उत्तम संतानप्राप्ति के लिए
उत्तम संतानप्राप्ति के लिए
वास्तव में खनिज, नदी आदि देश की सच्ची सम्पत्ति नहीं हैं अपितु ऋषि-परम्परा के पवित्र संस्कारों से सम्पन्न तेजस्वी संतानें ही देश की सच्ची सम्पत्ति हैं । इसलिए संतानप्राप्ति के इच्छुक दम्पतियों को चाहिए कि वे ब्रह्मज्ञानी संतों-महापुरुषों के दर्शन-सत्संग का लाभ लेकर स्वयं सुविचारी, सदाचारी एवं पवित्र बनें । साथ ही उत्तम संतानप्राप्ति के नियमों को जान लें और शास्त्रोक्त रीति से शुभ मुहूर्त में गर्भाधान कर परिवार व देश का नाम रोशन करनेवाली उत्तम संतान को जन्म दें ।
गर्भाधान के लिए समय :
* ऋतुकाल (रजोदर्शन के प्रथम दिन से १६वें दिन का काल) के प्रथम तीन दिन मैथुन के लिए सर्वथा निषिद्ध हैं । साथ ही ११वीं व १३वीं रात्रि भी वर्जित है ।
* उत्तरोत्तर रात्रियों में गर्भाधान होने पर प्रसवित शिशु की आयु, आरोग्य, सौभाग्य, पौरुष, बल एवं ऐश्वर्य अधिकाधिक होता है ।
* यदि पुत्र की इच्छा हो तो ऋतुकाल की ४, ६, ८, १०, १२, १४ या १६वीं रात्रि एवं यदि पुत्री की इच्छा हो तो ऋतुकाल की ५, ७, ९ या १५वीं रात्रि में से किसी एक रात्रि का शुभ मुहूर्त पसंद करना चाहिए ।
* रजोदर्शन दिन को हो तो वह प्रथम दिन गिनना चाहिए । सूर्यास्त के बाद हो तो सूर्यास्त से सूर्योदय तक के समय के तीन समान भाग करप्रथम दो भागों में हुआ हो तो उसी दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए । रात्रि के तीसरे भाग में रजोदर्शन हुआ हो तो दूसरे दिन को प्रथम दिन गिनना चाहिए ।
* पूर्णिमा, अमावस्या, प्रतिपदा, अष्टमी, एकादशी, चतुर्दशी, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, पर्व या त्यौहार की रात्रि, श्राद्ध के दिन, चतुर्मास, प्रदोषकाल (त्रयोदशी के दिन सूर्यास्त के निकट का काल), क्षयतिथि (दो तिथियों का समन्वयकाल) एवं मासिक धर्म के तीन दिन समागम नहीं करना चाहिए।
* माता-पिता की मृत्युतिथि, स्वयं की जन्मतिथि, नक्षत्रों की संधि (दो नक्षत्रों के बीच का समय) तथा अश्विनी, रेवती, भरणी, मघा व मूल इन नक्षत्रों में समागम वर्जित है ।
* दिन में समागम आयु व बल का बहुत ह्रास करता है, अतः न करें ।
* रात्रि के शुभ समय में से भी प्रथम १५ व अंतिम १५ मिनट का त्याग करके बीच का समय गर्भाधान के लिए निश्चित करें ।
गर्भधारण के पूर्व कर्तव्य :
* दम्पति की स्थिति शारीरिक थकान व मानसिक तनाव से मुक्त हो । परिवार में वाद-विवाद या अचानक मृत्यु की घटना न घटी हो । मन, शरीर व वातावरण स्वस्थ व स्वच्छ हो ।
* आध्यात्मिकता बढ़े इसलिए दोनों नथुनों से लम्बे, गहरे श्वास लें । भगवत्कृपा, आनंद, प्रसन्नता, ईश्वरीय ओज को भीतर भर के श्वास रोकें, मन में सद्विचार लायें । भगवन्नाम जपते हुए मलिनता, राग-द्वेष आदि अपने मानसिक दोष याद कर फूँक मारते हुए उन्हें श्वास के साथ बाहर फेंकें । गर्भाधान के पूर्व ५ से ७ दिन रोज ७ से १० बार यह प्रयोग करें । शयनगृह हवादार, स्वच्छ, सात्त्विक धूप के वातावरण से युक्त हो । कमरे में अनावश्यक सामान व काँटेदार पौधे न हों । कमरे में अपने गुरुदेव, इष्टदेव या महापुरुषों के श्रीचित्र लगायें तथा रेडियो व फिल्मों से दूर रहें । दम्पति सफेद या हलके रंगवाले वस्त्र पहनें एवं हलके रंग की चादर बिछायें । इससे प्राप्त प्रसन्नता व सात्त्विकता दिव्य आत्माएँ लाने में सहायक होगी ।
* कम-से-कम तीन दिन पूर्व रात्रि व समय तय कर लेना चाहिए । निश्चित दिन में शाम होने से पूर्व पति-पत्नी को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहन के सद्गुरु व इष्टदेव की पूजा करनी चाहिए ।
* दम्पति अपनी चित्तवृत्तियों को परमात्मा में स्थिर करके उत्तम आत्माओं को आह्वान करते हुए प्रार्थना करें : ‘हे ब्रह्मांड में विचरण कर रहीं सूक्ष्मरूपधारी पवित्र आत्माओ ! हम दोनों आपको प्रार्थना कर रहे हैं कि हमारे घर, जीवन व देश को पवित्र तथा उन्नत करने के लिए आप हमारे यहाँ जन्म धारण करके हमें कृतार्थ करें । हम दोनों अपने शरीर, मन, प्राण व बुद्धि को आपके योग्य बनायेंगे ।’
* पुरुष दायें पैर से स्त्री से पहले शय्या पर चढ़े और स्त्री बायें पैर से पति के दक्षिण पाश्र्व में शय्या पर चढ़े । तत्पश्चात् निम्नलिखित मंत्र पढ़ना चाहिए :
अहिरसि आयुरसि सर्वतः प्रतिष्ठाऽसि धाता त्वा
दधातु विधाता त्वा दधातु ब्रह्मववर्चसा भव ।
ब्रह्मा बृहस्पतिर्बिष्णुः सोमः सूर्यस्तथाऽश्विनौ ।
भगोऽथ मित्रावरुणौ वीरं ददतु मे सुतम् ।
‘हे गर्भ! तुम सूर्य के समान हो, तुम मेरी आयु हो, तुम सब प्रकार से मेरी प्रतिष्ठा हो । धाता (सबके पोषक ईश्वर) तुम्हारी रक्षा करें, विधाता (विश्व के निर्माता ब्रह्मा) तुम्हारी रक्षा करें । तुम ब्रह्म से युक्त होओ । ब्रह्मा, बृहस्पति, विष्णु, सोम, सूर्य, अश्विनीकुमार और मित्रावरुण, जो दिव्य शक्तिरूप हैं, वे मुझे वीर पुत्र प्रदान करें ।’ (चरक संहिता, शारीरस्थानम् : ८.८)
* दम्पति गर्भ-विषय में मन लगाकर रहें । इससे तीनों दोष अपने-अपने स्थानों में रहने से स्त्री बीज को ग्रहण करती है । विधिपूर्वक गर्भधारण करने से इच्छानुकूल संतान प्राप्त होती है ।
ऋषि प्रसाद-अंक-256
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इन कामों से होती है उत्तम संतान की प्राप्ति
गरुड़ पुराण के अनुसार, संतान प्राप्ति की कामना के दिन स्त्री और पुरुष दोनों का चित्त प्रसन्न और मन शुद्ध होना चाहिए. क्योंकि स्त्री और पुरुष का चित्त जैसा रहेगा वैसा ही चित्त संतान में भी होगा.
गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु कहते हैं कि, उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए महिला के माहवारी के दिनों में उसके संपर्क में नहीं रहना है.
मान्यता है कि देवताओं द्वारा स्त्री को माहवारी का श्राप दिया गया था. इसलिए इस दौरान स्त्री की आभा को अशुद्ध माना जाता है.
माहवारी के 5वें दिन महिला को स्नान कर शुद्ध होना जरूरी होता है. इसके बाद ही पुरुष महिला के साथ एक कमरे में निवास कर सकते हैं. हालांकि संतान प्राप्ति के लिए भी यह समय अनुकूल नहीं होता है.
माहवारी के 7 दिन पश्चात महिला देवताओं और पितरों की पूजा करने योग्य मानी जाती है. इसलिए उत्तम चरित्र या चरित्रवान संतान के लिए सातवें दिन के बाद ही गर्भाधान के लिए प्रयास करें.
उत्तम संतान प्राप्ति के लिए स्त्री और पुरुष को पहले स्नान कर अपने शरीर को स्वच्छ कर लेना चाहिए और साफ कपड़े पहनने चाहिए. साथ ही बिस्तर भी साफ-सुथरा होना चाहिए.
गरुड़ पुराण के अनुसार पुत्र प्राप्ति के उपाय
मान्यता है कि सम दिनों में गर्भाधान से पुत्र और विषम दिनों में गर्भाधान से पुत्री की प्राप्ति होती है.
गरुड़ पुराण के अनुसार, पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महिला के मासिक धर्म समाप्त होने के 8वें, 10वें, 12वें, 14वें और 16वें दिन यानी सम दिनों के मिलन से पुत्र प्राप्ति की संभावना अधिक होती है.
वहीं पुत्री प्राप्ति के लिए मासिक धर्म के विषम दिन जैसे 9वां, 11वां, 13वां, 15वां और 17वां दिन बताए गए हैं.
लेकिन मासिक धर्म के 18 वें दिन बाद के मिलन से संतान प्राप्ति की संभावना बहुत कम होती है.
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