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Dussehra: Importance of Indian festival

दशहरा या विजयदशमी का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, और हिंदू धर्म में इसका विशेष महत्व है। यह पर्व वर्षभर उत्साह और उत्सव के साथ मनाया जाता है और हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण प्रतीकों में से एक है। इस पर्व का मतलब और महत्व गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक संदेश के साथ जुड़े हैं।

 

दशहरा का मतलब और महत्व

 

दशहरा का नाम ‘दश’ और ‘हरा’ शब्दों से मिलकर बना है, जिनका शाब्दिक अर्थ होता है ‘दस’ और ‘हार’। यह पर्व विजय का प्रतीक है और धर्मिक मान्यताओं के अनुसार माता दुर्गा की विजय के अवसर के रूप में मनाया जाता है। दशहरा के दिन भगवान राम ने लंकापति रावण को विजय प्राप्त की थी और भगवान कृष्ण ने महिषासुर का संहार किया था, इसलिए यह पर्व विजय के प्रतीक के रूप में भी जाना जाता है।

 

पर्व के पीछे का इतिहास

 

दशहरा के पर्व के पीछे भगवान राम और रावण की कथा है, जो हिन्दू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। विशेष रूप से भारतीय एपिक ‘रामायण’ में वर्णित गोस्ती के अनुसार, भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता का अपहरण कर लिया था और उन्होंने रावण का संहार किया था। राम और उनके साथियों की सेना ने लंका को जीतकर सीता को वापस पाया था। इस विजय के अवसर पर लोग खुशी मनाते हैं और दशहरा के महत्वपूर्ण पुराने दिन याद करते हैं।

 

इस प्रकार, दशहरा एक महत्वपूर्ण पर्व है जो हिन्दू संस्कृति के अद्वितीय हिस्से को दर्शाता है और विजय, उत्साह, और सामर्थ्य की भावना को प्रोत्साहित करता है।

 

 

संस्कृत श्लोक

 

  • विक्लवो वीर्यहीनो यः स दैवमनुवर्तते।

             वीराः संभावितात्मानो न दैवं पर्युपासते॥

जो कायर और संकोची है, वही भाग्य में मानते हैं।

वीर एवं आत्मविश्वासी लोग भाग्य के भरोसे नहीं रहते।

 

 

  • यतो धर्मस्ततो जयः।

जहाँ धर्म (अपने कर्तव्यों का पालन) है, वहाँ विजय है।

 

 

 

  • इन्द्रियाणि पुरा जित्वा जितन् त्रिभुवनं त्वया।

            स्मरद्भिरिव तद्वैरमिन्द्रियैरेव निर्जितः॥

मंदोदरी रावण के मृत्यु पश्चात – अतीत में, कठिन तपस्या करके, आपने इंद्रियों पर विजय प्राप्त की, तीनों दुनिया पराजित की।

अब, शत्रुता की प्रतिशोध में, उन ही इंद्रियों ने आपको पराजित किया।

 

 

 

 

 

 

 

पुराणों में दशहरा का वर्णन:

 

दशहरा पर्व का महत्वपूर्ण भाग पुराणों में मिलता है। इस पर्व के पीछे भगवान श्रीराम और भगवती दुर्गा के महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन होता है।

 

दुर्गा सप्तमी से विजया दशमी तक की कथा:

 

दुर्गा सप्तमी से विजया दशमी तक की कथा भगवती दुर्गा के महान युद्ध के बारे में है, जिसका मानना है कि उन्होंने देवी दुर्गा के साथ मिलकर दुर्गासुर को विनाश किया था। असुर दुर्गासुर ने देवताओं को पराजित कर लिया था और उन्हें वर्षों तक शिरषासन में बाँध दिया था। उनकी बड़ी संख्या में सेना थी, जिससे देवताएं चिंतित थीं।

 

भगवती दुर्गा ने मात्र 9 दिनों में अपनी शक्तियों का प्रदर्शन करते हुए दुर्गासुर का संहार किया। उन्होंने उसे महान युद्ध में पराजित किया और उसका वध किया। इसके बाद उन्होंने दशमी तिथि को विजय के रूप में मनाने का निर्णय लिया, जिससे यह पर्व “विजया दशमी” या “दशहरा” के नाम से भी जाना जाता है।

 

इस पर्व की कथा से हमें यह सिख मिलती है कि भगवान की शक्ति हमें असुरों और बुराइयों से लड़ने की प्रेरणा देती है, और सच्चे मन से अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संकल्पित रहने का संदेश देती है।

 

 

श्रीराम की कथा – दशहरा पर्व

 

दशहरा पर्व का महत्वपूर्ण एवं प्रसिद्ध हिस्सा श्रीराम की कथा में समाहित है, जिसे रामायण महाकाव्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।

 

रावण वध:

 

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, वर्षों पहले की घटना है, जब रावण लंकाधिपति अपनी दुर्बल और निष्प्राण विधवा सीता का हरण कर लेते हैं। भगवान राम और उनके परिवारवाले ने इस अन्याय के खिलाफ उत्कृष्ट साहस और निष्ठा के साथ संघर्ष किया। उन्होंने दीर्घ और कठिन यात्रा के बाद लंका प्राप्त की, जहां वे रावण से महान युद्ध करते हैं और उनको पराजित करते हैं।

 

जय और विजय:

 

रावण के पराजय के बाद, भगवान राम और उनके परिवारवाले ने अपने प्रणयश्री लक्ष्मण, सीता और हनुमान के साथ अयोध्या की ओर यात्रा की। यह समय उनके धैर्य, न्यायप्रियता और परिश्रम की मिसाल था।

 

इस महत्वपूर्ण विजय के द्वारा, हमें यह सिखने को मिलता है कि धर्म, सत्य और न्याय हमेशा विजय प्राप्त करते हैं, चाहे कितना भी बड़ा और कठिन संघर्ष क्यों न हो।

 

दशहरा पर्व हमें भगवान राम की कथा से प्रेरित होने का अवसर प्रदान करता है, और हमें यह याद दिलाता है कि आदर्श और धर्म की प्रतिष्ठा सदैव ऊँची होती है।

 

दशहरे पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन का महत्व

 

दशहरे के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन अत्यधिक शुभ माना जाता है। यह मान्यता है कि नीलकंठ पक्षी के दर्शन से आपके सभी अधिकारित कार्य सफल होते हैं। नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना जाता है और इसके दर्शन से पैसों और संपत्ति में वृद्धि होने की आशा होती है। विश्वास किया जाता है कि यदि दशहरे के दिन किसी भी समय नीलकंठ पक्षी का दर्शन हो जाए, तो घर में खुशहाली आती है और व्यक्ति के कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

 

 

कैसे मनाते हैं दशहरा

 

भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व होता है, जो हमारे जीवन को रंगीनी और आनंद से भर देते हैं। इन त्योहारों में से एक है “दशहरा”, जिसे विभिन्न रूपों में भारत में मनाया जाता है। यह त्योहार आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और इसे अनेक प्रकार से मनाया जाता है।

 

  1. मां दुर्गा की पूजा: दशहरा के पहले दिनों से ही “नवरात्रि” की शुरुआत होती है, जिसमें मां दुर्गा की नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह पूजा नौ दिनों तक चलती है और हर दिन एक नए रूप की आराधना की जाती है। पूजा के दौरान ध्यान और भक्ति के साथ मां दुर्गा की आराधना की जाती है और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति की जाती है।

 

  1. राम लीला का प्रस्थान: दशहरा का महत्वपूर्ण एक पहलू है राम लीला का प्रस्थान। इस दिन भगवान राम ने लंका के राक्षस राजा रावण को विजय प्राप्त की थी। इस खास मौके पर लोग रामलीला के प्रदर्शन का आयोजन करते हैं, जिसमें रामायण की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को दिखाया जाता है।

 

  1. विजयदशमी का उत्सव: दशहरा के दसवें दिन को “विजयदशमी” के रूप में मनाया जाता है, जिसका मतलब होता है “विजय की प्राप्ति”। इस दिन किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने का महत्व होता है, चाहे वो शिक्षा, कला, व्यापार, या किसी भी दूसरे क्षेत्र में हो। लोग इस दिन नए कामों की शुरुआत करते हैं और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मां दुर्गा की पूजा करते हैं।

 

  1. रंगमंच और मेला: कई स्थानों पर दशहरा के अवसर पर बड़े रंगमंच का आयोजन किया जाता है, जिसमें मां दुर्गा के पूजा पंडालों को सजाया जाता है और उनमें रंगीन नृत्य और संगीत कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। साथ ही, मेले भी आयोजित किए जाते हैं, जहाँ लोग खाने-पीने, खिलौने खरीदने, और मनोरंजन का आनंद लेते हैं।

 

  1. समाजिक सहयोग और दान: दशहरा के इस उत्सव के दौरान लोग धन्यवादी भावना के साथ दान और ज्ञान का प्रचार करते हैं। यह एक सामाजिक उत्सव होता है जहाँ लोग दुर्बलों और जरूरतमंदों की मदद करते हैं और सामाजिक सहयोग का संदेश देते हैं।

 

 

इस तरह, दशहरा एक ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व वाला त्योहार है जिसे विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। यह एक ऐसा मौका है जब हम सामाजिक समृद्धि, सफलता, और आत्मविश्वास की प्राप्ति के लिए नए संकल्प लेते हैं और मां दुर्गा के आशीर्वाद से अपने जीवन को और भी उत्तम बनाने का प्रयास करते हैं।

 

 

दशहरा के पूजा पाठ विधि

 

भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व होता है, जिनमें से एक है “विजयादशमी” जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस पर्व को भगवती के विजया नाम के कारण भी “विजयादशमी” कहा जाता है। यह दिन विजय की प्राप्ति के लिए पूजा-उपासना का अत्यंत शुभ मौका है।

 

शमी पूजन: विजयादशमी के दिन “शमी” वृक्ष की पूजा भी की जाती है। शमी वृक्ष अमंगल, पापों का नाश करने, विजय और कल्याण के लिए पूजा जाता है। शमी के कांटे तांबे के रंग के होते हैं और यह अर्जुन के बाणों को धारण करते हैं। शमी पूजन के बाद शमी वृक्ष के नीचे चावल, सुपारी और तांबे का सिक्का रखा जाता है, इससे इस वृक्ष का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

 

देवियों की पूजा: विजयादशमी के दिन तीन महत्वपूर्ण देवियों की पूजा की जाती है – जया देवी, उमा देवी (पार्वती), और अपराजिता देवी। जया देवी की पूजा से सफलता में वृद्धि होती है, उमा देवी की पूजा से ज्ञान और शांति प्राप्त होती है, और अपराजिता देवी की पूजा से अशांति और पापों का नाश होता है।

 

पूजा की विधि: इस दिन घरों में विशेष पूजा की जाती है। आटे या गेरू से दशहरा मांडकर उपर जल, रोली, चावल, मोली, गुड़, दक्षिण, फूल, जौ के झंवारे अथवा मूली चढ़ायें और आरती करें। इसके बाद पूजा के बाद हाण्डी में से रूपये निकालकर उस पर जल, रोली, चावल चढ़ाकर अलमारी में रख दें। नवरात्र के नवांकुर को भी चढ़ायें और कलम-दवात का पूजन करें। शस्त्र, शास्त्र और पुस्तकों की भी पूजा करना न भूलें।

 

विजयादशमी एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हमें यह याद दिलाता है कि बुराई का परिणाम अच्छाई की जीत होता है। यह दिन हमें नये संकल्प लेने, अपनी साधना में प्रगति करने और सफलता की दिशा में बढ़ने का प्रेरणा स्रोत है। इस विजयादशमी, हम सभी को अपने जीवन के बुरे गुणों को हरने, और अच्छे गुणों को प्रमोट करने का संकल्प लेने का अवसर मिले।

 

दशहरा पूजा

अपराजिता की पूजा कैसे करें – दशहरा के दिन की विशेष महत्वपूर्ण विधि

 

दशहरा के दिन अपराजिता की पूजा करना शुभ माना जाता है। यह पूजा सालभर सफलता प्राप्त करने में मदद करती है और रुके हुए कामों को चलाने में सहायक होती है।

 

पूजा के लिए उत्तर-पूर्व (ईशान) की ओर किसी साफ स्थान को चुनें। इसके बाद साफ जगह पर चंदन से आठ पत्तियों वाला कमल का फूल बना लें। फिर उसमें अपराजिता के फूल या पौधा रखें।

 

इसके बाद, इस मंत्र को संग्रहण करें और मन से पढ़ें: “मम सकुटुम्बस्य क्षेम सिद्धयर्थे अपराजिता पूजनं करिष्ये।”

 

मंत्र को पढ़ने के बाद, अपराजिता देवी से आपके परिवार और खुशहाली की प्रार्थना करें। इसके साथ ही कुमकुम, अक्षत, सिंदूर, भोग, और घी का दीपक जलाएं।

 

पूजा करने के बाद, देवी मां से उन्हें उनके स्थान पर वापस जाने का आग्रह करें।

 

 

ऐसे करें शमी की पूजा

 

निर्णयसिन्धु के अनुसार, दशहरा के दिन शमी के पौधे की पूजा करना लाभकारी माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन शमी की पूजा करने से हर काम में सफलता प्राप्त होती है। इसके साथ ही साल भर यात्राओं में लाभ मिलेगा। शमी के पेड़ की पूजा घर में कर सकते हैं सबसे पहले इस दिन शमी के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाएं। इसके साथ ही दीपक जलाएं।

 

 

 

पूजा के समय कोनसे संस्कृत मंत्र का उच्चारण करें

 

पूजा और आराधना के लिए मंत्र

 

  1. आपराजिता देवी मंत्र:

ऊँ नमो आपराजितायै।

 

  1. जया देवी मंत्र:

ऊँ नमो जयाये।

 

  1. उमा देवी मंत्र:

ऊँ नमो उपाये।

 

  1. शमी पूजन मंत्र:

ऊँ शमीदेव्यै नम:।

 

  1. दशहरा मंत्र:

ऊँ दुर्गायै नम:।

 

ये मंत्र आपके पूजा और आराधना सत्र में उपयोगी हो सकते हैं। ध्यान और भक्ति के साथ इन मंत्रों का उच्चारण करने से आपकी पूजा का आदर्श तथा प्राप्ति हो सकती है। ध्यान दें कि आप मंत्रों के उच्चारण में सच्ची श्रद्धा और प्रासन्न मन रखें।

 

दशहरा मेलों और महोत्सवों का आयोजन

 

दशहरा के मौके पर भारत भर में विभिन्न प्रकार के मेले और महोत्सवों का आयोजन किया जाता है, जिनमें लोग आकर्षित होते हैं और इनका आनंद लेते हैं। ये मेले और महोत्सव धार्मिक, सांस्कृतिक और मनोरंजनिक होते हैं और लोगों को एक साथ मिलकर खुशियों का आनंद उठाने का मौका प्रदान करते हैं।

 

  1. रामलीला: दशहरा के महोत्सव के दौरान भारत के विभिन्न हिस्सों में “रामलीला” का आयोजन किया जाता है। रामलीला में रामायण की महत्वपूर्ण घटनाओं का प्रदर्शन किया जाता है, और लोग इसे देखकर भगवान राम के जीवन की कथाओं का आनंद लेते हैं।

 

  1. मेले: दशहरा के मौके पर बड़े-बड़े मेले भी आयोजित किए जाते हैं। इन मेलों में खान-पान, खिलौने, उपहार और विभिन्न प्रकार की वस्त्रों की बिक्री होती है। लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मेलों का आनंद लेते हैं और खरीदारी का आनंद उठाते हैं।

 

  1. महोत्सवों का आयोजन: दशहरा के मौके पर कई स्थानों पर विशेष महोत्सव आयोजित किए जाते हैं, जिनमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, मैला, गीत-नृत्य, परिदर्शनी, आदि शामिल होते हैं। ये महोत्सव लोगों को सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव करने का मौका प्रदान करते हैं और उन्हें नए और रोचक दृश्यों का आनंद लेने का अवसर मिलता है।

 

  1. रथ यात्रा: कुछ स्थानों पर दशहरा के मौके पर देवी दुर्गा की विजय की प्रतीकता के रूप में रथ यात्रा भी आयोजित की जाती है। इसमें देवी की मूर्ति को विशेष रथ में सवार कर स्थानीय समुदाय के सामने निकाला जाता है, और लोग उसका दर्शन करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

 

दशहरा के मेले और महोत्सव भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण हिस्से हैं जो लोगों को साथ आने, आपसी मिलनसर और आनंद का अवसर प्रदान करते हैं।