शादी - विवाह, नामकरण, गृह प्रवेश, काल सर्प दोष , मार्कण्डेय पूजा , गुरु चांडाल पूजा, पितृ दोष निवारण - पूजा , महाम्रत्युन्जय , गृह शांति , वास्तु दोष

Serv Dev Puja Padhyati

दींन दयाल विरद सम्भारी | हरहु नाथ मम संकट भारी

॥दोहा॥
श्री गुरु चरन सरोज रज , निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु , जो दायकु फल चारि ॥

॥ चौपाई ॥
जब तें रामु ब्याहि घर आए।   नित नव मंगल मोद बधाए
भुवन चारिदस भूधर भारी ।  सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी

रिधि सिधि संपति नदीं सुहाई । उमगि अवध अंबुधि कहुँ आई॥
मनिगन पुर नर नारि सुजाती ।  सुचि अमोल सुंदर सब भाँती॥2
कहि न जाइ कछु नगर बिभूती । जनु एतनिअ बिरंचि करतूती
सब बिधि सब पुर लोग सुखारी। रामचंद मुख चंदु निहारी
मुदित मातु सब सखीं सहेली। फलित बिलोकि मनोरथ बेली
राम रूपु गुन सीलु सुभाऊ । प्रमुदित होइ देखि सुनि राऊ
[ श्री रामचरितमानस: अयोध्या काण्ड: मंगलाचरण]

अर्थात

श्री गुरुजी के चरण कमलों की रज से अपने मन रूपी दर्पण को साफ करके मैं श्री रघुनाथजी के उस निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फलों को (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को) देने वाला है।

जब से श्री रामचन्द्रजी विवाह करके घर आए, तब से (अयोध्या में) नित्य नए मंगल हो रहे हैं और आनंद के बधावे बज रहे हैं। चौदहों लोक रूपी बड़े भारी पर्वतों पर पुण्य रूपी मेघ सुख रूपी जल बरसा रहे हैं॥1॥

ऋद्धि-सिद्धि और सम्पत्ति रूपी सुहावनी नदियाँ उमड़-उमड़कर अयोध्या रूपी समुद्र में आ मिलीं। नगर के स्त्री-पुरुष अच्छी जाति के मणियों के समूह हैं, जो सब प्रकार से पवित्र, अमूल्य और सुंदर हैं॥2॥

नगर का ऐश्वर्य कुछ कहा नहीं जाता। ऐसा जान पड़ता है, मानो ब्रह्माजी की कारीगरी बस इतनी ही है। सब नगर निवासी श्री रामचन्द्रजी के मुखचन्द्र को देखकर सब प्रकार से सुखी हैं॥3॥

सब माताएँ और सखी-सहेलियाँ अपनी मनोरथ रूपी बेल को फली हुई देखकर आनंदित हैं। श्री रामचन्द्रजी के रूप, गुण, शील और स्वभाव को देख-सुनकर राजा दशरथजी बहुत ही आनंदित होते हैं॥4॥

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गोविन्द दामोदर स्तोत्र

करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्।  वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि।।

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव।  जिह्वे पिवस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति।।

विक्रेतुकामाखिलगोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्ति:। दध्यादिकं मोहवशादवोचद् गोविन्द दामोदर माधवेति।। 

त्वामेव याचे मम देहि जिह्वे समागते दण्डधरे कृतान्ते। वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या गोविन्द दामोदर माधवेति।।

श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश गोपाल गोवर्धननाथ विष्णो। जिह्वे पिवस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति।।

॥ श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम् ॥
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्माङ्गरागाय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥
मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय, नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय । मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय, तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द, सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय । श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य, मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय। चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनायतस्मै व काराय नमः शिवाय ॥४॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय ।  दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥५॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र – सिद्ध कुंजिका स्तोत्र  – Siddha Kunjika Stotram with Lyrics

 ऊँ श्रीकुञ्जिकास्तोत्रसिद्ध कुंजिका स्तोत्र

विनियोग : ॐ अस्य श्री कुन्जिका स्त्रोत्र मंत्रस्य सदाशिव ऋषि:॥ अनुष्टुपूछंदः

॥ श्रीत्रिगुणात्मिका देवता ॥ ॐ ऐं बीजं ॥ ॐ ह्रीं शक्ति: ॥ ॐ क्लीं कीलकं ॥ मम सर्वाभीष्टसिध्यर्थे जपे विनयोग: ॥

शिव उवाच  – शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम।  येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत् ॥1॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।  न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥2॥

  कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् । अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3॥

गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति। मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।

पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥4॥

अथ मंत्र :

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं सः  ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।।”

 ॥ इति मंत्रः॥

 “नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।  नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनी ॥1॥

 नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनी ॥2॥

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे। ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥3॥

 क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते। चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥ 4॥

 विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणी ॥5॥  

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी। क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥6॥

 हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी। भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥7॥

 अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं  धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥ 8॥  

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धिं कुरुष्व मे॥  इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥  
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत् । न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
।। श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे सिद्ध कुंजिका स्तोत्र संपूर्णम् ।।

द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र:
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं अमलेश्वरम्॥
परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥
एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायंप्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥


AARATI HSANKER JI KI

ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु जय शिव ओंकारा।   ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे। शिव पंचानन राजे। हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव.॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। प्रभु दस भुज अति सोहे। तीनों रूप निरखते। त्रिभुवन मन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी। शिव मुण्डमाला धारी। चंदन मृगमद चंदा, सोहे त्रिपुरारी॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। शिव बाघम्बर अंगे। ब्रह्मादिक सनकादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता। शिव कर में त्रिशूल धर्ता। जगकर्ता जगहर्ता जगपालनकर्ता॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। स्वामी जानत अविवेका। प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावे। प्रभु प्रेम सहित गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव॥


लिंगाष्टकम
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंगं निर्मलभासितशोभित लिंगम् । जन्मजदुःखविनाशकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥१॥ 
देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहं करुणाकरलिंगम् ।रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥२॥ 
सर्वसुगंधिसुलेपितलिंगं बुद्धिविवर्धनकारणलिंगम् ।सिद्धसुरासुरवंदितलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥३॥ 
कनकमहामणिभूषितलिंगं फणिपतिवेष्टितशोभितलिंगम् ।दक्षसुयज्ञविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥४॥ 
कुंकुमचंदनलेपितलिंगं पंकजहारसुशोभितलिंगम् ।संचितपापविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥५॥ 
देवगाणार्चितसेवितलिंगं भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम् ।दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥६॥ 
अष्टदलोपरिवेष्ठित लिंगं सर्वसमुद्भवकारणलिंगम् ।अष्टदरिद्रविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥७॥ 
सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगं सुरवनपुष्पसदार्चितलिंगम् ।परात्परं परमात्मकलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम् ॥८॥
लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥९॥ इति श्रीलिंगाष्टकस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

33 कोटि देवता
त्रिदेव,   नवदुर्गा, एकादश रुद्र,    नवग्रह,   दश दिक्पाल,  षोडश लोकपाल ,  सप्तमातृका,
दश महाविद्या,  बारह यम, आठ वसु , चौदह मनु, सप्त ऋषि, घृतमातृका, दश अवतार, चौबीस अवतार
आदि

यजमान आने पर मंगलाचरण मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः। मङ्गलम् पुण्डरीकाक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥
मंगलं भगवान् शंभुः मंगलं वृषभध्वजः । मंगलं पार्वतीनाथो मंगलायतनो हरः ।।
or
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्। प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्व्विघ्नोपशान्तये।।
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम por स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्ताक्षर्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो वृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः or शांति पाठ

सीतानाथ समारम्भां रामानन्दार्य मध्यमाम्। अस्मदाचार्य पर्यन्तां वन्दे श्रीगुरू परम्पराम् ।। Guru parmpara ko namskar
गुरु वंदनागुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१॥ अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥२॥  ध्यानमूलं गुरुर्मूर्तिः पूजामूलं गुरुर्पदम् । मन्त्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरूर्कृपा ॥

व्यास वंदना   व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे | नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः || नमोस्तुते व्यास विशाल बुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्र । येन त्वया भारत तैल पूर्णः प्रज्वलितो ज्ञानमय प्रदीपः ।।
शुकदेव यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेत कृत्यं द्वैपायनो विरह कातर आजुहाव। पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु: तं सर्वभूतह्र्दयं मुनिमानतोस्मि॥

सरस्वती वंदनाया कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥ या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥ 
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमाम् आद्यां जगद्व्यापिनीम्। वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌॥ हस्ते स्फटिकमालिकाम् विदधतीम् पद्मासने संस्थिताम्‌।  वन्दे ताम् परमेश्वरीम् भगवतीम् बुद्धिप्रदाम् शारदाम्‌॥

शान्तिकरण ओं शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिस्रवन्तु नः। – हे देवी (शनिदेव), हमें सुख, शांति, और समृद्धि प्रदान करें। हमारे पानी और जलस्रोत शुद्ध रहें। हमारे जीवन में शांति और सुख के लिए बहें।”
परिवारी जन पर जल सिंचन  ॐ आपो हिष्ठा मयोभुवः ता नऽऊर्जे दधातन, महे रणाय चक्षसे। ॐ यो वः शिवतमो रसः, तस्य भाजयतेह नः। उशतीरिव मातरः। ॐ तस्माऽअरंगमामवो, यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जन यथा च नः॥ – ३६.१४-१६
सभी साधन सामिग्री पर जल सिंचन पवित्र करें पुनन्तु माँ देवजना: पुनन्तु मनसा धिया | पुनन्तु बिश्वा भूतानि पवमान: पुनातु मा || “हे देवगण, आप मुझे पवित्र करें, हे मन के विचार, आप मुझे पवित्र करें, हे सभी प्राणी, आप मुझे पवित्र करें, हे पवमान (वायु), आप मुझे पवित्र करें।
पवित्रीकरण ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।
» जल से आचमन करने के 3 मंत्र –  ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः। तीन बार आचमन कर आगे दिये मंत्र पढ़कर हाथ धो लें। ॐ हृषीकेशाय नमः।। 
हवन मैं  – ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ॥१॥ ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ॥२॥ ॐ सत्यं यश: श्रीर्मयि श्री: श्रयतां स्वाहा ॥३॥
प्राणायामॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ॥  हस्तप्रक्षालन

(अंगन्यासअंग न्याससीधे हाँथ के अंगूठे ओर अनामिका अंगुली को आपस में जोड़ ले। सम्बंधित मंत्र का उच्चारण करते जाये , शरीर के भागों स्पर्श करते हुए यह भावना रखे की… वे भाग अधिक शक्तिशाली और पवित्र होते जा रहे हैं। .
ॐ ह्रदयाय नमः ;   ॐ शिरसे स्वाहा ;  – ॐ शिखाये फट ;   –   ॐ कवचाय हुम् ;    ॐ नेत्र त्रयाय वौषट  ;   ॐ अस्त्राय फट् — तीन बार ताली बजाये
जल से अंग स्पर्श करने के मंत्रॐ वाङ्म आस्येऽस्तु ॥ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु ॥ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु ॥ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु ॥ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु ॥ॐ ऊर्वोर्म ओजोऽस्तु ॥ इससे सारे शरीर पर जल का मार्जन करें ॐ अरिष्टानि मेऽङ्गानि तनूस्तन्वा में सह सन्तु ॥

शिखा बंधनमा नस्तोके तनये मा न आयुषि मा नो गोषु मा न अश्वेषु रीरिषः। वीरान्‌ मा नो रुद्र भामितो वधीर्हविष्मन्तः सदामित्‌ त्वा हवामहे॥
 
चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते। तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुष्व मे।।

पवित्री धारणॐ पवित्रोस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व्वः प्रसवऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रोण सूर्यस्य रश्मिभिः। तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम्।

गठजोड़ – “ॐ यदाबध्नन दाक्षायणा हिरण्यं शतानीकाय सुमनस्यमानाः। तन्म आ बन्धामि शत शारदायायुष्यंजरदष्टियर्थासम्‌ ॥”  जिस प्रकार दक्षायणी (पार्वती) ने हिरण्य (सोने) से बने धागे को शतानीक (विष्णु) के लिए बांधा था, उसी प्रकार मैं भी इस रक्षा सूत्र को सौ शरद ऋतुओं (सौ वर्षों) तक दीर्घायु और वृद्धावस्था तक पहुँचने के लिए बांधता हूँ।”

यज्ञोपवीत धारण  यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।
यज्ञोपवीत उतारने  एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम् ।।

कलावा मंत्र येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः, तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षे माचल माचल|| or स्वस्तिवाचन

ब्रह्मन् के कलावा बधवाना3म् व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षामाप्नोति दक्षिणाम्। दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सत्यमाप्यते॥ व्रत से दीक्षा मिलती है, दीक्षा के समय दक्षिणा दी जाती है। दक्षिणा से श्रद्धा बढ़ती है, श्रद्धा से सत्य रूप परमेश्वर की प्राप्ति होती है। व्रत वह शक्ति है,

यजमान तिलक – “ॐ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः। तिलकान्ते प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थसिद्धये 

आदित्य, वसु, रुद्र, विश्वेदेवा और मरुद्गणों से प्रार्थना करता है कि वे यजमान को तिलक प्रदान करें और उसे धर्म, काम, और अर्थ की सिद्धि प्रदान करें
यजमान तिलक शतमानं भवति शतायु: पुरुष: शतेन्द्रिय आयुष्येवेन्द्रिये प्रतितिष्ठति यह मंत्र एक आशीर्वाद मंत्र है, जिसका अर्थ है “आप 100 साल तक जीवित रहें, 100 इंद्रियों के साथ, और आपकी इंद्रियां मजबूत रहें”.  

ब्राह्मणों को तिलकॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नास्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिरधातु ॥ इन्द्र, जो महान कीर्ति वाले हैं, हमारा कल्याण करें। पूषा, जो सब कुछ जानने वाले हैं, हमारा कल्याण करें। गरुड़, जिनका कोई शत्रु नहीं है, हमारा कल्याण करें। बृहस्पति, जो ज्ञान के स्वामी हैं, हमारा कल्याण करें।

नमो ब्रह्मण्य देवाय गोब्राह्मण हिताय च। जगत् हिताय कृष्णाय गोविंदाय नमो नमः॥ गायों और ब्राह्मणों के साथ सभी प्राणियों के शुभचिंतक, हितैषी भगवान को प्रणाम करता हूं।

कन्याओं को तिलक लगाने का मंत्र – ॐ अंबे अंबिके अंबालिके नामा नयति कश्चन। सस्सत्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पिल वासिनिम् ॥

माताओं को तिलक लगाने का मंत्र – ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥


कर्मपात्र पूजन: यजमान अपने बायीं ओर भूमि पर त्रिकोणात्मक मण्डल बना कर गन्धाक्षत से पूजन कर उस पर कर्म पत्र रख कर पूजन करें ||

ॐ तत्वा यामि ब्राह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः ।  अहेडमानो वरुणेह बोद्धयुरुश (गुं) स मा न आयुः प्र मोषीः ।।

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।  नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु॥ 

ॐ भूर्भुवः स्वः अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्ंग सपरिवारं सायुधं सशक्तिकम् आवाहयामि ।। ॐ अपांपतये वरुणाय नमः । इति पञ्चोपचारैर्वरुणं सम्पूज्य । नमस्कार करोमि |

अंकुश मुद्रा सूर्य को दिखाकर सभी तीर्थों का आह्वाहन करें , सूर्य से प्रार्थना करें सभी तीर्थों का जल कर्म पात्र मैं भेजें |  ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।। ॐ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।। ॐ सूर्याय नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ नमो भास्कराय नम:। हाथ कछुआ की तरह करके कर्म पात्र पर रखें ओर 8 बार बोलें ” ॐ वं वरुणाय नमः ” उसके बाद यजमान थोड़ा जल सभी पूजन सामिग्री पर डालें

दीपक जलाना
ओं एतन्ते देव सावितर्यज्ञं प्राहुबृस्तये बृह्मणे तेन यज्ञमव तेन यज्ञपतिं तेन मामव| – Eshwar ke haath saaf
ऊँ यं ब्रह्म वेदान्त विदो वदन्ति परम् प्रधानम् पुरुषम् तथान्ये विश्वोदगते कारणम्ईश्वरम् वा तस्मै नमो विघ्न विनाशनाय | eswar ki namskar
शुभम करोति कल्याणं, आरोग्यं धन संपदाम्, शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीपं ज्योति नमोस्तुते।। Deepak jalana
ॐ ज्वलमालिन्यै नमः  रत्नेश्वरी नमः | श्री विष्णवै नमः पुराण पुर्षोत्तमाय नमः  ! 
ॐ भूर्भुवः स्वः दीप  देवतायै नमः आवाहयामि , सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि, नमस्करोमि |  
भो दीप देव स्वरूपस्त्वं कर्मसाक्षी ह्यविघ्नकृत्।  यावत् कर्म समाप्तिः स्यात् तावत् त्वं सुस्थिरो भव।।
आरतिकर्म,हरि: ॐ चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत । श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत  || अर्थ है: विराट पुरुष के मन से चंद्रमा, आँखों से सूर्य, कानों से वायु और प्राण, तथा मुख से अग्नि प्रकट हुई। 
ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा। ॐ अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा। ॐ सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा। ॐ सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा। ॐ ज्योतिः सूर्यः सूर्या ज्योतिः स्वाहा।

प्रार्थनाभक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने । त्राहि मां निर्याद्घोराद्दीपज्योतिर्नमोस्तुते ॥ 

धूपपात्र धूरसि धूर्व धूर्वन्तं धूर्व तं योऽस्मान्धूर्वति तं धूर्व यं वयं धूर्वाम| देवानामसि वह्नितमं सस्नितमं पप्रितमं जुष्टतमं देवहूतमम्।

ॐ गन्धर्वदैवत्याय धूपपात्राय नमः| – हे अग्नि! तुम धू हो। जो हमें धू करके नष्ट करना चाहते हैं, उनको तुम धू कर दो (धू-धू कर जलाना, ध्वस्त करना)। तुम देवों में सबसे आग्नेय, शुद्ध, प्रिय, साथ जोड़ने वाले, तथा देवों को आहुति पहुंचाते हो।

शंखपूजन शंख को चन्दन से लेपकर देवता के वायीं ओर पुष्प पर रखकर शंख मुद्रा करें।
ॐ त्रैलोक्ये यानितीर्थानि वासुदेवस्थ चाज्ञया | शन्खे तिष्ठन्ति विप्रेन्द्र तस्मात् शन्ख प्रपूजयेत् ||

ॐ भूर्भुवः स्वः दीप  देवतायै नमः आवाहयामि , सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि, नमस्करोमि |
 
प्रार्थना –त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे। नमितः सर्वदेवैश्च पाझ्जन्य! नमोऽस्तुते।।
पाञ्चजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि तन्नः शंखः प्रचोदयात्। ॐ भूर्भवः स्वः शंखस्थदेवतायै नमः

घण्टा पूजन-  ॐ सर्ववाद्यमयीघण्टायै नमः, आगमार्थन्तु देवानां गमनार्थन्तु रक्षसाम्। कुरु घण्टे वरं नादं देवतास्थानसन्निधौ।।
ॐ भूर्भुवः स्वः घण्टास्थाय गरुडाय नमः गरुडमावाहयामि सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।
गरुडमुद्रा दिखाकर घण्टा बजाएं। दीपक के दाहिनी ओर स्थापित कर दें।

सूर्य ध्यान ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च, हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन। ऊँ घृणि: सूर्यादित्योम. यह सूर्य देव का एक प्रसिद्ध मंत्र है। इसका अर्थ है, “जो कृष्ण वर्ण वाले, प्रकाश से युक्त, और अमृतमय तथा मरणशील लोगों को जीवन देने वाले हैं, वे सूर्य देव हैं।

सूर्य अर्ध्य or प्रार्थना ॐ ऐही सूर्यदेव सहस्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर।। हे सूर्य देव, आपके हजार सिर हैं, आप प्रकाश का भंडार हैं और आप इस संसार के स्वामी हैं।सूर्यदेव स्वर्णिम रथ पर सवार होकर, लोकों को देखते हुए आ रहे हैं।  
आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने । आयु प्रज्ञा बलं वीर्यम् तेजस् तषा च जायते।।

भूत शुद्धि : पीली सरसो दाने सभी दश दिशाओ

 ओम अपसर्पन्तु ते भूता: ये भूता भूमि संस्थिता:। ये भूता: बिघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ||
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतो दिशम। सर्वेषामविरोधेन पूजा कर्म / यज्ञकर्म  समारभ्भे॥

बायें पैर को हाथ से ३ बार जमीन पर ठोककर भूतोपसारण करें |

देवाः आयान्तु | यातुधाना अपयान्तु | विष्णोदेव यजनं रक्षस्व

पुनः जल लेकर नेत्रों को प्रोक्षण करें

श्री भैरव नमस्कार: ॐ तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पान्त दहनोपम | भैरवाय नमस्तुभ्यमनुज्ञां दातुमर्हसि || “ॐ भैरवाय नमः
बटुक भैरव ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा !! हे बटुक भैरव, हे आपत्तियों से उद्धार करने वाले, मेरी रक्षा करें, मेरी बाधाओं को दूर करें।  हस्त प्रक्षालन

ॐ भूर्भुवः स्वः भैरवाय नमः सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि , नमस्करोमि


सूर्यार्ध्यदानम् – ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥

ॐ एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर ||

ॐ भुवन भास्कराय नमः अर्ध्य दत्तं न मम ||

नमस्कारान्  –  ॐ आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने। आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते

पृथ्वी स्पर्शसमुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले । विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
पृथ्वी विनियोग – पृथ्वी ति मन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः , सुतलं छन्दः कूर्मो देवता आसन पवित्र करणे विनियोग || 
पृथ्वी पूजन  पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुना धृता । त्वम् च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम्।। हे देवी पृथ्वी, आप ही से संपूर्ण लोक उत्पन्न हुआ है और आप ही विष्णु द्वारा धारण की जाती हैं।
ॐ भूर्भुवः स्वः पृथ्वी नमः सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि , नमस्करोमि
पृथ्वी प्रार्थनाआधारभूता जगतस्त्वमेका महीस्वरूपेण यतः स्थितासि । अपां स्वरूपस्थितया त्वयैतदाप्यायते कुत्स्नमलङ्घयवीर्ये || ॐ भू प्रथ्व्ये नमः , ॐ कमलसनाये नमः , ॐ आधार शक्त्ये नमः

वैदिक ईश्वर स्तुति- प्रार्थना मन्त्र

विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव   यद् भद्रं तन्न सुव ॥१॥
हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेकआसीत् दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषाविधेम 2
आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्यदेवा: यस्य छायाऽमृतं यस्य मृत्यु: कस्मै देवाय हविषाविधेम ॥३॥
: प्राणतो निमिषतो महित्वैक इन्द्राजा जगतोबभूव। ईशे अस्य द्विपदश्चतुष्पद: कस्मै देवाय हविषाविधेम 4
येन द्यौरुग्रा पृथिवी दृढा येन स्व: स्तभितं येननाक: यो अन्तरिक्षे रजसो विमान: कस्मै देवाय हविषाविधेम ॥५॥
प्रजापते त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परिता बभूव। यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयोरयीणाम् ॥६॥
नो बन्धुर्जनिता विधाता धामानि वेद भुवनानिविश्वा। यत्र देवा अमृतमानशाना स्तृतीये धामन्नध्यैरयन्त ॥७॥
अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानिविद्वान। युयोध्यस्मज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम॥८॥

शांतिकरण

ॐ शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीपतये शनयो रविस्र वन्तुनः। ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति: । वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि ॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत् । पश्येमशरदः शतं जीवेम शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतम् । प्रब्रवाम शरद् शतमदीनाः स्याम शरदः शतम् भूयश्यच शरदः शतात् ।।
 

शिवसंकल्पसूक्त

यजाग्रतो दूरमुदैति दैवं तदु सुप्तस्य तथैवैति।  दूरङ्गमं ज्योतिषां ज्योतिरेकं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥१॥

येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः। यदपूर्वं यक्षमन्तः प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥२॥

यत्प्रज्ञानमुत चेतो धृतिश्च यज्योतिरन्तरमृतं प्रजासु। यस्मान्न ऋते किंचन कर्म क्रियते तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ।।३।।

येनेदं भूतं भुवनं भविष्यत् परिगृहीतममृतेन सर्वम्। येन यज्ञस्तायते सप्तहोता तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥४॥ 

यस्मिन्नृचः साम यजूंषि यस्मिन् प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः। यस्मिंश्चित्तं सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥ ५॥

सुषारथिरश्वानिव यन्यनुष्यान्नेनीयतेऽभीशुभिर्वाजिन इव।  हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु॥ ६ ॥

स्वस्तिवाचन Vaidik –

अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्॥1॥

स नः पितेव सूनवेऽग्ने सूपायनो भव। सचस्वा नः स्वस्तये॥2॥ – ऋ॰म॰ 1। सू॰1। मं॰ 1,9।

स्वस्ति नो मिमीतामश्विना भगः स्वस्ति देव्यदितिरनर्वणः। स्वस्ति पूषा असुरो दधातु नः स्वस्ति द्यावापृथिवी सुचेतुना॥3॥

स्वस्तये वायुमुप ब्रवामहै सोमं स्वस्ति भुवनस्य यस्पतिः। बृहस्पतिं सर्वगणं स्वस्तये स्वस्तय आदित्यासो भवन्तु नः॥4॥

विश्वे देवा नो अद्या स्वस्तये वैश्वानरो वसुरग्निः स्वस्तये। देवा अवन्त्वृभवः स्वस्तये स्वस्ति नो रुद्रः पात्वंहसः॥5॥

स्वस्ति मित्रावरुणा स्वस्ति पथ्ये रेवति। स्वस्ति न इन्द्रश्चाग्निश्च स्वस्ति नो अदिते कृधि॥6॥

स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव। पुनर्ददताघ्नता जानता सं गमेमहि॥7॥ —ऋ॰ मं॰ 5। सू॰ 51।11-15॥

ये देवानां यज्ञिया यज्ञियानां मनोर्यजत्रा अमृता ऋतज्ञाः। ते नो रासन्तामुरुगायमद्य यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः॥8॥ —ऋ॰ मं॰ 7। सू॰ 35।65॥

येभ्यो माता मधुमत् पिन्वते पयः पीयूषं द्यौरदितिरद्रिबर्हाः। उक्थशुष्मान् वृषभरान्त्स्वप्नसस्ताँ आदित्याँ अनु मदा स्वस्तये॥9॥

नृचक्षसो अनिमिषन्तो अर्हणा बृहद् देवासो अमृतत्वमानशुः। ज्योतीरथा अहिमाया अनागसो दिवो वर्ष्माणं वसते स्वस्तये॥10॥

सम्राजो ये सुवृधो यज्ञमाययुरपरिह्वृता दधिरे दिवि क्षयम्। ताँ आ विवास नमसा सुवृक्तिभिर्महो आदित्याँ अदितिं स्वस्तये॥11॥

को वः स्तोमं राधति यं जुजोषथ विश्वे देवासो मनुषो यति ष्ठन। को वोऽध्वरं तुविजाता अरं करद्यो नः पर्षदत्यंहः स्वस्तये॥12॥

स्वस्तिवाचन – भद्राः सूक्तं

आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः ।  देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे-दिवे |1 देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो नि वर्तताम् । देवानां सख्यमुप सेदिमा वयं देवा न आयुः प्र तिरन्तु जीवसे ।२
तान् पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम् । अर्यमणं वरुणं सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत् ।३
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत् पिता द्यौः। तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम्|4
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम् । पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ।५
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पुषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।६
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः । अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसा गमन्निह ।।७
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः ।।८
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम ।  पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ।।९ अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः । विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम ।।१० (ऋक॰१।८९।१-१०) द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः । वनस्पतयः शान्तिरेव देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ।।११
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु । शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः ।।१२ (शु॰यजु॰)

विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान्। सरस्वतीं प्रणम्यादौ सर्वकार्यार्थसिद्धये॥” 
“भगवान गणेश, गुरु, सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, महेश और सरस्वती को प्रणाम करके, सभी कार्यों की सिद्धि के लिए।” 

नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शन्कराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।। ईशानः सर्वविध्यानामीश्वरः सर्वभूतानां ब्रम्हाधि पतिर्ब्रम्हणोध पतिर्ब्रम्हा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम।।

श्री मन्महागणाधिपतये नमः। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:। उमामहेश्वराभ्यां नम:। वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नं:। शचिपुरन्दराभ्यां नम:। ॐ मातापितृ चरण कमलभ्यो नम:। इष्टदेवताभ्यो नम:। कुलदेवताभ्यो नम:। ग्रामदेवताभ्यो नम:। वास्तुदेवताभ्यो नम:। स्थानदेवताभ्यो नम:। ॐ सद्गुरु चरण कमलेभ्यो नमः | सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:। सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम:। ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री मन्महागणाधिपतये नम:।

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक:।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:। द्वद्शैतानि नामानि यः पठे च्छ्रिणुयादपी।।
विद्यारंभे विवाहे पूजारम्भे च प्रवेशे निर्गमे तथा। संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्। प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्व्विघ्नोपशान्तये।।
अभिप्सितार्थ सिद्ध्यर्थं पूजितो य: सुरासुरै:। सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नम:।।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये ! शिवे ! सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बिके ! गौरी नारायणि नमोस्तुते।।
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम्। येषां हृदयस्थो भगवान् मङ्गलायतनो हरि:।।
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव, ताराबलं चन्द्रबलं तदेव । विद्याबलं दैवबलं तदेव, लक्ष्मीपते तेन्घ्रियुगं स्मरामि।।
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजय:। येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दन:।।
यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर:। तत्र श्रीर्विजयो भूति र्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।
अनन्यास्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
स्मृतेःसकल कल्याणं भाजनं यत्र जायते। पुरुषं तमजं नित्यं व्रजामि शरणं हरम्।।
सर्वेष्वारंभ कार्येषु त्रय:स्त्री भुवनेश्वरा:। देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दना:।।
विश्वेशम् माधवं दुन्धिं दण्डपाणिं च भैरवम्। वन्दे कशी गुहां गंगा भवानीं मणिकर्णिकाम्।।
ॐ तीक्ष्ण दन्ष्ट्र महाकाय कल्पान्त दहनोपम | भैरवाय नमस्तुभ्य मनुज्ञां दातुमर्हसि ||
वक्रतुण्ड् महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु में देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।  ॐ श्री गणेशाम्बिका भ्यां नम: ।

संकल्प

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: । श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्यैतस्य ब्रह्मणोह्नि द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचणे भूर्लोके भारतवर्षे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्त्तस्य ……… नाम्निनगरे (ग्रामे वा)…….. क्षेत्रे …….… प्रदेशे ……. श्रीगड़्गा / यमुना तीरे / मध्ये , श्री वीरविक्रमादित्य……..संवत्सरे तथा …….शाके शलवाहने संवत्सरे, …..… अयने सूर्यो ,……… ऋतौ, महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे शुभे  ………मासे, ……… पक्षे, ……… तिथौ,……… वासरे,……… नक्षत्रे, ……… योगे,……… करणे, ……… राशिस्थिते चन्द्रे,……… राशिस्थिते श्रीसूर्ये, एवं ……… राशिस्थिते देवगुरौ बृहस्पति एवं ग्रहगुणविशेषण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ……… गोत्रोत्पन्नः ……… शर्मण: (वर्मण:, गुप्तः वा) सपरिवारस्य ममात्मन: श्रुतिस्मृति पुराणोक्त पुण्यफलावाप्त्यर्थं मम ऐश्वर्याभिवृद्धयर्थं अप्राप्तलक्ष्मीप्राप्त्यर्थं प्राप्त लक्ष्म्याश्चिरकाल संरक्षणार्थं सकलमनः इप्सितकामनासंसिद्ध्यर्थंसमस्तभय व्याधि जरा पीडा मृत्यु परिहारद्वारा आयुरारोग्यैश्वर्याद्यभिवृद्ध्यर्थं तथा पुत्रपौत्रादि सन्ततेरविच्छिन्न वृद्ध्यर्थं आदित्यादिन्नवग्रहानूकूलतासिद्ध्यर्थं इन्द्रादि-दशदिक्पाल प्रसन्नतासिद्ध्यर्थं आधिदैविकाधिभौतिकाध्यात्मिक त्रिविधतापोपशमनार्थं धर्मार्थकाममोक्षफलावाप्त्यर्थं श्री ………… प्रीतये पूजनं (अन्य कर्म) करिष्ये। तदड़्गत्वेन गणपत्यादि देवानां पूजनञ्च करिष्ये।

“ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरूषस्य, विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य (रात में : अस्यां रात्र्यां कहे) ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीये परार्द्धे श्रीश्वेत वाराहकल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलि प्रथमचरणे भारतवर्षे भरतखण्डे जम्बूद्वीपे आर्यावर्तैक देशान्तर्गते ………   १ संवतसरे महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे ……. २ मासे ………   ३ पक्षे ……… ४ तिथौ ………५  वासरे ………  ६  गोत्रोत्पन्नः ……… ७  शर्माऽहं (वर्माऽहं/गुप्तोऽहं) ममात्मनः श्रुति स्मृति पुराणतन्त्रोक्त फलप्राप्तये  ग्रहदोष, दैहिक, दैविक,  भौतिक – त्रिविध ताप निवार्णार्थं  सर्वारिष्ट निरसन पूर्वक सर्वपाप क्षयार्थं मनसेप्सित फल प्राप्ति पूर्वक, दीर्घायु शरीरारोग्य कामनया धन-धान्य-बल-पुष्टि-कीर्ति-यश लाभार्थंसकल आधि, व्याधि, दोष परिहार्थं सकल मनोरथ सिध्यर्थं श्री …………प्रीतये पूजन तथा हवन करिष्ये।” तदड़्गत्वेन गणपत्यादि देवानां पूजनञ्च करिष्ये।

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: । श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्यैतस्य ब्रह्मणोह्नि द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचणे भूर्लोके भारतवर्षे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्त्तस्य ……… नाम्निनगरे (ग्रामे वा)…….. क्षेत्रे …….… प्रदेशे ……. श्रीगड़्गा / यमुना तीरे / मध्ये , श्री वीरविक्रमादित्य……..संवत्सरे तथा …….शाके शलवाहने संवत्सरे, …..… अयने सूर्यो ,……… ऋतौ, महांमागल्यप्रद मासोतमे मासे शुभे  ………मासे, ……… पक्षे, ……… तिथौ,……… वासरे,……… नक्षत्रे, ……… योगे,……… करणे, ……… राशिस्थिते चन्द्रे,……… राशिस्थिते श्रीसूर्ये, एवं ……… राशिस्थिते देवगुरौ बृहस्पति एवं ग्रहगुणविशेषण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ ……… गोत्रोत्पन्नः ……… शर्मण: (वर्मण:, गुप्तः वा) सपरिवारस्य ममात्मन: श्रुतिस्मृति पुराणोक्त पुण्यफलावाप्त्यर्थं अप्राप्तलक्ष्मीप्राप्त्यर्थं प्राप्त लक्ष्म्याश्चिरकाल संरक्षणार्थं सकलमनः इप्सितकामनासंसिद्ध्यर्थं, कायिक वाचिक मानसिक सकल दुरतापिसामनार्थं मम ऐश्वर्याभिवृद्धयर्थं सत्प्रवर्ती व्रद्धार्थनाय , दुश्प्रवर्ति उन्मुलाय , आत्मा कल्याणाय उज्वल भविष्य कामना पूर्तये अमुक कामना सिद्धर्थम धनधान्य समृद्धतम पुत्रपुत्रादि प्राप्तयर्थम श्री ………… प्रीतये पूजनं (अन्य कर्म) करिष्ये। तदड़्गत्वेन गणपत्यादि देवानां पूजनञ्च करिष्ये।


देव पूजन
                     आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव। यावत्पूजां करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव |


गणेश ध्यान – ॐ गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
गणेश आवाहन – ॐ गणानां त्वा गणपति (गूं) हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति (गूं) हवामहे निधिनां त्वा निधिपति (गूं) हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमा त्वम जासि गर्भधम्।  

गौरी ध्यान – नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्॥
गौरी आवाहन  – ॐ अम्बे अम्बिके अम्बालिके नमानयति कश्चन। ससत्स्यकश्चकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीं ।।

ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य वृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञँ गुं  समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयंतामो३म्प्रतिष्ठ।।

ॐ …. आवाहनार्थे अक्षतान समर्पयामि, प्रतिष्ठापयामि | …..सुप्रतिष्ठते वरदे भवेताम् |

१- आवाहनम्  –  ॐ सहस्रशीर्षा पुरुषः, सहस्राक्षः सहस्रपात्। स भूमि œ सर्वतस्पृत्वा, अत्यतिष्ठद्दशांगुलम्॥
२- आसनम् ॐ पुरुषऽ एवेद œ सर्वं, यदभूतं यच्च भाव्यम्।  उतामृतत्वस्येशानो, यदन्नेनातिरोहति॥
३- पाद्यम् – ॐ एतावानस्य महिमातो, ज्यायाँश्च पूरुषः।  पादोऽस्य विश्वाभूतानि, त्रिपादस्यामृतं दिवि॥
४- अर्घ्यम्- ॐ त्रिपादूर्ध्व ऽ उदैत्पुरुषः, पादोऽस्येहाभवत्पुनः। ततो विष्वङ्व्यक्रामत्, साशनानशने अभि॥
५- आचमनम्ॐ ततो विराडजायत, विराजो अधिपूरुषः।  स जातो अत्यरिच्यत, पश्चाद् भूमिमथो पुरः॥
6 – स्नान तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम् । पशूँस्ताँश्चक्रे वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च ये ।।6।।  

शुद्धोदकस्नान-

ॐ शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो मणिवालस्तऽआश्विनाः श्येतः श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णायामा अवलिप्तारौद्रा नभोरूपाः पार्जन्याः।।
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धुकावेरि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, शुद्धोकस्नानं समर्पयामि।

दुग्धस्नान-
ॐ पय: पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः पयस्वतीः। प्रदिशः सन्तु मह्यम्।।
कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परम्। पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्।।

दधिस्नान ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः। सुरभि नो मुखाकरत्प्रण आयू ँ षि तारिषत्।।
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्। दध्यानीतं मया देव! स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।

घृत स्नान –ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम। अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम्।। नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम्। घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।

मधुस्नान – ॐ मधुव्वाताऽऋतायते मधुक्षरन्ति सिन्धवः।  माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः || मधुनक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ँ रजः।
मधुद्यौरस्तु नः पिता || मधुमान्नो व्वनस्पतिर्म्मधुमाँऽ अस्तु सूर्यः माध्वीर्गावो भवन्तु नः।।
पुष्परेणुसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु। तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।

शर्करास्नान – ॐ अपा ँ रसमुद्वयस Ü सूर्ये सन्त ँ समाहितम्। अपा रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्।।

इक्षुरससमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम्। मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।

पञ्चामृतस्नान – ॐ पञ्चनद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सश्रोतसः। सरस्वती तु पञ्चधा सोदेशेऽभवत्सरित्।।
पञ्चामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु। शर्करया समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।।

शुद्धोदकस्नान- ॐ शुद्धवालः सर्वशुद्धवालो मणिवालस्तऽआश्विनाः श्येतः श्येताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय पशुपतये कर्णायामा अवलिप्तारौद्रा नभोरूपाः पार्जन्याः।।

स्नानम् – ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः, सम्भृतं पृषदाज्यम्।  पशूँस्ताँश्चक्रे वायव्यान्, आरण्या ग्राम्याश्च ये।

वस्त्र- ॐ युवा सुवासाः परिवीत आगात् स उ श्रेयान् भवति जायमानः। तं धीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यो3 मनसा देवयन्तः।। शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्। देहालङ्करणं वस्त्रामतः शान्तिं प्रयच्छ मे।।
वस्त्रम्ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतऽ, ऋचः सामानि जज्ञिरे।  छन्दा œ सि जज्ञिरे तस्माद्, यजुस्तस्मादजायत॥

उपवस्त्र- ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्म वरूथमाऽसदत्स्वः। वासो अग्ने विश्वरूप ँ सं व्ययस्व विभावसो।।
यस्याभावेन शास्त्रोक्तं कर्म किञ्चिन्न सिध्यति। उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मापकारकम्।।


यज्ञोपवीत ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रां प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।। यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा यज्ञोपवीततेनोपनह्यामि। नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं देवतामयम्। उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वर !।

चन्दनॐ त्वां गन्धर्वा अखनँस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः। त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत।।
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गंधाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठ ! चन्दनं प्रतिगृह्यताम्।।

हरिद्रा चूर्ण – हरिद्रारन्जिते देव सुखसौभाग्य दायिनि | तस्मात् त्वां पूजया म्यत्र सुखं शान्ति प्रयच्छ मे ||
कुंकुम- कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कामिनी काम सम्भवम् | कुकुमेनार्चिता देव कुङ्कुमं प्रतिग्र ह्यताम् ||

अक्षत – ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत। अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजान्विन्द्र ते हरी।।

सोभाग्य सूत्रं  – सौभाग्य सूत्रं वरदे सुवर्णमणि संयुतम् | कण्ठे बद्धनामि देवेशि सौभाग्यं देहि मे सदा ||
आभूषण –   हार कङ्कन केयूर मेखला कुण्डलाभिः | रत्त्नाढयं हीरकोपेतं भूषणं प्रतिग्रहय्ताम् ||
आभूषण-ॐ वज्रमाणिक्यवैदूर्यमुक्ताविदु्रममण्डितम्। पुष्पराग समायुक्तं भूषणं प्रतिगृह्यताम्।। आभूषणं समर्पयामि।
सौभाग्य पेटिका – हरिद्रां कुङ्कुमं चैव सिन्दुरादिस मन्विताम् | सौभाग्य पेतिकामेतां ग्रहान परमेश्वरि |

पुष्पमाला ॐ ओषधीः प्रति मोदध्वं पुष्पवतीः प्रसूवरीः। अश्वा इव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्णवः।।
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो। मयाहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।।

तुलसी  पत्र –
तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे । नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ||

दूर्वा – ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि। एवा नो दूर्वे प्रतनुसहश्रेण शतेन च।। 

बिल्वपत्र – त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रयायुधम् । त्रिजन्मपाप-संहारमेकबिल्वं शिवार्पणम्।।
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥

शमी पत्र – अमंगलानां च शमनीं शमनीं दुष्कृतस्य च। दु:स्वप्रनाशिनीं धन्यां प्रपद्येहं शमीं शुभाम्।।
भांग मंत्र – नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च|
विजया-ॐ विज्यं धनुः कपर्दिनो विशल्यो वाणवाँऽ2 उत। अनेशन्नस्य याऽ इषवऽ आभुरस्य निषं गधिः।। विजयां समर्पयामि।
धतूरा मंत्र – ॐ साम्ब शिवाय नमः धतूरा फल समर्पयामि |
भस्म-3म् त्र्यायुषं जमदग्नेः कश्यपस्य त्र्यायुषम्। यद् देवेषु त्र्यायुषं तन्नो अस्तु त्र्यायुषम्॥ यजुर्वेद 3.62

सिन्दूर- ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वातप्रमियः पतयन्ति यह्वाः। घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः।।

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्। शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।।

अबीर गुलाल आदि नाना परिमल द्रव्य- ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः। हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा ँ सं परि पातु विश्वतः।।  अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम्। नाना परिमलं द्रव्यं गृहाण परमेश्वर!।।

सुगन्धिद्रव्यॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः। हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा ँ सं परि पातु विश्वतः।। दिव्यगन्धसमायुक्तं महापरिमलाद्भुतम्। गन्धद्रव्यमिदं भक्त्या दत्तं वै परिगृह्यताम्।।

धूप- ॐ धूरसि धूर्व्व धूर्व्वन्तं धूर्व्वतं योऽस्मान् धूर्व्वति तं धूर्व्वयं वयं धूर्व्वामः। देवानामसि वद्दितम ँ सस्नितमं पप्रितमं जुष्टतमं देवहूतमम्।। or वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यो गन्ध उत्तमः। आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।

दीप- ॐ अग्निर्ज्योतिज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा। अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्च स्वाहा।।ज्योर्ति सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा।।  भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने। त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते।।
भोजन मंत्र
ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्। ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्म समाधिना।।
ॐ नाभ्या आसीदन्तरिक्ष शीष्णो द्योः समवर्तत । पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन् ।।
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च। आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ समानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा। ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नैवेद्यं निवेदयामि। नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।    || ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

 करोद्वर्तन- ॐ अ शुना ते अशुः पृच्यतां परुषा परुः। गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो अच्युतः।।
चन्दनं मलयोद्भुतं कस्तूर्यादिसमन्वितम्। करोद्वर्तनकं देव गृहाण परमेश्वर।।

ऋतुफलॐ याः फलिनीर्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ँ हसः।।
इदं फलं मया देव स्थापितं पुरतस्तव। तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि।।

ताम्बूल – ॐ यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत। वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः।।
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्। एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।।

(इलायची, लौंग-सुपारी के साथ ताम्बूल अर्पित करे।)

दक्षिणाॐ हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत्। स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम।।
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः। अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे।।

आरती- ॐ इद ँ हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीर ँ सर्वगण ँ स्वस्तये। आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि। अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं पयो रेतो अस्मासु धत्त।।ॐ आ रात्रि पार्थिव ँ रजः पितुरप्रायि धामभिः। दिवः सदा ँ सि बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः।।कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम्। आरार्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव।।

देवा लम्बोदर गिरिजा नन्दना, देवा सिद्ध करो सब कामना, || देवा लम्बोदर गिरजा नन्दना,

हे मनभावन , अतिसुख पावन, गौरी के तुम नन्दना || देवा लम्बोदर गिरजा नन्दना,

हे सुख करता, हे दुःख हरता, विघ्न विनाशन गजानन ||  देवा लम्बोदर गिरजा नन्दना

रुणंझुन-रुणंझुन पैंजनी बाजत चलत मस्त मुचुकुन्दना ||  देवा लम्बोदर गिरजा नन्दना

गौरी के तुम पुत्र गजानन , शिवजी के तुम नन्दना || देवा लम्बोदर गिरजा नन्दना

जो प्रभु तुमरी आरती गावे, मिटै विघ्न कटै फन्दना || देवा लम्बोदर गिरजा नन्दना

(कर्पूर की आरती करें, आरती के बाद जल गिरा दें। शंख में  जल भगवान पर घुमाकर अपने तथा भक्तो पर डालें)

मन्त्र पुष्पांजलिॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्रा पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोद्भवानि च। पुष्पाञ्जलिर्मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।।

प्रदक्षिणा ॐ ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः। तेषा ँ सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि। यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।। (प्रदक्षिणा करे।)

विशेष अर्घ्य – रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षकं। भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्॥ द्वैमातुर कृपासिन्धो! षाष्मातुराग्रज प्रभो। वरद त्वं वर देहि वांछितं वांत्रिछतार्थद।। अनेन सफलार्ध्येण फलदांऽस्तु सदामम।।

प्रार्थना।। विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय।नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।लम्बोदर नमस्तुभ्यं सततं मोदकप्रिय। निर्विविघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।अनया पूजया सिद्धि-बुद्धि-सहितः श्रीमहागणपतिः साङ्गः परिवारः प्रीयताम्।। श्रीविघ्नराज प्रसादात्कर्तव्यामुक कर्मनिर्विघ्न समाप्तिश्चास्तु।

 कलश पूजनम्:
इसके बाद कलश रखने वाले स्थान पर सप्तधान बिछाते हुए ‘ कलश में सप्तधान्य छोड़ दें कलश पूजनम् – स्थापना मंत्र व पूजन विधि सहित / सर्व-प्रथम कलश में रोली से स्वस्तिक चिह्न (सतिया) बनाकर एवं उसके गले मे मौली लपेटकर पूजक को अपनी वायी और अवीर-गुलाल से अष्टदल -कमल बनाकर उस पर सप्तधान्य या चावल अथवा गेहूं रखकर उसके ऊपर कलश को स्थापित कर निम्न विधान से पूजन करना चाहिए।                           

भूमि का स्पर्श: – ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री । पृथिवीं यच्छ पृथिवींदृ र्ठ ह पृथिवीं माहि र्ठ सीः ॥१॥ ॐ मही द्यौः पृथिवी च नऽइमँ य्यज्ज्ञम्मि मिक्क्षताम् । पिपृतान्नो भरीमभिः । विश्वाधाराऽसि धरणी सेषनागोपरि स्थिता । उद्धृतासि वराहेण कृष्णेन शतबाहुना ।। ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी यच्छा नः शर्म सप्रथाः      (भूमि का स्पर्श ।)

धान्यप्रक्षेप :–  ॐ ओषधयः समवदन्त सोमेन सह राज्ज्ञा । यस्म्मै कृणोति ब्राह्मणस्त गुंग राजन्न्पा रयामसि ।  (पृथ्वी पर सप्तधान्य रखे ।)
कलशं स्थापयेत् :– ॐ आजिग्घ्र कलशं महय्या त्त्वा विशन्त्विन्दवः । पुनरूर्ज्जा निवर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्क्ष्वा रुधारा पयस्वती पुनर्म्मा विशताद्रयिः ।   (सप्तधान्य पर कलश का स्थापन कर ।)

कलशे जलपूरणम् :– ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि व्वरुणस्य स्कम्भसर्ज्जनीस्त्थो वरुणस्य ऽऋतसदन्यसि वरुणस्य ऽऋतसदनमसि वरुणस्यऽऋतसदनमासीद।  (कलश में जल डाल दें।
गन्धप्रक्षेप :– ॐ त्वांगन्धर्वाऽअखनं स्वामिन्द्रस्त्वां वृहस्पतिः । त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान्यक्क्ष्मा दमुच्च्यत   (कलश में चन्दन या रोली छोड़ें।

धान्यप्रक्षेप :– ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान्प्राणा यत्त्वो दानाय त्त्वा व्यानाय त्त्वा । दीर्घामनु प्रसिति मायुषेधान्देवोवः सविता हिरण्यपाणिः प्रतिगृब्भ्णात्त्व च्छिद्रेण पाणिना चक्क्षुषेत्त्वा महीनां पयोऽसि । (कलश में सप्तधान्य छोड़ दें ।)

सर्वोषधीप्रक्षेप :– ॐ या ऽओषधीः पूर्वा जातादेवेभ्य स्त्रियुगम्पुरा । मनैनुबभ्रूणामह गुंग शतंधामानिसप्त च ।। (कलश में सर्वोपधि डालें ।)

दूर्वाप्रक्षेप :– ॐ काण्डात्काण्डा त्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्प्परि । एवानो दूर्व्वे प्रतनु सहस्रेण शतेन च ।   (कलश में दूर्वा छोड़ें ।)

पञ्चपल्लवप्रक्षेप :– ॐ अश्वत्थेवो निषदनम्पर्णेवोव्व सतिष्कृता । गोभाजऽइत्किला सथयत्त्सनवथ पूरुषम् ।।  (कलश में पञ्चपल्लव अथवा आम का पत्ता रखें।)

सप्तमृदाप्रक्षेपः :– ॐ स्योना पृथिवि नो भवानृक्षरा निवेशनी यच्छा नः शर्म सप्रथाः    (कलश में सप्तमृत्तिका या मिट्टी छोड़ें ।)

फलप्रक्षेप :– ॐ याः फलिनीर्य्या ऽअफला ऽअपुष्पायाश्च पुष्पिणीः । वृहस्पति प्रसूतास्ता नोमुञ्चन्त्व गुंग हसः ॥   (कलश में सुपारी छोड़ें ।)

पञ्चरत्नप्रक्षेप :– ॐ परिवाजपतिः कविरग्निर्हव्यान्त्य क्रमीत् । दध द्रत्ना निदाशुषे ।  (कलश में पञ्चरत्न डालें ।)

हिरण्यप्रक्षेप :– ॐ हिरण्यगर्भः समवर्त्तताग्रे भूतस्यजातः पतिरेक ऽआसीत् । सदाधार पृथिवीन्द्यामुतेमाङ्कस्म्मै देवाय हविषा विधेम ।। हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः । अनन्त पुण्यफलदं कलशे प्रक्षि पाम्यहम् ॥ (कलश में दक्षिणा छोड़ें ।)

रक्तसूत्रेण वस्त्रेण वा कलशं वेष्टयेत् :  ॐ सुजातो ज्योतिषा सह शर्मव्वरूथ मासदत्तस्वः । व्वासोऽ अग्नेविश्वरूप गुंग संव्ययस्व विभावसो । (कलश में लालवस्त्र अथवा मौली लपेट दें।

कलशस्योपरि पूर्णपात्रं न्यसेत् :– ॐ पूर्णादवि परापत सुपूर्णा पुनरापत । व्वस्नेव विक्क्रीणा वहाऽइषमूर्ज गुंग शतक्क्रतो ।।  (कलश पर पूर्णपात्र रखें ।)

पूर्णपात्रोपरि श्रीफलं नारिकेलं वा न्यसेत् :– ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्याक्तम् । इष्ण्ण निषाणां मुन्मइषाण सर्वलोकं म इषाण ।  (पूर्णपात्र पर नारियल रखें ।)

वरुणमावाहयेत् :– ॐ तत्त्वा यामि व्रह्मणा वन्दमान स्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः । अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश गुंग स मा नऽ आयुः प्रमोषीः ।।       अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्ति कमावाह यामि स्थापयामि । ॐ अपांपतये वरुणाय नमः । इति पञ्चोपचारैर्वरुणं सम्पूज्य ।    

कलशस्थितदेवानां नदीनाम् तीर्थानाम् च आवाहनम् :–
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः । मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा । ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो थर्वणः॥
अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः।  अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा॥
आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारकाः। गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु॥  सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः।  आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारकाः॥
अक्षतान् गृहीत्वा प्राणप्रतिष्ठां कुर्यात् :– ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्ज्यस्य वृहस्प्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं य्यज्ञ गुंग समिमं दधातु । विश्वेदेवा सऽइहमादयन्तामो ॐ प्रतिप्ठ्ठ ।। कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः सुप्रतिष्ठिताः वरदाः भवन्तु । ॐ वरुणाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः । विष्णुवाद्यावाहितदेवताभ्यो नमः । (कलश पर चावल छोड़कर स्पर्श करें ।)

कलशस्य चतुर्दिक्षु चतुर्वेदान्पूजयेत् :– पूर्वे — ऋग्वेदाय नमः । दक्षिणे — यजुर्वेदाय नमः । पश्चिमे — सामवेदाय नमः । उत्तरे — अथर्ववेदाय नमः । कलशमध्ये अपाम्पतये वरुणाय नमः । (कलश के चारों तरफ तथा मध्य में चावल छोड़ें ।)

षोडशोपचारैः पूजनम् कुर्यात् : —आसनार्थेऽक्षतान समर्पयामि ।  पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।            हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि । आचमनं समर्पयामि । पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि । शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । स्नानाङ्गाचमनं समर्पयामि । वस्त्रम् समर्पयामि |            यज्ञोपवीतं समर्पयामि । उपवस्त्रं समर्पयामि । गन्धं समर्पयामि । अक्षतान समर्पयामि । पुष्पमालां समर्पयामि । नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।            धूपमाध्रापयामि । दीपं दर्शयामि । हस्तप्रक्षालनम् । नैवेद्यं समर्पयामि । आचमनीयं समर्पयामि । मध्ये पानीयम् उत्तरापोशनं च समर्पयामि । ताम्बूलं समर्पयामि । पूगीफलं समर्पयामि । कृतायाः पूजायाः पाड्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि । मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।  अनया पूजया वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम ।

कलश-प्रार्थना :-  नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्चेतहाराय सुमङ्गलाय ।  सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते ।।५।।

Navgrah Puja   – इस नाम मन्त्रसे पूजन करनेके बाद हाथ जोड़कर निम्नलिखित प्रार्थना करे ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च । गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु ॥

अधिदेवता प्रत्यधि देवता
1 ईश्वर  (सूर्य के दायें भाग में) आवाहन-स्थापन-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे  सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मूक्षीय मामृतात् ॥

प्रत्यधि देवताओं का स्थापन
१-  अग्नि (सूर्य के बायें भाग में) आवाहन-स्थापन   –    ॐ अग्निं दूतं पुरोदधे हव्यवाहमुप ब्रुवे । देवॉं २ आ सादयादिह ॥  
 रक्तमाल्याम्बरधरं रक्तपद्मासनस्थितम् ।  वरदाभयदं देवमग्निमावाहयाम्यहम् ॥      
ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये नमः  अग्निमावाहयामि  स्थापयामि ।
     

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पञ्चलोकपाल आवाहन-पूजनः-

गणेशजी
ॐ गणानां त्वा गणपति ँ हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिँ हवामहे निधीनां त्वा निधिपतिँ हवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ॥  लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजम् । आवाहयाम्यहं देवं गणेशं सिद्धिदायकम् ॥   ॐ भूभुर्वः स्वः गणपते ! इहागच्छ, इहतिष्ठ गणपतये नमः , गणपतिमावाहयामि स्थापयामि ॥

दशदिक्पाल आवाहन-पूजनः-
( पूर्व में) इन्द्र का आवाहन और स्थापनॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र ँ हवे हवे सुहव ँ शूरमिन्द्रम् । ह्रयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्र ँ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः ॥
इन्द्रं सुरपतिश्रेष्ठं वज्रहस्तं महाबलम् । आवाहये यज्ञसिद्ध्यै शतयज्ञाधिपं प्रभुम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्र ! इहागच्छ इह तिष्ठ इन्द्राय नमः इन्द्रमावाहयामि, स्थापयामि ।

इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नमः । पुन: इसके बाद अनया पूजया इन्द्रादिदशदिक्पालाः प्रीयन्ताम् ऐसा उच्चारण कर अक्षत दश दिक्पाल मण्डल पर छोड़ दे ।



वास्तोष्पतिम् — (गुरुत्तरे) वासतोष्पति का आवाहन और स्थापन  – ॐ वासतोष्पते प्रतिजानीह्यस्मान्त्स्वावेशो अनमीवो भवा नः । यत् त्वेमहे प्रति तन्नो जुषस्व  शं नो भव द्विपदे शं चतुष्पदे ॥  ऋ० ७.५४.१ 
नागपृष्ठं समारूढं, शूलहस्तं महाबलम् । पातालनायकम् देवं, वास्तुदेवं नमाम्यहम्॥
  ॐ भूभुर्वः स्वः वासतोष्पते  ! इहागच्छ   इहतिष्ठ वासतोष्पतये नमः  वासतोष्पतिमावाहयामि स्थापयामि ॥
   

क्षेत्राधिपतिम् — (गुरोरुत्तरे)  – ॐ क्षेत्रपालादिभ्यो नमः
ॐ नहि स्पशमविदन्नन्यमस्माद्वैश्वानरात्पुर एतारमग्नेः । एमेनमवृधन्नमृता अमर्त्यं वैश्वानरं क्षैत्रजित्याय देवाः॥
  भूतप्रेतपिशाचाद्यैरावृतं शूलपाणिनम् । आवाहये क्षेत्रपालं कर्मण्यस्मिन् सुखाय नः ॥  
 
क्षेत्रपालात्रमस्यामि सर्वारिष्टनिवारकान्।  अस्य यागस्य सिद्धयर्थं पूजयाराधितान् मया॥

ॐ भूर्भुवः स्वः क्षेत्राधिपते । इहागच्छ  इह तिष्ठ क्षेत्राधिपतये नमः  क्षेत्राधिपतिमावाहयामि  स्थापयामि ।  


षोडषमातृका पूजन –

प्राणप्रतिष्ठा — ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्ज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्ट्टं यज्ञ गुंग समिमं दधातु । विश्वे देवास ऽइह मादयन्तामों ३। प्रतिष्ठठ । ॐ भूर्भुवः स्वः गणपतिसहिताः श्रीगौर्यादिषोडशमातरः वरदा भवत ।

नारिकेलादिफलं समर्पयेत  – श्रीसूक्तेन षोडशोपचारैः सम्पूज्य, प्रार्थयेत् — आयुरारोग्यमैश्वर्यं ददध्वं मातरो मम । निर्विघ्नं सर्वकार्येषु कुरुध्वं सगणाधिपाः ।।

पुष्पाञ्जलिः – गौरी पद्मा शची मेधा सावित्री विजया जया । देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातरः ।।
धृतिः पुष्टिस्तथा तुष्टिः आत्मनः कुलदेवताः । गणेशेनाधिका ह्येता वृद्धौ पूज्यास्तु षोडश ।। ॐ षोडशमातृकाभ्यो नमः।
अनया पूजया गणेशसहित-गौर्यादिषोडशमातरः प्रीयन्तां न मम ।

सप्त घृत मातृका:-अग्नि कोण मैं ( पूर्व – दक्षिण कोना ) षोडश मातृका ; सप्त मातृका , घृत – मातृका तथा १ कलश की स्थापना

श्रीलक्ष्मार्धृतिमेधा स्वाहा प्रजा सरस्वती माङ्गल्येषु प्रपूज्यन्ते सप्तैता घृतमातर:॥
1- श्री , 2- लक्ष्मी , 3- धृति, 4- मेधा, 5- स्वाहा, 6- प्रज्ञा , 7- सरस्वती

सप्त घृत मातृका स्तुति:-
सौभाग्यदात्री कमलासनस्था तथा जगद्धात्री सदैव मेधा। पुष्टिश्च श्रदाखिल लोकपूज्या सरस्वती मे वितनोतु लक्ष्मी।
ॐ भूर्भुव स्व ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामिः श्रीयादि सप्तघृतमातृकाभ्यो नमः

प्राण स्थिर मंत्र-ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च। अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन॥ श्रीयादि सप्तघृत मातृके सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्‌ ।
सप्तघृत मातृका मंत्र (सभी वस्तुओ से पूजन करें पूजन मंत्र) – ॐ भूर्भुवः स्वः श्रियादि सप्तघृतमातृभ्यो नमः ।

हाथ मैं अक्षत लेकर प्रार्थना करें प्रार्थना  ॐ यदङ्गत्वेन भो देव्यः पूजिता विधिमार्गतः। कुर्वन्तु कार्यमखिलं निर्विघ्नेन क्रतूद्भवम्॥ अनया पूजया वर्सो धारा देवता प्रीयन्ताम न मम | ऐसा उच्चारण कर मण्डलपर अक्षत छोड़ दे |

घृत धारी मंत्र–वसोर्धारा मंत्र :–
वसो: पवित्र शतधारं वसो: पवित्रमसि सहस्त्र धारण्। देवस्त्वा सविता पुनातु वसो: पवित्रेण शतधारेण सुप्वा: काम धुक्ष्व:॥  विभक्त धाराओं के मध्य में गुड़ द्वारा (फलादि से ग्रहण करके) एकीकरण – ॐ कामधुक्षः  

पूजक अंजलि मैं पुष्प ग्रहण करे तथा ब्राह्मण आयुष मंत्र पड़ें
आयुष्य मन्त्र पाठ–
ॐ आयुष्यं व्वर्चस्य रायस्पोषमौद्भिदम् । इद हिरण्य व्वर्च्चस्व ज्जैत्रायाविशता द्रुमाम् ॥ ॐ न तद्द्रक्षा  सि न पिशाचास्तरन्न्ति देवानामोजः प्रथमज ह्येतत् । यो विभर्त्ति दाक्षायणः हिरण्ण्य स देवेषु कृणुते दीर्घमायुः स मनुष्येषु कृणुते दीर्घमायुः॥

ॐ यदा बध्नन्‌ दाक्षायणा हिरण्यं शतानीकाय सुमनस्यमाना: तन्मऽआबघ्नामि शत शारदायायुष्माञ्जरदृष्टिर्यथासम्‌ ॥
ॐ यदायुष्यं चिरं देवाः सप्तकल्पान्तजीविषु । ददुस्तेनायुषा युक्ता जीवेम शरदः शतम् ॥ दीर्घा नागा नगा नद्योऽनन्ताः सप्तार्णवा दिशः । अनन्तेनायुषा तेन जीवेम शरदः शतम् ॥ सत्यानि पश्चभूतानि विनाशरहितानि च । अविनाश्यायुषा तद्वज्जीवेम शरदः शतम् ॥

सप्त घृत मातृका ध्यान :-
सप्तहुं विन्दु पे सप्तहुं मातर श्री लक्ष्मी धृति मेधा माँ आओ। स्वाहा सुप्रभा सरस्वती मातु हमें भव सिंधु से पार लगाओ।।
हे वसुधारा सदा वसुधा तल पे करुणामयि धार बहाओ । पूजा में आय सनाथ करो माँ भक्त के माथे माँ हाथ लगाओ ।।

चतुःषष्टियोगिनी आवाहन पूजनः

उक्त चौंसठ योगिनियों के नाममन्त्रों से आवाहन करने के बाद पुनःपुष्पाक्षत लेकर—
आवाहयाम्यहं देवीर्योगिनीः परमेश्वरीः । योगाभ्यासेन संतुष्टाः परं ध्यानसमन्विताः ।।

दिव्यकुण्डलसंकाशादिव्यज्वालास्त्रिलोचनाः । मूर्तिमतीर्ह्यमूर्त्ताश्च उग्राश्चैवोग्ररुपिणीः ।।

अनेकभावसंयुक्ताः संसारार्णवतारिणीः। यज्ञे कुर्वन्तु निर्विघ्नं श्रेयो यच्छन्तु मातरः ।।

ॐ चतुःषष्टियोगिनीभ्यो नमः, युष्मान् अहम् आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च बोलते हुए छोड़ दे और पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करे
 ॐ चतुःषष्टियोगिनीभ्यो नमः कहते हुए  

पूजन के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करे यज्ञे कुर्वन्तु विर्विघ्नं श्रेयो यच्छन्तु मातरः
पुनः अक्षत लेकर— अनया पूजया ॐ चतुःषष्टियोगिन्यः प्रीयन्ताम् न ममकहकर छोड़दे ।

SERV DEV AAVAHAN

माँ गायत्री मंत्र – ॐ आयातु वरदे देवि, त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनी। गायत्रिच्छन्दसां मातः, ब्रह्मयोने नमोऽस्तुते।। ॐ श्री गायत्र्यै नमः।   आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि, ततो नमस्कारं करोमि।

ॐ स्तुता मया वरदा वेदमाता, प्रचोदयन्तां पावमानी द्विजानाम्।
आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसम्। मह्यं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्। -अथर्व० १९.७१.१


गणेश अभीप्सितार्थ सिद्धîर्थं पूजितो यः सुराऽसुरैः ।  सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ।।
गौरी –   सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ! । शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि ! नमोऽस्तु ते ।।
हरि    शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।  प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ।।
           सर्वदा
सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम् । येषां हृदिस्थो भगवान् मङ्गलायतनो हरिः ।।
सीताराम – रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥
 नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम। पाणौ महासायकचारूचापं, नमामि रामं रघुवंशनाथम॥

हनुमान स्तुति – मनोजवं मारुततुल्यवेगं, जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं, श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं , दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं , रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीय विग्रहम्। पारिजाततरूमूल वासिनं भावयामि पवमाननंदनम्।
यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृत मस्तकाञ्जिंलम। वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं राक्षसान्तकाम्।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत-पिशाच ब्रह्म राक्षस शाकिनी डाकिनी यक्षिणी पूतना मारीमहामारी राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकान् क्षणेन हन हन,भंजय भंजय मारय मारय फट् स्वाहा |

ॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुख हनुमते करालवदनाय नरसिंहाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा। 

ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।
ॐ हनुमते नमः ॐ राम दूताय नमः | ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा | ॐ ऐ ह्रीं हनुमते श्री राम दूताय स्वाहा |

 श्रीकृष्ण –  वसुदेवसुतं देवं,   कंसचाणूरमर्दनम्।  देवकी परमानन्दंकृष्णं वन्दे जगद्गुरुम।
       
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने । प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः ||

श्रीं श्याम मंत्र –   श्याम देवाय बर्बरीकाय हरये परमात्मने प्रणतः क्लेशनाशाय सुह्र्दयाय नमो नमः।।
             ॐ मोर्वी नन्दनाय विद् महे श्याम देवाय धीमहि तन्नो बर्बरीक प्रचोदयात्।

सप्तदेव विनायकं गुरुं भानुं, ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान्। सरस्वतीं प्रणौम्यादौ, शान्तिकार्यार्थसिद्धये॥
पुण्डरीकाक्ष- मङ्गलं भगवान् विष्णुः,   मङ्गलं गरुडध्वजः। मङ्गलं पुण्डरीकाक्षो, मङ्गलायतनो हरिः॥
ब्रह्मा – त्वं वै चतुर्मुखो ब्रह्मा, सत्यलोकपितामहः। आगच्छ मण्डले चास्मिन्, मम सर्वार्थसिद्धये॥
ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेन आवः । स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्चः योनिमसतश्च विवः ॥ हंसपृष्ठसमारूढं देवतागणपूजितम् । आवाहयाम्यहं  देवं ब्रह्माणं कमलासनम् ॥      
श्री ब्रम्हाजी – ॐ नमस्ते परमं ब्रह्मा, नमस्ते परमात्ने । निर्गुणाय नमस्तुभ्यं, सदुयाय नमो नम:।।

विष्णु  शान्ताकारं भुजगशयनं, पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं, मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
      लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं, योगिभिर्ध्यानगम्यं, वन्दे विष्णुं भवभयहरं, सर्वलोकैकनाथम्॥
कस्तूरीतिलकं ललाटपटले वक्षःस्थले कौस्तुभं। नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणुः करे कङ्कणं॥
सर्वांगे हरिचन्दनं सुललितं कण्ठे मुक्तावली। गोपस्त्रीपरिवेष्टितो विजयते गोपालचूडामणिः॥ 
     ॐ विष्णो रराटमसि विष्णोः, श्नप्त्रे स्थो विष्णोः, स्यूरसि विष्णोर्ध्रुवोऽसि, वैष्णवमसि विष्णवे त्वा॥  

शिव–      वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं, वन्दे जगत्कारणम्, वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं, वन्दे पशूनाम्पतिम्।
       वन्दे सूर्यशशाङ्कवह्निनयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम् , वन्दे भक्तजनाश्रयं वरदं, वन्दे शिवं शङ्करम्॥

        ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शङ्कराय च मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च ||
पूजन –     ॐ त्र्यक्षरं त्रिगुणाधारं सर्वाक्षरमयं शुभम् त्र्यणवं प्रणवं हंसं स्रष्टारं परमेश्वरम्
          अनादिनिधनं देवमप्रमेयं सनातनम् परं परतरं बीजं निर्मल निष्कलं शुभम्


महामृत्युंजय मंत्र- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥
श्री कार्तिकेय – शारवानाभावाया नम:, ज्ञानशक्तिधरा स्कंदा , वल्लीईकल्याणा सुंदरा।  देवसेना मन: कांताकार्तिकेया नामोस्तुते
अशोक सुंदरी – ॐ जयन्ती मङ्गलमय्या अशोक सुन्दरी देवी । त्रिपुराम्बिका रूपिणी त्रिलोकी जननी ।।  

ॐकार ॐकार बिंदु संयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिनः। कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः॥
पंचॐकार  ब्रह्मदेवि गायत्री तथा गोवेर्धनेश्वेरः | प्रथ्वी यज्ञ पतिश्चैतान् पन्चोन्कार नमाम्यहं ||

दुर्गा-   दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
                 दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥
                जयंती मंगला कालीभद्रकाली कपालिनी    दुर्गा क्षमा शिवा धात्रीस्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।।

सरस्वती-      शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमां, आद्यां जगद्व्यापिनीं, वीणापुस्तकधारिणीमभयदां, जाड्यान्धकारापहाम्।
                       हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं, पद्मासने संस्थिताम्, वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं, बुद्धिप्रदां शारदाम्॥
             सरस्वति नमस्तुभ्यंवरदे कामरूपिणि। विद्यारम्भं करिष्यामिसिद्धिर्भवतु मे सदा ।।

लक्ष्मीआर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, सुवर्णां हेममालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो मऽआवह॥
ॐ श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्या वहो रात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौभ्यात्तम् | इष्णं निखाणा मुम्मऽइखाण सर्भलोकं मऽइखाण  || (-यजुर्वेद 22.22)
 ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो,  धन धान्यः सुतान्वितः । मनुष्यो मत्प्रसादेन, भविष्यति न संशयःॐ ।

अष्टलक्ष्मी कुबेर मंत्र –   ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः॥

कालभैरव जी –     ह्रीं वां बटुकायेक्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये, कुरु कुरु बटुकायेह्रीं बटुकाये स्वाहा।

कालीकालिकां तु कलातीतां, कल्याणहृदयां शिवाम्। कल्याणजननीं नित्यं, कल्याणीं पूजयाम्यहम्॥
         काली महाकाली कालिके परमेश्वरी सर्वानन्दकरी देवी नारायणि नमोऽस्तुते ॐ क्रीं काल्यै नमः |

गङ्गा- विष्णुपादाब्जसम्भूते, गङ्गे त्रिपथगामिनि। धर्मद्रवेति विख्याते, पापं मे हर जाह्नवि॥

तीर्थ- पुष्करादीनि तीर्थानि, गङ्गाद्याः सरितस्तथा। आगच्छन्तु पवित्राणि, पूजाकाले सदा मम॥

पंचकन्या मंत्र:  अहल्या द्रौपदी कुंती तारा मंदोदरी तथा। पंचकन्याः स्मरेन्नित्यं महापातकनाशिनीः ॥

सर्पे ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च प्रथिवी मनु । ये अंतिरिक्षे ये दिवि तेभ्यो: सर्पेभ्यो नमः ।।

पितृ मंत्र  पितृभ्य:स्वधायिभ्यस्वधा नम: पितामहेभ्य: स्वधायिभ्यस्वधा नम: प्रपितामहेभ्य: स्वधायिभ्यं: स्वधा नम:      अक्षन्पितरोऽमीमदन्त पितरोऽतीतृप्यन्त पितर: पितर:शुन्धध्वम् ॥
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।
ॐ पितृ गणाय विद्महे जगतधारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात्।

नरसिंह उपासना मंत्र:
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्॥  
ॐ नमो भगवते तुभ्यं पुरुषाय महात्मने हरिंऽद्भुत सिंहाय ब्रह्मणे परमात्मने।  
ॐ नृसिंहाय विद्महे, वज्रनखाय धीमहि। तन्नो सिंह प्रचोदयात्॥  
ॐ क्ष्रौं नरसिंहाय नमः

आवाहन-स्थापन उपरांत – ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य वृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञँ्समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयंतामो३म्प्रतिष्ठ।। – इस मन्त्र से प्रतिष्ठाकर  

सर्वदेव नमस्कार – नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:।।


भागवत पूजन

सप्त चिरंजीवी मंत्र:

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः। कृपः परशुरामश्चैव सप्तैते चिरंजीविनः॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद् वर्षशतं सोऽपि सर्वव्याधिविवर्जितः॥ 

ॐ नर नारायणाभ्यां नमः
ॐ यो मायया विरचितं निजमात्मनीदम् | खे रूपभेदमिव तत्  प्रतिचक्षणाय ||
ॐ नर नारायण: विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो नर नारायण: प्रचोदयात ||

वायु देवता पूजन

ॐ अन्तः प्रविश्य भूतानि यो विभर्त्यात्म केतुभिः | अन्तर्यामीश्वरः साक्षात् पातु नो यद्वशे स्फ़ुटम् ||

शेष सनत कुमार पूजन – ॐ शेषः सनत्कुमारश्च  सान्ख्यायन पराशरौ | ब्रहस्पतिश्च मैत्रैय उद्धवश्चात्र कर्मणि ||

प्रत्युह व्रन्दं सततं हरन्तां पूजिता मया | अनया पूजया इमे देवाः प्रीयन्तां न मम ||

पौराणिक पूजन – ॐ त्रय्यारुणिः कश्यपश्च राम शिष्यो अ क्रत व्रणः | वैशम्पायन हारीत षड्वै पौराणिका इमे ||

एतया पूजया षट् पौराणिकाः प्रीयन्ताम न मम ||

सूर्य पूजन –

ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:। ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ

ॐ सूर्याय नमः | सूर्यमावाहयामि – स्थापयामि – पूजयामि |

दशावतार पूजन – ॐ मत्स्यं कुर्म वराहं च नरसिहं त्रिविक्रमम् | रामं परसु रामं च क्रष्णं च बौद्धं चैव सकल्किनम् ||

गतो अ स्मि शरणं देवं हरि नारायणं शुभम् | प्रणतो अ स्मि जगन्नाथं समे विष्णुः प्रसीदतु ||

लोक पूजन –
ॐ अतलं वितलं चैव नितलं सुतलं तथा | तलातलं रशातलं पातालं पूजयाम्यहम् ||

ॐ जन्लोकस्त पोलोकः सत्यलोको विराजते | भूर्भुवः स्वर्लोको महर्लोक इति स्म्रतः || चतुर्दशलोकान् आवाहयामि स्थापयामि पूजयामि ||

नारद पीठः पूजन – ॐ नमस्तुभ्यं भगवते ज्ञान वैराग्य शालिने | नारदाय सर्वलोकाय पुजिताय सुरर्षये ||

धुन्धकारि पूजन – सात 7 पोर गाठ वाले बाश – लाल डोरा बन्ध कर पूजा करे –

धुन्धकारि यथा वन्शे सप्तग्रन्थि समायुते | उषित्वा क्षिप्रमुक्तो अ भूत्पीत्वा भागवताम्रतम् ||

तथाअहं देव मुत्तः स्यां सप्ताहः श्रवणेन वै | अनुकम्पय मां नाथ प्रसीद परमेश्वर ||  

भागवत पर नारियल पुष्प द्रव्य रखै –
 ॐ श्री मदभगवताख्योअयं प्रत्यक्षः कृष्ण एव हि |  स्वीक्रतोअसि मयानाथ मुक्त्यर्थम् भवसागरे | | 

श्री शुकदेव पूजन –
 यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेत कृत्यं द्वैपायनो विरह कातर आजुहाव। पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु: तं सर्वभूतह्र्दयं  मुनिमानतोस्मि॥  श्री शुकदेवाय आवाहयामि स्थापयामि पूजयामि ||

भागवतं पुस्तक पीठः पूजन श्री मद् भागवतं शास्त्रं विष्णु रूपं यदुच्यते | तदहं सप्रवक्ष्यामि विशेषेण सुरानद्य ||

                धन्यं भागवतं शास्त्रं यस्मिन्भाति जनार्दन | धन्यास्ते वैष्णवा लोके ये शृण्वन्ति कथा मिमाम् ||

तुलसी पूजन –

तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे । नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥ १॥

मनः प्रसादजननि सुखसौभाग्यदायिनि । आधि व्याधि हरे देवि तुलसि त्वां नमाम्यहम् ॥ २॥

सौभाग्यं सन्ततिं देवि धनं धान्यं च सर्वदा । आरोग्यं शोकशमनं कुरु मे माधवप्रिये ॥ ६॥

देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः| नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी। धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्। तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।


कृष्ण जी – लडडू गोपाल पूजन –
सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे! तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नुम:||
कृष्णाय वासुदेवाय देवकी नन्दनाय च । नंदगोपकुमाराय गोविंदाय नमो नमः ॥
शान्ताकारं भुजगशयनं, पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं, मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं, योगिभिर्ध्यानगम्यं, वन्दे विष्णुं भवभयहरं, सर्वलोकैकनाथम्॥

नमो विश्वस्य रूपाय विश्व स्थित्यन्त हेतवे | विश्वेश्वराय विश्वाय गोविन्दाय नमो नमः ||

नमो कमल नेत्राय नमः कमल मालिने | नमः कमल नाभाय कमला पतये नमो नमः ||

प्रसीद परमानन्द प्रसीद परमेश्वर | आधि व्याधि भुजंगेन दष्टं मामुद्धर प्रभो ||

सर्वदेव नमस्कार – नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:।।

श्रीरुद्राष्टकम् –
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं , विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् । निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं , चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥१॥

निराकारमोङ्करमूलं तुरीयं , गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम् । करालं महाकालकालं कृपालं , गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥२॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभिरं , मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम् । स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा , लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥३॥

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं , प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् । मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं , प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥४॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं , अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं । त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं , भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥५॥

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी , सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी । चिदानन्दसंदोह मोहापहारी , प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥६॥

न यावद् उमानाथपादारविन्दं , भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् । न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं , प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥७॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां , नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम् । जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं , प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥८॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये , ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥९॥

इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ।

आरती – वैदिक आरती

हाथ धोकर आचमन करें – नया दीपक बनायें , कपूर दीपक बनायें , थाली फूलों या रंग से  सजाकर दौनो या एक दीपक रखें आरती करें |

ओं एतन्ते देव सावितर्यज्ञं प्राहुबृस्तये बृह्मणे तेन यज्ञमव तेन यज्ञपतिं तेन मामव| – Eshwar ke haath saaf
ऊँ यं ब्रह्म वेदान्त विदो वदन्ति परम् प्रधानम् पुरुषम् तथान्ये विश्वोदगते कारणम्ईश्वरम् वा तस्मै नमो विघ्न विनाशनाय | eswar ki namskar
शुभम करोति कल्याणं, आरोग्यं धन संपदाम्, शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीपं ज्योति नमोस्तुते।। Deepak jalana
ॐ ज्वलमालिन्यै नमः  रत्नेश्वरी नमः | श्री विष्णवै नमः पुराण पुर्षोत्तमाय नमः  !  सर्वोपचार्थे जल गंध अक्षत पुष्पाणिसमर्पयामि,  

आरतिकर्म,हरि: ॐ चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत । · श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत  || अर्थ है: विराट पुरुष के मन से चंद्रमा, आँखों से सूर्य, कानों से वायु और प्राण, तथा मुख से अग्नि प्रकट हुई। 
ॐ इद ँ हविः प्रजननं मे अस्तु दशवीर ँ सर्वगण ँ स्वस्तये। आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि। अग्निः प्रजां बहुलां मे करोत्वन्नं पयो रेतो अस्मासु धत्त।।
ॐ आ रात्रि पार्थिव ँ रजः पितुरप्रायि धामभिः। दिवः सदा ँ सि बृहती वि तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः।। कदलीगर्भसंभूतं कर्पूरं तु प्रदीपितम् । अरार्तिमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव ॥
Bhagwat aarti –
श्री भगवत भगवान की है आरती,………………

यज्ञ आरती-  यज्ञ रूप प्रभो हमारे, भाव उज्ज्वल कीजिए। छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिए॥
वेद की बोलें ऋचाएँ, सत्य को धारण करें। हर्ष में हों मग्न सारे, शोक सागर से तरें॥
अश्वमेधादिक रचाएँ, यज्ञ पर उपकार को। धर्म मर्यादा चलाकर, लाभ दें संसार को॥
नित्य श्रद्धा- भक्ति से, यज्ञादि हम करते रहें। रोग पीड़ित विश्व के संताप सब हरते रहें॥
कामना मिट जाए मन से, पाप अत्याचार की। भावनाएँ शुद्ध होवें, यज्ञ से नर- नारि की॥
लाभकारी हो हवन, हर जीवधारी के लिए। वायु- जल सर्वत्र हों, शुभ गन्ध को धारण किए॥
स्वार्थ भाव मिटे हमारा, प्रेम पथ विस्तार हो। ‘इदं न मम’ का सार्थक, प्रत्येक में व्यवहार हो॥

हाथ जोड़ झुकाये मस्तक, वन्दना हम कर रहे। नाथ करुणारूप करुणा, आपकी सब पर रहे॥
यज्ञ रूप प्रभो हमारे, भाव उज्ज्वल कीजिए। छोड़ देवें छल कपट को, मानसिक बल दीजिए॥

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

जो ध्यावे फल पावे,दुःख बिनसे मन का,
सुख सम्पति घर आवे,कष्ट मिटे तन का ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

मात पिता तुम मेरे,शरण गहूं किसकी,
तुम बिन और न दूजा,आस करूं मैं जिसकी ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम पूरण परमात्मा,तुम अन्तर्यामी,
पारब्रह्म परमेश्वर,तुम सब के स्वामी ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम करुणा के सागर,तुम पालनकर्ता,
मैं सेवक तुम स्वामी,कृपा करो भर्ता॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति
किस विधि मिलूं दयामय,तुमको मैं कुमति ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे,
अपने शरण लगाओ,द्वार पड़ा तेरे ॥॥ ॐ जय जगदीश हरे..॥

विषय-विकार मिटाओ,पाप हरो देवा,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,सन्तन की सेवा ॥ॐ जय जगदीश हरे ||

तन मन धन सब कुछ है तेरा ,
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरो | ॥ॐ जय जगदीश हरे ||

श्याम सुन्दर जी की आरती जो कोई नर गावे ,
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे | ॥ॐ जय जगदीश हरे ||

मथुरा में जन्म लियो है गोकुल है अति प्यारो ,
आरति भई सम्पूर्ण बोलो जयकारो ||  स्वामी जय जगदीश हरे । भक्त जनों के संकट,दास जनों के संकट,क्षण में दूर करे ॥

…………..///??? नटखट बंसी वाले गोकुल के राजा; मेरी अँखियाँ तरस गयी; अब तोह आजा आजा..नटखट बंसी वाले गोकुल के राजा ; मेरी अँखियाँ तरस गयी; अब तोह आजा आजा…
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि|
त्वमेव माता च पिता त्वमेव । त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव । त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव । त्वमेव सर्वम् मम देव देव ॥
सानन्दमानन्दवने वसन्तम आनन्दकन्दं हतपापवृन्दम्।  वाराणसी नाथ मनाथ नाथं श्रीविश्वनाथं शरणं प्रपद्ये॥
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने। त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते।।
() प्रदक्षिणा  —   

चारो ओर घूमकर सभी वेदी पर आरती कर दें |
आरती की थाली जमीन पर रख दें जल छोड़ दें |
द्रव्य छोड़कर सब लोग आरती ले लें |
ये तीर्थानि प्रचरन्ति सृकाहस्ता निषङ्गिणः। तेषा सहस्रयोजनेऽव धन्वानि तन्मसि।|           
यानि
कानि पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।। हे शम्भू!! मेरे द्वारा निषिद्ध कर्म करने से हुई सभी त्रुटियों को क्षमा करें।
हरिओम जलेन आरती शीतल करणम पुष्पीभि: देवाभिः वन्दनम आरोग्यार्थे आत्माभिः वन्दनम स्वचक्छु वन्दनं |
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
यतो यतः समीहसे ततो नोऽअभयं कुरू। शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुब्भ्यः।। सुशान्तिर्भवतु।।
ऊँ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु नः।।
स्वस्ति पन्थामनु चरेम सूर्याचन्द्रमसाविव। पुनर्ददताघ्नता जानता सङ्गमेमहि।।
ओ३म् ये देवानां यज्ञिया यज्ञियानां मनोर्यजत्रा अमृता ऋतज्ञा:। ते नो रासन्तामुरूगायमद्य यूयं पात स्वस्तिभि:सदा न: ||
पुनन्तु माँ देवजना: पुनन्तु मनसा धिया | पुनन्तु बिश्वा भूतानि पवमान: पुनातु मा||
भक्त्या दीपं प्रयव्छामि देवाय परमात्मने । त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ॥ 
हस्ते अक्षत पुष्पाणि गृहत्वा मन्त्र पुष्पांजलि  

पुष्पांञ्जलि – हाथ में फूल लेकर –

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्। ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्रा पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः।।
1. गणेश गायत्री— ॐ एक दंष्ट्राय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि। तनो बुद्धिः प्रचोदयात् ।
2.
गौरी गायत्री— ॐ गणेशअम्बिकाये विध्महे , कर्म सिद्धये च धीमहितन्नो गौरी प्रचोदयाति |
3.
शिव गायत्री — ॐ तत्पुरुषiय विद्महे, महादेवाय धीमहि । तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ।
4. कृष्ण गायत्री ॐ देवकी नन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि । तन्नो कृष्णः प्रचोदयात् ।
3. राधा –  ॐ वृषभानुजायै विद्महे , कृष्ण प्रियायै धीमहि । तन्नो राधा प्रचोदयात् ।
7.
हनुमान गायत्री—ॐ अञ्जनी सुताय विद्महे, वायु पुत्राय धीमहि। तन्नो मा रुतिः प्रचोदयात् ।
4. तुलसी गायत्री—ॐ श्री तुलस्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो वृन्दाः प्रचोदयात् ।
5. Ram —ॐ दशरथये विद्महे, सीता बल्लभाय धीमहि । तन्नो रामः प्रचोदयात् ।
6. सीता गायत्री—ॐ जनकनदिन्यै विद्महे, भूमिजायै धीमहि । तन्नो सीता प्रचोदयात् ।
ॐ पितृ गणाय विद्महे जगतधारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात्।
8. विष्णु गायत्री—ॐ नारायण विदूमहे, वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् l
9. लक्ष्मी गायत्री—ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णु प्रियायै धीमहि । तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।
10. अग्नि गायत्री—ॐ महाज्वालाय विद्महे, अग्निदेवाय धीमहि । तन्नो अग्निः प्रचोदयात् ।

ॐ सेवन्तिका बकुल चम्पक पाटलाब्जै : पुन्नाग जाति करवीर रसाल पुष्पैः |

बिल्व प्रवाल  तुलसीदल मंजरीभि: | त्वां पूजयामि जगदीश्वर मे प्रसीद।। 

मंदार माला कलितालकायै, कपालमालंगित सुन्दराय। दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय, नमः शिवायै च नमः शिवाय।

 
ॐ नाना सुगन्धि पुष्पाणि यथा कालो भवानी च, पुष्पान्जलिर्मया दत्त ग्रहाण परमेश्वर ॥  पुराण पुर्षोत्तमाय नमः ॥ मंत्रपुष्पांजली समर्पयामि ॥
सुमन सुगंधित सुमनलय सुमनस बुद्धी विचारपुष्पांजलि अर्पण करूँ मेरे ठाकुर मेरी मात् करो स्वीकार!!  !! मंत्रपुष्पांजली समर्पयामि!!
सुमन सुगन्धित सुमन लै सुमन सुगंधि सुजान !! पुष्पांजलि अर्पण करू मेरे देव / मेरी मात् करो स्वीकार!!  !!मंत्र पुष्पांजलि समर्पयामि!!

Jaikar – श्री वृन्दावन बिहारी लाल, राधा रानी, श्री सीताराम जी महाराज, पवनसुत हनुमान जी महाराज, शंकर भगवान की जय, गंगा यमुना की, श्री मद् भागवत महापुरान, श्री व्यास जी महाराज, श्री शुकदेव जी महाराज, सदगुरु महाराज की, सन्त समाज की जय,  सत्य सनातन वैदिक धर्मगौउ माता की जय, अपने मात पिता की जय, भक्त और भगवान की जय, नगर बस्ती की जय, आज के आनन्द की जय  धर्म की जय,  अधर्म का नाश हो, विश्व मै शान्ति होविश्व का कल्याण हो,  भारत माता की, भारत हिन्दू राष्ट्र की जय हो, जै जै जै श्री राधे राधे राधे श्याम ||
ॐ नमः पार्वती पतये, हर-हर महादेव! शम्भू  |  काल हर, कष्ट हर, दुख हर, दरिद्र हर, सर्व पाप हर ! हर हर महादेव शम्भू

क्षमा प्रार्थना—  आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन। यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे।। 
पापोहं पापकर्माहं पापात्मा पाप संभव:! त्राहिमां पुण्डरीकाक्ष सर्व पाप हरो हरी |

यदक्षर पद भ्रष्टं मात्रा हीनं च यद् भवेत | तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वर ||
साष्टांग नमस्कार   
  नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रमूर्तये सहस्रपादाक्षिशिरोरुबाहवे । सहस्रनाम्ने पुरुषाय शाश्वते सहस्रकोटियुगधारिणे नमः ।।

           नमो ब्रह्मण्यदेवाय गोब्राह्मणहिताय च ।   जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः ।।
             वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्द नम् ।   देवकी परमानन्दम् कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।  

 
भगवत्स्मरण : ॐ प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत्। स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्ण स्यादिति श्रुतिः॥

                           यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु। न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्॥
                                                           
ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः।
शुभकामना मंत्र : ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥  ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

नाम संकीर्तनं यस्य सर्व पाप प्रणाशनम्, प्रणामो दुःख शमनः तम नमामि हरिं परम्।। || akhiri slok

आसन से यजमान हटना

 यजमान जिस आसन पर बैठा है | उसके नीचे जल छिड़क कर उस जल को अपने माथे में और आँखों में लगा ले |

ॐ सकराय नमः ॐ इन्द्राय नमः  – ऐसे करने से इंद्र आपके पूजा को नहीं लेके जायेगा ऐसा मानना है  

मन्त्र अक्षत आशीर्वाद
ब्राह्मण फूल फल आदि लेकर यजमान तथा उसकी पत्नी को मन्त्र अक्षत दें |

ॐ मन्त्रार्थाः सफलाः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः | शत्रूणां बुद्धि नाशो अस्तु मित्राणा मुदयस्तव ||

ॐ श्रीर्वर्चस्व मायुष्य मारोग्य माविधात पवमानं महीयते | धनं धान्यं पशुं पुत्र पौत्र लाभं शत संवत्सरं दीर्घमायुः || 
त्वम् आयुष्मान् वर्चस्वी तेजस्वी श्रीमान् भूयाः।

गॉँठ खोलन
यजमान और उसकी पत्नी की गॉँठ बाँधी है, खोल दी जाय | यजमान सबका ब्राह्मणो का आशीर्वाद लें | स्वस्ति वाचन बोले |    
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा : स्वस्ति न : पूषा विश्व वेदा: । स्वस्ति नस्तार्क्षो ऽअरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु: ॥१॥

|| ॐ विष्णवे नमः ॐ विष्णवे नमः ॐ विष्णवे नमः ||  || ॐ विष्णोः स्मरणात परिपूर्णा स्तु अस्तु परिपूर्ण ||

उत्तर पूजन – यजमान – गौरी – गणेश – कलश – नवग्रह चारों कोनों में स्थापित पीठ प्रधान देवता आदि सभी आवाहित देवताओं पर गन्ध – अक्षत – पुष्प छोड़कर उत्तर पूजन कर दें –

मंत्र  – ॐ आवाहित देवताभ्यो नमः | उत्तर पूजां ग्रहणन्तु | प्रीयंताम ||

अग्नि विसर्जन  – हवन वेदी के गन्ध – अक्षत – पुष्प छोड़ कर प्रार्थना करे |

ॐ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ, स्वस्थाने परमेश्वर, यत्र ब्रह्मादयो देवाः, तत्र गच्छ हुताशन |

देव विसर्जन  –  लक्ष्मी – गणेश देव हमारे यंहा स्थापित रहें | अन्य देवता जो हमने बुलाये है सभी अपने अपने स्थान को प्रस्थान करें और हमें यस, वैभव, धन, लक्ष्मी, पुत्र , पुत्री , पशु , स्थाई लक्ष्मी , सुख सम्पदा प्रदान करने का शुभ आशीर्वाद दें ||

गच्छन्तु सुराः श्रेष्ठाः स्वस्थानं परमेश्वराः | यजमान हितार्थाय पुनरागमनाय च || 

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीमम | इष्ट काम समृद्ध्यर्थं पुनरागनाय च || 

|| ॐ विष्णोः स्मरणात परिपूर्णा स्तु अस्तु परिपूर्ण ||

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