गुरु का कर्क राशि में गोचर: इन राशियों का लगेगा जैकपॉट और होगी धन-दौलत की बरसात!
गुरु का कर्क राशि में गोचर: हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्र दोनों में ही गुरु ग्रह को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। देवताओं के गुरु के नाम से प्रसिद्ध बृहस्पति देव मानव जीवन में कितनी अहम भूमिका निभाते हैं? इसका अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जब गुरु ग्रह अपनी अस्त अवस्था में होते हैं, तब सभी तरह के शुभ एवं मांगलिक कार्यों को करना वर्जित होता है।
साथ ही, इनकी चाल, दशा और राशि में होने वाला हर बदलाव व्यक्ति के जीवन के साथ-साथ पूरे विश्व को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। सिर्फ़ इनका गोचर ही नहीं, लाभकारी ग्रह के रूप में बृहस्पति देव की दृष्टि को भी शुभ मानी जाती है। ऐसे में, अब गुरु ग्रह जल्द ही अपनी राशि में परिवर्तन करते हुए कर्क राशि में गोचर करने जा रहे हैं।
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एस्ट्रोसेज एआई का यह विशेष लेख आपको “गुरु का कर्क राशि में गोचर” से जुड़ी समस्त जानकारी विस्तारपूर्वक प्रदान करेगा जैसे तिथि और समय आदि। साथ ही, गुरु का यह गोचर कब और किस समय होगा? किन राशियों के लिए यह गोचर सौभाग्य लेकर आएगा और किन राशियों को करना होगा जीवन में समस्याओं का सामना? करियर, व्यापार और जीवन में विभिन्न आयामों में कैसे मिलेंगे आपको परिणाम? इन सभी सवालों के जवाब आपको हमारे इस ब्लॉग में प्राप्त होंगे। चलिए अब आगे बढ़ते हैं और बिना देर किए शुरुआत करते हैं इस लेख की।
गुरु का कर्क राशि में गोचर: तिथि और समय
बात करें गुरु ग्रह की, तो वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति देव को शुभ और लाभकारी ग्रह माना जाता है। यह लगभग 13 महीने तक एक राशि में रहते हैं और उसके बाद, एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में गोचर कर जाते हैं।
गुरुदेव के एक साल से अधिक एक राशि में रहने के कारण इनका हर गोचर महत्वपूर्ण माना गया है। अब यह जल्द ही 19 अक्टूबर 2025 की दोपहर 12 बजकर 57 मिनट पर कर्क राशि में प्रवेश कर जाएंगे जिसके स्वामी चंद्र देव हैं जो गुरु की मित्र राशि है। साथ ही, बृहस्पति ग्रह की उच्च राशि भी है और ऐसे में, कर्क राशि में इनकी मौजूदगी अनुकूल कही जा सकती है।
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गुरु का कर्क राशि में गोचर: गुरु ग्रह का कर्क राशि में प्रभाव
जैसे कि हम आपको बता चुके हैं कि कर्क राशि में गुरु ग्रह का गोचर काफ़ी हद तक अच्छा कहा जा सकता है क्योंकि इस राशि के अधिपति देव चंद्रमा हैं जो बृहस्पति देव के मित्र हैं। इसके अलावा, कर्क राशि में गुरु ग्रह उच्च अवस्था में होते हैं।
जिन जातकों का जन्म कर्क राशि में बृहस्पति ग्रह के अंतर्गत होता है, वह अपने घर-परिवार के प्रति समर्पित होते हैं और अपने परिवार को बेहद प्रेम करते हैं।
साथ ही, यह जातक अपने परिवार को लेकर किया गया कोई भी मजाक बर्दाश्त नहीं करते हैं। गुरु की कर्क राशि में मौजूदगी के तहत जन्म लेने वाले जातक अपने प्रिय और करीबी लोगों से बात करते हुए बहुत संवेदनशील और सुरक्षात्मक होते हैं। इस बात का हमेशा ध्यान रखते हैं कि इनकी किसी से बात उनका दिल न दुखें।
करियर में आपकी मेहनत, समर्पण और प्रगति पाने की चाहत प्रबल होती है क्योंकि यह अपनों को एक बेहतर जीवन देना चाहते हैं।
आइए अब हम आपको अवगत करवाते हैं गुरु ग्रह के धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व से।
एक साल में गुरु ग्रह के दूसरे गोचर का संयोग
शुभ एवं लाभकारी ग्रह गुरु हर 13 महीने में अपनी राशि बदलते हैं जो शनि देव के बाद सबसे मंद गति से चलने वाले माने गए हैं। बता दें कि कर्क राशि में बृहस्पति देव अपनी उच्च अवस्था में होते हैं और मकर राशि इनकी नीच राशि है।
ऐसे में, यह बात आपको थोड़ा हैरान कर सकती है कि वर्ष 2025 में गुरु ग्रह के दो गोचर होने का एक दुर्लभ संयोग बन रहा है, इसलिए इसे विशेष माना जाएगा। बता दें कि इस साल इनके दो गोचर बृहस्पति के अतिचारी होने के कारण होंगे। सरल शब्दों में कहें तो, इस वर्ष गुरु देव अपनी सामान्य गति से तेज़ चलने के कारण दो बार अपनी राशि में बदलाव करेंगे।
वर्ष 2025 में गुरु ग्रह का पहला गोचर मिथुन राशि में 15 मई 2025 को होगा और इसके बाद, यह दूसरी बार अपनी राशि में परिवर्तन करते हुए 19 अक्टूबर 2025 को कर्क राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। हालांकि, बृहस्पति देव का यह गोचर आपको शुभ परिणाम देगा, लेकिन इनकी अतिचारी गति को अच्छा नहीं कहा जा सकता है।
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गुरु का कर्क राशि में गोचर: गुरु ग्रह का धार्मिक महत्व
गुरु ग्रह को सनातन धर्म में विशेष स्थान प्राप्त हैं जिन्हें देव गुरु के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सभी देवताओं के गुरु बृहस्पति महाराज हैं इसलिए इन्हें शुक्र ग्रह के शत्रु माना गया है क्योंकि शुक्र असुरों के गुरु हैं।
हिंदू धार्मिक ग्रंथ महाभारत के अनुसार, बृहस्पति देव के पिता महर्षि अंगिरा हैं।
इसके अलावा, पौराणिक शास्त्रों में देवगुरु बृहस्पति को ब्रह्मा जी का स्वरूप भी माना जाता है।
सप्ताह में गुरु देव को बृहस्पतिवार का दिन समर्पित है, इसलिए इस दिन इनकी पूजा-अर्चना की जाती है।
हिंदू धर्म में गुरु को केले के वृक्ष के रूप में पूजा जाता है और इनका वर्ण पीला है, इसलिए गुरुवार के दिन पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना गया है। साथ ही, गुरु देव को शील और धर्म का अवतार माना जाता है।
अब हम नज़र डाल लेते हैं गुरु ग्रह के ज्योतिषीय महत्व पर।
ज्योतिष की दृष्टि से गुरु ग्रह का महत्व
वैदिक ज्योतिष में लाभकारी ग्रह गुरु को विस्तार, प्रगति और ज्ञान का कारक माना जाता है। साथ ही, यह सभी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए भी जिम्मेदार होते हैं इसलिए इनकी चाल, दशा और राशि में होने वाला छोटा सा छोटा बदलाव भी ज्योतिषियों के लिए बहुत मायने रखता है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में बृहस्पति देव करियर, व्यापार और नौकरी के साथ-साथ अध्यात्म जैसे प्रमुख क्षेत्रों को प्रभावित करने का सामर्थ्य रखते हैं। यदि किसी व्यक्ति से बृहस्पति देव प्रसन्न होते हैं, तो उस व्यक्ति के अंदर सात्विक गुण विकसित होते हैं। साथ ही, यह लोग अपने जीवन में सत्य की राह पर चलना पसंद करते हैं।
जिन जातकों की कुंडली में बृहस्पति महाराज बेहद शुभ या बलवान अवस्था में होते हैं, उन्हें अपने जीवन में ज्यादातर क्षेत्रों में अपार सफलता प्राप्त होती है। लेकिन, यह जातक मोटापे का शिकार हो सकते हैं। इसके विपरीत, ऐसे जातक जिनकी कुंडली में गुरु देव अशुभ, दुर्बल या पीड़ित होते हैं, उनको पाचन या पेट से जुड़ी समस्याओं की शिकायत रह सकती हैं। वहीं, इनका आशीर्वाद आपको मज़बूत पाचन क्षमता प्रदान करता है और पेट से जुड़े रोगों से भी मुक्ति मिलती है।
गुरु देव की स्थिति और गोचर के साथ-साथ इनकी दृष्टि भी बहुत शुभ मानी जाती है। अगर, आपकी कुंडली के किसी कमज़ोर भाव पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ती है, तो वह भाव मज़बूत हो जाता है और आपको नकारात्मक प्रभावों से राहत मिलती है। बता दें कि गुरु ग्रह को अपना राशि चक्र पूरा करने में लगभग 12 साल से अधिक का समय लगता है इसलिए इनका हर गोचर ख़ास होता है। यदि बृहस्पति ग्रह किसी खास भाव या ग्रह से होकर गुजरते हैं, तो इनकी उपस्थिति उस भाव में विकास, भाग्य और नई सोच को बढ़ावा देती है।
अब हम आपको बताने जा रहे हैं गुरु ग्रह के नक्षत्र और उनका आपके जीवन पर प्रभाव।
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गुरु का कर्क राशि में गोचर: गुरु ग्रह के नक्षत्र और उनका प्रभाव
गुरु ग्रह को राशि चक्र की बारह राशियों में से धनु और मीन राशि का स्वामित्व प्राप्त है। यह कर्क राशि में उच्च और मकर राशि में नीच अवस्था में होते हैं। बृहस्पति देव शिक्षक, ज्ञान, बड़े भाई, संतान, धार्मिक कार्य, शिक्षा और दान-पुण्य को नियंत्रित करते हैं। सभी 27 नक्षत्रों में गुरु देव पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के अधिपति देव हैं। चलिए अब हम आपको अवगत करवाते हैं इन नक्षत्रों में जन्मे जातकों को गुरु ग्रह कैसे प्रभावित करते हैं।
पुनर्वसु नक्षत्र
गुरु ग्रह के पुनर्वसु नक्षत्र के अंतर्गत जन्म लेने वाले जातकों का स्वभाव बहुत उदार, और दयालु होता है। साथ ही, यह परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने वाले होते हैं।
यह जातक जीवन में एक नई शुरुआत करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, इसलिए इन्हें एक नई शुरुआत करने के अनेक अवसर मिलते हैं।
पुनर्वसु नक्षत्र के तहत जन्म लेने के कारण व्यक्ति का झुकाव आध्यात्मिकता और ज्ञान पाने में होता है।
विशाखा नक्षत्र:
बृहस्पति देव विशाखा नक्षत्र के भी स्वामी हैं इसलिए इनका प्रभाव इस नक्षत्र पर रहता है। ऐसे में, जिन जातकों का जन्म विशाखा नक्षत्र के अंतर्गत होता है, वह अपने जीवन के लक्ष्यों को पाने को लेकर दृढ़ होते हैं।
यह जातक एक बार कोई लक्ष्य निर्धारित कर लें, तो अपने समर्पण और मेहनत से उसे पाकर ही रहते हैं।
करियर में ऐसे लोग अक्सर दूसरों का नेतृत्व करते हुए नज़र आते हैं। साथ ही, इनके भीतर जीवन में बड़े बदलाव लाने का सामर्थ्य होता है।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र
जिन जातकों का जन्म पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के अंतर्गत होता है, वह बहुत सोच-समझकर काम करने वाले होते हैं और इनकी रुचि अध्यात्म में होती है।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में जन्मे लोग जीवन के गहरे अर्थों को समझने के साथ-साथ दूसरों की सहायता करने में सक्षम होते हैं।
कमज़ोर गुरु का जीवन पर प्रभाव
कुंडली में गुरु ग्रह की अशुभ स्थिति व्यक्ति के ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता को प्रभावित करती है और उसमें ज्ञान की कमी नज़र आती है।
बृहस्पति देव के कमजोर होने पर जातक को समाज में समस्याओं और कष्ट का सामना करना पड़ता है।
गुरु की दुर्बल अवस्था के प्रभाव से जातक समाज में सम्मान प्राप्त नहीं कर पाता है।
अगर आपका बृहस्पति पीड़ित होता है, तो आपको लोगों को समझाने में कठिनाई का अनुभव होता है।
दुर्बल गुरु होने के कारण व्यक्ति को उन सभी गलतियों के लिए दोषी ठहराया जाता है जो उसने कभी की ही नहीं होगी।
इनका नकारात्मक प्रभाव होने से आप अपना सोना या पैसा खो देंगे।
बृहस्पति की अशुभता की वजह से आप धर्म में विश्वास नहीं करेंगे जिसके चलते आपके आसपास के लोग आपको विद्रोही मान लेते हैं।
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गुरु का कर्क राशि में गोचर: सरल एवं प्रभावी उपाय
प्रतिदिन मस्तक पर चंदन या हल्दी का लेप लगाएं। संभव हो, तो नियमित रूप से सोने के गहने धारण करें क्योंकि इन्हें बृहस्पति ग्रह का पूरक माना जाता है।
गुरुवार के दिन बृहस्पति देव से जुड़ी पीली वस्तुओं जैसे सोना, हल्दी, चना और पीले फल आदि का दान करें।
संभव हो, तो गुरुवार का व्रत करें और इस दिन गुरु ग्रह की पूजा-अर्चना करें। साथ ही, इस दिन ‘ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः’ मंत्र का 3 या 5 माला जाप करें।
बृहस्पतिवार के दिन केले के पेड़ की पूजा करें और उसके नीचे दीपक जलाएं।
गुरु देव से शुभ फल पाने के लिए बृहस्पति देव का रत्न पुखराज या फिर उपरत्न सुनेला धारण करें। हालांकि, आपको ऐसा करने से पहले किसी अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श लेने की सलाह दी जाती है।
बृहस्पति देव की कृपा पाने के लिए भगवान विष्णु को केसर या पीले चंदन से तिलक करें और इसके पश्चात, विष्णु जी की आराधना करें।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
गुरु देव 19 अक्टूबर 2025 को कर्क राशि में गोचर कर जाएंगे।
ज्योतिष के अनुसार, कर्क राशि में गुरु ग्रह उच्च अवस्था में होते हैं और अपने मित्र चंद्रमा की राशि में होते हैं, इसलिए इसे अनुकूल कहा जाएगा।
राशि चक्र की बारहवीं राशि मीन के अधिपति देव गुरु ग्रह हैं।
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