आयुर्वेद अमूल्य ज्ञान
त्रिजात- दालचीनी, तेजपात और इलायची को ‘त्रिजात’ कहते हैं।
त्रिलवेन – मिले हुए सेंधा, काला तथा विड्नमक को ‘त्रिलवण’ कहते हैं।
क्षत्रय – यवक्षार, सज्जीखार और सुहागा के मिश्रण को ‘क्षारत्रय’ कहते हैं।
मधुरत्रय- न्यूनाधिक मात्रा में एकत्र मिले हुए घृतः मधु तथा गुड़ को ‘मधुत्रय’ कहते हैं।
त्रिगन्ध – मिले हुए गन्धक, हरिताल और मैनशिल को ‘त्रिगन्ध’ कहते हैं।
चतुर्जात – एकत्र मिले हुए दालचीनी, तेजपात, इलायची और नागकेशर को ‘चतुर्जात’ कहते हैं।
चातुर्भद – एकत्र मिले हुए सोंठ, अतीस, मोथा तथा गिलोय को ‘चातुर्भद्र’ कहते हैं।
चातुर्बीज – एकत्र मिले हुए मेथी, अजवायन, काला जीरा तथा हालों के बीज को ‘चातुर्बीज’ कहते हैं।
चतुरुष्ण – एकत्र मिले हुए सोंठ, कालीमिर्च, पीपल और पीपलामूल को ‘चतुरुष्ण’ कहते हैं।
चतुःसम – हरड़, लौंग, सेंधानमक और अजवायन के मिश्रण को ‘चतुः सम’ कहते हैं।
बलाचतुष्टय – एकत्र मिले हुए खरेंटी, सहदेई, कंधी और गंगरेन को ‘बलाचतुष्टय’ कहते हैं।
लघुपंचकमूल – शालिपर्णी, पृश्निपर्णी, छोटी कटेली, बड़ी कटेली और गोखरू को ‘लंघुपंचकमूल’ कहते हैं।
बृहत्पंचमूल – अरणी, श्योनाक, पाढ़ की छाल, बेल और गम्भारी को ‘बृहत्पंचमूल’ कहते हैं।
पंचपल्लव- एकत्र मिले हुए आम, कैथ, बिजौरा, बेल और जामुन के पत्ते को ‘पंचपल्लव’ कहते हैं।
मित्रपंचक – एकत्र मिले हुए गुड़, घी, घुंघची, सुहागा और गुगल को ‘मित्रपंचक’ कहते हैं।
पंचवल्कल – आम, बड़, गूलर, पीपल, पाकड़ इन पंचक्षीर वृक्षों के वल्कलों के मिश्रण को ‘पंचवल्कल’ कहते हैं।
तृणपंचमूल – एकत्र मिले हुए कुश, कांस, सरकण्डा, कांश (डाभ) और गन्ने के मूल को ‘तृणपंचमूल’ कहते हैं।
अम्लपंचक -एकत्र मिले हुए बिजौरा, सन्तरा, इमली, अम्लवेत और जम्बीरी निंबू को ‘अम्लपंचक’ कहते हैं।
पंचकोल -एकत्र मिले हुए पीपल, पीपलामूल, चव्य, चित्रक, नागर (सोंठ) को ‘पंचकोल’ कहते हैं।
पंचगव्य- एकत्र मिले हुए गाय के दूध, दही, घृत, गोबर और मूत्र को ‘पंचगव्य’ कहते हैं।
पंचलवण -एकत्र मिले हुए सेंधा, काला, विड्, सोंचल और सामुद्र लवण को ‘पंचलवण’ कहते हैं।
पंचक्षार – तिल क्षार, पलाश क्षार, अपामार्ग क्षार, यवक्षार और सज्जी क्षार-इनको ‘पंचक्षार’ कहते हैं।
पंचसुगन्धि- शीतल चीनी, सुपारी, लौंग, जावित्री और जायफल को ‘पंचसुगन्धि’ कहते हैं।
षडूषण – पंचकोल में काली मिर्च मिला देने से ‘षडूषण’ कहलाता है।
सप्त धातु – सुवर्ण, चाँदी, ताम्र, बंग, यशद, शीशा और लोहा को ‘सप्तधातु’ कहते हैं।
सप्त उपधातु – सुवर्णमाक्षिक, रौप्यमाक्षिक, नीलाथोथा, मुर्दाशंख, खर्पर, सिन्दूर और मण्डूर को ‘सप्त’ उपधातु’ कहते हैं।
सप्त उपरत्न- वैक्रान्त, राजावर्त, पिरोजा, शुक्ति, शंख सूर्यकान्त और चन्द्रकान्त को ‘सप्त उपरत्न’ कहते हैं।
सप्त सुगन्धि- अगर, शीतल, मिर्च, लोबान, लौंग, कपूर, केशर और चतुर्जात को ‘सप्त सुगन्धि’ कहते हैं।
अष्टवर्ग- मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरककोली, जीवक, रसक, ऋद्धि और वृद्धि को ‘अष्टवर्ग’ कहते हैं।
kraashtak – अपामार्ग, आक, इमली, तिल, ढाक, थूहर और जौ इनके पंचांग के क्षार तथा सज्जीक्षार ‘क्षाराष्टक’ कहलाते हैं।
नवरत्न -हीरा, मोती, पन्ना, प्रवाल, लहसुनियाँ, गोमेदमणि, माणिक्य, नीलम और पुखराज-ये ‘नवरत्न’ कहलाते हैं।
नव उपविष – थहर, आक, कलिहारी, चिरभिटी (गुंजा), जमालगोटा, कनेर, धतूर और अफीम ये नव ‘उपविष’ हैं।
दशमूल – लघुपंचमूल और वृहत् पंचमूल को मिला देने से ‘दशमूल’ बन जाता है।