तुला संक्रांति 2025 पर ग्रहों के राजा करेंगे राशि परिवर्तन, जानें तिथि, महत्व व उपाय!
तुला संक्रांति 2025:भारत एक ऐसा देश है जहाँ ग्रहों की स्थिति में होने वाला बदलाव कोई सामान्य खगोलीय घटना नहीं होती है, बल्कि यह धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से गहराई से जुड़ी होती है।
ग्रहों की स्थिति में होने वाले हर बदलाव का अपना विशेष महत्व होता है, लेकिन सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्रांति के नाम से जाना जाता है जिसका धार्मिक रूप से अपना विशेष महत्व होता है। साल भर में आने वाली सभी संक्रांतियों में से सूर्य के राशि चक्र की सातवीं राशि तुला में गोचर को तुला संक्रांति कहते हैं।
वर्ष 2025 के अक्टूबर माह में सूर्य देव कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में गोचर करेंगे, तब इस अवधि को शुभ माना जाएगा। शायद ही आप जानते होंगे कि तुला संक्रांति का संबंध मौसम में होने वाले परिवर्तन, फसलों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और विभिन्न परंपराओं से भी है। यह एक ऐसा पर्व है जो विज्ञान, भक्ति और धर्म-संस्कृति का प्रतीक माना जाता है।
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एस्ट्रोसेज एआई के “तुला संक्रांति 2025” के इस विशेष ब्लॉग के माध्यम से आप इस पर्व के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के बारे में जान सकेंगे। साथ ही, आपको तुला संक्रांति 2025 पर किए जाने वाले सरल एवं प्रभावी उपायों की भी जानकारी प्रदान करेंगे। तो आइए बिना देर किए शुरुआत करते हैं इस लेख की।
तुला संक्रांति 2025: तिथि और मुहूर्त
तुला संक्रांति की तिथि: 17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार
पुण्य काल मुहूर्त: सुबह 10 बजकर 05 मिनट से शाम 05 बजकर 43 मिनट तक।
अवधि: 07 घंटे 38 मिनट
महापुण्य काल मुहूर्त: दोपहर 12 बजे से 03 बजकर 48 मिनट तक।
अवधि: 03 घंटे 49 मिनट
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वैदिक ज्योतिष में संक्रांति का महत्व
वैदिक ज्योतिष में संक्रांति शब्द का अर्थ सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने से होता है। जैसे कि हम जानते हैं कि सूर्य देव हर महीने एक राशि में लगभग 30 से 31 दिन यानी कि एक महीने रहते हैं, इसलिए इनका गोचर हर महीने होता है। ऐसे में, सूर्य के राशि परिवर्तन को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि सूर्य देव को ज्योतिष में नवग्रहों के राजा का पद प्राप्त है। ऐसे में, हर माह होने वाला सूर्य का गोचर संसार के साथ-साथ मानव जीवन को भी प्रभावित करता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, एक वर्ष में कुल 12 संक्रांति तिथि आती है जो सूर्य के एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश का प्रतिनिधित्व करती है।
मेष संक्रांति: सूर्य मेष राशि में गोचर करता है।
वृषभ संक्रांति: सूर्य वृषभ राशि में गोचर करता है।
मिथुन संक्रांति: सूर्य मिथुन राशि में गोचर करता है।
कर्क संक्रांति: सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है।
सिंह संक्रांति: सूर्य सिंह राशि में गोचर करता है।
कन्या संक्रांति: सूर्य कन्या राशि में गोचर करता है।
तुला संक्रांति: सूर्य तुला राशि में गोचर करता है।
वृश्चिक संक्रांति: सूर्य वृश्चिक राशि में गोचर करता है।
धनु संक्रांति: सूर्य धनु राशि में गोचर करता है।
मकर संक्रांति: सूर्य मकर राशि में गोचर करता है।
कुंभ संक्रांति: सूर्य कुंभ राशि में गोचर करता है।
मीन संक्रांति: सूर्य मीन राशि में गोचर करता है।
प्रत्येक संक्रांति का धार्मिक, ज्योतिष और आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व होता है जिसे हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग पर्वों, परंपराओं और मान्यताओं के रूप में मनाया जाता है।
तुला संक्रांति 2025: वैदिक ज्योतिष में तुला राशि का महत्व
राशि चक्र की सातवीं राशि तुला का प्रतीक चिन्ह तराजू है और इस राशि के जातकों में आंतरिक क्षमताएं और संतुलन बनाकर चलने के गुण जन्मजात होते हैं। एक तरफ, जहां अन्य राशियों के प्रतीक चिन्ह पशु या मानव आदि रूप में होते हैं, तो वहीं तुला राशि को न्याय, समानता और निष्पक्षता के प्रतीक द्वारा चिन्हित किया गया है। तुला राशि का प्रतीक चिन्ह हमें शिक्षा देता है कि जीवन में संतुलन बनाकर चलना आवश्यक होता है। आपको अपने कर्मों के फल अवश्य मिलते हैं और जीवन में संतुलन कायम करने से ही शांति प्राप्त की जा सकती है।
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तुला संक्रांति 2025: ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य की तुला राशि में स्थिति
वैदिक ज्योतिष में तुला राशि के अधिपति देव शुक्र ग्रह को माना गया है जो प्रेम, रिलेशनशिप, सुंदरता और विलासिता के कारक ग्रह हैं। जब उग्र ग्रह सूर्य देव तुला राशि में प्रवेश करते हैं, तब इस राशि में सूर्य की स्थिति नीच की होती है। सामान्य शब्दों में कहें तो, तुला राशि में सूर्य की स्थिति कमज़ोर होती है और वह ज्यादा अच्छे परिणाम देने में समर्थ नहीं होते हैं। तुला राशि में सूर्य की मौजूदगी व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन दोनों को प्रभावित करती है।
बता दें कि ग्रहों के जनक सूर्य महाराज अधिकार, आत्मा, नेतृत्व क्षमता, अहंकार और जीवन शक्ति को नियंत्रित करते हैं, जबकि तुला राशि संतुलन, आपसी सहयोग और निष्पक्षता की राशि है। ऐसे में, सूर्य देव के तुला राशि में नीच अवस्था में होने से अहंकार, अधिकार जैसे गुणों पर विनम्रता, मानवता और आपसी सहयोग जैसे गुण हावी होंगे। इसके परिणामस्वरूप, तुला संक्रांति का पर्व अक्सर मानव को निजी और सामाजिक जीवन में संतुलन बनाकर चलने के लिए प्रेरित करता है।
तुला संक्रांति 2025 का महत्व
जब सूर्य देव तुला राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे तुला संक्रांति कहा जाता है जिसको हिंदू धर्म में विशेष महत्व दिया गया है। इस पर्व को हर साल अक्टूबर के मध्य में मनाया जाता है और यह कोई सामान्य खगोलीय घटना नहीं होती है, बल्कि यह दान, संतुलन और कृतज्ञता का भी प्रतीक मानी जाती है।
ज्योतिष में तुला राशि का प्रतीक चिन्ह तराजू है और यह संतुलन और न्याय को दर्शाता है। जब सूर्य का तुला राशि में गोचर होता है, तो यह एक ऐसी अवधि होती है जब विनम्रता, सौहार्द और न्याय को बढ़ावा मिलता है। जैसे कि हम आपको ऊपर भी बता चुके हैं कि सूर्य तुला राशि में दुर्बल अवस्था में होने के कारण जातकों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। इसके परिणामस्वरूप, अहंकार और अधिकार में कमी आएगी और सौहार्द, विनम्रता और समानता में वृद्धि होगी। यह अवधि जातकों के लिए स्वयं के बारे में सोच-विचार करने, धैर्य रखने और अपने मन में दया पैदा करने की होगी।
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तुला संक्रांति 2025 का धार्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टि से तुला संक्रांति के दिन आप दान और स्नान के माध्यम से अपने पूर्व जन्मों के पाप से मुक्ति पा सकते हैं। इस तिथि को मुख्य रूप से पवित्र नदियों में स्नान के लिए बहुत शुभ माना जाता है जो आपके तन और मन को शुद्ध करता है। तुला संक्रांति के दिन की गई सूर्य देव की पूजा आपके जीवन से सभी समस्याओं को दूर करती है, आपके विचारों को स्पष्ट बनाती है और सुख-शांति से पूर्ण जीवन का आशीर्वाद देती है। इसके अलावा, तुला संक्रांति के दिन किया गया दान कल्याणकारी माना जाता है जिसे महादान भी कहा जाता है। इस अवसर पर गेहूं, वस्त्र और घी का दान करना पुण्यदायक होता है।
तुला संक्रांति का संबंध ऋतु में परिवर्तन से भी होता है क्योंकि इस दिन से वर्षा ऋतु समाप्त हो जाती है और शरद ऋतु का आगमन होता है। हिंदू धर्म में तुला संक्रांति का त्योहार भगवान गणेश और माता लक्ष्मी से भी जुड़ा है। मान्यता है कि तुला संक्रांति पर इनके पूजन से जातक को धन-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। तुला संक्रांति को गर्भाना संक्रांति भी कहा जाता है और इसे देश के कुछ हिस्सों, विशेषकर कर्नाटक और उड़ीसा बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, जिसके बारे में आगे विस्तार से बात करेंगे।
तुला संक्रांति 2025 और धार्मिक अनुष्ठान
तुला संक्रांति के पर्व को देश भर में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है, विशेष रूप से दक्षिण भारत के उड़ीसा और कर्नाटक राज्य में। चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कैसे मनाया जाता है इन राज्यों में तुला संक्रांति को।
उड़ीसा
उड़ीसा में तुला संक्रांति को गर्भाना संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।
इस अवसर पर किसान फसल की अच्छी पैदावार के लिए ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और खेती में उपयोग होने वाले औजारों और मवेशियों की पूजा करते हैं।
महिलाएं अपने घर-परिवार की समृद्धि के लिए कई तरह के अनुष्ठान करती हैं।
मान्यता है कि तुला संक्रांति के दिन माँ दुर्गा आपके घर आती हैं और आपको अपना आशीर्वाद देती हैं।
कर्नाटक
कर्नाटक में मुख्य तौर पर कुर्ग (कोडागु) में तुला संक्रांति को कावेरी संक्रमण के रूप में मनाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस अवसर पर कावेरी नदी अपना जल शुद्ध करती है और तुला संक्रांति के दिन लोग तालकावेरी से जल लेकर जाते हैं और उससे विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करते हैं।
विवाहित महिलाएं अपने परिवार और पति की लंबी आयु के लिए पूजा-अर्चना करती हैं।
भारत के विभिन्न राज्यों में तुला संक्रांति के दिन सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और नदियों के पवित्र जल में स्नान किया जाता है। साथ ही, इस तिथि पर खिचड़ी बनाने की भी परंपरा है। तुला संक्रांति के मौके पर कई तरह के मेले और समारोह आयोजित किए जाते हैं। वहीं, दक्षिण भारत में सूर्य का तुला राशि में गोचर का संबंध कृषि से है क्योंकि साल भर किसान अच्छी फसल के लिए बारिश की प्रार्थना करते हैं।
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तुला संक्रांति 2025 का पारंपरिक भोजन
उड़ीसा में तुला संक्रांति 2025 के अवसर पर लोगों द्वारा नए कपड़े पहनने की परंपरा है और इसे एक नए दौर का प्रतीक माना जाता है। इस पर्व को बहुत हर्षोल्लास और उत्साह से मनाने का विधान है। इस दिन भिन्न-भिन्न पकवान और व्यंजन बनाए जाते हैं और पूरा परिवार एक साथ मिलकर इनका आनंद लेता है। कर्नाटक में तुला संक्रांति को कावेरी संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है और यहाँ इस पर्व की एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है। इस दिन लोग मांस-मदिरा का त्याग करते हुए शाकाहारी भोजन करते हैं और परिवार के साथ भोजन करते हैं।
तुला संक्रांति की पौराणिक कथा
हिंदू धार्मिक ग्रंथों में से एक स्कंद पुराण में कावेरी नदी की उत्पत्ति के संबंध में कथा का वर्णन मिलता है और इस कथा के अनुसार, प्राचीन समय में लोपामुद्रा नाम की एक युवती थी जिसे संसार के रचयिता ब्रह्मा जी की पुत्री विष्णुमाया के नाम से भी जाना जाता था। इस कन्या को ऋषि कावेरा ने गोद लिया था और वह अपनी पुत्री को प्यार से कावेरी कहकर पुकारा करते थे।
कावेरी अत्यंत सुन्दर थी और उसके सौंदर्य पर ऋषि अगस्त्य मोहित हो गए थे, और उन्होंने कावेरी से विवाह कर लिया। एक दिन वह अपने ध्यान में इतने लीन हो गए कि उन्होंने अपनी पत्नी को नज़रअंदाज़ कर दिया। पति से उपेक्षित होकर कावेरी बेहद दुखी हुई और उन्होंने ऋषि अगस्त्य के स्नान कुंड में प्रवेश करके स्वयं को बहते जल की धारा में परिवर्तित कर लिया। इस प्रकार, वह स्नान कुंड से एक पवित्र नदी कावेरी के रूप में बाहर आई जिन्होंने अपने जल से मानव का कल्याण किया और भूमि को अपने जल से उपजाऊ बनाया। इस प्रकार, कावेरी नदी ने मानव जीवन का कल्याण किया और कोडागु क्षेत्र में अपने जल से उर्वरता लेकर आई, जिससे यह क्षेत्र समृद्धशाली बना।
कावेरी नदी अपने मार्ग पर आगे बढ़ते हुए अन्य नदियों जैसे काबिनी, हेमावती और भवानी से मिलती है। कावेरी नदी विभिन्न राज्यों से निकलते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है। तुला संक्रांति के अवसर पर भक्त कावेरी नदी के जल में पवित्र स्नान करते हैं और देवी का आशीर्वाद व कृपा प्राप्त करते हैं।
तुला संक्रांति 2025 पर इन मंत्रों का करें जाप
|| ॐ सूर्याय नमः ||
|| ॐ भास्कराय नमः ||
|| ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय सहस्त्रकिरणाय नमः ||
तुला संक्रांति 2025 पर अवश्य करें ये सरल उपाय
सूर्योदय के समय आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें और जल में लाल फूल, चावल और गुड़ मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें।
पवित्र नदी के जल विशेष रूप से कावेरी नदी में डुबकी लगाएं या स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर नहाएं। साथ ही, नदी में स्नान करते समय सूर्य मंत्र का जाप करें।
तुला संक्रांति के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार सफेद वस्त्र, अनाज, गुड़, धन, तिल आदि का दान करें। मान्यता है कि इन चीज़ों का दान करने से पूर्वजन्मों के कर्ज़ से मुक्ति मिलती है।
उड़ीसा में तुला संक्रांति के मौके पर देवी लक्ष्मी को नई फसल से कटे हुए चावल और करी के पौधे अर्पित किए जाते हैं जबकि कर्नाटक में देवी पार्वती को पान, चूड़ियां और चंदन का लेप लगाते हैं।
तुला संक्रांति 2025 पर राशि अनुसार करें ये उपाय
मेष राशि
मेष राशि के जातक तुला संक्रांति 2025 पर चावल और चीनी का दान करें।
वृषभ राशि
वृषभ राशि वालों के लिए तुला संक्रांति के मौके पर सफेद रंग के वस्त्र दान करना और किसी वृद्ध महिला की सहायता करना फलदायी साबित होगा।
मिथुन राशि
मिथुन राशि के जातकों के लिए तुला संक्रांति के अवसर पर गायत्री मंत्र का जाप करना शुभ रहेगा। साथ ही, धन की देवी माता लक्ष्मी को दूर्वा घास अर्पित करें।
कर्क राशि
कर्क राशि के जातक तुला संक्रांति 2025 पर माँ पार्वती की पूजा करें और इस दिन मंदिर में चीनी और घी का दान करें।
सिंह राशि
सिंह राशि वालों को इस अवसर पर आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इन जातकों को अपनी ऊर्जा का उपयोग सकारात्मक दिशा में करना चाहिए।
कन्या राशि
कन्या राशि के जातक तुला संक्रांति 2025 पर देवी लक्ष्मी की पूजा चावल और धान की फसल से करें। ऐसा करना आपके लिए लाभदायक रहेगा।
तुला राशि
तुला राशि वाले इस दिन माता लक्ष्मी के मंदिर में दीपक जलाएं और दूध से बनी मिठाई का देवी को भोग लगाएं।
वृश्चिक राशि
वृश्चिक राशि के जातक तुला संक्रांति के दिन क्षेत्रपाल काल भैरव की पूजा करें। साथ ही, देवी लक्ष्मी को प्रसाद के रूप में खीर का भोग लगाएं।
धनु राशि
धनु राशि वाले तुला संक्रांति 2025 पर जरूरतमंदों को चावल, गेहूं और चीनी का दान करें।
मकर राशि
मकर राशि के जातक तुला संक्रांति के दिन माँ पार्वती और देवी लक्ष्मी की पूजा करें। गरीबों को तिल और गुड़ का भी दान करें।
कुंभ राशि
कुंभ राशि वालों को तुला संक्रांति 2025 पर गरीबों को कंबल, गुड़ चावल और काले चने का दान करना चाहिए।
मीन राशि
मीन राशि वाले इस अवसर पर मंदिर में दूध, दही, चीनी और काले चने का दान करें। साथ ही, कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
तुला संक्रांति का पर्व 17 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा और इस दिन सूर्य का तुला राशि में गोचर होगा।
सूर्य के तुला राशि में प्रवेश को तुला संक्रांति के नाम से जाना जाता है, जिसे संतुलन, न्याय और सौहार्द का प्रतीक माना जाता है। साथ ही, इसका संबंध धन-समृद्धि और कृषि से भी है।
उड़ीसा में देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है जबकि कर्नाटक में देवी पार्वती की पूजा का विधान है। इसके अलावा, इस दिन सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
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