कुल चार गोत्र थे – भृगु, अंगिरस, अथर्वण तथा वशिष्ठ। अथर्वण गोत्र के लोग फारस चले गए। अंगिरस गोत्र भृगु गोत्र में समाहित हो गया।
गौड़ ब्राह्मण कैसे होते हैं?
सारस्वत, सरस्वती नदी के तट पर बसे आर्य वंश के लोग हैं। सरस्वती नदी के तट पर रहने से इनका नाम गौड़ सारस्वत ब्राह्मण पडा। यह साबित करने के संदर्भ में अनेक सबूत ऋग्वेद में पाए जाते हैं। नदी के सूखने के वजह से यह लोग उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में बस गये। इस प्रवास के सटीक तिथियाँ अज्ञात हैं। गौड़ ब्राह्मण पंच गौड ब्रह्मण मै से एक हैं (मैथिल ब्राह्मण, सारस्वत ब्राह्मण, उत्कल ब्रह्मण, कान्यकुब्ज ब्राह्मण, और गौड़ ब्राह्मण) ऐसा माना जाता है कि परशुराम एक ब्राह्मण जो भगवान विष्णु के अवतार है उन्होंने धार्मिक कार्यों के वजह से गोवा में प्रवास किये और ऐसा भी माना जाता है की कुछ गौड़ जो बंगाल में बसे है वे सारस्वत समुदाय नाम गौड़ सारस्वत ब्राह्मण व्युत्पन्न माना जाता है। यह त्रेतायुग में, समुदाय के गोवा पहुँचने पर, एक महान तपस्वी थे जिनका नाम जम्गाग्नी था| उन्होंने कहा कि वह हर इच्छा को पूरा करने की शक्ति से सम्पूर्ण है और इसी कारणवश उन्हें कामधेनु के रूप से जाना जाता था। गौड सारस्वत लोगों ने लौटोलिम में रामनाथी मंदिर की तरह गोवा में कई मंदिरों का निर्माण किये है। गौड सारस्वत लोग गोवा के कुशस्थली और कुएल्लोस्सिम गावों के सारस्वत थे जो चित्रारपुर सारस्वत ब्राह्मण के रूप में उप समुदाय है। १६ वीं सदी में पुर्तगाली शासन के दौरान गोवा से चले कई परिवार महाराष्ट्र और अन्य शहरों में बस गए है। जिनकी मातृ – भाषा कोंकणी और मराठी है। महाराष्ट्र में मराठी बोलने वाले जीएसबी की अधिक संख्या है।
गौड़ ब्राह्मण के कितने गोत्र होते हैं?
‘महाभारत” के शांतिपर्व (297/17-18) में मूल चार गौत्र बताए गए हैं- अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु, जबकि जैन ग्रंथों में 7 गौत्रों का उल्लेख है- कश्यप, गौतम, वत्स्य, कुत्स, कौशिक, मंडव्य और वशिष्ठ।
शाण्डिल्य शांडिल्य एक सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण गोत्र है, ये वेदों में श्रेष्ठ, तथा ऊँचकुलिन घराने के ब्राह्मण हैं। यह गोत्र ब्राह्मणों के तीन मुख्य ऊँचे गोत्रो में से एक है। महाभारत अनुशासन पर्व के अनुसार युधिष्ठिर की सभा में विद्यमान ऋषियों में शाण्डिल्य का नाम भी है।
गौड़ ब्राह्मण के कितने गोत्र होते हैं?
‘महाभारत” के शांतिपर्व (297/17-18) में मूल चार गौत्र बताए गए हैं- अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु, जबकि जैन ग्रंथों में 7 गौत्रों का उल्लेख है- कश्यप, गौतम, वत्स्य, कुत्स, कौशिक, मंडव्य और वशिष्ठ।
शाण्डिल्य शांडिल्य एक सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण गोत्र है, ये वेदों में श्रेष्ठ, तथा ऊँचकुलिन घराने के ब्राह्मण हैं। यह गोत्र ब्राह्मणों के तीन मुख्य ऊँचे गोत्रो में से एक है। महाभारत अनुशासन पर्व के अनुसार युधिष्ठिर की सभा में विद्यमान ऋषियों में शाण्डिल्य का नाम भी है।
गोत्र 108 हैं । 7 शाखाओं सहित कुल 115
उन ११५ ऋषियों के नाम, जो कि हमारा गोत्र भी है…….
१.अत्रि गोत्र,
२.भृगुगोत्र,
३.आंगिरस गोत्र,
४.मुद्गल गोत्र,
५.पातंजलि गोत्र,
६.कौशिक गोत्र,
७.मरीच गोत्र,
८.च्यवन गोत्र,
९.पुलह गोत्र,
१०.आष्टिषेण गोत्र,
११.उत्पत्ति शाखा,
१२.गौतम गोत्र,
१३.वशिष्ठ और संतान (क) पर वशिष्ठ गोत्र, (ख)अपर वशिष्ठ गोत्र, (ग) उत्तर वशिष्ठ गोत्र, (घ)
पूर्व वशिष्ठ गोत्र, (ड) दिवा वशिष्ठ गोत्र !!!
१४.वात्स्यायन गोत्र,
१५.बुधायन गोत्र,
१६.माध्यन्दिनी गोत्र,
१७.अज गोत्र,
१८.वामदेव गोत्र,
१९.शांकृत्य गोत्र,
२०.आप्लवान गोत्र,
२१.सौकालीन गोत्र,
२२.सोपायन गोत्र,
२३.गर्ग गोत्र,
२४.सोपर्णि गोत्र,
२५.शाखा,
२६.मैत्रेय गोत्र,
२७.पराशर गोत्र,
२८.अंगिरा गोत्र,
२९.क्रतु गोत्र,
३०.अधमर्षण गोत्र,
३१.बुधायन गोत्र,
३२.आष्टायन कौशिक गोत्र,
३३.अग्निवेष भारद्वाज गोत्र, ३४.कौण्डिन्य गोत्र,
३५.मित्रवरुण गोत्र,
३६.कपिल गोत्र,
३७.शक्ति गोत्र,
३८.पौलस्त्य गोत्र,
३९.दक्ष गोत्र,
४०.सांख्यायन कौशिक गोत्र, ४१.जमदग्नि गोत्र,
४२.कृष्णात्रेय गोत्र,
४३.भार्गव गोत्र,
४४.हारीत गोत्र,
४५.धनञ्जय गोत्र,
४६.पाराशर गोत्र,
४७.आत्रेय गोत्र,
४८.पुलस्त्य गोत्र,
४९.भारद्वाज गोत्र,
५०.कुत्स गोत्र,
५१.शांडिल्य गोत्र,
५२.भरद्वाज गोत्र,
५३.कौत्स गोत्र,
५४.कर्दम गोत्र,
५५.पाणिनि गोत्र,
५६.वत्स गोत्र,
५७.विश्वामित्र गोत्र,
५८.अगस्त्य गोत्र,
५९.कुश गोत्र,
६०.जमदग्नि कौशिक गोत्र, ६१.कुशिक गोत्र,
६२. देवराज गोत्र,
६३.धृत कौशिक गोत्र,
६४.किंडव गोत्र,
६५.कर्ण गोत्र,
६६.जातुकर्ण गोत्र,
६७.काश्यप गोत्र,
६८.गोभिल गोत्र,
६९.कश्यप गोत्र,
७०.सुनक गोत्र,
७१.शाखाएं गोत्र,
७२.कल्पिष गोत्र,
७३.मनु गोत्र,
७४.माण्डब्य गोत्र,
७५.अम्बरीष गोत्र,
७६.उपलभ्य गोत्र,
७७.व्याघ्रपाद गोत्र,
७८.जावाल गोत्र,
७९.धौम्य गोत्र,
८०.यागवल्क्य गोत्र,
८१.और्व गोत्र,
८२.दृढ़ गोत्र,
८३.उद्वाह गोत्र,
८४.रोहित गोत्र,
८५.सुपर्ण गोत्र,
८६.गालिब गोत्र,
८७.वशिष्ठ गोत्र,
८८.मार्कण्डेय गोत्र,
८९.अनावृक गोत्र,
९०.आपस्तम्ब गोत्र,
९१.उत्पत्ति शाखा गोत्र,
९२.यास्क गोत्र,
९३.वीतहब्य गोत्र,
९४.वासुकि गोत्र,
९५.दालभ्य गोत्र,
९६.आयास्य गोत्र,
९७.लौंगाक्षि गोत्र,
९८.चित्र गोत्र,
९९.विष्णु गोत्र,
१००.शौनक गोत्र,
१०१.पंचशाखा गोत्र,
१०२.सावर्णि गोत्र,
१०३.कात्यायन गोत्र,
१०४.कंचन गोत्र,
१०५.अलम्पायन गोत्र,
१०६.अव्यय गोत्र,
१०७.विल्च गोत्र,
१०८.शांकल्य गोत्र,
१०९.उद्दालक गोत्र,
११०.जैमिनी गोत्र,
१११.उपमन्यु गोत्र,
११२.उतथ्य गोत्र,
११३.आसुरि गोत्र,
११४.अनूप गोत्र,
११५.आश्वलायन गोत्र !!!!!
कुल संख्या १०८. ही है, लेकिन इनकी छोटी-छोटी ७ शाखा और हुई है ! इस प्रकार कुल मिलाकर इनकी पुरी संख्या ११५ है !